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संकष्टी चतुर्थी ,संकटा चौथ, तिल चतुर्थी,माघी चौथ - संकट,आपदा ,विपदा से सुरक्षा


सन्कष्टि गणेश चतुर्थी व्रत
पण्डित विजेंद्र कुमार तिवारी

(24जनवरी 2019 संकट,आपदा ,विपदा से सुरक्षा)

पूजा समय
-प्रात 8 बजे तक
-रात्रि 8 बजे के बाद।

चन्द्र पूजा के बाद भोजन करे।दिन मे पूर्व या उत्तर मुख हो कर पूजा करे ।

कृष्ण पक्ष चतुर्थी का प्रत्येक माह का विशेष महत्व है। माघ माह की कृष्ण पक्ष चतुर्थी का सबसे अधिक महत्व है ।

इस वर्ष यह पर्व 24 जनवरी को है ।इसे विशेष रूप से जिन के पुत्र होते हैं उनको रखना विशेष आवश्यक बताया गया है ।
जिनके नाम - र,त,ख,ज और ग अक्षर से प्रारंभ हो उनके लिए अथवा तुला मकर राशि वालों के लिए अधिक उपयोगी व्रत है |

पद्म पुराण के अनुसार इस व्रत को गणेश जी द्वारा मां पार्वती को बताया गया था ।
इसको संकष्टी चतुर्थी ,संकटा चौथ, तिल चतुर्थी,माघी चौथ  भी कहा जाता है ।
चतुर्थी के दिन ही माघ मास में आदि पूज्य गणेश जी एवं उनके भ्राता कार्तिकेय के मध्य पृथ्वी की परिक्रमा की प्रतिस्पर्धा निर्धारित हुई थी ।जिसमें गणेश जी ने भगवान शिव और मां पार्वती की सात बार परिक्रमा कर इस प्रतिस्पर्धा को जीत लिया था ।भगवान शिव ने प्रथम पूजा का अधिकार गणेश जी को प्रदान किया था।

गणेश जी के मंत्र में विशिष्ट बीज मंत्र -गं ।
मन्त्र-गं गण आधिपतये  नम।
मन्त्र-
गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थ जंबू फल चारु भक्षणम ।
उमा सुतम शोक विनाशक कारणम।
 नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम।
या -
लाल वस्त्र पहन कर पूजा,दीपक की बत्ती लाल रंग की,मौली या कलावा श्रेष्ठ।तिल ,महुआ के तैल का दीपक।
लाल पुष्प धूप दीप तिलगुड़,शकरकंद से निर्मित मिठाई अर्पित की जाती है।
पुत्रवती नारियां -पुत्र के सुख और उसके जीवन को संकटों से बचाए रखने के लिए इस व्रत को करती हैं ।
प्रसाद-तिल का एक बकरा बनाया जाता है , पुत्र के द्वारा ही उसकी गर्दन काटी जाती है और इसके बाद यह प्रसाद भाई बंधुओं में बांटा जाता है इससे उनमें परस्पर मधुर संबंध बनते हैं ।
कहीं कहीं पर तिल का पहाड़ भी बनाया जाता है ,जिसे पुत्र के द्वारा ही तोड़ा जाता है ।उसके बाद प्रसाद स्वरूप बांटा जाता है।

पुत्रवती नारियां -पुत्र के सुख और उसके जीवन को संकटों से बचाए रखने के लिए इस व्रत को करती हैं ।
प्रसाद-तिल का एक बकरा बनाया जाता है , पुत्र के द्वारा ही उसकी गर्दन काटी जाती है और इसके बाद यह प्रसाद भाई बंधुओं में बांटा जाता है इससे उनमें परस्पर मधुर संबंध बनते हैं ।
कहीं कहीं पर तिल का पहाड़ भी बनाया जाता है ,जिसे पुत्र के द्वारा ही तोड़ा जाता है ।उसके बाद प्रसाद स्वरूप बांटा जाता है।

तिल चतुर्थी के विषय में पद्म पुराण एवं अन्य जगह विवरण मिलता है कि-

एक बार जब भगवान विष्णु की लक्ष्मी से शादी हो रही थी । गणेश जी को द्वार पर बैठा दिया गया था कि इनको लेकर जाने से बरात गंतव्य स्थान पर देर में पहुंचेगी । विष्णु भगवान ,गणेश जी को द्वार पाल बना कर चले गए ।गणेश जी उपेक्षा से नाराज हो गए ।
नारद जी को तो गणेश जी द्वारा बताया गया कि इस प्रकार उनकी उपेक्षा की गई है ।नारद  जी ने परामर्श दिया कि आप अपने चूहे आगे भेज दीजिए जो जाकर जमीन को पूरी खोखली कर दें ,जिससे इनके रथ आदि उसमें फंस जाएंगे ।बारात आगे बढ नही सकेगी ।जिसका निराकरण आप ही स्वयं कर पाएंगे ।
ठीक इस प्रकार विष्णु जी की बरात के सभी रथ के पहिए पोली जमीन में धंस गए। निकालते निकालते कई स्थान से टूट गए।
 अंतिम रूप से गणेश भगवान को स्मरण किया गया उनके आने के पश्चात रथ के पहिए निकले एवं वहां जो विश्वकर्मा खाती था उसने उन पहीयों को ठीक किया तथा यह कहा कि आपके द्वारा गणेश जी का सम्मान नहीं किया गया शायद इसलिए ये स्थिति बनी ।इसलिए संकट के निवारण के लिए गणेश जी को प्रारंभ में स्मरण करने के पश्चात ही काम करें।

 एक अन्य कहानी और भी प्राप्त होती है कि -
एक  संपन्न जेठानी एवं गरीब देवरानी जो गणेश जी के भक्त  थे।   देवरानी द्वारा माघ महीने की संकट चतुर्थी को गणेश जी का व्रत किया तिल का पहाड़ बनाया और उसके पश्चात उसे रख रख दिया कि जब चंद्रमा की पूजा कर लेगी उसके पश्चात ही उसे ग्रहण करेगी ।
देवरानी अपनी जेठानी के यहां खाना मांगने गई ।जेठानी द्वारा बताया गया कि चंद्रमा की पूजा के पश्चात सब खाना खाएंगे ।आज तुम्हारे बच्चों को कुछ नही दूंगी ।कल सुबह जो बचे, वह ले जाना ।
देवरानी खालि हाथ अपने घर आ गई ।बच्चे खाने की आशा में बैठे हुए थे कि कुछ मीठा पकवान मिलेगा परंतु उनको आज रोटी भी नहीं मिली थी ।
पति बोला दो रोटी भी नहीं ला सकती तो जेठानी के घर काम क्यों करती है ।पति ने गुस्से में पत्नी को प्रताड़ित किया।
 इस तरह से गणेश जी की याद करते हुए देवरानी सो गई रात्रि में स्वप्न में गणेश जी आए और उसको बोले कि मुझे कुछ खाने को दो देवरानी बोली क्या दूं मेरे घर में अन्न का एक दाना भी नहीं है जो आपको दू,  पूजा का बचा हुआ तिल रखा है वही खा लो ।
गणेश जी बच्चे की तरह बोले कि अब हाथ कहां पोछू? देवरानी बोली मेरे सर से पोंछ लो और कहां ?
सुबह देवरानी उठी तो आश्चर्यचकित रह गई कि ,उसके घर में जगह जगह हीरे मोती हैं और जहां  गणेश जी ने हाथ पोंछे थे ,वहा हीरे मोती लगे  हुए थे ।
इसके बाद दूसरे दिन देवरानी जेठानी क्या काम करने नहीं गई ।जेठानी ने बच्चों को भेजा कि जाओ उसको बुला कर लाओ कल खाना नहीं दिया इसलिए बुरा मान गई ।बच्चों ने कहा चाची चलो सारा काम पड़ा है ।मां ने बुलाया है।
 देवरानी ने जवाब दिया ,अब गणेश जी की कृपा से मेरे सब संकट टल गए हैं अब मुझे किसी के घर काम करने की कोई आवश्यकता नही ।
जेठानी देवरानी के घर गई और उससे पूछा कि गणेश जी किस प्रकार प्रसन्न हुए? उसके द्वारा बताया गया कि बच्चे भूखे थे आपने रोटी नहीं दी थी पति द्वारा मारपीट की गई फिर गणेश जी रात्रि में आए थे ।
जेठानी घर गई उसने बच्चों को खाना नहीं दिया। पति से बोली मुझे मारो क्योंकि बच्चों को मैंने कुछ नहीं दिया। गणेश जी ऐसी प्रसन्न होंगे उसके बाद पति से पीटने के बाद सो गई रात को गणेश जी आए बोले मुझे कुछ खाने को दो ।
 जेठानी के स्वप्न में गणेश जी पधारे ,उन्होंने खाने को मांगा। जेठानी ने कहा तुमने मेरी देवरानी के घर सूखे ति ल खाए थे
मैंने तो आपके लिए शुद्ध घी के मेवा सहित लड्डू बना कर रखे हैं उन्हें खा लीजिए
गणेश जी ने लड्डू खाने के बाद जेठानी को बोला कि मुझे अब दीर्घ शंका को जाना है। जेठानी बोली यह मेरा तो महल जैसा घर है जहां आपको अच्छा लगे वहां आप निपट लीजिए ।
प्रात उठकर जब जेठानी ने देखा तो जगह-जगह गंदगी थी बदबू आ रही थी। पति बोला जब तेरे पास इतना सब कुछ था तो तुझे संतोष करना चाहिए था। जेठानी उदास परेशान होकर फिर गणेश जी से विनती करने लगी। गणेश जी ने कहा कि तुमने उसके साथ अच्छा नहीं किया था यह उसी का फल है ।तुम अपने अपनी संपत्ति में से उसको आधा दोगी तभी यह गंदगी साफ होगी। जिठानी  द्वारा अपनी आधी संपत्ति, देवरानी को दे दी गई ।
उसके पश्चात गणेश जी प्रसन्न हुए और जिठानी का घर पूर्ववत सुख समृद्धि संपदा युक्त हो गया ।
गणेश महाराज आप कृपा कर जिस प्रकार देवरानी पर सुख संपदा समृद्धि दी उसी प्रकार हम सब परिवार वालों को भी दीजिए।

गणेश भगवान को दीपक अर्पण या दिखाने का मन्त्र-
साज्यं  च वर्ति  संयुक्तम वहिग्न्नना  योजितम  मया ।
दीपम ग्रहण देवेश त्रिलोक्य्  तिमिरापहां ।
भक्त्या  दीपम पृयच्छामि  देवाय परमात्मने
त्राहिमाम निर्यास घोर दीप ज्योति।

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