षट तिला एकादशी –कथा पूजा समय
पाप नाशनि जया एकादशी एवं षट
तिला :
एकादशी माघ -मनोकामना पूरक (अग्निष्टॉंम यज्ञ फलफल प्रदायनी ।)
(पण्डित विजेंद्र कुमार तिवारी "ज्योतिष
शिरोमणि)
कैसे प्रचलित?
सर्वप्रथम मुनी श्रेष्ठ पुलस्त्य द्वारा शिष्य दाल्भ्य को इसका
ज्ञान ^सर्व पाप नाशक' के रुप मे दिया
गया।
महाभारत काल मे युधिष्ठिर के प्रश्न "नरक मे पाप कर्मों के
कारण न जाने के उपाय "के उत्तर मे श्रीकृष्ण द्वारा इस दिन के मह्त्व की
जानकारी दी गयी ।
किसकी पूजा ,याचना या अभ्यर्थना करना
चाहिये?
भगवान श्री कृष्ण की पूजा,स्मरण,मन्त्र का विधान है ।
षट तिला शब्द से अभिप्राय?
तिल स्नायी तिलोद वर्ति तिल होमी तिलोद्की।
तिल भुक तिल दाता च षट तिला: पाप नाशना: ।।
अर्थात तिल युक्त जल से स्नान ,तिल से उबटन, तिल से
हवन, तिल से पितरों को तर्पण ,तिल का
भोजन एवं तिल का दान ये छह कार्य तिल के पाप नाशक हैं ।ये छ कार्य तिलों द्वारा
आज किये जाना चाहिए ।
इसलिए इसका नाम षटतिला क्योंकि तिल के यह कार्य माघ माह की कृष्ण पक्ष एकादशी को ग्रहों की विशेष स्थिति के कारण
किए जाना चाहिए।
क्या करे?
जब भी समय हो श्री कृष्ण का स्मरण करे ।रात्रि मे तिल से हवन श्री कृष्ण के किसी मंत्र से करे ।चावल प्रयोग पुर्ण:
वर्जित । टिल के मिष्ट पदार्थ विष्णु जी को अर्पित |
क्या भोजन मे लेना चाहिये?
तिल से बने पदार्थ जैसे तिल के लड्डू,वर्फी,गजकआदि ।मौसमी फल।चावल नही खायें।
क्या दान करे?
चावल के अतिरिक्त कोई फल,अन्न एवं तिल या
तिल् तैल,पकवान तिल के दान करना चाहिये । दानवस्तु
के साथ तिल देना आवश्यक है ।भगवान को भी नैवेद्य या भोग या प्रसाद
तिल से निमित का ही अर्पण करना चाहिये ।जल
कलश/घडा दान,जुता,छाता
।काली गाय का दान ।
पूजा का मन्त्र-(विष्णू जी का मंत्र)अर्ध्य मन्त्र (जल अर्पण)-
कृष्ण कृष्ण कृपालू स्तवम गतिनां गतिर्भव।
संसार अर्णवम अग्नानाम प्रसीद पुरुषोत्तम।।
नमस्ते पण्डिरिकाक्ष नमस्ते विश्व्भावन।
सुब्रह्म्ड्य नमस्ते अस्तु महा
पुरुष पूर्वज ।
गृहाण अर्ध्य्ं मय दत्तं लक्ष्म्या
सह जगत पतये ।।
( hey Shri Krishna aap dayalu Hai Hum us Raheem Jeevan Ke aap
Asha Dutta baniya Purushottam Hum Sath Sath ke Samundar Mein Dooba rahe hain
aap Kripa Kariye person Hoye Kamal and aapko namaskar Vishnu Bhagwan aapko
namaskar subrahamanya Mahapurush Sab ke purvaj aapka namaskar jagatpate aap
Lakshmi Ke Sath Mera Diya Hua Dard Sweekar kare .)
श्री कृष्ण भगवान आप सच्चिदानंद स्वरूप है
।दयालु हैं। हम आश्रय हीनों के आश्रय हैं ।पुरुषोत्तम हैं । हम संसार के समुद्र में
डूब रहे हैं हम पर प्रसन्न होइए। कमलनयन आपको नमस्कार है। विश्व भवन आपको नमस्कार
है। सुब्रमण्य महापुरुष आप सबके पूर्वज हैं। आपका नमस्कार है ।हे जगत के स्वामी ,आप लक्ष्मी जी के साथ मेरा दिया हुआ अर्ध्य जल र्स्वीकार करें।
पूजा सामग्री?
रात्रि पूजा काल।कपूर,चन्दन,तिल प्रसाद,कमल या स्वेट
पुष्प,विष्णू(चक्र,गदा,शंख धरण किये हुए विष्णु स्वरुप)ध्यान।
कुम्ह्डा,नारियल,बिजोरा
नीबू,अर्पण।या 100सुपारी द्वारा पूजा
करे।
-कथा
जया ,षट तिला एकादशी पिशाच मोचनी भी है?
एक बार स्वर्ग के राजा इंद्र पारिजात वृक्ष वंन मे
बिहार कर रहे थे उन्होंने एक नृत्य का आयोजन किया ।
गंधर्व श्रेष्ठ नायक माल्यावान एवं पुष्प
वंती भी थे।
दोनों एक दूसरे से प्रेम करते थे ।मोह के वशीभूत वे शुद्ध गान
नहीं कर पा रहे थे।
इससे इंद्र कुपित हो गए और उनको श्राप दिया
कि तुम दोनों पति पत्नी के रूप में पिशाच हो जाओ।
पिशाच योनि प्राप्त कर दोनों हिमालय पर्वत
पर चले गए एवं कष्ट भोगने लगे
देव योग से माघ मास की एकादशी जिसका नाम
जया है जो तिथियों में उत्तम है आई ।उन दोनों ने जलपान त्यागकर रात्रि जागरण किया।
सूर्योदय समय उस रात्रि जागरण एवं व्रत से,
भगवान विष्णु की शक्ति से वे पिशाच योनी
से मुक्त हो गए।
पुष्पवती और मूल्यवान स्वर्ग लोक गए।
इंद्र उन दोनों को उस रूप में देख कर
आश्चर्यचकित विस्मित हो गए और पूछा किस पुण्य के प्रभाव से तुम दोनों पिशाच योनी
से मुक्त हो।
तुमको मैंने श्राप दिया था ।किस देव ने तुम को पिशाच योनि से मुक्त किया ?
माल्यवांन ने बताया- भगवान वासुदेव
की कृपा तथा जया नामक एकादशी के व्रत से हमारी पिशाच योनि से मुक्त हुई है ।
भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया, राजन
एकादशी का व्रत जया ब्रह्महत्या को भी दूर करने वाला
है इससे संपूर्ण यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
यह व्रत किस राशि एवं नाम वालों के लिए संकट मोचन कारी सिद्ध
होगा?
ज्योतिष के आधार पर जिन के नाम क,छ,घ,स,ग,श,र,त,इ,उ,ए,ओ,ब, अक्षर
से प्रारंभ होंगे ।उनको यह व्रत अथवा भगवान वासुदेव श्री कृष्ण विष्णु जी का स्मरण
एवं पूजा करना संकट मुक्ति कारी सिद्ध होगा ।
वृष, सिंह,कन्या,तुला,मिथुन,कुम्भ ,मेष, राशि वालों को इस दिन
भगवान वासुदेव की पूजा करना उनकी मनोकामना पूरक सिद्ध होगा।
पूजा के विशिष्ट मुहूर्त -
शुभ मंगल कार्य एवं सामान्य कामना पूर्वक काम के लिए श्रेष्ठ
मुहूर्त प्रातः 9:15 से 10:40 ;
अभिजित मुहूर्त 12:33 से 12:56 तक;
इसके साथ ही यदि बहुत संकट परेशानी के काल हैं
तो राहु काल में पूजा करने से संकट मुक्ति होगी ।
शनि के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए – 07:02-
08:25 बजे तक ।
अन्य ग्रहों के कष्ट से मुक्ति के लिए प्रातः 7:10 से 8:20 तक।
पूजा ,हवन आदि शीघ्र फलदायी होंगे ।
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