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माघ मौनी अमावस्या :29जनवरी 2025"मौन"भगवान सूर्य-विष्णु की पूजा,पापों का नाश तर्पण,


संदर्भ ग्रंथ - देवी पुराण,वायू पुराण,ब्रह्म पुराण,व्रत परिचय,निर्णय सिन्धु।
                   

माघ माह स्नान (श्रेष्ठ समुद्र जल स्नान,अथवा गंगा या तीर्थ जल ) के लिये प्रशस्त है ।

सूर्योदय पूर्व स्नान अति उत्तम।
वर्जित विशेष '-

तैल,मूली,रुई की वत्ती का दीपक,हल्दी का प्रयोग वर्जित /निषेध है।

(कलावा,मौली की वार्तिक सर्वदा श्रेष्ठ )
1-कष्ट विपत्ति से सुरक्षा के लिये किसको अवश्य करना चाहिये?
ज्योतिष में राशि के आधार पर इस अमावस्या को वृषभ कन्या एवं मीन राशि वालों को अवश्य सूर्योदय  पूर्व,तीर्थ जल, समुद्र जल से स्नान करना चाहिए ।स्नान एवं दान  पूर्णिमा एवं अमावस्या को उत्तम फलप्रद होता है ।
यदि आपके नाम  -
-इ,ऊ,ए,ओ,प,थ,ठ,द,च अक्षर से  प्रारंभ हो उनको भी अवश्य सूर्योदय पूर्व स्नान करना चाहिए।
स्नान मंत्र-पद्म पुराण
दुख दारिद्र्य  नाशाय श्री विष्णु  प्रसन्नार्थ्ं।प्रात:स्नानं करोम्य , माघे पाप विनाशिनम।
(माघ मास मे स्नान कर ,विष्णु जी की कृपा से सब  पाप नाश होंगे एवं कष्ट, दुख, निर्धनता समाप्त होगे। )


जन्म नक्षत्र श्रवण या मकर राशि वालो को भी अपव्यय आदि पर नियन्त्रण हेतू 
इससे दैनिक जीवन  मे आगामी अमावस्या तक ग्रह आपदा कष्ट धन हानी की सम्भावना नही होगी।
कार्य विशेष हेतु शुभ काल
 -सूर्योदय से 3 घंटे 40 मिनट तक जप ध्यान उपासना मंत्र आदि देव सेवा के लिए उत्तम काल है ।
- लगभग 10:40 से 2:00 बजे तक मनुष्य काल अर्थात संस्कार आयु स्वास्थ्य धन व्यापार मंत्रणा आदि के लिए उपयुक्त समय है।
अपराहन 2:00 बजे से लेकर 6:00 बजे तक श्राद्ध तर्पण मित्र संबंधी कार्य किए जाना विशेष है ।
 पूजा की सामान्य विधि वासुदेव कृष्ण, ब्रह्मा एवं गायत्री देवी का स्मरण करना चाहिए।
मन्त्र-
 यत किंचित वाचिकम पापम मांनसम  कायिकं  तथा तत  सर्वम नाशमायाती युगा दि तिथि  पूज्य नात।

साधु सन्यासी एवं अपने स जातियों को भोजन कराना चाहिए।
"मौन" रहना  रहना चाहिए ।
ऋषि या मुनि के समान संयम ,शांति ,उदारता,अल्प भाषी,जैसा व्यवहार का  प्रयास करना चाहिए ।
 पूरा दिन मौन रहकर  व्यतीत किया जावे ।तिल का विशेष महत्व दान एवं भोजन मे है ।
*जोड़े से /पति पत्नी को भोजन कराने का विशेष महत्व है ।
*गुड़ और काला तिल या काले तिल गुड़ के लड्डू बनाकर लाल वस्त्र में बांधकर ब्राह्मण दंपति को अथवा मंदिर में दान करना चाहिए ।
*साय समय पित्र श्राद्ध ,उनको तिल अर्पण करना ।पितरों की तृप्ति के लिए उपयोगी होता है ।

इस अमावस्या की विशेषता है कि इसमें सभी नदियों का जल शुद्ध हो जाता है जो कि हमारी आत्मा के लिए श्रेष्ठ मान्य है।
 कंबल एवं तिल दान इस अमावस्या का विशेष महत्व है।
*विशेष ध्यान -पितर और देवताओं को मूली ना दें ।
मूली  स्पर्श अथवा भोजन में प्रयोग न  करें।
*वस्त्र धोना या धुलवाना वर्जित।
- अमावस्या के विशेष पर्व पर पीपल वृक्ष की 108  प्रदक्षिणा अथवा परिक्रमा के साथ 108 की संख्या में वस्तु का दान किए जाने का विशेष महत्व है ।
इस दिन गुप्त दान का भी बहुत महत्व है ।परंतु गुप्त दान  धन के रूप में दान करने का कोई विशेष प्रयोजन नहीं है। अतः जन उपयोगी वस्तु या  अन्न  दान किया जाना श्रेष्ठ है।

माघ अमावस्या को दोपहर 11 बजे से 2 बजे तक धन, आयु, सफलता के लिए पूजा-अर्चना उपयोगी है।
इस समय में विशेष रूप से धन की वृद्धि और जीवन में सफलता के लिए ध्यान, आहुति, और उपासना करनी चाहिए।

2 बजे से 6 बजे तक - श्राद्ध, तर्पण और पितृकार्य उन पितरों की प्रसन्नता के लिए करें, जिनका तर्पण और श्राद्ध आवश्यक हो। इस समय में ये कार्य करने से जीवन में किसी भी काम में विलंब या रुकावट नहीं आती है।

आज ब्रह्मा की पूजा और गायत्री जाप भी बहुत शुभ रहेगा। यह आपकी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में प्रवाहित करेगा और आपके कार्यों में सफलता और सौभाग्य की प्राप्ति होगी।

इस दिन को पूजा-अर्चना और तर्पण के साथ बिताने से जीवन में समृद्धि और पितृदोषों से मुक्ति प्राप्त होती है।

माघ अमावस्या की कथा

एक समय की बात है, कांचीपुरी नगर में देवस्वामी नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी धनवती के साथ रहते थे। उनके सात पुत्र और एक पुत्री मालती थी। ब्राह्मण के सातों पुत्रों का विवाह हो चुका था और अब उनकी चिंता अपनी पुत्री मालती के विवाह को लेकर थी।

ब्राह्मण ने अपनी पुत्री मालती की जन्म कुंडली एक पंडित से दिखायी, तो पंडित ने बताया कि मालती की कुंडली में वध दोष (शादी के दौरान पति की मृत्यु का दोष) है। पंडित ने यह भविष्यवाणी की कि मालती के विवाह के समय सप्तपदी (सात फेरे) के दौरान ही उसका पति मर जाएगा और वह विधवा हो जाएगी।

ब्राह्मण ने पंडित से पूछा कि इस दोष का निवारण कैसे हो सकता है। पंडित ने कहा कि केवल सोमाधोबिन के पूजन से ही यह दोष दूर हो सकता है। सोमाधोबिन एक पतिव्रता (पति के प्रति समर्पित) महिला थी, जो दक्षिणी समुद्र के बीच स्थित एक सिंहल द्वीप पर रहती थी। उसकी भक्ति इतनी पवित्र थी कि यमराज (मृत्यु के देवता) भी उसके सामने झुकते थे और उसकी कृपा से तीनों लोकों में उजाला फैलता था। पंडित ने बताया कि यदि देवस्वामी उसका पूजन करें, तो उनकी पुत्री का विवाह सुखमय होगा।

देवस्वामी का सबसे छोटा पुत्र अपनी बहन मालती के साथ सिंहल द्वीप जाने के लिए समुद्र तट पर पहुँच गया। वे दोनों समुद्र पार करने के लिए चिंतित थे, तभी वहां पर एक पेड़ पर बैठा हुआ एक गिद्ध परिवार उनके पास आया। गिद्ध के बच्चों ने उन दोनों को देखा और मादा गिद्ध से कहा कि वे दोनों भूखे हैं, लेकिन भोजन नहीं कर रहे हैं। मादा गिद्ध ने बच्चों से कहा, "अगर तुम लोग खाना नहीं खाओ तो मैं तुम्हारी मदद करूंगी।"

मादा गिद्ध ने उनकी मदद की और दोनों को सोमाधोबिन के घर तक पहुंचा दिया। सोमाधोबिन ने देखा कि वे दोनों बिना किसी काम के नहीं आए, बल्कि उन्होंने सुबह-सुबह उसके घर की सफाई की। सोमाधोबिन को आश्चर्य हुआ और उसने अपनी बहुओं से पूछा कि यह सफाई काम किसने किया। बहुओं ने कहा कि वे दोनों सफाई कर रहे थे, लेकिन सोमाधोबिन को उन पर विश्वास नहीं हुआ। उसने रातभर जागकर देखा और तब उसे सच्चाई का पता चला।

सोमाधोबिन ने दोनों को अपने घर में बुलाया और जब पूरी कहानी सुनी, तो उन्होंने दोनों से कहा कि वे उनके साथ चलें। रास्ते में सोमाधोबिन ने अपनी बहुओं से कहा, "अगर किसी के मरने की स्थिति में, तुम लोग उनके शव को संभालकर रखना और मेरे आने तक इंतजार करना।"

जब सोमाधोबिन, दोनों भाई-बहन के साथ कांचीपुरी पहुंची, तो मालती के विवाह की पूजा हुई। लेकिन सप्तपदी के दौरान, मालती के पति की मृत्यु हो गई। यह देख सोमाधोबिन ने अपनी सभी पुण्य कर्मों का फल मालती को दे दिया। इसके परिणामस्वरूप मालती का पति जीवित हो गया और उसका विवाह संपन्न हुआ।

सोमाधोबिन ने फिर उन दोनों को आशीर्वाद दिया और अपने घर लौटने के लिए चल पड़ी। रास्ते में पीपल के पेड़ के पास जाते समय, उसने भगवान विष्णु की पूजा की और वृक्ष के चारों ओर 108 परिक्रमा की। जैसे ही उसने परिक्रमा पूरी की, सोमाधोबिन के घर के सभी मृत सदस्य जीवित हो गए।

कथा का सार:
यह कथा यह संदेश देती है कि समर्पण, भक्ति और पुण्य का फल हमेशा साकार होता है। सोमाधोबिन की कथा यह भी दर्शाती है कि जब हम अपने पुण्य को दूसरों के भले के लिए समर्पित करते हैं, तो हमें उसका अधिकतम लाभ मिलता है। इसके अलावा, यह कथा यह भी दर्शाती है कि सच्ची भक्ति और त्याग से कोई भी संकट दूर किया जा सकता है।

माघ अमावस्या का महत्व इस कथा से जुड़ा हुआ है, क्योंकि इस दिन की पूजा और पवित्र कार्यों से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन में समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।

माघ अमावस्या के महत्व और पूजा विधि - प्वाइंट वाइज हाइलाइट्स

  1. धन, आयु और सफलता के लिए पूजा

    • माघ अमावस्या पर भगवान विष्णु की पूजा और पुण्य कार्यों से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
    • पौराणिक कथा के अनुसार, सोमाधोबिन ने अपने संचित पुण्य से गुणवती के पति की जान बचाई।
  2. समुद्र मंथन और अमृत कलश

    • समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।
    • अमृत की कुछ बूंदें भारत के प्रमुख स्थानों पर गिर गईं—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—जहां महाकुंभ का आयोजन होता है।
  3. माघ अमावस्या पूजा विधि

    • ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की सफाई करें और नदी में स्नान करें।
    • स्नान के बाद भगवान सूर्य को अर्घ्य दें और तिल जल में चढ़ाएं।
    • भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें ताजे फल, फूल, धूप, और घी का दीपक अर्पित करें।
    • पितरों की पूजा करें और तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध करें।
  4. गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराना

    • पूजा के बाद गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराएं और स्वयं भोजन करके अपना व्रत खोलें।
  5. माघ अमावस्या का महत्व

    • माघ अमावस्या को मौनी अमावस्या भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन मनुष्य को मौन रहकर तप और साधना करनी चाहिए।
    • इस दिन व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है और जीवन में खुशहाली आती है।
    • पवित्र नदियों में स्नान करने से जीवन के समस्त पाप नष्ट होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।
  6. माघ अमावस्या की कथा

    • कांची पुरी में देवस्वामी नामक ब्राह्मण के सात पुत्र और एक पुत्री मालती थी।
    • मालती के विवाह में वेध दोष था, जिसके कारण उसकी शादी के समय पति की मृत्यु का संकट था।
    • सोमाधोबिन के आशीर्वाद से वेध दोष समाप्त हुआ और मालती का पति जीवित हो गया।
  7. सोमाधोबिन की कहानी

    • सोमाधोबिन ने अपने पुण्य से मालती के पति की जान बचाई।
    • सोमा ने पीपल के पेड़ के पास भगवान विष्णु की पूजा की और 108 परिक्रमा की, जिसके बाद उनके परिवार के सभी मृतक जीवित हो गए।
  8. माघ अमावस्या से जुड़ी मान्यता

    • इस दिन को मनु अमावस्या भी कहा जाता है क्योंकि मनु महाराज ने इस दिन सृष्टि की रचना की थी।
    • इस दिन विशेष रूप से पितरों की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान किया जाता है।
  9. व्रत और पुण्य लाभ

    • इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से पूर्णता और पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

निष्कर्ष:
माघ अमावस्या का दिन विशेष रूप से धार्मिक क्रियाओं, तर्पण, और पुण्य कार्यों के लिए महत्वपूर्ण है। यह दिन भगवान विष्णु और शिव की पूजा, पवित्र नदियों में स्नान, और पितरों को श्रद्धांजलि देने के लिए अत्यंत फलदायी होता है।

Magh Amavasya Vrat and Its Significance

Magh Amavasya is a very auspicious day in Hindu tradition, especially for seeking prosperity, happiness, and spiritual growth. It is believed that the worship of Lord Vishnu and performing righteous actions on this day leads to blessings in the form of wealth, success, and health. According to ancient scriptures, the story of Soma Dhobin from the Puranas illustrates the power of devotion and selfless acts. Soma Dhobin, by donating her accumulated merit, saved her husband's life. Similarly, during the churning of the ocean (Samudra Manthan), when Lord Dhanvantari appeared with the pot of nectar (amrit), a few drops of nectar fell in various holy rivers like the Ganga in Prayagraj, Haridwar, Ujjain, and Nashik, making these places significant for taking holy dips. Since then, the Kumbh Mela is organized in these places, and taking a dip in these rivers is considered equivalent to bathing in nectar.

Magh Amavasya Vrat Ki Puja Vidhi (Worship Method)

  1. On the day of Amavasya, wake up during Brahma Muhurat (early morning) and clean your house.
  2. Take a dip in a nearby river or at a holy place, and offer arghya (water offering) to Lord Surya (the Sun God). You can also add sesame seeds to the water as part of the ritual.
  3. After the bath, offer prayers to Lord Vishnu with fresh fruits, flowers, incense, and a ghee lamp (diya).
  4. On this day, prayers and offerings are made to ancestors, and it is considered an ideal time to perform Shraddha (rituals for ancestors).
  5. After completing the rituals, offer food to Brahmins or the poor to seek blessings. Once this is done, you may break your fast by having your own meal.

Significance and Benefits of Magh Amavasya Vrat (Importance and Benefits)

  • The word "Muni" (sage) is derived from the word "Moun" (silence). Thus, this day is also known as Mauni Amavasya, when devotees observe silence and practice self-restraint. If one cannot observe complete silence, it is important to refrain from speaking harsh words.
  • On this day, performing the worship of Lord Vishnu and Lord Shiva with devotion purifies the soul and helps in eradicating all sins.
  • Taking a holy dip in the sacred rivers and fasting on Magh Amavasya is believed to purify the soul, wash away past sins, and bring happiness and prosperity into one’s life.

Magh Amavasya Vrat Ki Katha (Story of Magh Amavasya Vrat)

Once, in the city of Kanchi Puri, a Brahmin named Devaswami lived with his wife, Dhanwati, and their seven sons and one daughter named Malti. The sons were already married, and now the Brahmin was concerned about the marriage of his daughter.

When he consulted an astrologer, the astrologer saw that Malti's horoscope had a Vadh Dosh (marriage flaw), and he predicted that her husband would die during the wedding ceremony (Saptapadi – seven vows of marriage). The Brahmin asked the astrologer for a solution, and the astrologer suggested that worshiping Soma (a righteous woman) would eliminate the dosh (flaw).

Soma, who lived on an island in the southern sea, was known for her devotion to her husband, and her piety was so powerful that even Yamraj (the god of death) had to bow before her. The Brahmin’s youngest son, along with his sister Malti, set off for the island to meet Soma.

During their journey, they were helped by a family of vultures, who guided them to Soma’s house. The siblings worked hard, cleaning and sweeping Soma's house, which eventually led to Soma discovering their true intention. After learning their story, Soma agreed to accompany them back to Kanchi Puri.

However, before leaving, she instructed her daughters-in-law to preserve any deceased bodies in case of death and wait for her return. On the way, Soma, with her divine powers, saved the life of Malti's husband just when he was about to die during the Saptapadi.

Soma then gave all her accumulated merits to Malti, bringing her husband back to life. As a result, Soma's family suffered the loss of their loved ones, but as she performed a parikrama (circumambulation) of a Peepal tree, chanting prayers to Lord Vishnu, all her deceased family members were revived.

This story highlights the power of selfless devotion and the importance of Magh Amavasya in Hindu traditions.

Link to Mauni Amavasya: It is also said that Manu Maharaj, the first human, began the creation of the world on this day, which is why it is sometimes called Manu Amavasya. Over time, it became more commonly known as Mauni Amavasya, and the practice of honoring ancestors through Tarpan, Pind Daan, and Shraddha continues to be a significant part of the tradition on this day.

Conclusion: Magh Amavasya is an important day for spiritual practices, rituals, and seeking blessings for a prosperous life. Worshiping Lord Vishnu, observing silence, and doing acts of charity help cleanse the soul, strengthen family ties, and bring divine blessings.


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श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...