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मकर संक्रांति : स्नान, दान पर्व - पद्म और सूर्य पुराण सन्द्त्र्भ ग्रंथ


1-

1- संक्रांति से आशय है संक्रमण अर्थात एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचना सूर्य जब धनु राशि से मकर राशि पर पहुंचता है तो उसको मकर संक्रांति कहा जाता
ओम खखोल्काय नम:।श्रेष्ठ मंत्र ।
आदित्य हृदय स्त्रोत।
तिल तैल,तिल् पीस कर उबटनस्नान।
तांबे का पत्र जल मे तिल,
है सुर्य देव मै(अपना नाम ) आपकी कृपा परसनन्ता के लिये एवं अपनी सभी मनोकामना एवं सफलता के लिये आपको जल तिल अर्पित कर रहा हं।
दान वस्तु-तिल दांन ।माचिस(अग्नी एवं लकडी)जूता,तिल की गाय,गाय ,बैल दान का पुराणो के अनुसार मह्त्व है।
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वस्तु दान ।।
2-
संक्रांति पर्व का प्रचलन का क्या कोई पुरानी का आधार है|

भगवान विष्णु के द्वारा राक्षसों का अंत कर युद्ध समाप्त की घोषणा मकर संक्रांति के दिन की गई थी ।
       
एक दूसरा विवरण मिलता है राजा भागीरथ अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए कपिल मुनि के आश्रम से स्वर्ग से गंगा को लाकर पृथ्वी पर लाये। मकर संक्रांति का हीदिन था।
 
एक अन्य प्रकरण में भीष्म पितामह द्वारा अपने प्राण त्याग के लिए सूर्य के उत्तरायण होने पर मकर संक्रांति का दिन ही था।

3-
क्या 14 जनवरी को कोई ऐतिहासिक घटना भी हुई थी ?
 
अवश्य ही 14 जनवरी 1761 लगभग 257 वर्ष पूर्व मराठा सेना के लगभग 40,000 मराठा सैनिक एवं परिवार मारे गए थे महाराष्ट्र में संक्रांति कोषाली दुर्घटना का सबसे बड़ा दिन माना जाता है ।

4-
संक्रांति कितनी होती हैं 1 वर्ष में?
 1
वर्ष में सूर्य के द्वारा 12 राशियों पर भ्रमण किया जाता है अर्थात एक राशि से दूसरी राशि पर 12 प्रकार या बार गमन सूर्य करता है प्रत्येक माह एक संक्रांति होती है ।

5- प्रमुख संक्रांति कौन-कौन सी होती है

प्रमुख रूप से वर्ष भर में चार प्रमुख संक्रांति खगोलीय घटना के आधार पर होती हैं मकर संक्रांति सूर्य के उत्तरायण होने पर कर्क संक्रांति सूर्य के दक्षिणायन होने पर यह दुआ की प्रमुख है इसके साथ तुला एवं मेष संक्रांति बी प्रमुख होती है इस प्रकार कुल 4 संक्रांति खगोलीय घटना के आधार पर प्रमुख होती हैं।

6- 
मकर संक्रांति खिचड़ी का पर्व भी कहा जाता है ऐसा क्यों?
एक ऐतिहासिक घटना है ,अलाउद्दीन खिलजी से नाथ योगियों का संघर्ष प्रारंभ हुआ
उस समय नाथ योगियों को समय पर भोजन उपलब्ध नहीं होने के कारण दे दुर्बल होते जा रहे थे। षिव तुल्य शक्तिमान गुरु गोरखनाथ जी उनके गुरु
 
उनके द्वारा परामर्श दिया गया कि, दाल चावल एवं सब्जी एक साथ मिलाकर पकाएं ।
ऐसा करने पर वने भोजन को ग्रहण करने के बाद नाथ योगियों को ऐसा प्रतीत हुआ कि ,समय बचत एवं इससे शक्ति ऊर्जा पौष्टिकता में वृद्धि हुई एवं शीघ्रता से भोजन भी बन गया।
 
विशिष्ट भोजन का नाम गुरु गोरखनाथ जी द्वारा खिचड़ी दिया गया ।उस समय से इस को विशेष तौर पर यूपी के क्षेत्रों में खिचड़ी पर्व के रूप में भी बनाया जाता ह

7- 
पुराणो  के आधार पर इसका क्या महत्व है?

वैदिक एवं पौराणिक आधार पर यह खगोल विज्ञान की घटना के आधार पर सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तो उसको दक्षिणायन बोलते हैं ।एवं पूर्व से जब उत्तर की ओर गमन करता है तो उसको उत्तरायण संज्ञा दी गई है।
 
ऐसी मान्यता है दक्षिणायन काल 6 महीने देवों का  काल माना गया है एवं उत्तरायण काल को देवों का जागरण काल माना गया है।
 
सूर्य दक्षिणायन काल में अस्वस्थ कारी नकारात्मक ऊर्जा कि रश्मि और संयुक्त रहता है, जबकि उत्तरायण में सूर्य की रचनाओं में सकारात्मक चेतन आत्मक एवं उसके कार्य शक्तियां रहती हैं इसलिए इस अवधि को पूजा पाठ एवं दान के लिए श्रेष्ठ माना गया है।

 8-
संक्रांति के अवसर पर दान एवं पूजा पाठ का भी महत्व है। किस वस्तु का दान श्रेष्ठ होता है?
 
संक्रांति विशेष रूप से सूर्य ग्रह का राशि परिवर्तन का अवसर है इसलिए सूर्य ग्रह की पूजा एवं उनसे संबंधित दान का महत्व है ।
पौराणिक आधार पर संक्रांति अवधी मे दिया हुआ दान 100 गुना अधिक  रूप में प्राप्त होता है

9-
इस पर्व पर तिल दान एवं पकवान उबटन आदि का महत्व क्या कोई पौराणिक आधार है?
संबंध में एक विवरण प्राप्त होता है कि सूर्य देव की दो पत्नी थी ।संज्ञा एवं छाया संज्ञा के पुत्र यमराज एवं छाया के पुत्र शनि देव हैं ।
किन्ही कारणों से शनी एवं छाया काव्यव्हार  संज्ञा तथा यमराज के प्रति उचित प्रतीत नहीं होने पर सूर्य देव ने उनके घर से बाहर कर दिया ।
अपमान से  क्रोधित होकर दोनों मा एवं बेटे ने उनको कुष्ठरोग रोगी होने का श्राप ।सूर्य देव को कुष्ठ  हो गया जिसको उनके बेटे यमराज द्वारा तपस्या कर रोग से मुक्त किया गया।
 
रोग से मुक्त होने पर सूर्य देव ने शनि के घर कुंभ को  जलाकर भस्म कर दिया ।अंततः शनिदेव अपने पिता की शरण में गए परंतु उनके पास पिता को भेंट देने के लिए कुछ भी ना था।
 
घर जलने के उपरांत  तिल नहीं जले थे जिनको लेकर शनिदेव ने सूर्य भगवान को अर्पित किया।
 
जिस से सुर्य  देव ने प्रसन्न होकर उनको दूसरा घर मकर प्रदान कर धन-धान्य से पूर्ण किया ।
इस प्रकार मकर एवं काले तिल का मह्त्व सूर्य प्रसन्नतादीर्घायु धन ,संपन्नता के लिये प्रयोग प्रचलन।

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क्या पतंग इस पर पर उड़ाने का कोई विशिष्ट प्रयोजन है
जब सूर्य उत्तर दिशा की ओर गमन करने लगता है तो उसकी राशियों में स्वास्थ्यवर्धक प्रभाव रहते हैं पतंग उड़ाते समय प्रार्थना से जब हम सीधे सूर्य के प्रकाश में आते हैं तो अवश्य हमारी त्वचा पर उसके अनुकूल प्रभाव होते हैं तथा विज्ञान स्तर पर भी हमें विटामिन डी की प्राप्ति होती है जो कि हमारे शरीर के लिए उपयोगी है इस अवधि में सूर्य की किरणें शरीर के लिए हानि प्रद नहीं होती हैं इस प्रकार अन्य भी कारण हो सकते हैं
क्या मकर संक्रांति जनवरी मे खगोल विज्ञान,वेद या पुराण सम्मत है?
   विष्णू पुराण,निर्णय सिन्धु, एवं खगोल विज्ञान के आधार पर जब सूर्य उत्त रायण गमन प्रारंभ कर्ता है संक्रांति होती है ।एसा 21/22दिसंबर को ही होता है ।प्रथम से दुसरी
    (
मेष ,तुला,कर्क )संक्रांति भी इस आधार पर 30दिन के अन्तराल पर होंगी ।
जनवरी माह मे कोई सूर्य संक्रांति वास्तविक कभी हो ही नही सकती । जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा 123वर्ष पूर्व ,एवं पंचांग सुधार समिति 1953मे स्पष्टत स्वीकार किया गया कि पंचांग जो जनवरी मे मकर संक्रांति दर्शाती हैं वे 24दिन तक गलत है ।पर तात्कालीन स्व,प्रधानमंत्री नेहरु जी जनहित मे निर्णय नहि ले सके ।
त्रुटी यथावत ।

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कोई  प्रमाण दे सकते है केलेंड़रो पंचांगों की त्रुटी का जिसे समान्य जन समझ सके?
हां,अवश्य कृपया बतायें- कोई भी वर्ष मध्य माह से शुरु होसकता है?या माह मे 15दिन को 30वा दिखाना एवं 30वे दिन को 15वां दर्शाना ,उचित है?
उत्तर भरत की पंचांग नया वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष से शुरु करती है एवं चैत्र कृष्ण पक्ष वर्ष अन्त मे 
कृष्णपक्ष से माह शुरु कर 15वे दिन को 30लिखते ।
 
वैदिक ज्योतिष मे ऋतु के अनुरूप व्रत पर्व आदि निर्धारित होते हैं।पर वसंत पंचमी वसंत ऋतु मे न होकर
 शिशिर ऋतु मे लिखते है ।

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क्या कोई प्रमाण है कि, माह शुक्ल पक्ष से ही प्रारंभ करना चाहिये?
   
ऋग्वेद-10,85-18-19
शुक्ल पक्ष से माह आरम्भ एवं कृष्ण पक्ष मे अन्त ।
अमान्ताद्ं मांत यावत चांद्र मासो भवति ।
पंचवर्षीय युग-
माघ शुक्ल प्रपंंस्य,पौष कृष्ण समापित:।




पण्डित विजेंद्र कुमार तिवारी 
शुभम अस्तु ।

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