भद्रा एवं राहूकाल में दुर्गा पूजा : आपत्ति-विपत्ति दूर करे|
- भद्रा में दुर्गा जी के पूजा का विशेष महत्व है। स्मृति समुच्य ग्रंथ में लेख है 'भौमेति प्रशस्ता' अर्थात मंगलवार को सप्तमी होना अति उत्तम है। 16 अक्टूबर को मंगलवार का दिन सप्तमी तिथि को है।
- देवी पूजा भद्रा के समय 16 अक्टूबर को अवश्य करें।10:19-23.34 भद्रा समय|
- देवी की पूजा भद्रा में होना श्रेष्ठ परिणाम प्रद माना गया है। देवी पुराण में उल्लेख है- देवी कहती हैं' "मैं भद्रा रूप हूं ,भद्रा मेरा स्वरूप है, हम दोनों में कुछ अंतर नहीं है ,भद्रा काल मे पूजा करने पर, मैं सब सिद्धि को देने वाली होंउगी ।
निर्णय अमृत ग्रंथ - भद्रा को छोड़कर जो महाष्टमी को मेरी पूजा करता
है ।उसने मेरा अपमान किया है ।उसको पूजा का फल नहीं मिलेगा।("विष्टीं त्यक्त्वा महाअष्टंयाम मं
पूजां करोति य:। तस्य पूजा
फल्ंन स्यात्तेनाहं अवामनीता।")
अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अर्ध रात्रि में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में भद्रकाली देवी अवतरित हुई थी। इसलिए अष्टमी की रात्रि को दुर्गा उत्सव किया जाना, जागरण किया जाना विशेष उपयोगी सिद्ध होता है। अष्टमी एवं नवमी को दुर्गा का पूरा पाठ या दुर्गा सप्तशती सप्तश्लोकी का पाठ अवश्य करें।
अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अर्ध रात्रि में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में भद्रकाली देवी अवतरित हुई थी। इसलिए अष्टमी की रात्रि को दुर्गा उत्सव किया जाना, जागरण किया जाना विशेष उपयोगी सिद्ध होता है। अष्टमी एवं नवमी को दुर्गा का पूरा पाठ या दुर्गा सप्तशती सप्तश्लोकी का पाठ अवश्य करें।
राहुकाल में पूजा करे आसुरी शक्ति /शत्रु
दमन करे -
शुभ कार्यों के मुहूर्त में अनेक दोष
होते है |सर्वाधिक प्रचलित राहुकाल है जबकि
शनि का गुलिक काल एवं अन्य अनेक गृह जन्य दोष जैसे काल,यमघण्ट,कुलिक ,कालबेला ,आदि भी दोष है |
राहु काल में देवी पूजा श्रेष्ठ
फलदायिनी होती है |दुर्गा देवी का एक स्वरूप छिन्नमस्ता या प्रचंड चंडिका देवी भी है |राहुकाल की अधिष्ठात्री छिन्नमस्ता या प्रचंड चंडिका देवी है |
"ॐ एम् ह्रीं क्लीम चामुण्डायै
विच्चै |"मन्त्र द्वारा भी
राहुकाल में पूजा की जासकती है |
(श्री दुर्गा सप्तशती सर्वस्वं )भोपाल-राहूकाल-13दिनांक-09:13-10:039; 14दिनांक- राहूकाल-16:25-17:52;;
15दिनांक-07:47-09:13; 16दिनांक-14:58-16:24; 18दिनांक-13:31-14:57;
15दिनांक-07:47-09:13; 16दिनांक-14:58-16:24; 18दिनांक-13:31-14:57;
सप्तमी तिथि को द्वार पूजा
षष्ठी तिथि तक अर्थात 15अक्टूबर तक दुर्गा
जी का कलश में उपस्थित रहती हैं इसके पश्चात सप्तमी
तिथि16अक्टूबर से उनकी मूर्ति में पूजा की जाना चाहिए।
सप्तमी तिथि को द्वार पूजा की जाना चाहिए इससे आगामी 6 माह तक आकस्मिक सुख बाधा एवं परेशानियों से मुक्ति मिलती है मुख्य
द्वार या प्रवेश द्वार पर 2 कलश या घट लाल वस्त्र से लपेट लें। आम
के पत्ते एवं दुर्बा लगाकर घट के पीछे नारंगी वर्तिक या मौली युक्त दीपक जलाएं। घट
बिल्वपत्र सहित आम अशोक ,पीपल ,आंवला, शमी, अपराजिता, पारिजात के पत्तों का पूजन कर कलश में स्थापित करें ,तथा आम के पत्तों का बंदनवार बनाएं। यह पूजा प्रातः एवं अभिजित
मुहूर्त में की जाना विशेष उपयोगी है।
अभिजीत काल -13 से 18 दिनांक-11:43 - 12:20
प्रार्थना -"सर्व मंगल मांगल्ए शिवे सर्वार्थ साधिके शरण्ए
त्रयंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।
ओम महिश्घ्न महामाये चामुंडे मुंडमालिनी ।
आयु आरोग्यम ऐश्वर्यम देहि देवी नमोस्तुते।।
कुमकुमें समालब्धे चंदनेन विलेपिते बिल्वपत्र कृता पिडे दुर्गे अहम शरणं गत :।"
ओम महिश्घ्न महामाये चामुंडे मुंडमालिनी ।
आयु आरोग्यम ऐश्वर्यम देहि देवी नमोस्तुते।।
कुमकुमें समालब्धे चंदनेन विलेपिते बिल्वपत्र कृता पिडे दुर्गे अहम शरणं गत :।"
दुर्गा स्तुति
दुर्गम शिवम शांति करीम ब्रह्माणी ब्राह्मण प्रियाम। सर्वलोक प्रणनेत्रीम च प्रणामी सदाशिवाम।।
"मंगलाम शिवाम शुद्धां निश्कलाम परमाम कलाम।
,विश्वेश्वरीम विश्वमाताम चंडिकाम प्रणमाम्य अहं।
सर्व देवमयिं देवीं सर्व रोग।भयापहाम ।
ब्रह्मश विध्णु नमिताम प्रणमामी सदा उमाम्ं।"
मंगला, शिवा,शुद्धा, निश्कला, परमा, कला।
विश्वेश्वरी, विश्वमाता,चंडिका,को।मैं प्रणाम ।सर्व देव युक्त,सर्व रोग नाशिनी,ब्रह्मा,विष्णू,शिव जिनकी पूजा करते हैं,उनको मैं नमस्कार करता हुँ।
दुर्गम शिवम शांति करीम ब्रह्माणी ब्राह्मण प्रियाम। सर्वलोक प्रणनेत्रीम च प्रणामी सदाशिवाम।।
"मंगलाम शिवाम शुद्धां निश्कलाम परमाम कलाम।
,विश्वेश्वरीम विश्वमाताम चंडिकाम प्रणमाम्य अहं।
सर्व देवमयिं देवीं सर्व रोग।भयापहाम ।
ब्रह्मश विध्णु नमिताम प्रणमामी सदा उमाम्ं।"
मंगला, शिवा,शुद्धा, निश्कला, परमा, कला।
विश्वेश्वरी, विश्वमाता,चंडिका,को।मैं प्रणाम ।सर्व देव युक्त,सर्व रोग नाशिनी,ब्रह्मा,विष्णू,शिव जिनकी पूजा करते हैं,उनको मैं नमस्कार करता हुँ।
हवन
अष्टमी तिथि को सफेद तिल , खीर सरसों ,सुपारी, लावा, दुर्वांकुर ,जो, नारियल ,लाल चंदन ,गूगल, जायफल आदि मिलाकर हवन करना श्रेष्ठ
माना गया है।
18 अक्टूबर नवमी तिथि बलि-तिथी श्रेष्ठ मानी गई है-
कालिका पुराण कामरूप निबंध आदि ग्रंथ में अष्टमी तिथि को बलिदान करने के लिए वर्जना का उल्लेख ग्रंथो मे है।
नवमी तिथि पापनाशिनी है, एवं महान पुण्य प्रदान करने वाली है । बलि-नारियल या कुम्हडा या उड़द पिण्ड की दी जाना चाहिये ।उत्तर दिशा मे आपका मुह एवं बलि वस्तु का मुह पूर्व की और हो।
कालिका पुराण कामरूप निबंध आदि ग्रंथ में अष्टमी तिथि को बलिदान करने के लिए वर्जना का उल्लेख ग्रंथो मे है।
नवमी तिथि पापनाशिनी है, एवं महान पुण्य प्रदान करने वाली है । बलि-नारियल या कुम्हडा या उड़द पिण्ड की दी जाना चाहिये ।उत्तर दिशा मे आपका मुह एवं बलि वस्तु का मुह पूर्व की और हो।
ज्योतिष शिरोमणि - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी
Jyotish9999@gmail.com, 9424446706
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