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चंद्रोदय समय -चंद्र पूजा का एवं अर्ध्य जल द्वारा देने का विशेष महत्व है अतः चंद्र का उदय किस समय होगा ,यह ज्ञात होना आवश्यक है |आत्मीय पाठको के लिए प्रस्तुत है विवरण| (संदर्भ ग्रंथ-वामन पुराण)
वामन पुराण-यह पर्व शिव,शिवा,कार्तिकेय,एवं चन्द्रमा की पूजा द्वारा सौभाग्य वृद्धि के लिए किया जाना चाहिए|नव विवाहिता एवं सौभाग्यवती नारी द्वारा किया
20अक्टूबर -karva chouth- कर्क चतुर्थी-पूजा मुहूर्त मंत्र एवं कथा
(दाम्पत्य सुख पति -पत्नी एवं सास-बहु के सम्बन्ध प्रगाढ़ता का पर्व)
उत्तर-दक्षिण भारत करवा चौथ उपवास संकलप-- 06:33to 20:15 ;
चन्द्र उदय-20:31
चंद्र देव पूजा समय-- 18:11 to 19:09
चंद्रोदय समय - चन्द्र उदय-20:31
करवा चौथ विधि-कथा महात्म्य- छांदोग्य उपनिषद् –
चंद्रमा की पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।पाप नाश के कारण आपत्ति-विपत्ति संकट,कष्ट नहीं होते है।दाम्पत्य साथी को दीर्घायु, पूर्ण आयु की प्राप्ति होती है।
पर्व की उपादेयता –
चंदमा मन का स्वामी है | मानव मन पर चन्द्रमा का सर्वाधिक शुभ अशुभ प्रभाव होता है |हमरे शरीर में २/३ जल है |अथाह जलराशि वाले समुद्र में ज्वारभाटा /भूकंप आदि का कारण भी चन्द्रमा ही है
|विशेष गृह स्थिति में कार्तिक कृष्ण पक्ष में चतुर्थी की रात्रि में चंद्र की पूजा से दाम्पत्य सुख की लिए याचना का ंपर्व है क्युकी चंद्र की पूजा से उसको प्रसन्न कर अशुभ मानसिक प्रभाव से मुक्ति मिलती है एवं अवसाद,कोमल,समन्वय की भावना .विचार काश्री गणेश होता है |
करवा चौथ का इतिहास और कथा
व्रत के प्रणेता कौन थे एवं क्यो प्रारम्भ हुआ -
-देव और दानव के युद्ध के समय देवों की पत्नियों द्वारा ब्रह्मा जी से , प्रार्थना की
गयी कि “हमको चिंता ,भय मुक्त करिये | हमारे पतियों को दीर्घायु विजयी बनाने का
उपाय बताइये |”
देवताओं की पत्नियों को देवताओं को दीर्घायु ,उनके जीवन की रक्षा के लिए
के लिए चतुर्थी के इस व्रत पूजा का विधान बताया था |
ब्रह्मा जी ने
जिसे स्वीकार करते हुए |देवताओं की पत्नियों ने अपने पतियों के लिए निराहार,
निर्जल व्रत किया। युद्ध में सभी देव विजयी हुए
उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी थी आर आकाश में चंद्रमा निकल आया था।
करक चतुर्थी व्रत विधान ,भगवान श्री कृष्ण द्वारा द्रोपदी को बताया गया –
महाभारत -पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं।
शेष बाकी पांडवों पर नित नए नए संकट आते हैं। अंततः द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण
से उपाय पूछती हैं।
भगवान श्री कृष्ण परामर्श देते है कि – संकट एवं कष्टो से मुक्ति मिल सकती है,
इसके लिए कार्वा चाओथ व्रत करो |
द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत काती है |जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं।
किसके द्वारा सर्व प्रथम किया गया –
शैलपुत्री पार्वती द्वारा अपनी तपस्या द्वारा अखंड सौभाग्य (भगवान् शिव )प्राप्त किया गया था |(महाभारत पांडव वनवास काल में ) भगवान श्री कृष्ण की कहने से द्रौपदी द्वारा करवा चौथ व्रत किया गया सन्दर्भ -अर्जुन इंद्रनील पर्वत पर तपस्यारत हुए |बहुत काल व्यतीत होने पर जब कोई समाचार नहीं मिला तो पत्नी द्रौपदी ने स्वाभाविकतः चिंता,शंका-कुशंका से मुक्ति केलिए श्रीकृष्ण की परामर्श से यह व्रत किया |
|2-देवताओं और दानवों के युद्ध के दौरान देवों को विजयी बनाने के लिए ब्रह्मा जी ने देवों की पत्नियों को व्रत रखने का सुझाव दिया था। जिसे स्वीकार करते हुए इंद्राणी ने इंद्र के लिए आैर अन्य देवताआें की पत्नियों ने अपने पतियों के लिए निराहार, निर्जल व्रत किया। नतीजा ये रहा कि युद्ध में सभी देव विजयी हुए आैर इसके बाद ही सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला। उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी थी आैर आकाश में चंद्रमा निकल आया था।
3- शिव जी को प्राप्त करने के लिए देवी पार्वती ने भी इस व्रत को किया था।
4- गांधारी ने धृतराष्ट्र आैर कुंती ने पाण्डु के लिए इस व्रत को किया था।
अंतरिक्ष के नवग्रहों में से एक ग्रह विभेश्वर (चन्द्रमा) से अखंड सौभाग्य /सुहाग की अर्चना, याचना, अभ्यर्थना , निवेदन का पर्व है |पति-पत्नी के
- करक चतुर्थी-पूजा मुहूर्त मंत्र एवं कथा
नवप्रणय निवेदन का शाश्वत पर्व है,करवा चौथ |यथार्थ या वास्तविकता में करवा चौथ दाम्पत्य सम्बन्ध के अटूट ,अथाह,अपार,असीम-आनंद के अद्भुत सुस्थायित्व, सहयोग,समन्वय,सामंजस्य एवं परस्पर समपर्ण का पर्व है |
किस राशि वाली महिलाएं किस रंग के वस्त्र पहने –
विशेष- नीले ,काले ,हरे ,जामुनी ,बेंगनी,स्लेटी ,रंग के वस्त्र पूजा मे वर्जित हैं |
शास्त्रों के अनुसार वर्जित अशुभ एवं निषिद्ध हें |
- मेष,वृश्चिक,सिंह राशि लाल रंग के वस्त्र |सूती वस्त्र श्रेष्ठ |
- कर्क सिंह नारंगी रंग के वस्त्र | रेशमी श्रेष्ठ |
- वृष ,तुला,मिथुन,मकर,कुम्भ कन्या राशि चमकीले गुलाबी ,श्वेत आभा युक्त
हल्के पीले ऑफ व्हाइट ,कढ़ाई युक्त ,रेशमी नए वस्त्र |
4-धनु,मीन राशि Golden, Yellow , Cream,lemon रंग के वस्त्र पहने |
*यदि राशि ज्ञात न हो तो प्रचलित नाम के प्रथम अक्षर से जानिए शुभ रंग वस्त्र का -
1-लाल रंग के वस्त्र |सूती वस्त्र श्रेष्ठ हें जिनके नाम आ,चू,चे,चो,ल,न,य,अक्षर से शुरू होते हो |
2- चमकीले गुलाबी ,श्वेत आभा युक्त हल्के पीले ऑफ व्हाइट ,कढ़ाई युक्त ,रेशमी नए वस्त्र |
जिनके नाम ओ,ई,उ,ए,व,ब,र,त,क़,छ,घ,प,थ,ख,ज,ग,स,झ,फ,श,अक्षर से शुरू होते हो |
3-नारंगी ऑरेंज केसरिया या श्वेत आभा युक्त रंग के वस्त्र ,सूती वस्त्र श्रेष्ठ हें –
जिनके नाम ह,ड,म,टअक्षर से शुरू हो |
4-ध,भ,द,च,गो,अक्षर जिनके नाम का प्रथम हो वे पीले,सुनहरे,क्रीम,अंग के वस्त्र प्रयोग करे |
विशेष- नीले ,काले ,हरे ,जामुनी ,बेंगनी,स्लेटी ,रंग के वस्त्र पूजा मे वर्जित हैं |
शास्त्रों के अनुसार वर्जित अशुभ एवं
निषिद्ध हें |
किसकी पूजा करे ?
1-करवा चौथ व्रत के दिन शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणोश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए।
2-चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अघ्र्य देकर पूजा होती है।
3-पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल,उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास अथवा सास के समकक्ष किसी सुहागिन के पांव छूकर सुहाग सामग्री भेंट करनी चाहिए।
करवा चौथ पर्व की पूजा
सामग्री
तांबे,स्वर्ण या मिट्टी का
टोंटीदार करवा व ढक्कन,
पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए
पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन,
छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ,
दक्षिणा के लिए पैसे ,दीपक,
रुई, कपूर, गेहूँ,
शक्कर
कुंकुम, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई,
गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, मेंहदी, महावर, हल्दी, ।
अखंड सौभाग्य के लिए
प्रातः से क्या करे -
सूर्योदय पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में
स्नान | स्वच्छ कपड़े सहित तैयार । प्रात: स्नानादि करने के पश्चात
हथेली मे जल लेकर पूर्व की ओर मुह कर
पति के स्वास्थ्य एवं दीर्घायु के लिए संकल्प –
'मम सुख सौभाग्य पुत्र पुत्री पौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतम अहं करिष्ये।'
जल पृथ्वी पर छोड़ दे |
करवा चौथ व्रत का आरंभ करें।
शिव-पार्वती की पूजा करे |
ॐ पारवत्ये नमःगौर्ये नमः
' से पार्वती,जी को रोली लगाएँ |
'ॐ नमः शिवाय' से शिव को चन्दन
लगाएँ |,
'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय
, 'ॐ गणेशाय नमः'
से गणेश जी से चंद्रमा का पूजन |
'ॐ चन्द्र्मसे
नमः|सोमाय नमः' |
नमः शिवायै शर्वांड्ये सौभाग्यम संतति शुभाम |
प्रयच्छ भक्ति युक्तानाम नारिणाम हर बल्लभे |
1-गोधुली बेला मे -
माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में
श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी अथवा लकड़ी के आसार
पर शिव-पार्वती, स्वामी
कार्तिकेय, गणेश
एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की
भावना करके स्थापित करें। पश्चात माँ पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार
करें।
2-भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना
करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें। एक लोटा,
एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के
रूप में अर्पित करें।
3-सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का
व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें।
करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा
को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है।
चंद्र देव को अर्घ्य देते समय इस
मंत्र -
"गगन अर्णव माणिक्य चन्द्र दक्षायणी पते।
गृहाण अर्घ्यं मया दत्तं
गणेश प्रति रूपक॥"
अर्थ –सागर , आकाश के
माणिक्य, राजा
दक्ष की सौंदर्य शालिनी कन्या रोहिणी के प्राण -प्रिय
एवं आदि पूज्य श्री गणेश के प्रतिरूप
चंद्र देव मेरा अर्घ्य स्वीकार करें।
चंद्रोदय के बाद
व्रत प्रक्रिया-
व्रत के लिए प्रातःस्नान उपरांत -बाएं हाथ में जल लेकर ,पूर्व दिशा में मुँह कर मन्त्र पढ़े-" हथेली मे जल लेकर मंत्र पढे फिर मंत्र के पश्चात अपने दाहिनी आर पृथ्वी पर छोड़ देना चाहिए॰
मम सुख सौभाग्य पुत्र पौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतम करिष्ये |"
या सफ़ेद मिटटी या चौक दाल कर पीपल का वृक्ष बना कर शिव -पार्वती ,कार्तिकेय का मचित्र या मूर्ति स्थापित कर,(पूजन ,अर्ध्य ) मन्त्र बोले-
"ॐ नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यम संततिम शुभाम् |प्रयच्छ भक्ति युक्तानाम नारिणाम हर वल्ल्भे |षण्डमुखाय नमः "
पूजन-पुष्प,सुगंध, धुप, दीपक,अर्ध्य आदि दे ,भोग
परम्परा के अनुसार आवश्यक –
नवविवाहिता जिनको एक वर्ष नहीं हुआ है अर्थात प्रथम करवा चौथ पर ,ससुराल से सास के लिए सुहाग का सामान ,साडी ("सरगी" परम्परा) मिठाई आदि प्रदान की जाती है |सास-बहु के सुमधुर सम्बन्धो का पर्व करवा चौथ है |
सूर्योदय पूर्व बहु की ससुराल से आयी मिठाई एवं भोज्य पदार्थ खाये जाते है |इसके पश्चात व्रत आरम्भ होता है ,जिसमे चंद्र की पूजा के पश्चात् ही अन्न जल ग्रहण किया जाता है |
शिव द्वारा पार्वती जी को बताई गयी कथा पुराणोक्त कथा सार-
शाकप्रस्थ पुर वेदधर्मा ब्राह्मण की पुत्री वीरवती ने करवा चौथ व्रत किया |
चंद्र उदय के पश्चात पूजा अर्ध्य के उपरंत भोजन का नियम है ,
परन्तु वीरवती के भाई ने अनुभव किया कि बहिन से भूख सहन नहीं हो रही होगी तो उसने पीपल वृक्ष कि आड़ से कृत्रिम रौशनी द्वारा चंद्र उदय के प्रकाश का भ्रम उत्पन्न करा कर, बहिन वीरवती को भोजन करवा कर, व्रत भंग करवा दिया |जिसके कारन उसका पति अददृश्य होगया |
इस समस्या के समाधान के लिए ,वीरवती ने इन्द्राणी द्वारा निदेशित एक वर्ष तक प्रत्येक माह कि कृष्ण चतुर्थी को व्रत एवं चंद्र कोजल अर्पण कर पुजा की । अर्ध्य दिया जिसके फलस्वरूप वीरवती को पति पुनः प्राप्त हुआ |
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· →करवा चौथ की चार कहानी (संकलित) ↓
1-सात भाइयों की एक बहन करवा की कथा -
बहुत समय पहले की बात है|एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बेटी करवा थी।
सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। प्यार इतना था कि वो पहले
उसे खाना खिलाते और बाद में खुद खाते।
एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना
व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी सात
भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ‘
करवा” ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है |
वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है।
चंद्रमा अभी तक नहीं निकला था |, इसलिए करवा बहन भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
सबसे छोटे भाई से अपनी बहन की हालत देखी नहीं गई | वह दूर पीपल
के पेड़ पर एक दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह
ऐसा लगता है कि जैसे चतुर्थी का चंद्रमा हो। भाई अपनी बहन को बताता है कि चंद्रमा
निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के
मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चंद्रमा को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है
तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश
करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। इससे वह दुखी,परेशान ,चिंता
मग्न रोने लग जाती है।
उसको उदास देख कर , उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके
साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत से टूटने के कारण देव उससे नाराज हो गए हैं
और उन्होंने ऐसा किया है। सत्यता जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह
अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी |
सक्ल्प करती है कि अपने सतीत्व शक्ति डीएचआरएम शक्ति से पति को पुनर्जीवित
करेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है।
उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूई नुमा घास को वह एकत्रित
करती जाती है।
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी
भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं
तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी
सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर भाभी उसे अगली भाभी से
आग्रह करने का कह चली जाती है।
जब छठे नंबर की भाभी आयी तो उससे भी यही बात दोहरायी ।
यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था |
अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है,
इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा
न कर दे, उसे नहीं छोड़ना।
ऐसा कह के वह चली जाती है। सबसे अंत में सातवी एवं सबसे छोटी भाभी आती है।
करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टाल मटोली करने लगती है।
इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है |अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है।
भाभी उससे छुड़ाने के लिए हर संभव प्रयास करते हुए नोचती है, धक्का देती है, लेकिन
करवा उसे नहीं छोड़ती है।
अंत में करवा की जिद,संकल्प शक्ति को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी
छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी
भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश माँ
गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, उस प्रकार हमे भी दीजिये |
→करवा चौथ कथा द्वितीय↓
शाकप्रस्थ
पुर नगर मे वेद धर्मा ब्राह्मण
की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय
के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके
भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में
आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रमा का निकलना दिखा दिया और वीरवती को भोजन
करा दिया।
परिणाम
यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक
चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो
गया।
→करवा चौथ तृतीय कथा-↓
एक
करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी।
एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहाँ एक मगर ने उसका पैर
पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
उसकी
आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई | मगर ने उसके
पति के प्राण ले लिए | कार्वा ने मगर को बाँध
दिया । मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने
मेरे पति का प्राण ले लिये । आप मगर को दंड
दीजिये ,नरक में ले
जाइए ।
यमराज
बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः इसे दंड स्वरूप मृत्यु यानरक नहीं दिया जा
सकता ।
करवा
बोली- अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो मैं अपनी सतीत्व
शक्ति से आप को श्राप दे दूँगी। अंततः सोच विचार कर यमराज ने उस पतिव्रता करवा की इच्छा के अनुसार मगर
को यमपुरी भेज दिया |करवा के पति को जीवन एवं दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे
तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे मेरे पति की रक्षा करना।
→करवा चौथ कथा चौथी→
पांडु
पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए| बहुत दिन तक उनकी
कोई खबर न मिलने पर द्रोपदी बहुत परेशान थीं। द्रोपदी ने कृष्ण भगवान का ध्यान
किया और अपनी चिंता व्यक्त की। कृष्ण भगवान ने कहा-, इसी तरह का
प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकर जी से किया था।
तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी।
द्रोपड़ी ने गिज्ञासा वश पूरा घटना क्रम जानना चाहा – भगवान श्री कृष्ण ने बताया –
शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का
व्रत बतलाया। ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी।
एक
बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को
विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों
भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन
चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी।
भाइयों
से न रहा गया,
उन्होंने
शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर
चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन
को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन
ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया।
भोजन
ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी, तभी वहाँ से
रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके
पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया-
तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला।
अब
तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। उसने
इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक
स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत
किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएँ
अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं।
कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को निराहार गणेश,पूजन
कर चंद्रमा को अर्घ्य
देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है।
कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को निराहार गणेश,पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है।
इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं।
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| ज्योतिष की दृष्टि से –क्यो करे ?कौन करे ? किसकी करना चाहिए पूजा-
तिथि,चंद्र,नक्षत्र दोष , चंद्र,मंगल,राहू संकट,कष्ट से मुक्ति के लिए संकट से मुक्ति के लिए विशेष उपयोगी चंद्र पुजा आज |
1-जन्म कुंडली मे चंद्रमा शनि,राहू,केतू मे से किसी के भी साथ हो|
चंद्रमा 3,6,8,12,2 भाव मे हो | चंद्र दशा चल रही हो |
चंद्रमा वृश्चिक राशि का हो |
2- जन्म कुंडली मे -राहू,मंगल दोष हो |
-मंगल ,राहू 1,2,4,7,8,12,भाव मे बैठा हो |
-मगल कर्क राशि या अंक 04 पर कुंडली मे हो |
4-वृष,मिथुन,कुम्भ,मकर,तुला,कन्या जन्म लग्न हो |
5-तुला या मकर राशि हो ,र,त,ज,ख,ग,अक्षर नाम का पहला अक्षर हो
6-मृगशिरा नक्षत्र मे या कार्तिक माह या चतुर्थी को जन्म हुआ हो |
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