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01nov-karva chouth- कर्क चतुर्थी-पूजा मुहूर्त मंत्र एवं कथा
(दाम्पत्य सुख पति -पत्नी एवं सास-बहु के सम्बन्ध प्रगाढ़ता का पर्व)
(सिद्ध योग प्रारम्भ-04:39 पर्यंत)
उत्तर-दक्षिण भारत करवा चौथ उपवास संकलप-- 06:33to 20:15 ;
चंद्र देव पूजा समय-- 17:36 to 18 :54
चंद्रोदय समय -चंद्र पूजा का एवं अर्ध्य जल द्वारा देने का विशेष महत्व है अतः चंद्र का उदय किस समय होगा ,यह ज्ञात होना आवश्यक है |आत्मीय पाठको के लिए प्रस्तुत है विवरण| (संदर्भ ग्रंथ-वामन पुराण)
वामन पुराण-यह पर्व शिव,शिवा,कार्तिकेय,एवं चन्द्रमा की पूजा द्वारा सौभाग्य वृद्धि के लिए किया जाना चाहिए|नव विवाहिता एवं सौभाग्यवती नारी द्वारा किया
किसके द्वारा सर्व प्रथम किया गया –
शैलपुत्री पार्वती द्वारा अपनी तपस्या द्वारा अखंड सौभाग्य (भगवान् शिव )प्राप्त किया गया था |(महाभारत पांडव वनवास काल में ) भगवान श्री कृष्ण की कहने से द्रौपदी द्वारा करवा चौथ व्रत किया गया सन्दर्भ -अर्जुन इंद्रनील पर्वत पर तपस्यारत हुए |बहुत काल व्यतीत होने पर जब कोई समाचार नहीं मिला तो पत्नी द्रौपदी ने स्वाभाविकतः चिंता,शंका-कुशंका से मुक्ति केलिए श्रीकृष्ण की परामर्श से यह व्रत किया |
|2-देवताओं और दानवों के युद्ध के दौरान देवों को विजयी बनाने के लिए ब्रह्मा जी ने देवों की पत्नियों को व्रत रखने का सुझाव दिया था। जिसे स्वीकार करते हुए इंद्राणी ने इंद्र के लिए आैर अन्य देवताआें की पत्नियों ने अपने पतियों के लिए निराहार, निर्जल व्रत किया। नतीजा ये रहा कि युद्ध में सभी देव विजयी हुए आैर इसके बाद ही सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला। उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी थी आैर आकाश में चंद्रमा निकल आया था।
3- शिव जी को प्राप्त करने के लिए देवी पार्वती ने भी इस व्रत को किया था।
4- गांधारी ने धृतराष्ट्र आैर कुंती ने पाण्डु के लिए इस व्रत को किया था।
अंतरिक्ष के नवग्रहों में से एक ग्रह विभेश्वर (चन्द्रमा) से अखंड सौभाग्य /सुहाग की अर्चना, याचना, अभ्यर्थना , निवेदन का पर्व है |पति-पत्नी के
01nov-karva chouth- करक चतुर्थी-पूजा मुहूर्त मंत्र एवं कथा
नवप्रणय निवेदन का शाश्वत पर्व है,करवा चौथ |यथार्थ या वास्तविकता में करवा चौथ दाम्पत्य सम्बन्ध के अटूट ,अथाह,अपार,असीम-आनंद के अद्भुत सुस्थायित्व, सहयोग,समन्वय,सामंजस्य एवं परस्पर समपर्ण का पर्व है |
पर्व की उपादेयता –
चंदमा मन का स्वामी है | मानव मन पर चन्द्रमा का सर्वाधिक शुभ अशुभ प्रभाव होता है |हमरे शरीर में २/३ जल है |अथाह जलराशि वाले समुद्र में ज्वारभाटा /भूकंप आदि का कारण भी चन्द्रमा ही है
|विशेष गृह स्थिति में कार्तिक कृष्ण पक्ष में चतुर्थी की रात्रि में चंद्र की पूजा से दाम्पत्य सुख की लिए याचना का ंपर्व है क्युकी चंद्र की पूजा से उसको प्रसन्न कर अशुभ मानसिक प्रभाव से मुक्ति मिलती है एवं अवसाद,कोमल,समन्वय की भावना .विचार काश्री गणेश होता है |
व्रत प्रक्रिया-
व्रत के लिए प्रातःस्नान उपरांत -बाएं हाथ में जल लेकर ,पूर्व दिशा में मुँह कर मन्त्र पढ़े-" हथेली मे जल लेकर मंत्र पढे फिर मंत्र के पश्चात अपने दाहिनी आर पृथ्वी पर छोड़ देना चाहिए॰
मम सुख सौभाग्य पुत्र पौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतम करिष्ये |"
या सफ़ेद मिटटी या चौक दाल कर पीपल का वृक्ष बना कर शिव -पार्वती ,कार्तिकेय का मचित्र या मूर्ति स्थापित कर,(पूजन ,अर्ध्य ) मन्त्र बोले-
"ॐ नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यम संततिम शुभाम् |प्रयच्छ भक्ति युक्तानाम नारिणाम हर वल्ल्भे |षण्डमुखाय नमः "
पूजन-पुष्प,सुगंध, धुप, दीपक,अर्ध्य आदि दे ,भोग
परम्परा के अनुसार आवश्यक –
नवविवाहिता जिनको एक वर्ष नहीं हुआ है अर्थात प्रथम करवा चौथ पर ,ससुराल से सास के लिए सुहाग का सामान ,साडी ("सरगी" परम्परा) मिठाई आदि प्रदान की जाती है |सास-बहु के सुमधुर सम्बन्धो का पर्व करवा चौथ है |
सूर्योदय पूर्व बहु की ससुराल से आयी मिठाई एवं भोज्य पदार्थ खाये जाते है |इसके पश्चात व्रत आरम्भ होता है ,जिसमे चंद्र की पूजा के पश्चात् ही अन्न जल ग्रहण किया जाता है |
शिव द्वारा पार्वती जी को बताई गयी कथा पुराणोक्त कथा सार-
शाकप्रस्थ पुर वेदधर्मा ब्राह्मण की पुत्री वीरवती ने करवा चौथ व्रत किया |
चंद्र उदय के पश्चात पूजा अर्ध्य के उपरंत भोजन का नियम है ,
परन्तु वीरवती के भाई ने अनुभव किया कि बहिन से भूख सहन नहीं हो रही होगी तो उसने पीपल वृक्ष कि आड़ से कृत्रिम रौशनी द्वारा चंद्र उदय के प्रकाश का भ्रम उत्पन्न करा कर, बहिन वीरवती को भोजन करवा कर, व्रत भंग करवा दिया |जिसके कारन उसका पति अददृश्य होगया |
इस समस्या के समाधान के लिए ,वीरवती ने इन्द्राणी द्वारा निदेशित एक वर्ष तक प्रत्येक माह कि कृष्ण चतुर्थी को व्रत एवं चंद्र कोजल अर्पण कर पुजा की । अर्ध्य दिया जिसके फलस्वरूप वीरवती को पति पुनः प्राप्त हुआ |
· करवा चौथ की कहानी -SAUJANY
1- एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी।
सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। प्यार इतना था कि वो पहले उसे खाना खिलाते और बाद में खुद खाते।
एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है।
चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है। सबसे छोटे भाई से अपनी बहन की हालत देखी नहीं गई और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर छलनी की ओट में रखआगया ,और बहन को कहा चंद्रमा निकल आया ,देखो पीपल की और वो दिख रहा(उंगली से संकेत किया ) है।
भाईयों ने एक स्वर मे कहा कि चंद्रमा निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो।
बहन खुशी के मारे दौड़ कर ,आँगन से चंद्रमा को देखती है, अपने घर के आँगन से , दूर से देखने पर वह ऐसा लगा है कि जैसे चतुर्थी का चंद्रमा उदित होगया ।
दीपक को चलनी मे देख कर उसे भ्रम और विश्वास होगया या चंद्र देव ही हैं।उनको अर्घ्य देकर पुजा कर ,खाना खाने भाइयों के साथ बैठ गयी ।
आन का ग्रास पहला मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है।
दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है।
आकस्मिक इस समाचार से , हतप्रभ रह जाती,उसकी रुदन हिचकी बंध जाती, रोने लगती है । तब उसकी भाभी ने उसे सच्चाई से अवगत कराया कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ।
करवा चौथ का व्रत भंग होने ,टूटने टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।
वस्तु स्थिति,सच्चाई जानने के बाद करवा संकल्प ,शपथ,और दृढ़ निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी।
वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव उसकी देखभाल करती । उसके ऊपर उगने वाली सूई नुमा तीखी घास को वह एकत्र करती है।
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है,
लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह कर चली जाती है। इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था ,अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है।
सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है।
भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है। अंत में उसकी इच्छा शक्ति ,दृढ़ता,भावना और दुख देख कर भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है।
करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।
हे श्री गणेश माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, उसप्रकार ही हमे भी सदैव देना ।
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