-,चातुर्मास –क्या करे और न
करे
Chaturmas चौमासा तक चार माह चातुर्मास मास |
क्या है-
चातुर्मास 4 महीने की अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी
एकदाशी से देव उठनी तक )से प्रारंभ होकर
कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है।
-देवशयनी एकादशी से श्री
विष्णु पाताल के राजा बलि के यहां चार मास निवास करते हैं|
-4 माह ?- श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक।
चातुर्मास के प्रारंभ को 'देवशयनी एकादशी' कहा जाता है और अंत को 'देवोत्थान एकादशी'।
चार
महीने विष्णु के नेत्रों में योगनिद्रा का निवास -
ब्रह्मवैवर्त
पुराण –
योगनिद्रा
ने भगवान विष्णु को प्रसन्न किया और प्रार्थना की आप मुझे अपने अंगों में स्थान दीजिए । श्री विष्णु
ने अपने नेत्रों में योगनिद्रा को स्थान कहा कि तुम वर्ष में चार मास मेरे नेत्रो मे रहोगी।
-4 महीने व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के,
-4 माह के, प्रथम माह तो सबसे
महत्वपूर्ण माना गया है।
- ये 4 महीने दुर्लभ हैं।
दिन
में केवल एक ही बार भोजन करना चाहिए।
· हिन्दू धर्म के त्योहारों का अधिकांश चौमासा /4माह मे आते हें |बौद्ध एवं जैन धर्म मे इन 4 माह का विशेष महत्व
है |
· विष्णु जी की पुजा शृंगार कर
शयन विधि-
आगामी
चार माह मूर्ति स्पर्श विष्णु जी की वर्जित |उपवास करके भगवान विष्णु की
प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाकर | पीत वस्त्रों से सजाकर श्री हरि की आरती फल,सुगंध,पान-सुपारी अर्पित करने के बाद इस मन्त्र के द्वारा
स्तुति करें।
'सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत
सुप्तं भवेद इदम।
विबुद्धे
त्वयि बुध्येत जगत सर्वं चरा चरम।'
'हे जगन्नाथ जी! आपके शयन पर यह सारा जगत सुप्त हो जाता है और आपके
जाग जाने पर सम्पूर्ण विश्व तथा चराचर भी जागृत होता हैं । प्रार्थना करने के बाद भगवान को श्वेत
वस्त्रों की शय्या पर शयन करा देना चाहिए।
स्वास्थ्य-
4 माह में पाचनशक्ति कमजोर
होती है गरिष्ठ भोजन वर्जित.
क्या
करे-नियम-
-4 महीने सूर्योदय से पहले उठना ,स्नान करना
अधिकतर
समय मौन रहना चाहिए।
वर्जित कार्य :
4माह - भगवान नारायण के शयन के कारण विवाह, यज्ञोपवीत संस्कार, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गोदान, गृहप्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध हैं।
तन- मन दोष नाशक-
जलाशय जल ही तीर्थ- स्नान भगवान विष्णु शेष शैय्या पर शयन करते है| ४ महीने सभी जलाशयों में तीर्थत्व प्रभाव ।
-स्वास्थ्यवर्ध्क या रोग नाशक स्नान
- दो बार स्नान करना चाहिये।
-बेलपत्र डालकर ,पिसे हुए तिल, आंवला-मिश्री और जौं को बाल्टी जल मे मिलकर स्नान ।
--ॐ नमः शिवाय 5 जप कर फिर सिर पर पानी डाले, तो
पित्त बीमारी, कंठ का सूखना, चिड़चिड़ा
स्वभाव कम होता है.
- पलाश के पत्तों पर भोजन पापनाशक पुण्यदायी होते
हैं, ब्रह्मभाव को प्राप्त कराने वाले होते हं।
ओज ,तेज और बुद्धि बढ़ाएँ-
1-व्रत चार माह करे या चातुर्मास में इन 4 महीनों में दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत करना चाहिये। चावल या उससे निर्नमित पदार्थ नहीं खाना चाहिए .
2-पुरुष सूक्त का पाठ करे बुद्धि विकास के लिए|
3- भ्रूमध्य
में ॐ का ध्यान करने से बुद्धि वृद्धि |।
- दान, दया और
इन्द्रिय संयम करने वाले को उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है।
- आंवला-मिश्री जल से स्नान महान पुण्य प्रदान
करता है।
2-व्रत मे वर्जित भोजन -
तेल, बैंगन, पत्तेदार
सब्जियां, दूध, शकर, दही, समुद्री नमक या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस
और मदिरा का सेवन नहीं ।
-3- 4माह वर्जित भोजन सामग्री –
---- श्रावण(14 जुलाई से 12 अगस्त )में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि, वर्जित |
-भाद्रपद (13 अगस्त से 12 सितम्बर )में दही वर्जित |,
-आश्विन(11 सितम्बर से9 अक्टूबर) में दूध वर्जित |,
-कार्तिक(10 अक्टूबर से 04 नवम्बर ) में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल आदि वर्जित है।
भोजन पात्र /बर्तन धातु /पत्ते-
1-पलाश पर्ण -‘स्कन्द पुराण’ -चातुर्मास
में पलाश (ढाक) के पत्तों में या इनसे बनी पत्तलों में किया गया भोजन चान्द्रायण
व्रत एवं एकादशी व्रत के समान पुण्य प्रद है।
-पलाश पत्तों में भोजन त्रिरात्रि व्रत के समान पुण्यदायक और पाप नाशक
2- बड़ / वट /बरगद ( पत्तों) पत्तल - पत्तल पर किया गया भोजन पुण्यप्रद।
3- केला पत्ता
भोजन रुचि वर्धक ,फूड poisioning या गैसदोष का नाश करने वाल होता है |
5-पित्त शमन व रक्त शुद्धि -काँसे के पात्र –बुद्धि वर्द्धक, ।
स्वास्थ्य?अम्लपित्त, रक्तपित्त, त्वचाविकार, यकृत व
हृदयविकार से पीड़ित व्यक्तियों के लिए काँसे के पात्र उपयोगी हैं।
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