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कथाएं-सकट चौथ , संकष्टी चतुर्थी, तिलकुट, माघ चतुर्थी Festival of children's safety

 

कथाएं-सकट चौथ , संकष्टी चतुर्थी, तिलकुट, माघ चतुर्थी

Festival of children's safety

 

महिलाएं अपनी संतान संतान के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए ,शाम तक निर्जला व्रत रखती हैं। शाम को चंद्र दर्शन और चंद्र को अर्घ्य देने के बाद फलाहार किया जाता है।

विघ्नहर्ता गणेश जीएवं चंड्रामा की पूजा का विधान है। पूजा के अवसर पर पढ़ी या कही जाने वाली कथाएं -

             लोक परम्परा में प्रचलित संकलित कथाये -

1-कथा

भगवन शिव जी बहुत समय से अन्यत्र थे  । देवी पार्वती ,स्नान के समय , बाल गणेश जी को दरवाजे के बाहर बिठा कर कह देती थी “किसी को भी अंदर नहीं आने देंना”। एक दिन देव वशात मान की आज्ञा से ,गणेश जी द्वार पर बैठे थे । भगवान शिव आ पहुंचे। गणेश जी ने भगवान शिव को दरवाज़े के बाहर रोक दिया। शिव जी क्रोध पूर्वक त्रिशूल से बाल गणेश की गर्दन धड़ से अलग कर दी। पार्वती जी बाहर आईं। पुत्र गणेश की कटी हुई गर्दन देख शोक मग्न हो गईं और। शिव जी से अपने बेटे के जीवित करने के लिए कहा । गणेश जी की गर्दन की जगह एक हाथी के बच्चे का सिर लगा कर जीवित कर दिया । चतुर्थी कृष्ण पक्ष के दिन से माताएं , अपने बच्चों के दीर्घायु के  लिए गणेश चतुर्थी का व्रत पूजन  करती हैं।

कथा 2-

एक अधर्मी ,नास्तिक,निसंतान साहूकार परिवार था । धर्म, दान व पुण्य पूजा पाठ लेशमात्र नहीं करते थे । पड़ोसन सकट चौथ की पूजा कर रही थी। साहूकारनी अपने पड़ोसन के घर गयी , पड़ोसन से पूछा यह तुम क्या कर रही हो।

पड़ोसन ने कहा आज सकट चौथ का व्रत है, इसलिए मैं गणेश जी की पूजा कर रही हूं। साहूकारनी ने पड़ोसन से पूछा इस व्रत क्यों करती हो कुछ फल मिलता है।

पड़ोसन – हाँ,इसे करने से धन-धान्य, सुहाग और पुत्र सब मिलता है।

साहूकारनी बोली –अच्छा,अगर मैं गर्भवती  हुई  तो मैं सवा सेर तिलकुट अर्पण करूंगी और हमेशा चौथ का व्रत करुँगी। साहूकारनी ने व्रत-पूजा विधि से की ,देव कृपा हुई ।

साहुकारनी गर्भवती हुई ,फिर उसने  कहा कि “अगर मेरा लड़का हो जाए तो मैं ढाई सेर तिलकुट करूंगी। फिर लड़का हो गया। इसके पश्चात्  साहूकारनी बोली - मेरे बेटे का विवाह हो जाने पर  सवा पांच सेर तिलकुट करूंगी।

लड़के का विवाह तय हो गया। सब कुछ होने के बाद भी साहूकारनी ने तिलकुट वचन के अनुसार नहीं किया।

आदिदेव सकट देव रुष्ट-क्रोधित हो गए। गणेश जी ने फेरो के पूर्व उसके बेटे को उठा कर पीपल के पेड़ पर बैठा दिया। सभी वर को ढूंढने लगे। अंततः वर नहीं मिलने पर बाराती अपने घर चले गए ।

देव योग से ,जिस लड़की से साहूकारनी के लड़के का विवाह होने वाला था, वह  अपनी सहेलियों के साथ गणगौर पूजन करने के लिए पीपल के पेड़ के नीचे दूब लेने रही थी । पेड़ से बार बार  एक आवाज  सुनाई देने लगी-‘ओ मेरी अर्धव्याही’ । लड़की डर कर भागी । अपने घर पहुंच लड़की ने मां को सारी बात बताई।

लड़की की मां ने पीपल के पेड़ के पास जाकर देखा, पेड़ पर बैठा उसका होने वाला दामाद दिखा  । लड़की की मां ने दामाद पूछा कि यहां क्यों बैठे हो? मेरी बेटी अर्धव्याही कर दी, अब यहाँ क्यों बैठे हो ?क्या चाहते हो ?

साहूकारनी का बेटा बोला -मेरी मां ने चौथ का तिलकुट बोला था, लेकिन कभी तक नहीं किया। सकट देवता गणेश जी गुस्सा होगये हैं और उन्होंने ही मुझे यहां पर बैठा दिया है।

लड़की की मां साहूकार के घर गई और साहुकारनी को पूरी बात बताई ।

साहूकारनी ने हाथ में जल लेकर संकल्प किया - हे सकट चौथ महाराज अगर मेरा बेटा घर वापस आ जाए, तो मैं ढाई मन का तिलकुट करूंगी।

गणेश जी ने  उसके बेटे को वापस भेज दिया। इसके बाद साहूकारनी के बेटे का धूमधाम से विवाह हुआ। साहूकारनी ने ढाई मन तिलकुट किया । है सकट देवता, आपकी कृपा से मेरे बेटे पर आया संकट दूर हो गया और मेरा बेटा घर पर आ गए हैं। अब मैं हमेशा तिलकुट करके आपका सकट चौथ का व्रत करूंगी। गणेश जी ने जैसे साहुकरिन को सब कुछ दिया, वैसे ही हमको देना।

3- कथा

सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। उसके मिटटी के बर्तन  कोशिशों के बावजूद कच्चे रह जाटे थे, उसने यह समस्या एक पुजारी को बताई।

पुजारी - छोटे बच्चे की बलि से तुम्हारी समस्या दूर होगी । सकट चौथ का दिन था, कुम्हार ने अभागी मां के एक बच्चे को पकड़कर आंवा में डाल दिया। मां को उसका बेटा नहीं मिला तो उसने गणेश जी का व्रत कर उनसे प्रार्थना की।

जब कुम्हार ने देखा उसके आंवा में उसके बर्तन पक गए लेकिन बच्चा जीवित खेल रहा था।
कुम्हार ने डर कर राजा को  पूरी घटना बताई। राजा ने बच्चे की मां को बुलवाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाले सकट देव गणेश की पूजा एवं चौथ की महिमा बताई । 

इसलिए महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए व्रत करने लगीं।

4-कथा

एक बार देवाधिदेव महादेवजी पार्वती सहित नर्मदा के तट पर विहार कर रहे थे । पार्वतीजी ने महादेवजी से चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की।

 शिवजी ने कहा- हमारी हार-जीत का निर्णय एवं साक्षी कौन होगा?
पार्वती ने तिनकों एक पुतला बना कर जीवन दे कर , उससे कहा: बेटा! हम चौपड़ खेलेगे, तुम हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताना कि हममें से कौन जीता,?
खेल आरंभ हुआ।  तीनों बार पार्वतीजी ही जीतीं। जब अंत में बालक ने महादेवजी को विजयी बताया।

पार्वतीजी ने क्रुद्ध होकर उसे लंगड़ा होने और वहाँ कीचड़ में रहकर कष्ट भोगने का शाप दे दिया।बालक ने प्रार्थना कर कहा: माँ! मुझसे त्रुटी शाप से मुक्ति का उपाय बताएँ।
देवी दया कर  बोलीं: गणेश-पूजन करने नाग-कन्याएँ आएँगी। उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत कर मेरे पास आओगे।
एक वर्ष पशचात नाग-कन्याएँ गणेश पूजन के लिए आईं। उस बालक को भी व्रत की विधि बताई।  बालक ने 21 दिन तक श्री गणेशजी का व्रत किया।गणेश जी कृपा से बालक भगवान शिव के चरणों में पहुँच गया। उस दिन ही पार्वती शिवजी से किसी करण से नाराज थीं।

शिवजी ने पूछा’अरे तुम यहाँ कैसे आये ?।
बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी। उधर तदुपरांत भगवान शंकर ने भी बालक की तरह 21 दिन पर्यन्त श्रीगणेश का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पार्वती जी  के मन में स्वयं शिव जी से मिलने की उत्कट इच्छा जाग्रत हुई और वे शीघ्र ही शिव जी के पास पहुँची।

पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा: आपने ऐसा क्या किया जिसके कारण मैं अपने को रोक नहीं सकी । शिवजी ने गणेश व्रत कथन वृतांत कह दिया।पार्वतीजी ने भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यन्त गणेशजी का पूजन किया। 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही जगत जननी पार्वतीजी मा के पास पहुँच गए । गणेश जी ने जैसे सबको कुछ दिया, वैसे ही हमको देना।

5-कथा

एक बेटा और बहू वाली, बुढ़िया अति गरीब और दृष्टिहीन थीं परन्तु आदिदेव गणेश जी की पूजा दूर्वा,वन्फालों से नियमित करती थी । एक दिन गणेश जी नेप्रकट होकर उस बुढ़िया से कहा-
 'तू जो चाहे सो मांग ले।'
बुढ़िया बोली- ' मांगना नहीं आता मुझे ।  क्या मांगू?' 
गणेशजी - 'बहू-बेटे से पूछकर मांग ले।
बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा- 'गणेशजी आये हैं ,बोल रहे ' कुछ मांग लो' मैं क्या मांगू?' 
पुत्र - 'मां! धन मांग लीजिये।
बुढ़िया ने,बहू से पूछा , बहू ने कहा- 'नाती मांग लीजिये।
बुढ़िया ने पड़ोसिन से पूछा, तो उनने कहा- आप तो थोड़े दिन जीओगी, क्यों आप धन मांगे और नाती मांगे। अपनी आंखों की रोशनी मांग लीजिये, जिससे बची  जिंदगी आराम से कट जाए।'
अंत में वृद्धा ,गणेश जी से  बोली- ' आप कहते हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया, निरोगी काया, अमर सुहाग, आंखों की रोशनी, नाती, पोता, और सब परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें।
यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए। उधर बुढ़िया मां ने जो कुछ मांगा वह सबकुछ मिल गया। हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बुढ़िया मां को सब कुछ दिया, वैसे ही हमको देना।

कथा-6

एक बार गणेश जी एक चम्मच में दूध और एक चम्मच में चावल लेकर एक नगर में घर घर में जा रहे थे ।जो मिलता उससे  खीर बनाने के लिए कहते थे ,परंतु उनकी खीर कोई भी नहीं बना रहा था ।
      पर अंत में एक निर्धन गरीब  वृद्धा ने उनसे चम्मच मैं दूध और खीर लेकर दूध और चावल लेकर अपनी बहू से कहा इस की खीर बना दो।
बहू ने गुस्से में एक बड़े बर्तन में चावल और एक चम्मच दूध जो गणेश जी लाए थे डाल दिया ।
कुछ देर में ही वह बड़ा बर्तन पूरा खीर से भर गया ।
बहू को लगा कि मुझे खाने को से सास देंगी या नहीं इसलिए उसने पहले गणेश जी को भोग  लगाया । फिर स्वयं खीर खाई ।
इसके पश्चात अपने सास  को बताया ।
वृद्धा ने पूरे परिवार को खीर खिलाई परंतु वह बर्तन भरा रहा। इसके बाद पड़ोसियों को और पड़ोसियों के बाद नगर में जो भी उसके घर यह बात सुनकर आता उसको वह खीर खिलाती परंतु वह बर्तन खाली नहीं हो रहा था ।
यह बात नगर के राजा तक पहुंची उन्होंने अपने दूतों  को भेजा कि इस निर्धन वृद्धा के पास ऐसी कौन सी कौन सा धन आ गया है कि खीर बाँट रही है। 
दूतों ने जाकर राजा को बर्तन और खीर की पूरी बात बताई।
राजा ने उस बड़े बर्तन को उठवा लिया परंतु राजा के घर जाकर वह बर्तन तुरंत खाली हो गया ।
राजा ने उस वृद्धा को बुलाकर पूछा कि तुम कौन सा टोना टोटका जानती हो ,जिससे तुम्हारे पास या बर्तन फिर से भरा रहता है और तुम सबको खिलाती रहती हो ।
वृद्धा ने राजा से कहा कि मेरे पास आदिदेव गणेश जी की प्रार्थना के अतिरिक्त और कोई टोना टोटका नहीं है।
कथा 7
एक राजा के एक ही लड़का वह भी शैतान था। कोई कुये पर  पानी भरने आता तो वह  गुलेल से मटकी फोड़ देता था।यह शिकायत राजा को मिली।
राजा ने पुत्र  ने को देश निकाला दे दिया । चलते-चलते एक जंगल में राजा का बेटा पहुंचा उसे प्यास लगी। पानी ढूंढते आगे बढा।
एक जगह 4 औरतें बैठी हुई थी ।उनके पास जाने के लिए घोड़े से उतरा, तो उसके पैर में कांटा चुभ गया ।कांटा निकालने के लिए झुका।
     चारों औरतें आपस में लड़ने लगी  कि हमें देख कर, उसने सिर  झुकाया ।
राजा के पुत्र से उनने पूछा - किसको देख कर तुमने सम्मान मे सिर झुकाया था।
राज पुत्र ने एक से पूछा कौन हो तुम ?
वह औरत बोली -भूख हुँ मै।
राजपुत्र भूख को क्या शीश झुकाना।
जब भूख लगती है तो, हर चीज अच्छी लगती है ,और नहीं लगती तो 56भोग भी नही खाते।
राजपुत्र नेदूसरे से पूछा आप कौन हो ?
तो दूसरी बोली कि हम प्यास है।
प्यास को क्या शीश झुकाना ।प्यास लगती है तो मिट्टी के कुल्हड़ में भी आदमी पानी पीता है और नहीं लगती है तो सोने चांदी के गिलास में भी नहीं पीता।
राजपुत्र ने  तीसरी से पूछा कि आप कौन हो? वह बोली नींद हूँ मै।
   राजपुत्र,नींद  का क्या जब नींद आए तो जमीन पर भी सो जाता है आदमी और नहीं आती है तो मखमल के गद्दे पर भी नहीं आती।
राजपुत्र ने चौथी से पूछा तुम कौन हो ?
चौथी बोली, हम आस  माता हैं।
राजपुत्र ने कहा आपको शीश झुकाया। आशा से तो दुनिया चलती है ।
चौथी बोली तुमने   मेरी लाज रखी। वरदान देती हूँ, "जहां तुम जाओगे वहां तुम्हारी विजय होगी ।"
चलते चलते एक शहर में राजपुत्र पहुंचा। वहां का राजा शतरंज का खिलाड़ी था और उसको कोई हरा नही पाता था।
    राजपुत्र भी सबको शतरंज मे हराने लगा। राजा भी हारने लगा रोज। एक दिन  दुखी राजा को देख कर, रानी ने पूछा कि- क्या बात है क्यों इतना परेशान हो ?
राजा बोले कि एक लड़का है ।उससे हम सब हार गए।
रानी ने बोला कि - उसको तुम खाने पर बुला लो कोई अच्छे घर का लड़का होगा तो थोड़ा खाएगा और उठ जाएगा।  किसी गरीब का लड़का होगा तो जो उसे अच्छा लगेगा वह खाएगा। बहुत खायेगा।
योजना के अनुसार राजभवन मे बुलाया भोज पर।
राजपुत्र तो राजा का लड़का था ।उसने थोड़ा- खाया।
रानी बोली कि इससे अपनी  लड़की की शादी कर दो ।शादी कर दी महल बनवा दिया।
एक दिन शकट चौथ आई ।
दूसरे दिन कुम्हारिन सब घर से चौथ प्रसाद ले रही थी।
राजपुत्रि रानी ने कहा हमारे महल से भी ले लो।
कुम्हारिन बोली - तुम्हारा तो हमारा  गधी भी नहीं खाएगी । क्योकि तुम नगर की बेटी हो। बेटी का कौन खाता है?
राजा की लड़की को बहुत बुरा लगा ।उसने राजपुत्र से  कहा कि- तुम्हारा घर द्वार नहीं है?
यहाँ पड़े हो।
   राजपुत्र   हम तो राजा के लड़के हैं। ,महल है सब कुछ है ।हम तो शैतान थे तो हमारे पिताजी ने हमें घर से निकाल दिया ।चलो  माफी मांग लेते है पिताजी से।
   राजपुत्र ने ससुर से कहा, हम अपने घर जायेंगे।
राजा ने अपनी लड़की को  सोना चांदी हीरा मोती हाथी घोड़े सहित  विदा किया ।
चलते चलते फिर उसी जंगल में राजपुत्र आया जहां वह चारों औरतें बैठी हुई थी ।
उन्होंने उतर कर आस माता के पैर छुए।
राजपुत्र के  मां-बाप रोते-रोते अंधे हो गए थे।
लोगो ने कहा,तुम्हारे बेटा बहू आ गए ।
राजा बोले,हमारे बेटा बहू कहां ?हमने तो तुम्हारे कहने से घर से निकाल दिया था?
      इतने में वह लड़का बहू ने उनके पैर छुए। पैर छूते ही उनकी आंखों की ज्योति  आ गई।
      एक बुढ़िया थी उसके एक बेटा था बहुत  गांव में अकाल पड़ा ।
कुछ खाने को नहीं था। लड़का परदेस व्यापार के लिए  चला गया। 
एक साहूकार के नौकरी करने लगा। जब 12 वर्ष हो गए तो वह बोला कि हम अपने घर जाएंगे तो साहूकार ने उनको खूब सामान दिया 12 साल की तनखा दी।
फिर वह  अपने घर आए गांव आया तो  गली में उनकी  बैलगाड़ी  फस गई ।
जो निकल नही रही थी।
पंडित ने पूछने पर उपाय बताया कि "सकट चौथ की रात को जन्मा लड़के पैर  लगाए तो बैल गाड़ी निकल जाएगी।पंडित ने उन बालको को बुला दिता  ।
      सकट चौथ की रात को जन्मे लड़कों जिनका नाम सकटुआ,बकटुआ था  ने   पैर लगाने के लिए आधा धन लिया।निराश उदास उसने कमाया धन का आधा देना स्वीकार किया  ।  सकटुआ,बकटुआ के पैर लगते ही बैलगाड़ी निकल गयी  ।

उदास मन से धन कम होने से बीटा घर पहुंचा ,उसने माँ को पूरी बात बताई  माँ ने कहा बेटा 12 वर्ष बाद तु आया , माँ के लिए यही बहुत है   आज सकट चौथ है ,मेरा व्रत भी है  । गणेश जी ने बेटा भेज दिया   इतने में दोनों सकटुआ,बकटुआ भी धन लेकर ,आगये  

अंत मे ज्ञात हुआ कि उसके जाने के बाद ही सकट चौथ को पुत्र हुए थे । सकट चौथ को जन्म होने के कारन दोनों बच्चों का नाम पंडित ने सकटुआ,बकटुआरख दिया था   बेटे का कमाया सारा धन घर में ही आगया ,गणेश जी कृपा से  धन घर का घर मे ही आया।

कथा 8

एक गांव में दो भाई रहते थे। एक भाई बहुत अमीर था और दूसरा गरीब था।

छोटे भाई की बीवी  गरीब थी ।वह  जेठानी के घर जाकर काम करती थी । शाम को जो वो लोग दे देते थे ,वह आकर वह अपने बच्चों को  पति को खिला देती थी।
सकट चौथ का त्यौहार आया तो उस दिन  रात को जेठानी  जिठानी ने कुछ भी नहीं दिया।
वह खेत में गई वहां से बथुआ तोड़ा और एक तेली के यहां गई वहां से तिल्ली की खली लाई और उसके लड्डू बनाया।
रात को  पति बोले खाना दे दो तो वह बोली आज तो जेठानी ने कुछ दिया नहीं है।
यही है खा लो।पति ने क्रोध बहुत मारा ।
        रात को आए गणपति जी आये,बोले कि "मां मैया में भूख लगी"
उसने कहा कि यह रखा है खा लो ।
गणेश जी के खाते ही , घर के अनाज के भंडार भर गए ।फिर  पानी पिया तो बर्तनों का ढेर लग गया।
फिर गणेश जी बोले पाटी जाना है।
उसने कहा इतने बड़े आंगन मे कही भी कर लीजिये।
वे सब सोने मे परिवर्त हो गए।
सुबह उसने देखा घर मे अनाज, वर्तन, सोना चांदी के ढेर लग गये।
     इनको रखने मे देर हो गयी । जेठानी आई। तुम काम करने नही आई।
अब नही आऊँगी। गणेश जी ने बहुत दे दिया।
      जेठानी बोली हम भी करेंगे। तुमपूरी बात बताओ। पूरी बात सुनकर जेठानी ने वही किया।
जैसा उनकी देवरानी ने किया था। अब रात को गणपति जी आए मैया भूख लगी तो उन्होंने क्या किया कि घर के लिए पकवान बनाए थे और गणपति बप्पा की पिन्नी और तिल्ली के लड्डू खा लिए ।
फिर उन ने कहा कि हमें प्यास लगी प्यास लगी तो उन्होंने कहा कि मिट्टी का कूल्हड़ दे दिया बोले पी लो ।
पानी गणेश जी ने पिया तो उनके यहां सारे बर्तन उनके खत्म हो गए।
फिर उन्होंने कहा कि मैं मां में पॉटी लगी तो बोली पूरा घर पर जा कर लो सुबह साफ कर देंगे । पूरे घर में बदबू बोले अब क्या करें कैसे साफ करें ।
हमारे माथे से पोंछ लो।
उन्होंने कहा बहुत बदबू आएगी।
जेठानी का पूरा घर खाली हो गया। सब खत्म हो गया ।उनका माथे में   बदबू, पूरे घर में दुर्गंध।
रोती हुई देवरानी के घर गयी। देवरानी  तुमने क्या बताया मैं जो हमारा पूरा घर खाली हो गया।
देवरानी  ने कहा तुम्हारे पास सब कुछ था।तुमने  गलत किया।गणेश जी ने सब तुम्हारा ले लिया।
अगले वर्ष सकट चौथ व्रत विधि से करो।पूरी साल हर चौथ का व्रत karo। फिर चौथ आई।
जेठानी ने सत् संकल्प से अच्छे से विधि विधान से पूजा करी। उन का पूरा घर sukh samruddhi se भर गया ।  

 

 

 


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संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक होता है | पितृ श्राद्ध किस देव से स

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -