कथाएं-सकट चौथ , संकष्टी
चतुर्थी, तिलकुट, माघ चतुर्थी
Festival of children's safety
महिलाएं
अपनी संतान संतान
के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए ,शाम तक
निर्जला व्रत रखती हैं। शाम को चंद्र दर्शन और चंद्र को अर्घ्य देने के बाद फलाहार
किया जाता है।
विघ्नहर्ता गणेश जीएवं चंड्रामा की पूजा
का विधान है। पूजा के अवसर पर पढ़ी या कही जाने वाली कथाएं -
लोक परम्परा में प्रचलित संकलित कथाये
-
1-कथा
भगवन शिव जी बहुत समय से अन्यत्र थे । देवी पार्वती ,स्नान के समय , बाल गणेश जी को
दरवाजे के बाहर बिठा कर कह देती थी “किसी को भी अंदर नहीं आने देंना”। एक दिन देव वशात
मान की आज्ञा से ,गणेश जी द्वार पर बैठे थे । भगवान शिव आ पहुंचे। गणेश जी ने
भगवान शिव को दरवाज़े के बाहर रोक दिया। शिव जी क्रोध पूर्वक त्रिशूल से बाल गणेश
की गर्दन धड़ से अलग कर दी। पार्वती जी बाहर आईं। पुत्र गणेश की कटी हुई गर्दन देख
शोक मग्न हो गईं और। शिव जी से अपने बेटे के जीवित करने के लिए कहा । गणेश जी की
गर्दन की जगह एक हाथी के बच्चे का सिर लगा कर जीवित कर दिया । चतुर्थी कृष्ण पक्ष के
दिन से माताएं , अपने बच्चों के दीर्घायु के लिए गणेश चतुर्थी का व्रत पूजन करती हैं।
कथा 2-
एक अधर्मी ,नास्तिक,निसंतान साहूकार परिवार
था । धर्म, दान व पुण्य पूजा पाठ लेशमात्र
नहीं करते थे । पड़ोसन सकट चौथ की पूजा कर रही थी। साहूकारनी अपने पड़ोसन के घर गयी
, पड़ोसन से पूछा यह तुम क्या कर रही हो।
पड़ोसन ने कहा आज सकट चौथ का व्रत है, इसलिए मैं गणेश जी की पूजा कर रही हूं। साहूकारनी ने
पड़ोसन से पूछा इस व्रत क्यों करती हो कुछ फल मिलता है।
पड़ोसन – हाँ,इसे करने से धन-धान्य, सुहाग और पुत्र सब मिलता है।
साहूकारनी बोली –अच्छा,अगर मैं गर्भवती हुई तो
मैं सवा सेर तिलकुट अर्पण करूंगी और हमेशा चौथ का व्रत करुँगी। साहूकारनी ने व्रत-पूजा
विधि से की ,देव कृपा हुई ।
साहुकारनी गर्भवती हुई ,फिर उसने कहा कि “अगर मेरा लड़का हो जाए तो मैं ढाई सेर
तिलकुट करूंगी। फिर लड़का हो गया। इसके पश्चात् साहूकारनी बोली - मेरे बेटे का विवाह हो जाने पर
सवा पांच सेर तिलकुट करूंगी।
लड़के का विवाह तय हो गया। सब कुछ होने के
बाद भी साहूकारनी ने तिलकुट वचन के अनुसार नहीं किया।
आदिदेव सकट देव रुष्ट-क्रोधित हो गए। गणेश
जी ने फेरो के पूर्व उसके बेटे को उठा कर पीपल के पेड़ पर बैठा दिया। सभी वर को
ढूंढने लगे। अंततः वर नहीं मिलने पर बाराती अपने घर चले गए ।
देव योग से ,जिस लड़की से साहूकारनी के
लड़के का विवाह होने वाला था, वह अपनी सहेलियों के साथ गणगौर पूजन करने के लिए पीपल
के पेड़ के नीचे दूब लेने रही थी । पेड़ से बार बार एक आवाज सुनाई देने लगी-‘ओ मेरी अर्धव्याही’ । लड़की डर कर
भागी । अपने घर पहुंच लड़की ने मां को सारी बात बताई।
लड़की की मां ने पीपल के पेड़ के पास जाकर
देखा, पेड़ पर बैठा उसका होने
वाला दामाद दिखा । लड़की की मां ने दामाद पूछा
कि यहां क्यों बैठे हो? मेरी बेटी अर्धव्याही कर दी, अब यहाँ क्यों बैठे हो ?क्या
चाहते हो ?
साहूकारनी का बेटा बोला -मेरी मां ने चौथ
का तिलकुट बोला था, लेकिन कभी तक नहीं किया।
सकट देवता गणेश जी गुस्सा होगये हैं और उन्होंने ही मुझे यहां पर बैठा दिया है।
लड़की की मां साहूकार के घर गई और साहुकारनी
को पूरी बात बताई ।
साहूकारनी ने हाथ में जल लेकर संकल्प किया
- हे सकट चौथ महाराज अगर मेरा बेटा घर वापस आ जाए, तो मैं ढाई मन का तिलकुट करूंगी।
गणेश जी ने उसके बेटे को वापस भेज दिया। इसके बाद साहूकारनी
के बेटे का धूमधाम से विवाह हुआ। साहूकारनी ने ढाई मन तिलकुट किया । है सकट देवता, आपकी कृपा से मेरे बेटे पर आया संकट दूर हो गया और
मेरा बेटा घर पर आ गए हैं। अब मैं हमेशा तिलकुट करके आपका सकट चौथ का व्रत करूंगी।
गणेश जी ने जैसे साहुकरिन को सब कुछ दिया, वैसे ही हमको देना।
3- कथा
सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। उसके मिटटी के
बर्तन कोशिशों के बावजूद कच्चे रह जाटे थे,
उसने यह समस्या एक पुजारी को बताई।
पुजारी -
छोटे बच्चे की बलि से तुम्हारी समस्या दूर होगी । सकट चौथ का दिन था, कुम्हार ने अभागी
मां के एक बच्चे को पकड़कर आंवा में डाल दिया। मां को उसका बेटा नहीं
मिला तो उसने गणेश जी का व्रत कर उनसे प्रार्थना की।
जब
कुम्हार ने देखा उसके आंवा में उसके बर्तन पक गए लेकिन बच्चा जीवित खेल रहा
था।
कुम्हार ने डर कर राजा को पूरी घटना बताई। राजा ने बच्चे की मां को
बुलवाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाले सकट देव गणेश की पूजा एवं चौथ की महिमा
बताई ।
इसलिए महिलाएं अपनी संतान की लंबी
आयु के लिए व्रत करने लगीं।
4-कथा
एक बार देवाधिदेव
महादेवजी पार्वती सहित नर्मदा के तट पर विहार कर रहे थे । पार्वतीजी ने महादेवजी से
चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की।
शिवजी ने कहा- हमारी हार-जीत का निर्णय एवं
साक्षी कौन होगा?
पार्वती ने तिनकों एक पुतला बना कर जीवन
दे कर , उससे कहा: बेटा! हम चौपड़ खेलेगे, तुम हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताना
कि हममें से कौन जीता,?
खेल आरंभ हुआ। तीनों बार पार्वतीजी ही जीतीं। जब अंत
में बालक ने महादेवजी को विजयी बताया।
पार्वतीजी
ने क्रुद्ध होकर उसे लंगड़ा होने और वहाँ कीचड़ में रहकर कष्ट भोगने का शाप दे
दिया।बालक ने प्रार्थना कर कहा: माँ! मुझसे त्रुटी शाप से मुक्ति का उपाय बताएँ।
देवी दया कर बोलीं: गणेश-पूजन करने नाग-कन्याएँ आएँगी। उनके
उपदेश से तुम गणेश व्रत कर मेरे पास आओगे।
एक वर्ष पशचात नाग-कन्याएँ गणेश पूजन के
लिए आईं। उस बालक को भी व्रत की विधि बताई। बालक ने 21 दिन तक श्री गणेशजी का व्रत किया।गणेश
जी कृपा से बालक भगवान शिव के चरणों में पहुँच गया। उस दिन ही पार्वती शिवजी से किसी
करण से नाराज थीं।
शिवजी
ने पूछा’अरे तुम यहाँ कैसे आये ?।
बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी। उधर
तदुपरांत भगवान शंकर
ने भी बालक की तरह 21 दिन पर्यन्त श्रीगणेश का व्रत किया,
जिसके प्रभाव से पार्वती जी के मन में स्वयं शिव जी से मिलने की उत्कट इच्छा
जाग्रत हुई और वे शीघ्र ही शिव जी के पास पहुँची।
पार्वतीजी
ने शिवजी से पूछा: आपने ऐसा क्या किया जिसके कारण मैं अपने को रोक नहीं सकी ।
शिवजी ने गणेश व्रत कथन वृतांत कह दिया।पार्वतीजी ने भी अपने पुत्र
कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यन्त गणेशजी का पूजन किया। 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही जगत जननी पार्वतीजी मा के पास पहुँच गए । गणेश जी ने जैसे सबको कुछ दिया, वैसे ही हमको देना।
5-कथा
एक बेटा और बहू वाली, बुढ़िया अति गरीब और दृष्टिहीन
थीं परन्तु आदिदेव गणेश जी की पूजा दूर्वा,वन्फालों से नियमित करती थी । एक दिन
गणेश जी नेप्रकट होकर उस बुढ़िया से कहा-
'तू जो चाहे सो मांग ले।'
बुढ़िया बोली- ' मांगना नहीं आता मुझे । क्या मांगू?'
गणेशजी - 'बहू-बेटे से पूछकर मांग ले।'
बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा- 'गणेशजी आये हैं
,बोल रहे ' कुछ मांग लो' मैं क्या
मांगू?'
पुत्र - 'मां! धन मांग लीजिये।'
बुढ़िया ने,बहू से पूछा , बहू ने कहा- 'नाती
मांग लीजिये।'
बुढ़िया ने पड़ोसिन से पूछा, तो उनने कहा- आप
तो थोड़े दिन जीओगी, क्यों आप धन मांगे और नाती मांगे। अपनी
आंखों की रोशनी मांग लीजिये, जिससे बची जिंदगी आराम से कट जाए।'
अंत में वृद्धा ,गणेश जी से बोली- ' आप कहते हैं,
तो मुझे नौ करोड़ की माया, निरोगी काया,
अमर सुहाग, आंखों की रोशनी, नाती, पोता, और सब परिवार को
सुख दें और अंत में मोक्ष दें।'
यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए। उधर बुढ़िया मां ने जो कुछ मांगा वह
सबकुछ मिल गया। हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बुढ़िया मां को सब कुछ दिया,
वैसे ही हमको देना।
कथा-6
एक बार गणेश जी एक चम्मच में दूध और
एक चम्मच में चावल लेकर एक नगर में घर घर में जा रहे थे ।जो मिलता उससे खीर बनाने के लिए
कहते थे ,परंतु उनकी खीर कोई भी नहीं बना रहा था ।
पर अंत में एक
निर्धन गरीब वृद्धा ने उनसे चम्मच मैं दूध और खीर लेकर दूध और चावल लेकर अपनी
बहू से कहा इस की खीर बना दो।
बहू ने गुस्से में एक बड़े बर्तन में
चावल और एक चम्मच दूध जो गणेश जी लाए थे डाल दिया ।
कुछ देर में ही वह बड़ा बर्तन पूरा
खीर से भर गया ।
बहू को लगा कि मुझे खाने को से सास
देंगी या नहीं इसलिए उसने पहले गणेश जी को भोग लगाया । फिर स्वयं खीर खाई ।
इसके पश्चात अपने सास को बताया ।
वृद्धा ने पूरे परिवार को खीर खिलाई
परंतु वह बर्तन भरा रहा। इसके बाद पड़ोसियों को और पड़ोसियों के बाद नगर में जो भी
उसके घर यह बात सुनकर आता उसको वह खीर खिलाती परंतु वह बर्तन खाली नहीं हो रहा था
।
यह बात नगर के राजा तक पहुंची
उन्होंने अपने दूतों को भेजा कि इस निर्धन वृद्धा के पास ऐसी कौन सी कौन सा धन आ गया है
कि खीर बाँट रही है।
दूतों ने जाकर राजा को बर्तन और खीर
की पूरी बात बताई।
राजा ने उस बड़े बर्तन को उठवा लिया
परंतु राजा के घर जाकर वह बर्तन तुरंत खाली हो गया ।
राजा ने उस वृद्धा को बुलाकर पूछा कि
तुम कौन सा टोना टोटका जानती हो ,जिससे तुम्हारे पास या बर्तन फिर से भरा रहता है और तुम सबको
खिलाती रहती हो ।
वृद्धा ने राजा से कहा कि मेरे पास
आदिदेव गणेश जी की प्रार्थना के अतिरिक्त और कोई टोना टोटका नहीं है।
कथा 7
एक राजा के एक ही लड़का वह भी शैतान
था। कोई कुये पर पानी भरने आता तो वह गुलेल से मटकी फोड़ देता था।यह शिकायत राजा को मिली।
राजा ने पुत्र ने को देश निकाला
दे दिया । चलते-चलते एक जंगल में राजा का बेटा पहुंचा उसे प्यास लगी। पानी ढूंढते
आगे बढा।
एक जगह 4 औरतें बैठी हुई थी
।उनके पास जाने के लिए घोड़े से उतरा, तो उसके पैर में कांटा चुभ गया ।कांटा
निकालने के लिए झुका।
चारों औरतें आपस
में लड़ने लगी कि हमें देख कर, उसने सिर झुकाया ।
राजा के पुत्र से उनने पूछा - किसको
देख कर तुमने सम्मान मे सिर झुकाया था।
राज पुत्र ने एक से पूछा कौन हो तुम ?
वह औरत बोली -भूख हुँ मै।
राजपुत्र भूख को क्या शीश झुकाना।
जब भूख लगती है तो, हर चीज अच्छी लगती
है ,और नहीं लगती तो 56भोग भी नही खाते।
राजपुत्र नेदूसरे से पूछा आप कौन हो ?
तो दूसरी बोली कि हम प्यास है।
प्यास को क्या शीश झुकाना ।प्यास लगती
है तो मिट्टी के कुल्हड़ में भी आदमी पानी पीता है और नहीं लगती है तो सोने चांदी
के गिलास में भी नहीं पीता।
राजपुत्र ने तीसरी से पूछा कि
आप कौन हो? वह बोली नींद हूँ मै।
राजपुत्र,नींद का क्या जब नींद आए
तो जमीन पर भी सो जाता है आदमी और नहीं आती है तो मखमल के गद्दे पर भी नहीं आती।
राजपुत्र ने चौथी से पूछा तुम कौन हो ?
चौथी बोली, हम आस माता हैं।
राजपुत्र ने कहा आपको शीश झुकाया। आशा
से तो दुनिया चलती है ।
चौथी बोली तुमने मेरी लाज रखी। वरदान देती हूँ, "जहां तुम जाओगे वहां तुम्हारी विजय
होगी ।"
चलते चलते एक शहर में राजपुत्र
पहुंचा। वहां का राजा शतरंज का खिलाड़ी था और उसको कोई हरा नही पाता था।
राजपुत्र भी सबको शतरंज मे हराने लगा।
राजा भी हारने लगा रोज। एक दिन
दुखी राजा को देख कर, रानी ने पूछा कि-
क्या बात है क्यों इतना परेशान हो ?
राजा बोले कि एक लड़का है ।उससे हम सब
हार गए।
रानी ने बोला कि - उसको तुम खाने पर
बुला लो कोई अच्छे घर का लड़का होगा तो थोड़ा खाएगा और उठ जाएगा। किसी गरीब का लड़का
होगा तो जो उसे अच्छा लगेगा वह खाएगा। बहुत खायेगा।
योजना के अनुसार राजभवन मे बुलाया भोज
पर।
राजपुत्र तो राजा का लड़का था ।उसने
थोड़ा- खाया।
रानी बोली कि इससे अपनी लड़की की शादी कर
दो ।शादी कर दी महल बनवा दिया।
एक दिन शकट चौथ आई ।
दूसरे दिन कुम्हारिन सब घर से चौथ
प्रसाद ले रही थी।
राजपुत्रि रानी ने कहा हमारे महल से
भी ले लो।
कुम्हारिन बोली - तुम्हारा तो हमारा गधी भी नहीं खाएगी
। क्योकि तुम नगर की बेटी हो। बेटी का कौन खाता है?
राजा की लड़की को बहुत बुरा लगा ।उसने
राजपुत्र से कहा कि- तुम्हारा घर द्वार नहीं है?
यहाँ पड़े हो।
राजपुत्र हम तो राजा के लड़के हैं। ,महल है सब कुछ है ।हम तो शैतान थे तो
हमारे पिताजी ने हमें घर से निकाल दिया ।चलो माफी मांग लेते है पिताजी से।
राजपुत्र ने ससुर से कहा, हम अपने घर
जायेंगे।
राजा ने अपनी लड़की को सोना चांदी हीरा
मोती हाथी घोड़े सहित विदा किया ।
चलते चलते फिर उसी जंगल में राजपुत्र
आया जहां वह चारों औरतें बैठी हुई थी ।
उन्होंने उतर कर आस माता के पैर छुए।
राजपुत्र के मां-बाप रोते-रोते
अंधे हो गए थे।
लोगो ने कहा,तुम्हारे बेटा बहू
आ गए ।
राजा बोले,हमारे बेटा बहू
कहां ?हमने तो तुम्हारे कहने से घर से निकाल दिया था?
इतने में वह लड़का
बहू ने उनके पैर छुए। पैर छूते ही उनकी आंखों की ज्योति आ गई।
एक बुढ़िया थी उसके
एक बेटा था बहुत गांव में अकाल पड़ा ।
कुछ खाने को नहीं था। लड़का परदेस
व्यापार के लिए चला गया।
एक साहूकार के नौकरी करने लगा। जब 12 वर्ष हो गए तो वह
बोला कि हम अपने घर जाएंगे तो साहूकार ने उनको खूब सामान दिया 12 साल की तनखा दी।
फिर वह अपने घर आए गांव आया तो गली में उनकी बैलगाड़ी फस गई ।
जो निकल नही रही थी।
पंडित ने पूछने पर उपाय बताया कि
"सकट चौथ की रात को जन्मा लड़के पैर लगाए तो बैल गाड़ी निकल जाएगी।पंडित ने
उन बालको को बुला दिता ।
सकट चौथ की रात को जन्मे
लड़कों जिनका नाम सकटुआ,बकटुआ था ने पैर लगाने के लिए आधा धन लिया।निराश उदास उसने कमाया धन का आधा देना
स्वीकार किया । सकटुआ,बकटुआ के पैर लगते ही बैलगाड़ी निकल गयी ।
उदास मन से धन कम होने से बीटा घर पहुंचा
,उसने माँ को पूरी बात बताई ।माँ ने कहा बेटा 12 वर्ष बाद तु आया , माँ
के लिए यही बहुत है । आज सकट चौथ है ,मेरा व्रत भी है । गणेश जी ने बेटा भेज दिया । इतने में
दोनों सकटुआ,बकटुआ भी धन लेकर ,आगये ।
अंत मे ज्ञात हुआ कि उसके जाने के बाद
ही सकट चौथ को पुत्र हुए थे । सकट चौथ को जन्म होने के कारन दोनों बच्चों का नाम पंडित
ने सकटुआ,बकटुआरख दिया था । बेटे का कमाया सारा धन घर में ही आगया ,गणेश जी कृपा
से धन घर का घर मे ही आया।
कथा 8
एक गांव में दो भाई रहते थे। एक भाई बहुत अमीर था और दूसरा गरीब
था।
छोटे भाई की बीवी गरीब थी ।वह जेठानी के घर जाकर
काम करती थी । शाम को जो वो लोग दे देते थे ,वह आकर वह अपने बच्चों को पति को खिला देती
थी।
सकट चौथ का त्यौहार आया तो उस दिन रात को जेठानी जिठानी ने कुछ भी
नहीं दिया।
वह खेत में गई वहां से बथुआ तोड़ा और
एक तेली के यहां गई वहां से तिल्ली की खली लाई और उसके लड्डू बनाया।
रात को पति बोले खाना दे दो तो वह बोली आज तो
जेठानी ने कुछ दिया नहीं है।
यही है खा लो।पति ने क्रोध बहुत मारा
।
रात को आए गणपति जी आये,बोले कि "मां मैया में भूख
लगी"
उसने कहा कि यह रखा है खा लो ।
गणेश जी के खाते ही , घर के अनाज के
भंडार भर गए ।फिर पानी पिया तो बर्तनों का ढेर लग गया।
फिर गणेश जी बोले पाटी जाना है।
उसने कहा इतने बड़े आंगन मे कही भी कर
लीजिये।
वे सब सोने मे परिवर्त हो गए।
सुबह उसने देखा घर मे अनाज, वर्तन, सोना चांदी के ढेर
लग गये।
इनको रखने मे देर
हो गयी । जेठानी आई। तुम काम करने नही आई।
अब नही आऊँगी। गणेश जी ने बहुत दे
दिया।
जेठानी बोली हम भी
करेंगे। तुमपूरी बात बताओ। पूरी बात सुनकर जेठानी ने वही किया।
जैसा उनकी देवरानी ने किया था। अब रात
को गणपति जी आए मैया भूख लगी तो उन्होंने क्या किया कि घर के लिए पकवान बनाए थे और
गणपति बप्पा की पिन्नी और तिल्ली के लड्डू खा लिए ।
फिर उन ने कहा कि हमें प्यास लगी
प्यास लगी तो उन्होंने कहा कि मिट्टी का कूल्हड़ दे दिया बोले पी लो ।
पानी गणेश जी ने पिया तो उनके यहां
सारे बर्तन उनके खत्म हो गए।
फिर उन्होंने कहा कि मैं मां में पॉटी
लगी तो बोली पूरा घर पर जा कर लो सुबह साफ कर देंगे । पूरे घर में बदबू बोले अब
क्या करें कैसे साफ करें ।
हमारे माथे से पोंछ लो।
उन्होंने कहा बहुत बदबू आएगी।
जेठानी का पूरा घर खाली हो गया। सब
खत्म हो गया ।उनका माथे में
बदबू, पूरे घर में दुर्गंध।
रोती हुई देवरानी के घर गयी। देवरानी तुमने क्या बताया
मैं जो हमारा पूरा घर खाली हो गया।
देवरानी ने कहा तुम्हारे
पास सब कुछ था।तुमने गलत किया।गणेश जी ने सब तुम्हारा ले लिया।
अगले वर्ष सकट चौथ व्रत विधि से
करो।पूरी साल हर चौथ का व्रत karo। फिर चौथ आई।
जेठानी ने सत् संकल्प से अच्छे से
विधि विधान से पूजा करी। उन का पूरा घर sukh samruddhi se भर गया ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें