मकर संक्रांति के नाम स्नान ,दान पूजा
विधि
सूर्य धनु राशी से मकर राशी में प्रवेश ।
स्नान
दान समय- संक्रांति पुण्य काल से (नियम 16 घटी पूर्व से पश्चात तक )प्रातः08;17 से
प्रारंभ –सूर्यास्त तक| भारत एवं विदेश में इस पर्व
के नाम –
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श्री लंका पोंगल, उझवर तिरुनल बांग्लादेश -शंकरैन, पौष संक्रान्ति; लाओस -पि मा लाओ; कम्बोडिया - मोहा संगक्रान;थाईलैण्ड - सोंगकरन; म्यांमार -थिंयान नेपाल - माघे संक्रान्ति या 'माघी संक्रान्ति' 'खिचड़ी संक्रान्तिकर्नाटक-मकर संक्रमण ;तमिलनाडु-ताइ ,पोंगल, उझवर तिरुनल; आंध्रप्रदेश, कर्नाटक , -मकर संक्रमामा; तेलुगू - ‘पेंडा
पाँदुगा’ जम्मू-उत्तरैन[2],
माघी संगरांद ; कश्मीर घाटी-शिशुर सेंक्रात ;हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब-माघी,मगही ; उत्तर प्रदेश , बुंदेलखंड
,मध्यप्रदेश सकरात ;पश्चिमी बिहार- खिचड़ी ;|गुजरात, उत्तराखण्ड- उत्तरायण ; असम- भोगाली बिहु ; पश्चिम बंगाल-पौष संक्रान्ति ; उड़ीसा - भूया आदिवासियों में माघ यात्रा एवं घरों में बनी वस्तुओं का विक्रय किया जाता है.
- सर्वाधिक बड़ा पर्व –केरल में , 40 दिनों का अनुष्ठान करते है, जो कि सबरीमाला में समाप्त होता है.
- बंगाल- पौष
पर्वन कुल देवता व कुल देवी की विधि विधान से पूजा करते हैं। सभी व्यंजन चावल
एवं खजूर ,गुड आदि बनते है।
- मकर
संक्रांति पर्व की दिनचर्या- महत्व,पूजा
- भविष्यपुराण -
- सूर्य के
उत्तरायण या दक्षिणायन के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। इस व्रत में
संक्रांति के पहले दिन एक बार भोजन करना चाहिए। संक्रांति के दिन तेल तथा तिल
मिश्रित जल से स्नान करना चाहिए। इसके बाद सूर्य देव की स्तुति करनी चाहिए।
- ‘विष्णु धर्मसूत्र’ -
- पितरों आत्मा शांति, स्व स्वास्थ्य तिल के छः प्रयोग पुण्य एव फलदायक होते हैं – तिल-जल
स्नान, तिल-दान, तिल-भोजन,
तिल- जल अर्पण, तिल-आहुति तथा तिल उबटन
मर्दन ।
- प्रातःकाल
तिल का उबटन एवं तिल,मिश्रित जल से स्नान करें ।ताँबे के लोटे में रक्त चंदन, कुमकुम, लाल रंग या चमेली के फूल , जल डालकर
पूर्वाभिमुख होकर सूर्य- मंत्र से तीन बार सूर्य भगवान को जल अर्पण और सात बार अपने ही स्थान पर परिक्रमा करें
।
- पद्म पुराण -
- ‘जो मनुष्य भगवान सूर्य के आदित्य, भास्कर, सूर्य, अर्क,
भानु, दिवाकर, स्वर्णरेता,
मित्र, पूषा, त्वष्टा,
स्वयम्भू और तिमिराश – इन 12 नामों का स्मरण
,वाचन करता है, वह पाप और रोग मुक्त होकर परम
गति प्राप्त करता है ।’
- पितृ तर्पण –
- दक्षिण में मुख , तर्जनी तथा अंगूठे
के मध्य से जल एवं तिल अर्पण करे |
- पक्षियों
को अनाज व गाय को घास, तिल, गुड़ आदि खिलायें ।
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तिल के तेल का दीपक - बाईं ओर रखें और घी दीपक दाईं ओर.
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12-14 कौड़ियों को स्पर्श ॐ संक्रात्याय नम:” का 14 बार
बोले .फिर सूर्यास्त पूर्व विशेष स्थान में रख दे |
- तिल के तेल का दीपक घर के बाहर चौखट
पर रख दें |
- ॥
श्रीसूर्याष्टकम् ॥
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आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते ॥1॥
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सप्ताश्व रथमारूढं प्रचण्डं कश्यप आत्मजम् ।
श्वेत पद्माधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्य अहम् ॥2॥
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लोहितं रथमारूढं सर्वलोक पितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्य अहम् ॥3॥
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त्रैगुण्यश्च महाशूरं ब्रह्मा विष्णु महेश्वरम् ।
महापाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्य अहम् ॥4॥
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बृह्मितं तेजःपुञ्जञ्च वायु आकाश मेव च ।
प्रभुत्वं सर्व लोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्य अहम् ॥5॥
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बन्धूक पुष्पसङ्काशं हार कुण्डल भूषितम् ।
एक चक्र धरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्य अहम् ॥6॥
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तं सूर्यं लोककर्तारं महा तेजः प्रदीपनम् ।
महापाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्य अहम् ॥7॥
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तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञान प्रकाश मोक्षदम् ।
महा पाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्य अहम् ॥8॥
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॥ इति श्रीसूर्याष्टकम् ॥
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