वर्ष मे
सर्व श्रेष्ठ दिन हनुमान से याचना ऋणमुक्ति,शत्रु नाश,विजय मुक्द्द्मा,आपत्ति निवारक ,बुद्धि चातुर्य दिन |
(आज हनुमान जयंती के पर्व पर हनुमान चालीसा ,बजरंग बाण ,सुंदरकांड एवं हनुमान
जी के किसी भी मंत्र का 108 बार जाप एवं 11 आहुतियां जिसमें जो
से दुगना चावल एवं जोकर आधा तिल तथा शुद्ध घी गूगल का प्रयोग कपूर के साथ करना
चाहिए संक्षिप्त में अनेक मंत्र हैं " पवन नंदनाय नमः"
शुभ मुहूर्त - बाधा शमन
शुभ मुहूर्त विभिन्न उद्देश्य से की गई पूजा के लिए -
6:00 बजे सूर्योदय का समय लिखा हुआ है इसमें अपने नगर के सूर्योदय समय को कम या
अधिक कर ले
1-ऋण मुक्ति एवं शत्रु नाश मुकदमे में विजय के लिए-6से7,13:11-14:00;20:21;बजे का समय श्रेष्ठ ।
2-हवन, उच्च अधिकारी की कृपा के लिए सूर्योदय से -
7:37-8:00;14:00-15:00;21:00-22:00
बजे का समय श्रेष्ठ ।
3-सर्व सुख ,सुविधा,भौतिक सुख एवम 'स्त्री वर्ग से अनुकूलता की दृष्टि से 8:00-8:20;22:00-23:00बजे का समय श्रेष्ठ ।
4- मानसिक सुख, ज्ञान ,शिक्षा,नए वस्त्र आदि की दृष्टि से 12:25-13:00;19:00-20:00बजे का श्रेष्ठ ।
1-ऋण मुक्ति एवं शत्रु नाश मुकदमे में विजय के लिए-6से7,13:11-14:00;20:21;बजे का समय श्रेष्ठ ।
2-हवन, उच्च अधिकारी की कृपा के लिए सूर्योदय से -
7:37-8:00;14:00-15:00;21:00-22:00
बजे का समय श्रेष्ठ ।
3-सर्व सुख ,सुविधा,भौतिक सुख एवम 'स्त्री वर्ग से अनुकूलता की दृष्टि से 8:00-8:20;22:00-23:00बजे का समय श्रेष्ठ ।
4- मानसिक सुख, ज्ञान ,शिक्षा,नए वस्त्र आदि की दृष्टि से 12:25-13:00;19:00-20:00बजे का श्रेष्ठ ।
बैरि-baadha aaptti
vipaatti नाशक हनुमान
अञ्जनी-तनय बल-वीर रन-बाँकुरे, करत हुँ अर्ज दोऊ हाथ जोरी,
शत्रु-दल सजि के चढ़े चहूँ ओर ते, तका इन पातकी न इज्जत मेरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेहि झपट मत करहु देरी,
मातु की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, अञ्जनी-सुवन मैं सरन तोरी।।१
शत्रु-दल सजि के चढ़े चहूँ ओर ते, तका इन पातकी न इज्जत मेरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेहि झपट मत करहु देरी,
मातु की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, अञ्जनी-सुवन मैं सरन तोरी।।१
पवन के पूत अवधूत रघु-नाथ प्रिय, सुनौ यह अर्ज महाराज मेरी,
अहै जो मुद्दई मोर संसार में, करहु अङ्ग-हीन तेहि डारौ पेरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, करहु तेहि चूर लंगूर फेरी,
पिता की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, पवन के सुवन मैं सरन तोरी।।२
अहै जो मुद्दई मोर संसार में, करहु अङ्ग-हीन तेहि डारौ पेरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, करहु तेहि चूर लंगूर फेरी,
पिता की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, पवन के सुवन मैं सरन तोरी।।२
राम के दूत अकूत बल की शपथ, कहत हूँ टेरि नहि करत चोरी,
और कोई सुभट नहीं प्रगट तिहूँ लोक में, सकै जो नाथ सौं बैन जोरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेहि पकरि धरि शीश तोरी,
इष्ट की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, राम का दूत मैं सरन तोरी।।३
और कोई सुभट नहीं प्रगट तिहूँ लोक में, सकै जो नाथ सौं बैन जोरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेहि पकरि धरि शीश तोरी,
इष्ट की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, राम का दूत मैं सरन तोरी।।३
केसरी-नन्द सब अङ्ग वज्र सों, जेहि लाल मुख रंग तन तेज-कारी,
कपीस वर केस हैं विकट अति भेष हैं, दण्ड दौ चण्ड-मन ब्रह्मचारी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, करहू तेहि गर्द दल मर्द डारी,
केसरी की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।४
कपीस वर केस हैं विकट अति भेष हैं, दण्ड दौ चण्ड-मन ब्रह्मचारी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, करहू तेहि गर्द दल मर्द डारी,
केसरी की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।४
लीयो है आनि जब जन्म लियो यहि जग में, हर्यो है त्रास सुर-संत केरी,
मारि कै दनुज-कुल दहन कियो हेरि कै, दल्यो ज्यों सह गज-मस्त घेरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, हनौ तेहि हुमकि मति करहु देरी,
तेरी ही आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।५
मारि कै दनुज-कुल दहन कियो हेरि कै, दल्यो ज्यों सह गज-मस्त घेरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, हनौ तेहि हुमकि मति करहु देरी,
तेरी ही आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।५
नाम हनुमान जेहि जानैं जहान सब, कूदि कै सिन्धु गढ़ लङ्क घेरी,
गहन उजारी सब रिपुन-मद मथन करी, जार्यो है नगर नहिं कियो देरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेही खाय फल सरिस हेरी,
तेरे ही जोर की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।६
गहन उजारी सब रिपुन-मद मथन करी, जार्यो है नगर नहिं कियो देरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेही खाय फल सरिस हेरी,
तेरे ही जोर की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।६
गयो है पैठ पाताल महि, फारि कै मारि कै असुर-दल कियो ढेरी,
पकरि अहि-रावनहि अङ्ग सब तोरि कै, राम अरु लखन की काटि बेरी,
करत जो चगुलई मोर दरबार में, करहु तेहि निरधन धन लेहु फेरी,
इष्ट की आनि तोहि, सुनहु प्रभु कान से, वीर हनुमान मैं सरन तेरी।।७
पकरि अहि-रावनहि अङ्ग सब तोरि कै, राम अरु लखन की काटि बेरी,
करत जो चगुलई मोर दरबार में, करहु तेहि निरधन धन लेहु फेरी,
इष्ट की आनि तोहि, सुनहु प्रभु कान से, वीर हनुमान मैं सरन तेरी।।७
लगी है शक्ति अन्त उर घोर अति, परेऊ महि मुर्छित भई पीर ढेरी,
चल्यो है गरजि कै धर्यो है द्रोण-गिरि, लीयो उखारि नहीं लगी देरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, पटकौं तेहि अवनि लांगुर फेरी,
लखन की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।८
चल्यो है गरजि कै धर्यो है द्रोण-गिरि, लीयो उखारि नहीं लगी देरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, पटकौं तेहि अवनि लांगुर फेरी,
लखन की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।८
हन्यो है हुमकि हनुमान काल-नेमि को, हर्यो है अप्सरा आप तेरी,
लियो है अविधि छिनही में पवन-सुत, कर्यो कपि रीछ जै जैत टैरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, हनो तेहि गदा हठी बज्र फेरी,
सहस्त्र फन की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।९
लियो है अविधि छिनही में पवन-सुत, कर्यो कपि रीछ जै जैत टैरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, हनो तेहि गदा हठी बज्र फेरी,
सहस्त्र फन की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।९
केसरी-किशोर स-रोर बरजोर अति, सौहै कर गदा अति प्रबल तेरी,
जाके सुने हाँक डर खात सब लोक-पति, छूटी समाधि त्रिपुरारी केरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, देहु तेहि कचरि धरि के दरेरी,
केसरी की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।१०
जाके सुने हाँक डर खात सब लोक-पति, छूटी समाधि त्रिपुरारी केरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, देहु तेहि कचरि धरि के दरेरी,
केसरी की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।१०
लीयो हर सिया-दुख दियो है प्रभुहिं सुख, आई करवास मम हृदै बसेहितु,
ज्ञान की वृद्धि करु, वाक्य यह सिद्ध करु, पैज करु पूरा कपीन्द्र मोरी,
करत जो चुगलई मोर देरबार में, हनहु तेहि दौरि मत करौ देरी,
सिया-राम की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।११
ज्ञान की वृद्धि करु, वाक्य यह सिद्ध करु, पैज करु पूरा कपीन्द्र मोरी,
करत जो चुगलई मोर देरबार में, हनहु तेहि दौरि मत करौ देरी,
सिया-राम की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।११
ई ग्यारहो कवित्त के पुर के होत ही प्रकट भए,
आए कल्याणकारी दियो है राम की भक्ति-वरदान मोहीं।
भयो मन मोद-आनन्द भारी और जो चाहै तेहि सो माँग ले,
देऊँ अब तुरन्त नहि करौं देरी,
जवन तू चहेगा, तवन ही होएगा, यह बात सत्य तुम मान मेरी।।१२
आए कल्याणकारी दियो है राम की भक्ति-वरदान मोहीं।
भयो मन मोद-आनन्द भारी और जो चाहै तेहि सो माँग ले,
देऊँ अब तुरन्त नहि करौं देरी,
जवन तू चहेगा, तवन ही होएगा, यह बात सत्य तुम मान मेरी।।१२
ई ग्यारहाँ जो कहेगा तुरत फल लहैगा, होगा ज्ञान-विज्ञान जारी,
जगत जस कहेगा सकल सुख को लहैगा, बढ़ैगी वंश की वृद्धि भारी,
शत्रु जो बढ़ैगा आपु ही लड़ि मरैगा, होयगी अंग से पीर न्यारी,
पाप नहिं रहैगा, रोग सब ढहैगा, दास भगवान अस कहत टेरी।।१३
जगत जस कहेगा सकल सुख को लहैगा, बढ़ैगी वंश की वृद्धि भारी,
शत्रु जो बढ़ैगा आपु ही लड़ि मरैगा, होयगी अंग से पीर न्यारी,
पाप नहिं रहैगा, रोग सब ढहैगा, दास भगवान अस कहत टेरी।।१३
यह मन्त्र उच्चारैगा, तेज तब बढ़ैगा, धरै जो ध्यान कपि-रुप आनि,
एकादश रोज नर पढ़ै मन पोढ़ करि, करै नहिं पर-हस्त अन्न-पानी।
भौम के वार को लाल-पट धारि कै, करै भुईं सेज मन व्रत ठानी,
शत्रु का नाश तब हो, तत्कालहि, दास भगवान की यह सत्य-बानी।।१४
एकादश रोज नर पढ़ै मन पोढ़ करि, करै नहिं पर-हस्त अन्न-पानी।
भौम के वार को लाल-पट धारि कै, करै भुईं सेज मन व्रत ठानी,
शत्रु का नाश तब हो, तत्कालहि, दास भगवान की यह सत्य-बानी।।१४
आनन्दरामायण
Hanuman ji ke 12 नाम.
उनका एक नाम तो हनुमान है ही, दूसरा अंजलीसूनु, तीसरा वायुपुत्र, चैथा महाबल, पांचवा रामेष्ट (रामजीके
प्रिय) छठा फाल्गुनसख (अर्जुनके मित्र), सातवां पिडाक्ष (भूरे नेत्र
वाले),
आठवां अमितविक्रम, नवां उदधिक्रमण (समुद्रको अतिक्रमण
करने वाले), दसवां सीताशोकविनाशन (सीता जी के शोकको नाश करने वाले), ग्यारहवां
लक्ष्मणप्राणदाता (लक्ष्मण को सजीवनीबूटी द्वारा जीवित करने वाले) और बारहवां नाम
है - दशग्रीवदर्पहा (रावण के घमंड को दूर करने वाले)।
बारह
नामोंका जो रात्रि में सोने के समय या प्रातः काल उठने पर अथवा यात्रारम्भके समय
पाठ करता है, उस व्यक्ति के समस्त भय दूर हो जाते
हैं।
हनुमान: पुष्प अर्पण नियम
जिन
पुष्पो का नाम पुरुष का चक्र है।
वे
ही पुष्प चढ़ाऐ (चमेली, बेला आदि स्त्री वाचन नाम वाले पुष्प
वर्जित)
दीपक:तैल
पुष्प सुगंध (गुलाब आदि) वाला
तेल है कामना पूर्ण।
तिल का तेल लक्ष्मीप्रद।
सरसों का तेल - रोगनाशक।
सुगंधित कोई भी तेल उत्तम (तिल, सरसो लेने में भी सुगंध)
लाल रंग के सूत की हो।
चोराहे या द्वार के बाहर 29 धागो वाली बती है।
सामान्यत धागो की बती हो।
दीपक: गेहूं, तिल,
उडग, मूंग, चावल आटे का दीपक हसो।
इसमे इलायची, लोंग, कपूर व सुगंध से मिला ले।
दिनः
मंगलवार, दीपक प्रज्जवलन हेतु उत्तम से पहला 8वां, 16वां मंगल की होटा में अन्य दिनो में भी दीपक प्रज्जवलित उत्तम है।
दीपक प्रज्जवलन स्थान: दक्षिण की ओर मुखवाली प्रतिमा
भोग मोक्ष: स्फटिक शिव लिंग या शालग्राम के समीप।
विघ्न नाश- गणेश जी के समीप।
विष व्यधि नाश - हनुमान मूर्ति के समीप
अनिष्ट नाश - चैराहे या जहां आवागमन अधिक हो।
कार्यपूर्णता - पता या वटवृक्ष के समीप।
बंध, भूत प्रेत, कृत्या नाश -
चैराहे या राजमार्ग
दास, दासी, पशु - द्वार एवं सडक पर
चोर, चर्प एवं पशु सुरक्षा - हरताल से चार दरवाजो वाला घर का चित्र बनाए। पूर्व द्वार पर हाथी, दक्षिण द्वार पर भैसा,उत्तरी द्वार पर शेर, पश्चिम द्वार पर सर्प बनाए।
नैवेध - भात
मां मा मा का तीन बार उच्चारण करे। (आवश्यक)
बजरंग बाण
निश्चय
प्रेम प्रतीति ते बिनय करै सनमान।
तेहि
के कारज सकल सुभ सिद्ध करै हनुमान।।
जय
हनुमंत संत हितकारी।
सुनि
लीजै प्रभु बिनय हमारी।
जन
के काज बिलंब न कीजै।
आतुर
दौरि महासुख दीजै।
जैसे
कूदि सिंधु के पारा।
सुरसा
बदन पैठि बिस्तारा।
आगे
जाय लंकिनी रोका।
मारेहु
लात गई सुरलोका।
जाय
बिभीषन को सुख दीन्हा।
सीता
निरखि परम पद लीन्हा।
बाग
उजारि सिंधु महै बोरा।
अति
आतुर जमकातर तोरा।
अछय
कुमार मारि संहारा।
लूम
लपेटि लंक को जारा।
लाह
समान लंक जरि गई।
जय
जय धुनि सुरपुर नभ भई।
अब
बिलम्ब केहि कारन स्वामी।
कृपा
करहु उर अंतरजामी।
जय
जय लखन प्रान के दाता।
आतुर
है दुख करहु निपाता।
जय
हनुमान जयति बल सागर।
सुर
समूह समरथ भट नागर।
ऊ
हनु हनु हनु हनुमंत हठीलै।
बैरिहि
पमारु वज्र की कीलै।
ऊ
हीं हीं हीं हनुमंत हठीलै।
बैरिहि
मारु वज्र की कीलै।
जय
अंजनिकुमार बलवंता।
संकरसुवन
बीर हनुमंता।
बदन
कराल काल कुल ाालक।
राम
सहाय सदा प्रतिपालक।
भूत
प्रेम पिसाच निसाचर।
अगनि
बेताल काल मारी मर।
इन्हे
मारु तोहि सपथ राम की।
राखु
नाथ मरजाद नाम की।
सत्य
होहु हरि सपथ पाइ कै।
रामदूत
धरु मारु धाइ कै।
जय
जय जय हनुमंत अगाधा।
दुख
पावत जन केहि अपराधा।
पूजा
जप तप नेम अचारा।
नहि
जानत कछु दास तुम्हारा।
बन
उपबन मग गिरि गृह माही।
तुम्हरे
बल हौ डरपत नाही।
जनकसुता
हरि दास कहावौ।
ता
की सपथ बिलंब न लावौ।
जय
जय जय धुनि होत अकासा।
सुमिरत
होय दुसह दुख नासा।
चरन
पकरि कर जोरि मनावौ।
यहि
औसर अब केहि गोहरावौ।
उठ
उठ चलु तोहि राम दोहाई।
पायै
परौ कर जोरि मनाई।
ऊं
चम चम च चम चपल चलता।
ऊ
हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।
ञ
हं हं हांक देत कपि चंचल।
ऊ
सं सं सहमि पराने रबल दल।
अपने
जन को तुरत उबारौ।
सुमिरत
होय अनंद हमारौ।
यह
बजरंग बाण जेहि मारे।
ताहि
कहौ फिरि कवन उबारै।
पाठ
करै बजरंग बाण की।
हनुमत
रच्छा करै प्रान की।
यह
बजरंग बाण जो जापै।
तासो
भूत प्रेम सब कापे।
तासो
भूत प्रेम सब कापे।
धूप
देय जो जपै हमेसा।
ता
के तन नहि रहे कलेसा।
उर
प्रतीति दृढ सरत है पाठ करै धरि ध्यान।
बाध
सब हर करै सब काम सफल हनुमान।
हनुमत्कूट यंत्र
(मंगल, शनि, शत्रु, बाधा नाशक)
मंत्र: हौं हस्फे्र ख्फें हसौं हस्खफें्र हसौं हनुमते नमः।
विधि: मंत्रों का होम दूध, दही व घी धान से करना चाहिए।
फल:
केला, बिजौरा व आम से एक हजार आहुतियां देने
के बाद बाईस ब्रहाचारियों व ब्राहम्णों को भोज देने से महाभूत, विष, चोरादि उपद्रवों, विद्वेषियों
तथा ग्रह व दानवादि का क्षण मात्र में नाश होता है।
रात
को दस दिन तक निरंतर इस मंत्र का नौ सौ जप करने वाले को राज व शत्रु भय से छुटकारा
मिल जाता है।
मंत्र
से अभिमंत्रित औषधि का सेवन करके अस्वस्थ व्यक्ति निरोगी होता है।
मंत्र: ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्।
विधि:
इसके पुरश्चरण में मंत्र के एक लाख जप का विधान है। जप समाप्ति पर महापूजा कर
दिन-रात मंत्र का जप करने से हनुमानजी के दर्शन होते है। यह साधना निर्जन स्थान पर
एकाग्रता से की जानी चाहिए।
फल:
उक्त मंत्र का जप तब तक करना चाहिए जब तक हनुमानजी के दर्शन न हो जाएं। यह देव
दुर्लभ साधना है।
दुर्घटना
/ विष अपमृत्युनाशक -
मंत्र:
सुधामप्यास्वाद्य प्रतिभय जरा मृत्यु हरिणी विपद्यन्ते विश्वे विधि शतम खाद्या
दिविषदः। करालं यत्क्ष्वेलं कबलित वतः कालकलना न शम्भोस्तन्मूलं तव जननि
ताटकंमहिमा।
विधि
व फल: समस्त कार्य सहज में ही सिद्ध हो जाते हैं। अकाल मृत्यु के विनाश हेतु इस
यंत्र की साधना करके धारणा करने से सुरक्षा और बचाव होता है
ऊँ
शान्ति! शान्ति!! शान्ति!!!
श्री राम दूताय आंजनेयाय वायु पुत्रय महाबलाय सीता शोक निवारणाय महाबल
प्रचण्डाय लंकापुरी दहन फाल्गुन सखाय कोलाहल सकल ब्रम्हाण्ड विश्वरुपाय सा समुद्र
निरन्तर लंघिताय पिंगल नयनायमित विक्रमाय सूर्य बिम्बफल सेवाधिष्ठित निराक्रमाय
संजीवन्या अंगद लक्ष्मण महाकपि सैन्य प्राण दात्रे दशग्रीव विघ्वसनाय रामेष्टाय
सीता सह रामचंद्र वर प्रसादाय षट् प्रयोगाय च पंचमुखि हनुमत्कवच जपे विनियोगः।।
इतना
कहकर पुनः जल भूमि में छोड़ दें।
ऊँ हरि मर्कट मर्कटाय स्वाहा ऊँ हरि मर्कट मर्कटाय वं वं वं वं स्वाहा
ऊँ हरि मर्कटाय फं फं फं फं फट् स्वाहा।
ऊँ हरि मर्कट मर्कटाय खं खं खं खं मारणाय स्वाहा।
ऊँ हरि मर्कट कर्मटाय ठं ठं ठं ठं ठं स्तम्भनाय स्वाहा।
ऊँ हरि मर्कट मर्कटाय डं डं डं डं डं आकर्षणाय सकल सम्पत्काराय स्वाहा
ऊँ उच्चाटने ढं ढं ढं ढं कूर्म तूर्तये
पंचमुखि हनुमते परयन्त्र परमन्त्रेच्चाटनाय स्वाहा। ऊँ कं खं गं घं डं
चं छं जं झं ञां टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं
सं हं क्षं .त्रं ज्ञं स्वाहा।
प्रेत बाधा निवारण के सम्बन्ध में अनुष्ठान
(परम श्रद्धेय श्रीभाईजी
श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारद्वारा निर्दिष्ट)
1. प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानघन।
जासु हृदय आगार बसहि राम सर चाप धर।।
प्रतिदिन 11 माला के हिसाब से 46
दिनों तक इसका जप करना चाहिए।
2. श्री हनुमानजी की मूर्ति या चित्र के सामने
बैठकर पंचोपचार से उनकी पूजा करके कम से कम सात शनिवार तक प्रत्येक शनिवार को
हनुमान चालीसा के एक सौ पाठ करें।
ऊँ
भूर्भूवः स्वः तत्सवितुर्वरण्यं भर्गो
देवस्य
धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
सिद्ध बाधा निवारणः उपायः हवन करेंः
ग्रहदोष, पितृदोष, वास्तुदोष के शमन करें
ऊँ उत्तरमुखाय आदिवसहाय लं लं लं लं
लं सी हं सी हं नीलकठं मूर्तये लक्ष्मण
प्राणदात्रे वीर हनुमतये लंकोपदहनाय
सर्व संपति कराय पत्र पौत्रद्यभीष्ट कराय
ऊँ नमः स्वाहा
रोगनाशक
ऊँ
पश्चिममुखाय गरुडासनाय पीमुख
हनुमतये
मं मं मं मं सकल विषहराय स्वाहा
विघ्ननाशक
विघ्न
बाधाओं के निवारण के लिए
सकलविघ्न
निवारणाय हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट स्वाहा
शत्रुनाशक
सकल
शत्रुसंधरणाय हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट स्वाहा।
मुकदमे
में विजय
अदालती
प्रकरण में सत्य प्राप्ति के लिए
ऊँ
हं पवन नंदनाय स्वाहा
प्रेत बाधा नाशक
प्रेतबाधा निवारण व आत्मरक्षा के लिए
ॐ दक्षिण मुखाय पीमुख हनुमतये
कराल
वरनाय नारसिंहाय ऊँ हंी हीं हीं हूं हहौं
हः
सकल भूतप्रेत दमनाय स्वाहा
शनि कष्ट निवारक
नीलाज्जन समा भासं रवि पुत्र यमाग्रजम।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं हनुमते रुद्रात्मकाय
हुं फट स्वाहा।
शाबर
मंत्रों द्वारा विभिन्न रोग निवारण
आंधासीसी दूर करने के लिए
1. वन में व्याई अंजनी कच्चे बनफल खाय।
हाँक मारी अनुवंतने इस पिंड से आधासीसी उतर
जाय।।
2. ऊँ नमो वनमें ब्याई बानरी उछल वृक्ष पै जाय।
कूद कूद शाखानरी, कच्चे वनफल खाय।
आधा तोडे आधा फोडे, आधा देय गिराय।
हंकारत हनुमानजी, आधासीसी जाय।
नेत्र
रोग-शमन करने के लिए
3. ऊँ नमो वन विआई बानरी जहां जहां
हनुवन्त आखि पीडा।
कषावरि गिहिया थनै लाइ चरिउ जाइ भस्मन्तन
गुरुकी शक्ति मेरी भक्ति फुगे मन्त्र
ईश्वरो वाचा।
आंख पर हाथ फेरते हुए सात बार मन्त्र पढकर
फूंके
व्यथा मिट जायेगी।
कर्णमूल-
पीड़ा दूर करने के लिए
4. वनरा गौठ वानरी तो डाॅटे हनुमान कंठ
बिलारी बाधी थनैली कर्णमूल सम जाइ।
श्रीरामचंद्रकी बानी पानी पथ हाई जाइ।
विभूतिसे सात बार झाड़ने से कर्णरोग नष्ट
होता है।
2.
ऊँ
हरिमर्कटकर्मटाय स्वाहा।
मंगलवार को एक लाख जप तथा दशांश हवन
करने से सिद्धि होती है
6. ऊँ नमो आदेश गुरुको जैसे के लेहु
रामचन्द्र कबूत ओसई करहू राधा बिनि कबूत पवनपूत हनुमंत धाउ हर-हर रावन कूट मिरावन
श्रवइ अण्ड खेतहि श्रवइ अण्ड-अण्ड विहण्ड खेतहि श्रवइ वाजं गर्भहि श्रवइ स्त्री
षीलहि श्रवइ शाप हर हर जबीर हर जंबीर हर हर हर।
मिट्टी के
एक ढेलेको इस मन्त्र से अभिमन्त्रित कर साँप के बिलपर रखने से साँप निकल जाता
है।
भूत-प्रेत दूर करने के लिए
7. बाँधो भूत जहाँ तू उपजो छाड़ो गिरे पर्वत चढ़ाइ
सर्ग दुहेली तुजभि झिलिमिलाहि हुँकारे हनवन्त पचारइ भीमा जरि जारि-जारि भस्म करें
जौं चापें सींउ।
चूहा
भगाने के लिए
पीत
पीताम्बर मूशा गाँधी। ले जाइहु हनुवन्त तु बाँधी।
ए
हनुवंत लंका के राउ एहि कोणे पैसे हु एहि कोणे जाऊ।।
स्नान
करके हल्दी के पांच गांठ और अक्षत को लेकर इस मन्त्र को पढ़कर जहां चूहा आता हो, वहां घर या खेत में डाल दें। इससे चूहा
भाग जाता है।
सुअर
और चूहा भगाने के लिए
6. हनुवंत धावति उदरहि ल्यावे वाधि अब खेत खाय
सुअर और घर माँ रहे मूस खेत घर छाँड़ि बाहर
भूमि जाइ
दोहाइ हनुमान की जो अब खेत मंह सुअरघर मंह
सूस जाइ।
प्रयोगविधि - संख्या 5 में बतायी हुई विधि के अनुसार।
शरीर रक्षा के लिए
10. ऊँ नमः वज्रका कोठा जिसमें पिंड हमारा पैठा ईश्वर
कुंजी ब्रम्हाका ताला मेरे आठो यामका यती
हनुवन्त रखवाला।
इस मन्त्र का एक हजार बार जप करने से सिद्धि
होती है।
इसके बाद इस मन्त्र के तीन बार उच्चारण
मात्र से कार्य सिद्धि होती है।
हनुमत्
– पूजा विधि -
साधक
को चाहिये कि पूर्वाभिमुख कुशासन या ऊर्णासन पर बैठकर -
ऊँ अपवित्रः पवित्रों वा सर्वावस्थां
गतोअपि चा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं सः वाहृाभ्यन्तरः
शुचिः।।
इस मंत्र से अपने शरीर पर जल छिड़क कर
हनुमानजी की मूर्ति के सामने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प लेकर संकल्प करें-
ऊँ तृत्सदद्यं मासानां मासोतमे
मासे....पक्षे....
तिथौ ...वासरे गोत्रोत्पन्नोअहं सकल-
कामनांसिद्धयर्थ... (मनोरथपरिपूत्र्यर्थ वा)
अनन्य.
श्रीसीतारामसेवकाअसुरदलसंहारक-लक्ष्मणप्राणदात्रयंजनी
नन्दन-श्रीहनुमत्पूजनं करिष्ये।
संकल्प: दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प मंत्र
पढें तथा जल अक्षत पुष्प तथा द्रव्य हनुमान जी के चरणों में अर्पित करें।
तत्पश्चात् दाहिने हाथ में पुष्प लेकर
हनुमान जी का ध्यान करें।
ध्यानम्- वन्दे, विद्युद्वलयलसितं
ब्रम्हामूत्रं दधानं
कर्णद्वन्दे कनकवलये कुण्डले
धारयन्तम।
सतकौपीनं कटिपरिहतं कामरुपं, कपीन्द्रं
नित्यं ध्यायेद निलत्नयं वज्रदेहं
वरिष्ठम्।।
पूजा
विधि
मन्त्रपूर्वक
आचमन् करने से अन्तः करण शुद्ध होता है।
अतः
पूजन से पहले आचमन का विधान है।
आचमन
विधान-
ऊँ केशवाय नमः स्वाहा (दाहिनी हथेली
में जल लेकर पीवें)
ऊँ नारायणाय नमः स्वाहा (दाहिनी हथेली
में जल लेकर पीवें)
ऊँ माधवाय नमः स्वाहा (दाहिनी हथेली
में जल लेकर पीवें)
अब
ऊँ गोविन्ददाय नमः बोलकर हाथ धो लें।
ऽ इसके पश्चात् बाएं हाथ में जल लेकर कुशा (डाभ)
से नीचे मन्त्र बोलकर मस्तक पर छिड़कें। यह पवित्रीकरण कहलाता है।
ऽ ऊँ अपवित्रः पवित्रों वा सर्वावस्थां गतोअपि
वा।
यः स्मरेत पुण्डरी काक्षं सः
ब्राहाभ्यन्तरः शुचिः।।
ऽ अब नीचे लिखा मन्त्र बोलकर आसन पर छिडके तथा
दाहिने हाथ से आसन का स्पर्श करें।
ऊँ पृथ्वी! त्वया धृता लोका देवि। त्वं
विष्णुना धृता
त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु
चासनम्।।
ऽ इसके बाद शिखा बन्धन करें। शास्त्रों में शिखा
(चोटी) का बहुत महत्व बतलाया गया है। सभी कार्य शिखा बांध कर करने चाहिए। जिनकी
शिखा नहीं है (अर्थात् जो गंजे हैं) कुशा की शिखा बनाकर अपने दाहिने कान में धारेण
करनी चाहिए। पवित्र कर्म करने के लिए शिखा अनिवार्य है।
ऽ शिखा बन्धन का मन्त्र इस प्रकार है:-
चिदरुपिणी महामाये! दिव्य तेजः समन्विते।
तिष्ठ देवि! शिखा मध्ये तेजोवृद्धिं
कुरुष्वमे।।
ऽ शास्त्रों का वचन है कि देवो भूत्था देवं
यजेत् अर्थात् देवता बनकर देवता की पूजा करनी चाहिए। अतः शरीर में ललाट, हाथ
और उदर के निश्चित भागों पर तिलक या भस्म लगानी चाहिए।
इतना करने के बाद गुरु स्मरण करें।
गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णुर्गुर्देवो
महेश्वरः।
गुरुः साक्षात पर ब्रम्हा तस्मै श्री गुरवे
नमः।।
ऊँ श्री गुरुभ्यो नमः बोलकर मस्तक झुकाकर
प्रणाम करें।
ऽ नीचे लिखे मन्त्रों से सूचित स्थानों पर तत्व
मुद्रा (मध्यमा, अनामिकां) और अंगुष्ठ के प्रथम पर्व मिलाने से
तत्व मुद्रा बनती है) से न्यास करें (छुए)।
गुं
गुरुभ्यो नमः दाहिने कन्धे का
गं
गणपतये नमः बाएं कन्धे का
दुं
दुर्गाय नमः बाई जांघ का
क्षं
क्षेत्रपालाय नमः दाहिनी जांघ का
पं
परमात्मने नमः हृदय का
ऽ इसके पश्चात् बाएं हाथ से दाहिने हाथ का कोहनी
तक और दाहिने हाथ से बाएं हाथ की कोहनी तक छूकर दाहिने हाथ की अनामिका और मध्यमा
से बाएं हाथ की हथेली पर अस्त्राय फट् बोलकर तीन ताली दें।
नीचे लिखा मन्त्र बोलकर बाहृा शुद्धि करें।
अपसर्पन्तु ते भूताये भूता भुवि संस्थिताः।
ये भूता विघ्न कर्तारस्ते पश्यन्तु शिवाया।
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम्।
सर्वेषामविरोधेन पूजा कर्म समारंभे।
ऽ इसके पश्चात् भैरव जी से पूजा के अधिकार की
आज्ञा ले।
तीक्ष्ण दंष्ट्रं महाकाय कल्पान्तदहनोपम।
भैरवाय नस्तुभ्यमनुज्ञां दातुमर्हसि।
यह श्लोक बोलकर मन में भावना करें कि भैरव जी
ने आज्ञा प्रदान कर दी है। फिर दीप स्थान पर दीप जलाकर दीपक की प्रार्थना करें।
भो दीप! देव रुपस्त्वं कर्म साक्षी
हाविघ्नकृत्।
यावत् कर्म समाप्ति, स्यात्
तावत् त्वं सुस्थिरो भव।।
अब हाथ में फूल अक्षत तथा जल लेकर संकल्प
बोले।
ऽ संकल्प की एक विशेष भाषा होती है। खाली
स्थानों पर सम्वत, मास, तिथि, वार, गोत्र तथा नाम का उच्चारण करें।
संकल्प - ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः
श्रीमदभगवतो महापुरुषस्य विष्णो राज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य द्वितीय पराद्ये श्री
श्वेतवाराह कल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टविशातितमे कलियुगे कलि प्रथम चरणे
भारतवर्षे अमूक अपना नाम एवं गोत्र का उच्चारण करें स्थाने स्थान का नाम लें श्री
शालिवाहन के....संवत्सरे...अयने ऋतौ मासानां - मासोतमे...मासे
शुभे....पक्षै....तिथौ....वासरे...गोत्र....(वर्मा, शर्मा, गुप्त)
ममात्मन...फल...प्राप्तयर्थ....श्री ....देव प्रत्यर्थ पूजन महं करिष्ये बोलकर जल
भूमि पर गिरा दे।
देवता
का ध्यान करें
ध्यान
के पश्चात् षोडशोपचार या पंचोपचार से पूजन करे।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, आवहनं समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, आसनं समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, पाद्यं समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, अध्र्यं समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, आचमनीयं समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, स्नानं समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, वस्त्रोवस्त्रं समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, गन्धं समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, धूपं समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, दीपं समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, नेवेद्यं समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, नीराजनं समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, मन्त्रपुष्पांजिलीं समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, नमस्कारम्ं समर्पयामि।
ऊँ
हं हनुमंते नमः, प्रदर्शिणां समर्पयामि।
पंचोपचार
पूजन - जब पंचोपचार पूजन करना हो तो नीचे लिखे अनुसार करना चाहिए।
ऊँ....................गन्धं
समर्पयामि श्री हनुमते नमः
ऊँ....................पुष्पं
समर्पयामि श्री हनुमते नमः
ऊँ....................धूपं
समर्पयामि श्री हनुमते नमः
ऊँ....................दीपं
दर्शयामि श्री हनुमते नमः
ऊँ....................नैवेद्यं
निवेदयामि श्री हनुमते नमः
ऊँ....................नमस्कारं
करोमि श्री हनुमते नमः
फिर
अनया पूजया श्री हनुमान जी देवः प्रीयताम नमम् ऐसा बोलकर जल छोडे।
श्री
हनुमान जी के विग्रह का पूजन करने के पश्चात् विग्बन्धन करने का विधान है।
दिग्बन्धन का शाब्दिक अर्थ है दिशाओं का बन्धन करना। लोक में प्रसिद्ध है - भूत
पिशाच निकट नहीं आवे। महावीर जब नाम सुनावे। अतः दृढ़ भावना से नीचे लिखे मन्त्र
बोलकर दिग्बन्धन करे ताकि आसुरी शक्तियों से सुरक्षा हो सके। दिग्बन्धन करते समय
यह भावना करनी चाहिए कि हनुमान जी के दिव्य तेज ने सब ओर से मुझे आवेष्टित कर लिया
है, मैं निर्भय हो गया हूं, मुझे
किसी बात का भय नहीं है। अब किसी की मजाल नहीं है जो मेरे मनो स्वास्थ्य को
विकास-ग्रस्त कर सके।
दिग्बन्धन
का मन्त्र - ऊँ हरिमर्कट मर्कटाय बं बं बं बं बं वौष्ट् स्वामा। ऊँ हरिमर्कट
मर्कटाय फं फं फं फं फं फट् स्वाहा। ऊँ हरि मर्कट मर्कटाय खें खें खें खें खें
मारणाय स्वाहा। ऊँ हरि मर्कट मर्कटाय लुं लुं लुं लुं लुं आकर्षित -सकल-सम्पत्कराय
स्वाहा। ऊँ हरि मर्कट मर्कटाय धं धं धं धं धं शत्रु स्तम्भनाय स्वाहा। ऊँ टं टं टं
टं टं कर्म मूर्तये पंचमुख वीर हनुमने परयन्त्र-परतन्त्र उच्चारनाय स्वाहा। ऊँ कं
खं गं घं ड स्वाहा। ऊँ चं छं जं झं ञं स्वाहा। ऊँ टं ठं डं ढं णं स्वाहा। ऊँ तं थं
दं धं नं स्वाहा। ऊँ पं फं बं भं मं स्वाहा। ऊँ यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं
स्वाहा।
दिग्बन्धन के पश्चात् कवच पाठ करना चाहिए।
कवच के पश्चात् मन्त्र जप करना चाहिए। जप तीन प्रकार से किया जाता है। वाचिक, उपांशु
और मानस। जोर-जोर से बोलकर किया जाने वाला जप वाचिक जप कहलाता है। हल्के स्वर में
मात्र ओष्ट हिलते है साथ बैठने वाला भी न सुन सके ऐसा जप उपांशु कहा जाता है मन
में मन्त्र जपा जाए ओष्ठ भी न हिले उसे मानस जप कहा गया है।
वाचिक जप की अपेक्षा उपांशु जप सौ गुणा
उत्तम है और उपांशु जप से मानस जप सौ गुणा उत्तम माना गया हैं बड़ी संख्या में जप
करना हो तो उपांशु जप ठीक रहता है। जप काल में किसी से बात करना, गुप्तांगों
को छूना, थूकना, छींकना आदि वजित कहे गए हैं। जप करते समय आंखें
खुली रहें, मेरु दण्ड सीधा रहे। बार-बर मन में पुलक भरकर
जप करना चाहिए।
संक्षिप्त-पूजन
कर्णिकार
सुवर्णामं वर्णनीयं गुणोत्तम्।
अर्गवोल्लड्घनोदसुकं
तूर्ण ध्यायामि मारुतिम्।।
ऊँ
श्रीहनुमते नमः ध्यानं समर्पयामि।
दिव्यकपूरसंयुक्तं
मृगनाभिसमन्वितम्।
सकुंकुमं
पीतगन्धं ललाटे धारय प्रभो।।
ऊँ
श्रीहनुमतेनमः गन्धं समर्पयामि।
ऋतु
कालोद्भवं पुष्पं पुष्पमालां तथैव च।
संगृहाण
महावीर रामभक्त महाकपे।
ऊँ
श्रीहनुमते नमः पुष्पं समर्पयामि।
वनस्पति
रसोपेतं सुगन्धाढयं मनोहरम।
धूपं
च संगृहावेदं महायप्ल यशोधन।।
ऊँ
श्रीहनुमते नमः धूप माघ्रापयामि
घृतपूरितमुज्जवालं
सितसूर्य-समप्रभम्।
अतुलं
तब दास्यामि व्रतपूत्र्ये सुदीपकम्।।
ऊँ
श्रीहनुमते नमः दीपं दर्शयामि
नैवेद्यं
मधुरं देव शुभसंस्कार संस्कृतम्।
मया
समर्पित नाथ संगृहाण सुरर्षम्।
ऊँ
श्रीहनुमतेनमः नेवेद्यं निवेदयामि
नमस्तेस्तु
महावीर नमस्ते वायु-नन्दन।
विलोक्य
कृपया नित्यं त्राहि मां भक्तवत्सल।।
ऊँ
श्रीहनुमतेनमः नमस्कारं समर्पयामि।
धूपबत्ती
स्पर्शकर हनुमान जी की ओर करें।
दीपक
स्पर्श कर हनुमान जी की ओर करें।
नैवेध
(प्रसाद स्वरुप फल, मिष्ठान)।
श्रीमारुतिस्त्रोत्रम्
यश
एवं दिव्य प्रद
ऊँ
नमो वायुपुत्राय भीमरुपाय धीमते।
नमस्ते
रामदूताय कामरुपाय श्रीमते।।
मोहशोकविनाशाय
सीताशेकविनाशिने।
भग्नाशेकवनयास्तु
दग्धलंकाय वाग्मिने।।
(अर्थात् ऊँ भयंकर रुपधारी बुद्धिमान वायुपुत्र
हनुमान को नमस्कार है। जो स्वेच्छानुसार रुप धारण करने में समर्थ, मोह
एवं शोक के विनाशक, सीताजी के शोक के निवारक, अशोक
वन के निघ्वसंक, लंका को भस्म करने वाले और कुशल वक्ता हैं, उन
श्रीमान रामदूत को नमस्कार है।)
गतिनिर्जितवाताय
लक्ष्मणप्राणदाय च।
वनौकसां
वरिष्ठाय वशिने वनवासिने।।
तत्वज्ञानसुधसिन्धुनिमग्नाय
महीयसे।
अज्जनेयाय
शूराय सुग्रीवसचिवाय ते।।
(अर्थात् जिन्होने अपने वेग से वायु को भी जीत
लिया है, जो लक्ष्मण के प्राणादाता, बंदरों
में श्रेष्ठ, जितेन्द्रिय, वन में निवास करने वाले, तत्व-ज्ञानरुपी
सुधा-सिन्धु में निमग्नं, महान्, ऐश्वर्यशाली और सुग्रीव के सचिव है, उन
शूरवीर अंजनानन्दन को प्रणाम है।)
जन्ममृत्युभयन्घाय
सर्वकलेशहराय च।
नेदिष्ठाय
प्रेतभूतपिशाचभयहारिणे।।
यातनानाशनायस्तु
नमो मर्कटरुपिणे।
यक्षराक्षसशर्दूलसर्पवृश्चिकभीहते।।
(अर्थात् जन्म-मृत्युरुपी भयके विघ्वंसक, सम्पूर्ण
कष्टों के विनाशक (भगवान श्रीराम के) परम निकटवर्ती भूत प्रेत और पिशाचके भय के
निवारक पीडा के नाशक और यक्ष, राक्षस,
सिंह, सर्प एवं बिच्छू के भय को मिटा देने
वाले है उन बंदररुपधारी हनुमान जी को अभिवादन है।
महाबलाय
वीराय चिरंजीविन उद्धते।
हारिणे
वज्रदेहाय चोल्लडिंकतमहाब्धये।।
बलिनामप्रगणयाय
नमो नः पाहि मारुते।
लाभदोअसि
त्वमेवाशु हनुमान् राक्षसान्तक।।
(अर्थात् जो महासागर को लाॅघ जाने वाले, अहंकारियों
के गर्वहारी चिरंजीवी और बलवानों में अग्रगण्य हैं, जिनका शरीर वज्र - सरीखा कठोर है उन
महाबली वीरवर हनुमानजी को नमस्कार है। मारुतनन्दन!हमारी रक्षा कीजिये।)
(राक्षसों के लिये कालस्वरुप हनुमान! आप शीघ्र
ही लाभ प्रदान करने वाले हैं, अतः मुझे यश और विजय प्रदान कीजिये तथा मेेरे
शत्रुओ का सर्वथा नाश कर दीजिये)
यशो
जयं च मे देहि शत्रून नाशय नाशय।
स्वाश्रितानामभयदं
य एवं स्तौति मारुतिम्।
हानि
कुतो भवेतस्य सर्वत्र विजयी भवेत।।
(जो मनुष्य इस प्रकार अपने आश्रितजन के लिये
अभयप्रदाता हनुमान जी का स्तवन करता है वह सर्वत्र विजयी होता है। भला उसकी हानि
हो ही कैसे सकती है?)
विचित्र
वीर हनुमान स्तोत्र
श्री गणेशाय नमः। ऊँ नमो भगवते विचित्र वीर
हनुमंते प्रलय काला नलप्रभा प्रज्जवलनाय। प्रताप वज्र देहाय अंजनीगर्भ-सम्भूताय।
प्रकट विक्रम वीर दैत्य दानव यक्ष रक्षोगण ग्रह बन्धनाय। भूत ग्रह बन्धनाय। प्रेत
ग्रह बन्धनाय। पिशाच ग्रह बन्धना। शाकिनी डाकिनी ग्रह बन्धनाय काकिनी कामिनी ग्रह
बन्धनाय। ब्रम्हा ग्रह बन्धनाय। ब्रम्हा राक्षस ग्रह बन्धनाय। चोर ग्रहं बन्धनाय।
मारी ग्रह बन्धनाय। एहि एहि। आगच्छ आगच्छ। आवेशय आवेशय। मम हृदये प्रवेशय। स्फुर
स्फुर। प्रस्फुर प्रस्फुर। सत्यं कथय। व्याघ्रमुख बन्धन। सर्पमुख बन्धन। राजामुख
बन्धन नारीमलख बन्धन। सभामुख बन्धन। शत्रुमुख बन्ध्न। सर्वमुख बन्धन लंका प्रसाद भंजन।
(अमुक, अपना नाम एवं अपने गोत्र का उच्चारण करें) में
वशमानय। क्लीं क्लीं हीं श्रीं श्रीं राजानं वशमानय। श्रीं हीं क्लीं स्त्रीणा
आकर्षय आकर्षय शत्रून मर्दय मर्दय मारय मारय चूर्णय चूर्णय खे खे
श्रीरामचन्द्राज्ञया मम कार्यसिद्धि कुरु कुरु ऊँ हां हीं हूं हैं हौं हः फट्
स्वाहा। विचित्रवीर हनुमन मम सर्वशत्रून भस्मीकुरु। हन हन हुं फट् स्वाहा।
एकादशशतवारं जपित्वा सर्वशत्रून, वशमानयति नान्यथा इति।
संकष्टमोचन
स्तोत्रम्
(गृह दोष,
रोग, संकट, विष, प्राण, रक्षक)
सिन्दूर
पूररु चिरो बलवीर्य सिन्धुर्बुद्धि प्रवाह निधिरभ्दुत वैभवश्रीः।
दीनार्ति
दावदहनो वरदो वरेेणयः संकष्ट मोचन विभुस्तनुतां नः।।
जो
सिन्दूर- स्नान से सुन्दर देहयुक्त बल वीर्यके सागर बुद्धि प्रवाहके और अदभुत
ऐश्वर्य के धाम हैं, जो दीनों के दुःखों का नाश करने के लिए दारुण
दावानलके समान है तथा जो वरदान तत्पर सर्वकामपूरक, संकटघटाविदारक और सर्वव्यापी हैं, वे
संकटमोचन प्रभु हम लोगो के लिए मंगलकारी हों।
सोत्सा
हलडिंघत महार्णव पौरुष श्रीर्लकापुरी प्रदहन प्रथित प्रभावः।
घोराह
वप्रमथितरिचमूप्रवीरः प्राभंजनिर्जयति मर्कट सार्वभौमः।।
(उन वानररा - चक्रवर्ती की जय हो, जो
उत्साहपूर्वक महासिन्धु को लांघ गये, जिनकी पुरुषार्थ-लक्ष्मी देदीप्यमान हैं, लंकानगरी
के दहन से जिनकी प्रभाव-प्रभा दिग्दिगन्तव्याप्त है और जो घोर राम-रावण युद्ध में
शत्रु-सेना का मंथन करने में महान वीर तथा प्रभंजन पवन को आनन्द देने वाले
पवनकुमार हैं।)
द्रोणाचलानयनवर्णितभव्यभूतिः
श्रीराम लक्ष्मण सहायक चक्रवर्ती।
काशीस्थ
दक्षिण विराजित सौधमल्ल श्रीमारुति विजयते भगवान महेशः।।
जो
संजीवनी के लिए द्रोणागिरि को ही उठा लाये थे,
जो सुन्दर भव्य सम्पन्न, श्रीराम
लक्ष्मण के सेवक-सहायको में चक्रवर्तिशिरोमणि और मल्लवीर काशीपुरी के दक्षिण
भाग-स्थित दिव्य भवन में विराजमान है, ऐसे महेश रुद्रावतार भगवान मारुति की जय हो।।
नूनं
स्मृतोपि दयते भजाकपीन्द्रः सम्पूजितो दिशति वाछित सिद्धवृद्धिम्।
सम्मोदकप्रिय
उपैति परं प्रहर्ष रामायणश्रवणतः पठतां शरण्यः।।
वे
वानराज स्मरणमात्र से भक्तो पर दया करने वाले है और विधिपूर्वक सम्पूजित होने पर
सभी मनोरथों की तथा सुख-समृद्धि की पूर्ति-वृद्धि करने वाले हैं। वे मोदक (लड्डू)
प्रिय अथवा भक्तों को विशेष मदित करने वाले है। रामायण-श्रवण से उन्हे परम हर्ष
प्राप्त होता है और वे पाठकों की पूर्णतया रक्षा करने वाले हैं।
श्रीभारतप्रवस्युद्धरथोद्वतश्रीः
पार्थेककेतनकरालविशालमूर्तिः।
उच्चैझर्घनघटाविकटाहासः
श्रीकृष्णपक्षभरणः शरणं ममास्तु।।
महाभारत-
महायुद्ध में रथ पर जिनकी शोभा समुद्यत हुई है पृथानन्दन अर्जुन के रथ केतु पर
जिनकी विकराल विशाल मूर्ति विराजमान है घनघोर मेघ घटाके गम्भीर गर्जन के समान
जिनका विकट अटहास है ऐसे श्रीकृष्णपक्ष (पाण्डव सैन्य) के पोषक अभ्दुत चन्द्र मेरे
शरणदाता हों।।
जंघालजंघ
उमातिविदूरवेगो मुष्टिप्रहारपरिमूच्र्छितराक्षसेन्द्रः।
श्रीरामकीर्तितपराक्रमणेद्ववश्रीः
प्राकम्पनिर्विभुरुदचतु भूतये नः।।
उन
विशाल जंघावाले श्रीहनुमान का वेग उपमा से रहित - अनुपम है, जिनकी
मुष्टि के प्रहार से राक्षसराज रावण मूच्र्छित हो गया था जिनके पराक्रम की अदभुत
श्रीका कीर्तन स्वयं भगवान श्रीराम करते है ऐसे प्रकम्पन (मारुत) नन्दन, सर्वव्यापक
श्रीहनुमान हमें विभूति प्रदान करने के लिये तत्पर हों।
सीतार्निदारुणापटुः
प्रबलः प्रतापी श्रीराघवेन्द्रपरिम्भवरप्रसादः।
वर्णीश्वरः
सविधिशिक्षितकालनेमिः पंचाननोअपनयतां विपदोअधिदेशम्।।
सीता
के शोक-संताप के विनाश में निपुण, प्रबल प्रतापी श्री हनुमान भगवान् श्री
राघवेन्द्र के आलिंगरुप दिव्य वर प्रसाद से सम्पन्न हैं। जो वर्णियों
ब्रम्हाचारियों के शिरोमणि तथा कपट-साधु कालनेमिको विधिवत शिक्षा देने वाले हैं, वे
पंचमुख हनुमानजी हमारी विपतियों का सर्वथा अपसारण (दूर) करें।
उद्यद्भनुसहस्त्रभितनुः
पीताम्बरालकृतः प्रोज्ज्वालानलदीप्यमाननयनो निष्टिपष्टरक्षोगणः।
सवर्तोद्यतवारिदोद्धतरवः
प्रोच्चैर्गदाविः श्रीमान् मारुनन्दनः प्रतिदिनं ध्ययो विपद्गज्जनः।।
जिनका
श्रीविग्रह उदीयमान सहस्र सूर्य के सदृश अरुण तथा पीताम्बर से सुशोभित है जिनके
नेत्र अत्यन्त प्रज्जवति अग्नि के समान उदीप्त हैं, जो राक्षस-समूह को निःशेषतया पीस देने
वाले हैं प्रलयकालीन मेघ-गर्जना के तुल्य जिनकी घोर गर्जना है जिनके मुद्गर (गदा)
का भ्रमण अतिशय दिव्य है, ऐसे शेभा-प्रभा-संवलित मारुतनन्दन विपद्विभज्जन
हनुमानजी का प्रतिदिन ध्यान करना चाहिये।
रक्षः
पिशाचभयनाशनमामयाधिप्रोच्चैज्र्वरापहरणं दमनं रिपूणाम्।
सम्पतिपुत्रकरणं
विजयप्रदानं संकष्टामोचनविभोः स्वतवन नराणाम्।।
संकट-मोचन
प्रभु श्रीहनुमान का स्तवन (गुण-गान) मानवमात्र के लिये राक्षस-पिशाच (भूत-प्रेत)
के भय का विनाशक, आधि-व्याधि-शोक-संताप-ज्वर-दाहादिका प्रशमन
करने वाला, शत्रु-दमन,
पुत्र-सम्पति का दाता एवं विजय प्रदान
करने वाला है।
दारिद्रयदुःखदहनं
विजयं विवादे कल्याणसाधनमंगलवारणं च।
दाम्पत्यदीर्घसुखसर्वमनोरथाप्ति
श्रीमारुतेः स्तवशतावृतिरातनोति।
श्री
मारुतनन्दन की इस स्तुति का सौ बार बाठ करने से दरिद्रता और दुःखो का दहन, वाद-विवाद
में विजय-प्राप्ति, समस्त कल्याण-मंगलो की अवाप्ति तथा अमंगलको की
निवृति, गृहस्थ-ज्ीवन में दीर्घकालपर्यन्त सुख-प्राप्ति
तथा सभी मनोरथों की पूर्ति होती है।
स्तोत्रं
य एतदनुवासरमस्तकामः श्रीमारुति समनुचिन्त्य पठेत सुधीरः।
तस्मै
प्रसादसुमुखो वरवाननरेन्द्रः साक्षात्कृतो भवति शाश्वतिकः सहायः।।
जो
कोई विवेकशील धीर मानव निष्काम भाव से श्रीमारुतननन्दन का विधिपूर्वक चिन्तन करते
हुए इस स्तोत्र का पाठ करता है उसके समक्ष प्रसादसुमुख-परसौम्य वानरेन्द्र
श्रीहनुमानजी साक्षात पकट होते हैं और नित्य उसकी रक्षा-सहायता करते हैं।
संकष्टमोचनस्तोत्रं
शंकराचार्यभिक्षुणा।
महेश्वरेण
रचितं मारुतेश्चरणेअर्पितम्।।
भिक्षु
(सन्यासी) शंकराचार्य श्री महेश्वर (श्री महेश्वरानंद सरस्वती महाराज) ने इस
संकष्टमोचनस्तोत्र की रचना की और वे इसे श्रीमारुति के चरणों में समर्पित कर रहे
हैं।।
हनुमद् अष्टोतरशतनाम
आचार्य
हनुमान जी के एक सौ आठ नामों के द्वारा कर्ता से हवन कराने के लिए ताम्रकुण्ड से
बने कुण्ड का उपयोग करें। और उस कुण्ड में अग्नि प्रज्वलित कर तिल, चावल, जौं
शक्कर, विल्वपत्र,
गुड, चन्दन, पलास, लवंग, करवीफल, नागवल्ली, शिवलिंगी, गडूची
इन सब वस्तुओं को शुद्ध घृत में मिलाकर हनुमान जी के प्रत्येक नाम का उच्चारण करते
हुये कर्ता से प्रज्वलित अग्नि में आहुति प्रदान करावें।
1. ऊँ
आज्जनेयाय स्वाहा 56 ऊँ यक्षहन्त्रे स्वाहा
2. ऊँ
महावीराय स्वाहा 57 ऊँ काज्जानाभाय स्वाहा
3. ऊँ
हनुमते स्वाहा 58 ऊँ पज्जवक्क्राय स्वाहा
4. ऊँ
मारुतात्मजाय स्वाहा 59 ऊँ महातपसे स्वाहा
5. ऊँ
तत्वज्ञान प्रदाय स्वाहा 60 ऊँ लंकिनीभज्जानाय स्वाहा
6. ऊँ
सोतादेवीमुद्राप्रदायकाय स्वाहा 61 ऊँ श्रीमते स्वाहा
7. ऊँ
अशोकवनिकाक्षेप्वे स्वाहा 62 ऊँ सिहिकाप्राणभज्जनाय स्वाहा
8. ऊँ
सर्वमायविभज्जनाय स्वाहा 63 ऊँ गन्धमादनशैलहस्ताय स्वाहा
9. ऊँ
सर्वबन्धविमोकक्रे स्वाहा 64 ऊँ लंकापुरविदकाय स्वाहा
10 ऊँ
रक्षोविघ्वंसंकारकाय स्वाहा 65 ऊँ सग्रीवसचिवाय स्वाहा
11 ऊँ
परविद्याप्रदाय स्वाहा 66 ऊँ धीराय स्वाहा
12 ऊँ
रशौर्यविनाशाय स्वाहा 67 ऊँ शूराय स्वाहा
13 ऊँ
परयन्त्रनिराकत्र्रे स्वाहा 68 ऊँ दैत्कुलान्तकया स्वाहा
14 ऊँ
परयन्त्रभेदकाय स्वाहा 69 ऊँ सुरातिर्चताय स्वाहा
15 ऊँ
सर्वग्रहविनाशिने स्वाहा 70 ऊँ महातेजसे स्वाहा
16 ऊँ
भीमसेनसहायकृर्ते स्वाहा 71 ऊँ रामचूडामणिप्रदाय स्वाहा
17 ऊँ
सर्वदुःखहराय स्वाहा 72 ऊँ कामरुपिणे स्वाहा
18 ऊँ
सर्वलोकाचारिणे स्वाहा 73 ऊँ पिंगलाक्षाय स्वाहा
19 ऊँ
मनोजवाय स्वाहा 74 ऊँ वार्धिमैनाकपूजिताय स्वाहा
20 ऊँ
पारिजातदु्रम मूलवासाय स्वाहा 75 ऊँ कर्पूरीकृतमार्तण्डमण्ड लाय स्वाहा
21 ऊँ
सर्ममन्त्रस्वरुपवते स्वाहा 76 ऊँ विजितेन्द्रियाय स्वाहा
22 ऊँ
सर्वयन्त्रस्वरुपिणे स्वाहा 77 ऊँ रामसुग्रीवसन्धात्रे स्वाहा
23 ऊँ
सर्वतन्त्रत्मकाय स्वाहा 78 ऊँ महरावणमदर्दनाय स्वाहा
24 ऊँ
कपीश्वराय स्वाहा 79 ऊँ स्फटिकायभाय स्वाहा
25 ऊँ
महाकायाय स्वाहा 80 ऊँ वागधीशाय स्वाहा
26 ऊँ
सर्वरोगहराय स्वाहा 81 ऊँ नवव्याकृतिपण्डिताय स्वाहा
27 ऊँ
प्रभवे स्वाहा 82 ऊँ चतुर्वाहवे स्वाहा
28 ऊँ
बलसिद्धिकराय स्वाहा 83 ऊँ दीनबन्धवे स्वाहा
29 ऊँ
सर्वविद्यासंविठाप्रदायकाय स्वाहा 84 ऊँ महात्मने स्वाहा
30 ऊँ
कपिसेनानायकाय स्वाहा 85 ऊँ भक्तावत्सलाय स्वाहा
31 ऊँ
भविष्यच्चतुराननाय स्वाहा 86 ऊँ संजीवनगदाखगिने स्वाहा
32 ऊँ
कुमार ब्रम्हाचारिणे स्वाहा 87 ऊँ शुचये स्वाहा
33 ऊँ
रत्नकुण्डलदीप्तिमते स्वाहा 88 ऊँ वाग्मिने स्वाहा
34 ऊँ
सच्चालद्वालसंन्नद्वरविमण्डल स्वाहा 89 ऊँ दृएव्रताय स्वाहा
35 ऊँ
गन्धर्व विद्वात्वज्ञानाय स्वाहा 90 ऊँ कालनेमिप्रमथनाय स्वाहा
36 ऊँ
महाबलपराक्रमाय स्वाहा 91 ऊँ हरिमर्कटमर्कटाय स्वाहा
37 ऊँ
श्रृंखलावन्धमोचकाय स्वाहा 92 ऊँ ध्वान्तध्वसिने स्वाहा
38 ऊँ
श्रृंखलावन्धमोचकाय स्वाहा 93 ऊँ शान्ताय स्वाहा
39 ऊँ
सागरोद्वोरकाय स्वाहा 94 ऊँ प्रसन्नात्मने स्वाहा
40 ऊँ
पाज्ञाय स्वाहा 95 ऊँ दशकण्ठमदसंहते स्वाहा
41 ऊँ
रामदूतया स्वाहा 96 ऊँ योगिने स्वाहा
42 ऊँ
प्रजाभवते स्वाहा 97 ऊँ रामगदालोलाय स्वाहा
43 ऊँ
वानाराय स्वाहा 98 ऊँ सीतान्वेषणपण्डिताय स्वाहा
44 ऊँ
केशरिसुताय स्वाहा 99 ऊँ वज्रदण्टाय स्वाहा
45 ऊँ
सीताशोकनिवारणाय स्वाहा 100 ऊँ वज्रनखाय स्वाहा
46 ऊँ
अज्जनागर्भसम्भूताय स्वाहा 101 ऊँ रुद्रवीयसमुद्रभवाय स्वाहा
47 ऊँ
बालार्कसदृशाननाय स्वाहा 102 ऊँ इन्द्रजीवप्रहारमोघब्रम्हा स्वाहा
48 ऊँ
विभीषणप्रियकराय स्वाहा 103 ऊँ पार्थध्वजाग्रसवासिने स्वाहा
49 ऊँ
दशग्रीवकुलान्तकाय स्वाहा 104 ऊँ शरपीरभेदकाय स्वाहा
50 ऊँ
लक्ष्मण प्राणदात्रे स्वाहा 105 ऊँ दशवाहावे स्वाहा
51 ऊँ
वज्रकायाय स्वाहा 106 ऊँ लोकपूज्याय स्वाहा
52 ऊँ
महाद्युतये स्वाहा 107 ऊँ जाम्बवत प्रीतिवर्द्धनाय स्वाहा
53 ऊँ
चिरींज्जविने स्वाहा 108 ऊँ सीतासहित श्रीराम पादसेवा धुरंधराय
54 ऊँ
रामभक्ताय स्वाहा
55 ऊँ दैत्यकार्यविधातकाय स्वाहा
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