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कोरोना काल का कहर कैसे? काले राहू -शनि के कोप की क्रूर दृष्टि कब तक ?



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राहू मिथुन-शनि मकर

  गुरु-धनु,मकर

     बुध वक्री
लेख की आवश्यकता,विषवस्तु एवं उपयोगिता*
  आज जनमानस का प्रथम प्रश्न"कोरोना आतंक ओर कब तक"-
उत्तर-इस वर्ष ही गुरु का राशि एवं राहु का नक्षत्र परिवर्तन  .
  
 *महामारी कारण ग्रह ज्योतिष कारण*-
   1- 
गुरु जीव कारक ग्रह की राशि धनु पर ,दंड दाता शनिमोक्ष प्रदाता केतु
एवम संहारकविच्छेदक सामर्थ्य वान ,सक्षम ,कृमि जीवाणु,विषाणु रोगद *राहु*
 ,विराजित थे। सूर्य भी 15 अप्रेल तक जीव कारक गुरू की धनु,मीन राशियों
पर पसरते रहे।
*
सूर्य प्रति वर्ष 17 दिसंबर से 15 जनवरी एवं 13 मार्च से 14 अप्रेल जीवन दाता गुरु
 की धनु एवं मीन राशि पर आते हैं सभी महत्वपूर्ण कार्य जीवन के वर्जित
हो जाते हैं। वर्ष 2019 में राहु घात लगाए बैठा था महामारी के लिएशनि
भी जीव राशि  मे था ही।
नवम्बर में बुध का वक्री होना,एवं प्रबल शत्रु शुक्र का धनु में प्रवेश जीव
कारक गुरु राशि धनु पूर्णतः शक्तिहीन हो गई।
   
महामारी ने मुह खोल दियाफिर शनि 2020 के प्रारम्भ ने ही अपने
घर मकर राशि से सूर्य के सहयोग से संचालन करने लगा।
*
समस्या कैसे बढ़ी?*
जब गुरु ही 15 दिसंबर को जनवरी को अस्त होगया।
29 
मार्च को शनि के घर मकर में प्रविष्ट होकर30 जून तक उलझ कर रह गया।
*
राहु का मिथुन राशिशनि मकरकेतु कुम्भ एवं गुरु धनु ,मकर पर होंना
एवं बुध,गुरु का वक्री अस्त होना।*
     
*कोरोना संकट कब तक?*
*21 
जून का सूर्य ग्रहण*
चीन,जापान,रूसएशिया के अधिकांश भाग,के लिए अशुभ संकेतक है।
भारत के लिए गौरवपूर्ण रहेगा।
**अशुभ*-व्यक्तिसंस्थाकम्पनी,क्षेत्रदेश प्रदेश जिनके प्रचलित  नाम
का प्रथम अक्षर "क,,डा,,,होगा।
    *30 
जून से गुरु प्रबल प्रतिरोधक बनेगा।अनुसंधान की बुद्धि सफलता देगा।
-23 सितम्बर से राहु की क्षमता बहुत कम हो जाएगी।
*कोरोना असहाय हो जाएगा।*कोरोना मुक्ति*माह।
आगे संकट ओर भी दूसरे
*विश्व के लिए संकट का समय आनेवाला?*
*गुरु को शनि प्रभाव से मुक्ति अप्रेल 2021 में ही मिलेगी ।
  
मकर में शनि 29 अप्रेल 2022 तक अनहोनी अप्रत्याशित होंगी।
प्रमुख व्यक्तिराष्ट्रप्रदेश संकटो से सुरक्षित नही।
  *
विश्व के लिए संकट का समय आनेवाला?*
  
दिसंबर2020 से प्रारम्भ होगा ,बीजा रोपण की प्रबलता अप्रेल अंत तक।
2021 वर्ष विश्वव्यापी संकट का होगा।
      "*
शोध उपरांत जन धन हानि के ग्रह नियम*"
        
प्रस्तुत लेख विभिन्न हजारों वर्षों में युद्ध एवं महामारी से लाखों-करोड़ों
लोगों के प्राण संकट की घटनाओं के अनुशीलन एवं विश्लेषण के पश्चात
 अति संक्षिप्त स्वरूप में शोधार्थियों एवं ज्योतिष के ज्ञान में रुचि रखने
वालों तथा जन सामान्य के हैं रुचि एवं जिज्ञासा के अनुरूप तैयार किया गया है ।
      *
संन 165 से अब तक महामारी एवं युद्ध*
यदि घटनाओं पर विवरण उदाहरण सहित प्रस्तुत करें तो एक मोटी पुस्तक
तैयार हो जावेगी ।
        *
घटनाओं के समय ग्रहों की स्थितियों से निष्कर्ष के रूप में क्या
स्थिति बनती है?*
  
कौन-कौन से ग्रह महामारी या युद्ध के रूप में लाखों-करोड़ों लोगों के प्राण
हरण करते हैं?
     * 
क्यो कोई एक ग्रह समर्थ सार्थक? नही?*
   
कोई भी एक ग्रह विशेष रूप से शनि या गुरु चाहे तो प्राण हरण शक्ति
या लाखों-करोड़ों लोगों की मृत्यु का कारण नहीं हो सकते हैं ।
       
कम से कम में से चार ग्रह जिसमें गुरुशनि,राहु और बुध केतु की
 स्थिति भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते  है।
*ग्रह कब अपना सर्वाधिक कुप्रभाव प्रदान कर सकते?*   
   किसी भी घटनाके लिए आवश्यक है की घटना की परिणति
के लिए ग्रह किस स्थिति में है किन राशियों पर ग्रह
सर्वाधिक सक्रिय होकर अशुभ परिणाम दे सकते हैं
     *
सर्व प्रमुख ग्रह राहु -केतु-*
      
केतु ग्रह मोक्ष कारक है ।मोक्ष मृत्यु के पूर्व संभव नहीं है।
इस प्रकार राहु विच्छेदक ग्रह है। शरीर से प्राणों का विच्छेद या
संबंध समाप्त होना मृत्यु के लिए अनिवार्य है ।
       
चाहे युद्ध हो या महामारी जब तक राहु सक्रिय नहीं होगा विश्व में
प्राण संकट या मृत्यु संकट की स्थिति उत्पन्न हो ही नहीं सकती है।
राहु एक विच्छेदक ग्रह है |शरीर से प्राणों का विच्छेद करना
या संक्रामक रोग या कमी से संबंधित रोग के लिए  प्रमुख है।
इसलिए बिना राहु के सहयोग के गुरुशनि दोनों बड़े ग्रह मिलकर भी
युद्ध की स्थिति यह संपूर्ण विश्व को संकट में डालने की क्षमता नहीं रखते हैं।
      
*गुरु का महत्व क्यों? जीवन गुरु के हाथों में*
        
प्रमुख रुप से शरीर गतिवान है क्योकि प्राण हैं। स्थूल शरीर में
 प्राण होना "जीव" है।इसका कारक गुरु है अर्थात गुरु  जीव का नियंत्रक है।
       
जीव हत्या या प्राण संकट डालने के लिए हमें जीव शब्द पर
ध्यान देना पड़ेगा अर्थात जो चलायमान है गतिमान हैं एवं  प्राण शक्ति मय शरीर है ।
       
इन  का कारक नौ ग्रहों में केवल गुरु ग्रह है अर्थात गुरु की विशेष स्थिति
बनने पर ही प्राणों के संकट का प्रश्न उत्पन्न हो सकता है ,
        
सामान्य नियम है कि  गुरु जीव  में ज्ञानबुद्धि,कल्याण से संबंधित ग्रह है ।
यह सब तथ्य किसी प्राणी अथवा जन्म प्राण हो उनमें ही उत्पन्न हो
 सकते हैं या विद्यमान हो सकते हैं।
       गुरु की राशि या घर धनु एवं मीन  है।
धनु राशि या मीन राशि पर जब कोई *क्रूर या पाप ग्रह* प्रवेश करता है ।
         
उस समय यह घटना की स्थिति सहज निर्मित होती है ।
जैसे *सूर्य ,शनिराहु ,मंगल ,केतु ग्रह* यदि धनु अथवा मीन राशि में
 होते हैं उस स्थिति में ही प्राणों के संकट का प्रश्न या जीव पर
संकट उत्पन्न हो सकता है।
     
द्वितीय प्रश्न है कि प्राण संकट किस ग्रह के कारण? –
मंगल रक्तपात अर्थात युद्ध का निर्णय| राष्ट्रो मे यूद्ध्क स्थिति
 कुम्भ का मंगल बनाएगा |
राहु विच्छेद,संक्रमण एवं कृमि (जीवाणुविषाणु)रोग कारक
शनि ग्रह दंड (अनुचित जीवन शैली एवम कार्य का दंड) निर्धारक
-
केतु मोक्षमुक्ति कारक।
   *
ग्रह किस राशि पर प्रबल घटना महामारी या युद्ध कारक?*
    किस  राशि पर कौन सा ग्रह किस प्रकार घातक होगा?
       
यह स्पष्ट  है कि *जो ग्रह   घटना के कारक हैं
उनके अधीन की  राशियां ही प्रमुख रूप से उत्तरदायी है।
 यह सीधा सा सरल समस्या का उत्तर है।*
      1-
शनि-दंड या कष्ट के निर्णय का अधिकारी ग्रह है
इस प्रकार शनि की राशि *मकर* एवं कुंभ ।
      2-
राहु विच्छेदक *मिथुन राशि* में उच्च का एवं
सर्वाधिक प्रभावशाली होता है। अर्थात किसी भी महामारी
या बड़े युद्ध जिसमें लाखों करोड़ों के प्राण संकट में डालने में समर्थ।
      -
जीव कारक गुरु राशि*धनु*मीन ,
       -
दंड निर्धराज शनि राशि*मकर*कुम्भ.
       -
रक्त कारक मंगल की मेष राशि।
3-
गुरु जीव के प्राण का संधारक।
  
शनि के साथ या 12वी राशि।
  -
राशि परीवर्तन शनि के साथ।
-,
बुध की राशि पर।
     * संक्षेप में प्रथम-मिथुन,मकरधनु राशि सर्वाधिक मृत्यु कारी।*
  
द्वितीतक- कुम्भमीनकन्या राशि।*
*प्रमुख ग्रह अपना कुप्रभाव दिखाने में समर्थ सक्षम  स्थिति~?*
     --गुरु शनि राहु तीन प्रमुख ग्रह एवं विशिष्ट सहयोगी बुध हैं ।
ये निम्न स्थितयों में घातक होंगे-
1- 
ग्रह राशि परिवर्तन करने
2- 
साथ में होने पर .
3-
अपनी राशि में या उच्च राशि।
4-
अस्त ,वक्री ।
          *बुध ग्रह* इस प्रकार का ग्रह है  ।जिस पॉप या क्रूर ग्रह के साथ हो।
अथवा  उसकी राशि पर ,मिथुन कन्या राशि पर * राहु विशेष रूप से*
 तथा गुरु शनि या केतु होने पर उनके अनिष्ट प्रभाव को कई गुना
 बढ़ाने की शक्ति रखता है  यदि या वक्री हो या अस्त हो तो
 यह शक्ति और भी प्रबल हो जाती है।
      
*प्रमुख रूप से गुरु की धनु राशिशनि की मकर राशि,
राहु की मिथुन या धनु राशि पर उपस्थिति एवं बुध ग्रह का वक्री  या अस्त हो ना ।*
   *नियमों को संक्षिप्त में निम्न रूप से परिभाषित कर सकते हैं *
प्रथम- बुद्ध शनि गुरु का अस्त या वक्री होना ।
द्वितीय -गुरु की राशि पर शनि राहु का होना।
तृतीय -बुध की राशि पर राहु गुरु का होना।
                 
ग्रह*शनि 30 वर्ष* में मकर कुंभ राशि पर उपस्थित हो सकता है।
  *
राहु 18 वर्ष में* किसी भी राशि विशेष तौर पर मिथुन धनु ,
मेष उपस्थित हो सकता है।
  *
गुरु 12 वर्ष में* धनु या मकर ,वृषमिथुन,कन्यातुला राशि
 पर उपस्थित हो सकता है।
     
इन तीनों में से कम से कम दो ग्रह शनिराहु ,केतु या गुरु
राहु केतु की उपस्थिति उक्त स्थिति में आवश्यक है।
          
भीषण युद्ध,महामारी-प्लेगकालरा,कोरोना  विभीषिका के
साक्ष्य घटनाप्रद ग्रह ,अधिकांश उक्त नियमो के अंतर्गत ही हैं।
  2000 वर्ष के उपलब्ध युद्ध या महामारी के आंकड़ों
   
जिनमे लाखो या करोड़ की संख्या से अधिक प्राणः नही रहे,
उनमे से कुछ का वर्णन प्रमाण स्वरूप निम्नानुसार है-
संन 165 प्रारंभ प्ले से लगभग 50 लोग लाख लोग की मृत्यु हुई
उस समय राहु धनु राशि पर केतु मिथुन राशि पर एवं
शनि वक्री होकर उच्च कथा एवं गुरु अस्त था |
1-सन 540 मे करोड़ करोड़ लोग प्लेग से काल के गाल में समा गए
उस समय राहु धनु राशि ,केतु मिथुन ,शनि उच्च का |
2--वर्ष 66 में राहु मिथुन, केतु धनु ,शनि कन्या में वक्री ,कन्या में गुरु अस्त|
इसमें भी लाखों लोगों को जानमाल से हाथ धोना पड़ा ।
3755 में चीन वियतनाम के युद्ध के समय भी राहु मिथुन एवं केतु धनु राशि
तथा शनि मकर तथा शत्रु राशि वृषभ पर गुरु स्थित था
इसमें 3:30 करोड़ से अधिक लोग मृत्यु को प्राप्त हुए ।
4-1815 में जब नेपोलियन का युद्ध समाप्त हुआ उस समय भी
राहु मिथुन एवं केतु धनु राशिशनि मकरगुरु वक्री कन्या राशि पर था ।
4-1815,
एवं18 53 में मिथुन और केतु के राहु केतु थे एवं धनु राशि पर गुरु था ।
5-1899 
में राहु धनु राशि  ,केतु मिथुन राशिशनि धनु राशि
 गुरु शत्रु राशि शुक्र की तुला राशि पर वक्री था उस समय
फिलिपिंस दक्षिण अफ्रीका कोलंबिया युद्ध से जूझ रहे थे| .
6-
प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के समय वर्ष  1918 में
राहु धनु राशि केतु मिथुन राशि वक्री शनि कर्क राशि
एवं गुरु शत्रु ग्रह शुक्र की वृषभ राशि पर उपस्थित थे।
      
इसी वर्ष स्पेन फ्लू के द्वारा करोड़ लोगों की जानें चली गई थी ।
7- 
वर्ष 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के समय भी शनि राहु मिथुन राशि
 गुरु वक्री सिंह राशि एवं गुलिक वीर सिंह राशि का उपलब्ध था| बड़े युद्ध का बीज रोपित राहू हटते  2 करा देगा | 
केतु धनु राशि पर था इसने लगभग 8:30 करोड़ लोगों के प्राण छीन लिए थे।
8-2010 
में स्वाइन फ्लू 5लाख से अधिक लोग नहीं रहे
जिसमें राहु मिथुन तथा केतु धनु राशिगुरु कुंभ राशि एवं
शनि कन्या राशि पर उपस्थित था
       *
भारत के संदर्भ में ,चलते चलते*
     
उक्त वर्णन एवं नियम शेष विश्व के लिए है। जो कि भोग भूमि,
से संबंधित हैं भारतवर्ष कर्म अध्यात्म की भूमि है.देव भूमि है।
मांसाहारसर्पकीडे आहार कर्ता की भूमि नही,भोग भूमि नहीं ।इसलिए यहां बुद्घ,चंद्र ,
सूर्य ग्रह उनकी राशियों पर राहु ,केतु एवं बुध गुरु का वक्री होना
उथल पुथल उत्पन्न करेगा।
   
राहु गंदा ग्रह है,इसलिए शारीरिक एवं मानसिक गंदे रहने
 वालोंहिंसक ,गंदे कार्यरतकुकर्म अनैतिक कर्म कर्ता को राहु
अधिक पीड़ित करता है।
          
भारत मे राहु का मिथुन राशि पर होना उतना अर्थ नहीं रखता है।
,भारत की कुंडली के परिपेक्ष में एवं भारतवर्ष भारत के लिए
राहु का कर्क राशि पर होना अनिष्टद एवं महत्वपूर्ण है ।
शनि मई मे अमावस्या एवं शनि जयंती के आसपास 21-या 22  मई को , मेष चर राशि के चंद्र मे वाहन  यातायात ट्रेन प्रारम्भ करवा सकता है | 
भारत की वऋषभ लग्न अर्थात इस लग्न या इससे 7वी
 लग्न मे ट्रेन संचालन भी करवा सकता है |
22जून से परीक्षाएं प्रारम्भ होने के योग गुरु ,शनि बुध बना रहे हें| मई 26 को कर्क का चंद्र विशेष घोषणा या अनेक सुविधाए जन हित मे लागू करवा सकता है |
चंद्र मन का कारक सूर्य आत्मा का इन राशि पर 
राहु अधिक हानिप्रद।भारत में अनिष्ट की स्थिति बना पाते हैं |
            
भारतवर्ष के लिए मकर। कुम्भ राशि के शनि का नियम लागू नहीं होता है ।
वरण उत्थान प्रद होगा।लाक डाउन 14 मई से पूर्व मुशकिल हे कि बंद हो ,क्योकि शुक्र 13 मई को वक्री होगा इसके पूर्व सभव नहीं ,कुछ कठोर निर्णय होंगे || शनि 11 से वक्री होगा जो लाक डाउन मे छूट पर विचार पर विवश करेगा ,नियम शिथिल होंगे |17 जून से वक्री बुध ग्रह बड़ी उद्घोषणा करवाएगा, जानता के हित मे निर्णय |
जबकि कर्क मेष,  एवं धनु राशि से संबंधित ग्रह योग|
       
इसलिए किसी भी महामारी का प्रबल प्रभाव भारतवर्ष में नहीं होगा ।
जबकि धनु ,मिथुनमकरकन्या इन पर शनि राहु गुरु केतु का होना
 विश्व को सदैव संकट में डालने वाला सिद्ध हुआ है एवं भविष्य में भी होगा।

https://ptvktiwari.blogspot.com/2020/04/blog-post.html  यह भी देखिये |

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  (  
लेखक- के 1972 से ज्योतिष के क्षेत्र में  भारत की विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यक
एवं ज्योतिष पत्रिकाओं में लेख  एवं लगभग 100 ईबुक तथा 10000 से अधिक आलेख।
 (वास्तुकुंडलीहस्तरेखाफेंगशुई,चीनी ज्योतिषटेरो भविष्य )।
*
अनुसंधान*-मुहूर्त एवम *विवाह के लिए ,नक्षत्र से नक्षत्र के स्थान पर अपूर्ण
मिलान की प्रचलित विधि  में संधोधन एवम कुंडली के ग्रहों से कुंडली मिलान
विधि के ज्ञाता)
     

     


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सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -