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नाग पूजन - #पंचमी -१२ मासानुसार (Shukla & Krishna Paksha Both)पितृदोष,राहुदोष,विष,विवाह और रोजगार में बाधा# (Marriage & Career Delays)kaal sarp dosh remedy;To control the the problem ..

 

🐍 १२ मासानुसार नाग पूजन

 (Shukla & Krishna Paksha Both)

🐍 प्रस्तावना | Introduction to Nāga Influence and Remedies 🐍

नाग तत्त्व केवल सर्प रूप नहीं है, यह कुण्डलिनी शक्ति, पितृ ऋण तथा अदृश्य ग्रह प्रभावों का सूचक भी है।

जब जन्मकुंडली में राहु द्वितीय, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम या द्वादश भाव में स्थित होता है, तब जातक पर अप्रत्याशित घटनाएँ, भय, रोग, विवाह या व्यवसाय में विलंब जैसे कष्ट आने लगते हैं।

इन दुष्प्रभावों से रक्षा हेतु नाग पूजन, नाग स्तोत्र जप तथा वृक्ष रक्षा (वृक्ष काटना या तोड़ना) आवश्यक माने गए हैं।

The Nāga principle is not limited to the snake symbol; it signifies Kundalini power, ancestral debts, and hidden planetary energies. When Rahu occupies the 2nd, 5th, 7th, 8th, 9th, or 12th houses, it brings unexpected problems, fears, health or marriage delays, and professional hurdles. To counter these effects, Nāga worship, recitation of Nāga hymns, and the protection of sacred trees (avoiding their cutting or damage) are considered highly auspicious and spiritually protective.

🔹 राहु , नाग-और पंचमी  का गहरा संबंध दोष(Virgo.Pices,Taurus specific)

📖 शास्त्र प्रमाणस्कन्द पुराण (कुमार खण्ड ५७.३२):
राहुकेत्वोः प्रसङ्गेन नागदोषः प्रजायते।
👉 अर्थ (Meaning): जब जन्मकुंडली में Rahu या Ketu विशेष भावों में हों, तो Naag Dosha उत्पन्न होता है।
🕉यह दोष व्यक्ति को भय, विष, जीव-जंतु, और सर्प संबंधी कष्ट देता है।
⚡ Rahu in certain houses causes snake-related fears, sudden misfortunes, or hidden karmic sufferings.

कर्मजन्य या शापजन्य जन्म (कर्मफल दृष्टि से)

गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण और विष्णु धर्मोत्तर के अनुसार —

“जो व्यक्ति पूर्व जन्म में क्रूरता करता है, वचन से विष फैलाता है, या माता-पिता/गुरु का अपमान करता है, वह सर्प योनि में जन्म लेता है।”

- सर्प को "शाप-रूप जीव" भी कहा गया है।

Must for- Virgo,Taurus&Pisces to control unexpected  dashesh. (Prarabdh /pre birth deed. )


🐍 🌙 १. तिथि एवं महत्व (Tithi & Significance):

कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को शास्त्रों में नागपूजन तथा स्कन्दमाता पूजन दोनों का विशेष विधान बताया गया है।
📜 निर्णयसिन्धु (तिथिप्रकरण) में कहा गया है —

“पंचम्यां नागपूजां च स्कन्दमातरं एव च।
पुत्रप्राप्त्यै तथा पापं नश्येत् सर्वमशेषतः॥”

🔹 अर्थ: पंचमी तिथि पर नागदेवता और स्कन्दमाता की पूजा करने से पापों का नाश होता है और संतान-सुख की प्राप्ति होती है।. नागदेवता पूजन हेतु ग्रंथ-प्रमाण एवं मंत्र:
📖 स्रोत: धर्मसिन्धु, निर्णयसिन्धु, वराहपुराण, गरुडपुराण।

  • पंचमी को कांसे के बर्तन से जल न पिएँ।

  • दिनभर अत्यधिक बोलना, क्रोध करना, या जमीन पर दूध गिराना निषिद्ध है।

  • इस तिथि में सर्प या नाग प्रतिमा को स्पर्श न करें, केवल दर्शन या पूजन करें।

    धर्मशास्त्रों के अनुसार पंचमी को अन्न, दालें, और तमोगुणकारी भोजन त्यागना चाहिए।

    • अन्न व अनाज (Grains): चावल, गेहूँ, जौ, मक्का — 

    • दालें (Pulses): उड़द, मूँग, अरहर, मसूर — 

    • सब्जियाँ (Vegetables): प्याज, लहसुन, बैंगन, परवल, भिंडी —

    • फल (Fruits): केवल हल्के फल जैसे सेव, अमरूद, नारियल जल उचित;

    •   अधिक मीठे फल त्याज्य।

    • अन्य पदार्थ (Miscellaneous): मांस, मदिरा, अंडा आदि का सेवन नाग-पूजन में अपवित्र माना गया है।
      💠 कथन: “अन्नं तु पंचम्यां वर्ज्यं नागप्रीत्यर्थमेव च।” — (निर्णयसिन्धु)


    🍯 ५. आहार की कार्यता (Dietary Effect):
    इस दिन शुद्ध फलाहार या दुग्धाहार करने से शरीर में दोषों का नाश होता है, चित्त निर्मल रहता है और पूजन-फल शीघ्र प्राप्त होता है।
    📿 फलाहार में दूध, मिश्री, केले, अनार, और सूखे मेवे को श्रेष्ठ माना गया है।


    🎁 ६. उत्तम दान (Auspicious Donations):
    पंचमी तिथि पर निम्न दान अत्यंत पुण्यदायक बताए गए हैं

    • 🪶 दूध, सफेद पुष्प, सर्प प्रतिमा, ताम्र पात्र, चांदी की नागनागिन जोड़ी।

    • 🙏 दान देते समय यह मंत्र कहें — “ॐ नागदेवता प्रसन्नो भवतु।”
      📖 धर्मसिन्धु कथन — “पंचम्यां नागदानं रोगनिवारणं भवेत्।”

    • \🪔 आहार-वर्जन (Foods to Avoid on Panchami Tithi)

      📖 Dharmasindhu, Nirnayasindhu के अनुसार:
      इस दिन नाग-व्रत, औषध-श्रद्धा तथा शरीर-शुद्धि हेतु कुछ आहार-वर्जन आवश्यक हैं।

      वर्गजिन्हें नहीं खाना चाहिए (Foods to Avoid)कारण / प्रभाव (Dietary Effects - Karyata)
      🍛 अन्न व अनाज (Grains & Cereals)गेहूँ, चावल, जौ, मक्का, रोटी, मन अशांत 
      🫘 दालें (Pulses)मूँग, मसूर, उड़द, अरहरपंचमी  पाचन  दोष-वृद्धि 
      🥦 सब्जियाँ (Vegetables)बैंगन, परवल, भिंडी, प्याज, लहसुनतमोगुण  निषिद्ध।
      🍉 फल (Fruits)केवल कच्चे फल या दूध फल लें; अधिक मीठे फल (केला, आम) वर्ज्यमीठा भोजन बुद्धि को स्थिर नहीं रखता।
      🍯 अन्य पदार्थ (Miscellaneous)मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, अंडानाग देवता का अपमान ;

    🪶 ७. आशीर्वाद एवं समापन मंत्र (Closing Benediction):
    संस्कृत / हिंदी —
    “ॐ तत्सद्ब्रह्मार्पणमस्तु । सर्वे भवन्तु सुखिनः । नागदेवता प्रसन्नो भवतु॥”
     — “May this offering reach the Supreme Brahman. May all beings be happy and may Lord Naga be pleased and grant protection.”

🌿(क) ध्यान मंत्र (Dhyana Mantra):
“अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शङ्खपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥”

“एतानि नव नागानि स्मरणेन विनश्यति।
सर्व रोग भयं चापि दंश दोषं च नश्यति॥”

🔹 अर्थ: इन नव नागों (अनन्त, वासुकि, शेष, पद्म, कम्बल, शङ्खपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक, कालिय) के स्मरण से सर्पदंश, रोग और भय समाप्त होता है।

(ख) मुख्य पूजन मंत्र (Main Puja Mantra):
🐍
“ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यः ये के च पृथिवीमनु।
ये अंतरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः॥”

📖 स्रोत: अथर्ववेद – नागसुक्त (काण्ड १९)
🔹 अर्थ: पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग में स्थित सभी सर्पों को मेरा नमस्कार हो — वे मुझे रक्षा करें।

(ग) फलश्रुति (Result of Worship):
📜 गरुडपुराण (अध्याय ११८)

“नागपूजां तु यः कुर्याद् पंचम्यां भक्तिपूर्वकम्।
तस्य गृहं न सर्पश्च प्रवेशं कुरुते क्वचित्॥”

🔹 अर्थ: जो व्यक्ति पंचमी के दिन भक्तिपूर्वक नागपूजन करता है, उसके घर में कभी सर्पदोष या भय नहीं होता।

🌺 ४. संकल्प मंत्र (Sankalpa Mantra for Panchami):
📿
“ॐ अद्य पंचम्यां शुभतिथौ मम सर्व पाप क्षय पूर्वकं
नागदेवता-स्कन्दमाता-पूजनं सर्व सौभाग्य प्राप्तये करिष्ये॥”

🔹 “On this sacred Panchami, I perform the worship of Naga Devata and Skandamata for removal of sins and attainment of fortune.”

🎁 ५. विशेष दान (Special Donations on Panchami):
📖 धर्मसिन्धु – दानप्रकरण:

“पंचम्यां ताम्रनागदानं रोगनाशनं भवेत्।”
🔹 अर्थ: पंचमी को ताम्र (तांबे) की नाग प्रतिमा का दान करने से रोग नष्ट होते हैं।
अत: इस दिन दूध, चाँदी की नागनागिन जोड़ी, या दूर्वा अर्पण करना विशेष पुण्यकारी है।

 🌼
“ॐ नागदेवता प्रसन्नो भवतु । स्कन्दमाता मम मनः शुद्धिं करोतु ।
सर्वे भवन्तु सुखिनः । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥”

🔹 “May Naga Devata be pleased, may Skandamata purify my mind, and may peace prevail in all beings.”


🔹 राहु किन भावों में यह दोष देता है (Houses Affected)

🪶 भावानुसार (House-wise Effect):

भाव

हिंदी में प्रभाव

English Explanation

(Second)

पारिवारिक अशांति, वाणी दोष, पितृ ऋण

Family discord, speech issues, ancestral debts

(Fifth)

संतान में विलंब, गर्भ संबंधी बाधा

Delay in progeny, child issues

(Seventh)

विवाह विलंब, वैवाहिक अस्थिरता

Delay or disturbance in marriage

(Eighth)

विष, जीव-जंतु या सर्पभय

Poison, snake fear, sudden trauma

(Ninth)

पितृदोष, भाग्य बाधा

Ancestral curse, blocked fortune

१२ (Twelfth)

निद्रा-दोष, स्वप्न-सर्प दर्शन

Sleep issues, snake dreams, mental stress

🔹 पितृदोष का प्रमाण (Pitru Dosha Connection)

📖 Garuda Purana (Achar Khand 16):

यत्र राहुस्थितो भावे तत्र पितृशापो भवेद् ध्रुवम्।
👉 Meaning: Wherever Rahu sits, it indicates an ancestral curse or unfulfilled karmic debt.
🕉उपाय:नागपूजां तु कृत्वा याति शुभमार्गताम्।” — नाग पूजा से यह दोष शांत होता है।
⚡ Pitru Dosha caused by Rahu gets pacified through Naag Puja and Pitru Tarpan.

🔹 आकस्मिक भय एवं विष-भय (Sudden Fear & Poison Karma)

📜 नागकल्प तंत्र (.४८५२):

राहुकेत्वोः प्रभावेण ये जनाः सर्पभयार्तकाः।
नागानां पूजनं कुर्युः तेषां दुःखं जायते॥

👉 अर्थ: राहु-केतु से पीड़ित व्यक्ति यदि नागदेवता का पूजन करे तो सर्पभय, विषदोष, जीव-जंतु भय सब नष्ट होते हैं।
⚡ Those suffering from Rahu-Ketu afflictions must perform Naag Puja to avoid snake/animal fear and sudden death.

🔹 ⃣     वृक्ष काटना या भूमि तोड़ना  वर्जित (Tree & Land Taboo)

📖 नागकल्प तंत्र:

भूमेः खननं वृक्षच्छेदनं वर्जयेत्।
👉   : नागदोषी जातक को भूमि की खुदाई, वृक्ष काटना या तोड़ना वर्जित है।
🌿   Earth and trees are abodes of Nagas (serpent energies). Disturbing them increases Rahu’s karmic imbalance.
⚡ Avoid digging, cutting trees, or disturbing earth to maintain elemental peace.

🔹     विवाह और रोजगार में बाधा (Marriage & Career Delays)

📖 बृहज्जातक:

राहु सप्तमे वा नवमे वाविवाहे विघ्नः।
📖 फलदीपिका:
पञ्चमे संतानदोषः द्वादशे रोजगारविघ्नः।
👉 अर्थ: राहु ७वें, ९वें, ५वें या १२वें भाव में हो तो विवाह रोजगार में बाधा देता है।
⚡ Rahu in these houses causes delay or struggle in marriage and job progress.
🕉उपाय: नागपूजन, पितृतर्पण, व्रत और वृक्षरक्षण।

🔹 ⃣     नाग पूजा से रक्षा (Protection through Naag Puja)

🪶 विधि (Method):

  • नागदेवता की प्रतिमा या प्रतीक (कुंड, शिवलिंग पर सर्प) पर दूध, दूर्वा, गुड़, पुष्प अर्पण करें।
  • दीपक: तिल तेल का, नीली या सफेद वर्तिका से।
  • दिशा: दक्षिण-पश्चिम (South-West)राहु की दिशा।
  • दिवस: सोमवार या पंचमी।
  • मंत्र: नमोऽस्तु सर्पेभ्यः ये के पृथिवीमनौ॥ या
    अनन्ताय वासुकये शेषाय पद्मनाभाय नमः॥
    🌟 फल: भय-निवारण, विवाह-सफलता, पितृ-शांति, जीवन-स्थिरता।
🔹 ⃣       दीपक-वर्तिका, रंग और द्रव्य नियम (Lamp, Color & Offering Rules)
  • दीपक (Lamp): तिल या सरसों तेल से
  • वर्तिका (Wick): नीली या सफेद
  • रंग (Color): नीला, हरा, या सफेद
  • द्रव्य (Offerings): दूर्वा, दूध, गुड़, पुष्प, जल, कुशोदक
  • दिशा (Direction): दक्षिण-पश्चिम
  • समय (Time): संध्या या रात्रि प्रथम प्रहर
🔹 ९             परिणाम (Results of Puja)

🌸 विवाह बाधा शमन (Marriage Harmony)
🌸 रोजगार गति (Career Stability)
🌸 पितृ शांति (Ancestral Peace)
🌸 विष, जीव-जंतु, सर्प भय से सुरक्षा (Protection from Snakes & Poison)
🌸 स्थिर बुद्धि और ग्रहदोष निवारण (Mental & Planetary Balance)


🕉️ . स्कन्दमाता पूजन हेतु ग्रंथ-प्रमाण एवं मंत्र:
📖 स्रोत: व्रतराज ग्रंथ, स्कन्दपुराण – कुमारखण्ड, एवं धर्मसिन्धु।

(क) ध्यान मंत्र (Dhyana Mantra):
🌼
“सिंहासनस्था शुभ्राभा स्कन्दमाता यशस्विनी।
कार्त्तिकेयप्रसूर्भक्त्या मम दुःखं व्यपोहतु॥”

🔹 अर्थ: सिंहासन पर विराजमान शुभ्रवर्णा स्कन्दमाता, जो कार्त्तिकेय की जननी हैं, वे मेरी समस्त पीड़ाओं का नाश करें।

(ख) मुख्य पूजन मंत्र (Main Puja Mantra):
🌸
“ॐ स्कन्दमातायै नमः॥”
📖 व्रतराज (नवदुर्गा पूजन विधि) अनुसार:

“स्कन्दमाता पूजिता नारी सर्वसौभाग्यसम्पदा।
पुत्रपौत्रसमृद्ध्यर्थं पूजनीया विशेषतः॥”

(ग) फलश्रुति (Result of Worship):

“यः पंचम्यां स्कन्दमातरं पूजयेत् श्रद्धया युतः।
सप्तजन्मसु सौभाग्यं लभते पुरुषोत्तमः॥”

🔹 अर्थ: जो व्यक्ति पंचमी के दिन श्रद्धापूर्वक स्कन्दमाता की पूजा करता है, वह सात जन्मों तक सौभाग्यशाली होता है।🔹 🔟 सार (Essence Summary)

🕉️ Hindi:राहु यदि , , , , या १२ भावों में होतो नाग पूजन, पितृ तर्पण और वृक्ष रक्षण अनिवार्य है।
🌐 English: When Rahu occupies 2nd, 5th, 7th, 8th, 9th, or 12th houses — Naag Puja, Pitru rituals, and tree protection are mandatory for safety and karmic healing.
फल: सर्प-दोष निवारण, भय-शमन, और सौभाग्य पुनरुद्धार।

 🌸 चैत्र मास पंचमी

🔹 शुक्ल पक्षशेष नाग पूजन

  • दिशा: उत्तर
  • दीपक: तिल तेल का, पाँच वर्तिका
  • रंग: सफेद
  • द्रव्य: दूध, चंदन, दूर्वा
  • मंत्र: “ नमोऽस्तु शेषनागाय अनन्ताय नमः॥
  • फल: दीर्घायु, स्थिरता, कुलरक्षा

🔹 कृष्ण पक्षवासुकि नाग पूजन

  • दिशा: दक्षिण
  • दीपक: सरसों तेल
  • रंग: लाल
  • द्रव्य: रक्त पुष्प, गुड़, दूध
  • मंत्र: “ वासुकये नमः॥
  • फल: भयरहित जीवन, विषदोष निवारण
🌸 वैशाख मास पंचमी

शुक्ल पक्षतक्षक नाग:

  • दिशा: दक्षिण-पश्चिम
  • दीपक: घी दीप, तीन वर्तिका
  • रंग: पीला
  • द्रव्य: गंध, कुशोदक, पुष्प
  • मंत्र: “ तक्षकाय नमः॥
  • फल: भवन एवं भूमि दोष निवारण

कृष्ण पक्षकर्कोटक नाग:

  • दिशा: पश्चिम
  • दीपक: सरसों तेल, नीली वर्तिका
  • रंग: नील
  • द्रव्य: दूर्वा, चंदन, जल
  • मंत्र: “ कर्कोटकाय नमः॥
  • फल: शत्रु-नाश, रक्षा, कुण्डलिनी जागरण
🌸 ज्येष्ठ मास पंचमी

शुक्ल पक्षपद्म नाग:

  • दिशा: पूर्व
  • दीपक: कपूर युक्त घृतदीप
  • रंग: गुलाबी
  • द्रव्य: कमलपत्र, चंदन, दूध
  • मंत्र: “ पद्मनागाय नमः॥
  • फल: ऐश्वर्य, सौंदर्य, स्नेह

कृष्ण पक्षमहापद्म नाग:

  • दिशा: उत्तर
  • दीपक: शुद्ध घृत दीप
  • रंग: रजत (सिल्वर)
  • द्रव्य: श्वेत पुष्प, दुग्ध, कुश
  • मंत्र: “ महापद्मनागाय नमः॥
  • फल: धन-समृद्धि
🌸 आषाढ़ मास पंचमी

शुक्ल पक्षकुलिक नाग:

  • दिशा: ईशान (उत्तर-पूर्व)
  • दीपक: तिल का तेल
  • रंग: हरा
  • द्रव्य: तुलसी, दूर्वा, दूध
  • मंत्र: “ कुलिकाय नमः॥
  • फल: दोष निवारण, शिक्षा में उन्नति

कृष्ण पक्षशंख नाग:

  • दिशा: पश्चिम
  • दीपक: पंचमुखी दीपक
  • रंग: श्वेत-नील
  • द्रव्य: शंखजल, पुष्प, धूप
  • मंत्र: “ शङ्खनागाय नमः॥
  • फल: जलदोष शमन, लक्ष्मी प्राप्ति
🌸 श्रावण मास पंचमी

शुक्ल पक्षशंख नाग:

  • दिशा: उत्तर-पश्चिम
  • दीपक: शुद्ध घी
  • रंग: श्वेत
  • द्रव्य: दूध, पुष्प, दूर्वा
  • मंत्र: “ शंखनागाय नमः॥
  • फल: नागपंचमी मुख्य फलविषमुक्ति

कृष्ण पक्षशेष नाग:

  • दिशा: उत्तर
  • दीपक: तिल दीप
  • रंग: श्वेत
  • द्रव्य: चंदन, कुश, दुग्ध
  • मंत्र: “ अनन्ताय नमः॥
  • फल: कुल-संतान रक्षा
🌸 भाद्रपद मास पंचमीशुक्ल पक्षकर्कोटक नाग:
  • दिशा: पश्चिम
  • दीपक: घृतदीप
  • रंग: नील
  • द्रव्य: दूर्वा, कमल, धूप
  • मंत्र: “ कर्कोटकाय नमः॥
  • फल: रोगनाश

कृष्ण पक्षधृतराष्ट्र नाग:

  • दिशा: दक्षिण
  • दीपक: सरसों तेल दीप
  • रंग: लाल
  • द्रव्य: रक्त पुष्प, धूप, दुग्ध
  • मंत्र: “ धृतराष्ट्राय नमः॥
  • फल: शौर्य, यश, तेज
🌸 आश्विन मास पंचमी

शुक्ल पक्षवासुकि नाग:

  • दिशा: दक्षिण
  • दीपक: दीपक में लाल वर्तिका
  • रंग: लाल
  • द्रव्य: गुड़, पुष्प, दूर्वा
  • मंत्र: “ वासुकये नमः॥
  • फल: विषनिवारण

कृष्ण पक्षपद्म नाग:

  • दिशा: पूर्व
  • दीपक: कपूरदीप
  • रंग: गुलाबी
  • द्रव्य: कमल, दूध
  • मंत्र: “ पद्मनागाय नमः॥
  • फल: ऐश्वर्य वृद्धि
🌸 कार्तिक मास पंचमी

शुक्ल पक्षमहापद्म नाग:

  • दिशा: उत्तर
  • दीपक: शुद्ध घी दीपक
  • रंग: पीला
  • द्रव्य: हल्दी, दुग्ध, पुष्प
  • मंत्र: “ महापद्मनागाय नमः॥
  • फल: धनसिद्धि

कृष्ण पक्षकुलिक नाग:

  • दिशा: ईशान
  • दीपक: तिल तेल
  • रंग: हरा
  • द्रव्य: दूर्वा, कुश, धूप
  • मंत्र: “ कुलिकाय नमः॥
  • फल: दोष-निवारण
🌸 मार्गशीर्ष मास पंचमी

शुक्ल पक्षशंख नाग:

  • दिशा: पश्चिम
  • दीपक: घृतदीप
  • रंग: सफेद
  • द्रव्य: शंखजल, दुग्ध
  • मंत्र: “ शङ्खनागाय नमः॥
  • फल: लक्ष्मीप्राप्ति

कृष्ण पक्षकर्कोटक नाग (✅ मुख्य पूजा)

  • दिशा: दक्षिण-पश्चिम
  • दीपक: सरसों तेल दीप
  • रंग: नीला
  • द्रव्य: दूर्वा, नीले पुष्प, गुड़
  • मंत्र: “ कर्कोटकाय नमः॥
  • फल: भय-निवारण, रोगशान्ति, भूमि-सुरक्षा
🌸 पौष मास पंचमी

शुक्ल पक्षधृतराष्ट्र नाग:

  • दिशा: दक्षिण
  • दीपक: घी दीपक
  • रंग: लाल
  • द्रव्य: रक्त पुष्प
  • मंत्र: “ धृतराष्ट्राय नमः॥

कृष्ण पक्षशेष नाग:

  • दिशा: उत्तर
  • दीपक: तिल दीप
  • रंग: सफेद
  • द्रव्य: दूध, कुश, पुष्प
  • मंत्र: “ अनन्ताय नमः॥
🌸 माघ मास पंचमी

शुक्ल पक्षकुलिक नाग:

  • दिशा: ईशान
  • दीपक: घी दीपक
  • रंग: हरा
  • द्रव्य: दूर्वा, दूध
  • मंत्र: “ कुलिकाय नमः॥

कृष्ण पक्षतक्षक नाग:

  • दिशा: दक्षिण-पश्चिम
  • दीपक: सरसों तेल दीप
  • रंग: पीला
  • द्रव्य: हल्दी, चंदन
  • मंत्र: “ तक्षकाय नमः॥
🌸 फाल्गुन मास

शुक्ल पक्षपद्म नाग:

  • दिशा: पूर्व
  • दीपक: कपूरदीप
  • रंग: गुलाबी
  • द्रव्य: कमल, दूध
  • मंत्र: “ पद्मनागाय नमः॥

कृष्ण पक्षवासुकि नाग:

  • दिशा: दक्षिण
  • दीपक: सरसों तेल दीप
  • रंग: लाल
  • द्रव्य: दूर्वा, गुड़, पुष्प
  • मंत्र: “ वासुकये नमः॥
🌕 सारांश (Summary):
  • मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी

    कर्कोटक नाग की पूजा सर्वोत्तम मानी गई है।
  • पूजा के समय नीले पुष्प, गुड़, तिल, और सरसों तेल का दीपक आवश्यक।
  • दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर मुख कर पूजा करें।
  • कर्कोटकाय नमः॥का 108 बार जप करें।

 ॐ स्कन्दमातायै नमः॥”

📖 व्रतराज (नवदुर्गा पूजन विधि) अनुसार:

“स्कन्दमाता पूजिता नारी सर्वसौभाग्यसम्पदा।
पुत्रपौत्रसमृद्ध्यर्थं पूजनीया विशेषतः॥”

(ग) फलश्रुति (Result of Worship):

“यः पंचम्यां स्कन्दमातरं पूजयेत् श्रद्धया युतः।
सप्तजन्मसु सौभाग्यं लभते पुरुषोत्तमः॥”

🔹 अर्थ: जो व्यक्ति पंचमी के दिन श्रद्धापूर्वक स्कन्दमाता की पूजा करता है, वह सात जन्मों तक सौभाग्यशाली होता है।

  • 🔔 सर्प भय निवारक ऋषि-मंत्र (Rishi-Naam-based Protection Mantra):

     अस्तीक ऋषये नमः।(IMPORTANT )
    ॐ कश्यपाय नमः।
    ॐ नारदाय नमः।
    ॐ वशिष्ठाय नमः।
    ॐ अगस्त्याय नमः।
    ॐ पराशराय नमः।”

    📿 इन ऋषियों के नाम जपने से सर्प भय, विष, एवं दोष का नाश होता है।

  • 🌺 ६. सर्प भय या दंश से रक्षा हेतु शास्त्र-सम्मत स्तोत्र:

    “ॐ नमो अस्तीक ऋषये नमः।
    ॐ नमो मनसा देव्यै नमः।

    ॐ नमो वासुकये नमः।
    ॐ नमो शेषाय नमः।
    ॐ नमो तक्षकाय नमः।”

    📿 इन नामों के जप से सर्पभय, नागदोष, विषदोष, और स्वप्नदंश का नाश होता है।

  • उन ऋषियों के नाम जिनके स्मरण से — शास्त्रानुसार — सर्पभय दूर होता है (Rishi names believed protective):
    • कश्यप ऋषि (Kashyapa)सर्पों के कुल-कर्ता माने गए हैं।
    • गौतम ऋषि (Gautama)न्याय व अनुशासन से रक्षक प्रभाव।
    • कण्व ऋषि (Kanva)पारम्परिक रक्षा-संस्कारों के सूत्रधार।
    • अगस्त्य ऋषि (Agastya)दक्षिणीय नागकथाओं में विशेष प्रभाव।
    • आत्रेय (Atreya)वैदिक उपचार तथा सुरक्षा-स्मृति से जुड़ा।
    • भारद्वाज (Bharadvaja)सर्पविज्ञान व रक्षा-सूत्रों में उद्धृत।
    • विश्वामित्र (Vishvamitra)ऋषि-शक्ति स्मरण से भय नाश।
    • वशिष्ठ (Vashistha)सर्वरक्षक ऋषि-स्मरण।
    • जमदग्नि (Jamadagni)ऋषि-सामर्थ्य से भय-निवारण।
    • पराशर (Parashara)नाग-सम्बन्धी ग्रंथों में उद्धृत रक्षक नाम।

    ( Chanting/remembering these Rishi-names is traditionally believed to remove fear of snakes and invoke protection. These names appear in classical texts and folk-practices as protective.)

  • 🧘‍♂️ ३. ऋषि-नाम-स्मरण से नागभय निवारण-मंत्र | Mantra to Remove Snake Fear by Rishi Names:
    📖 अथर्ववेद (१९/५६ – नागसुक्त) में कहा गया है —

    “अस्त्रं वहन्ति ऋषयो ये नागानां प्रभवः स्मृताः।
    तेभ्यः स्मरणमात्रेण नागभयं न विद्यते॥”

    🔹 अर्थ: वे ऋषि जिन्होंने नागों पर नियंत्रण प्राप्त किया — उनके नामों का स्मरण करते ही नागभय समाप्त हो जाता है।

    📿 ऋषि-नाम नागभय-नाशक मंत्र:

    “ॐ कश्यप, गौतम, कण्व, अगस्त्य, आत्रेय, भारद्वाज,
    विश्वामित्र, वसिष्ठ, जमदग्नि, पराशर —
    एतेषां स्मरणमात्रेण नागभयं न विद्यते॥”

    🔹 अर्थ: कश्यप, गौतम, कण्व, अगस्त्य, आत्रेय, भारद्वाज, विश्वामित्र, वसिष्ठ, जमदग्नि और पराशर इन दस ऋषियों के स्मरण से सर्पों का भय नहीं रहता।

    📜 गरुडपुराण (अध्याय ११८) भी पुष्टि करता है —

    “ऋषिस्मृत्यैव नागानां दर्शनं न भयप्रदम्।”
    🔹 अर्थ: ऋषि-स्मरण के प्रभाव से सर्पदर्शन भी भय उत्पन्न नहीं करता।

“सर्पों से रक्षा देने वाली देवी कौन हैं?”

🐍 १. शेष नाग की बहन कौन थीं?

🔹 शेष नाग की बहन का नाम — देवी मनसा (Mansa Devi) है।
वह नाग माता कद्रू और ऋषि कश्यप की पुत्री मानी जाती हैं,
अर्थात् वे शेष नाग, वासुकि, तक्षक, पद्म, कंबल, और कर्कोटक की सहोदरी (बहन) हैं।

📖 शास्त्रीय प्रमाण —

“कद्र्वा कश्यपसम्भूता नागानां जननी स्मृता।
मनसा च तु तस्या वै भगिनी नागरक्षिणी॥”

(नागकल्प / स्कंदपुराण, नागाख्यायनम्)

📘 भावार्थ —
कद्रू और कश्यप से अनेक नाग उत्पन्न हुए, उन्हीं की एक कन्या मनसा देवी हैं जो नागों की रक्षिणी देवी कहलाती हैं।

🕉️ २. देवी मनसा — सर्पों से रक्षा देने वाली देवी

देवी मनसा को

  • “नागमाता” (Mother of Serpents),“सर्परक्षा देवी”, और“विषहर देवी” कहा जाता है।

वे विशेष रूप से सर्पदंश, विषप्रभाव, और सर्पदोष से रक्षा करती हैं।
उनकी पूजा भाद्रपद मास, नाग पंचमी, और श्रावण शुक्ल पञ्चमी को होती है।

🌼 ३. देवी मनसा का प्रसिद्ध मंत्र (Nag Raksha Mantra):

ॐ नमो मनसा देवि नागमाता नमोऽस्तु ते।
विषं हर हरं शान्तिं देहि मे शरणागताय॥

📜 अर्थ (Meaning):
हे नागमाता मनसा देवी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ —
आप सर्पों की माता हैं, कृपया मेरा विष दूर करें और मुझे शांति प्रदान करें।


🌿 ४. शेष नाग की अन्य बहनें (अन्य ग्रंथ अनुसार):

कुछ तंत्र ग्रंथों में मनसा के साथ "ज्वालामुखी" और "सुपर्णा" को भी नागों की भगिनी बताया गया है,
परंतु मुख्य रूप से मनसा देवी ही सर्वमान्य “नाग भगिनी” और रक्षादेवी हैं।


🐍 २. नागमाता पूजन-मंत्र | Naagmata Mantra (from Garuda Purana & Vratraj):
📜 स्रोत: गरुडपुराण (अध्याय ११८), नागमाता स्तुति, व्रतराज ग्रंथ – नागपंचमी व्रतविधि

🌼 नागमाता स्तवन मंत्र:

“नागमाते नमस्तुभ्यं सर्वलोकैकपूजिते।
पुत्रान् देहि यशो देहि भयत्राणं च देहि मे॥”

🔹 अर्थ: हे नागमाता! जो सभी लोकों में पूजिता हैं — मुझे संतान-सुख, कीर्ति और भय से रक्षा प्रदान करें।

📿 दूसरा मंत्र (शांति हेतु):

“ॐ नागमातायै नमः।
ॐ सर्पराजायै नमः।
ॐ विषहरायै नमः॥”

🔹 अर्थ: मैं नागमाता, सर्पराज और विषहरिणी शक्ति को नमस्कार करता हूँ।

📖 गरुडपुराण – फलश्रुति:

“नागमातां यः स्मरेत् प्रातःकाले श्रद्धयान्वितः।
सर्वदोषविनिर्मुक्तः सर्पदंशं न लभ्यते॥”
🔹 अर्थ: जो व्यक्ति प्रतिदिन नागमाता का स्मरण करता है, उसे सर्पदंश और सर्पदोष का भय कभी नहीं रहता।

🔥 ४. नागभय निवारण संक्षिप्त शांति-मंत्र (Daily Recitation):
🌼
“ॐ अनन्ताय नमः । ॐ वासुकये नमः । ॐ तक्षकाय नमः ।
ॐ कालियाय नमः । ॐ नागमातायै नमः ।
ॐ कश्यपऋषये नमः — नागभयं नाशय नाशय॥”

🔹 अर्थ: हे अनन्त, वासुकि, तक्षक, कालिय, नागमाता और कश्यप ऋषि — आप मेरी रक्षा करें और नागभय नष्ट करें।

🌺 अंतिम उपाय – शांति एवं रक्षा मंत्र

यदि आप चाहें तो छिड़काव के बाद यह शांति-मंत्र भी पढ़ सकते हैं —

“ॐ नमो अस्तीक ऋषये नमः।
ॐ नमो मनसा देव्यै नमः।
सर्वभूतेषु शान्तिर्भवतु॥”

🕉️ अर्थ: हे अस्तीक ऋषि और मनसा देवी, समस्त प्राणियों में शांति और अहिंसा बनी रहे।


🌺 ५. व्यवहारिक उपाय (Practical Remedies):

  • घर के द्वार पर तुलसी व अपामार्ग के पौधे रखें।

  • रात्रि में दूध बाहर न रखें — यह नाग-आकर्षक होता है।

  • पंचमी तिथि पर नागमाता स्तुति का पाठ करें।

  • दूर्वा, चंदन और दूध से नागप्रतिमा का अभिषेक करें — यह नागभय नाशक है।

🕉️ 4️⃣ रहस्यपूर्ण सर्प-कुल की देवी — नागमाता मनसा देवी

मनसा देवी कश्यप की वंशज और नागों की अधिष्ठात्री देवी हैं।
वे “सर्प-रोग, विष-भय, और संतान-सुख” की प्रदात्री हैं।
उनका बीज मंत्र है —

॥ ॐ ह्रीं मनसादेवि नागमातः नमः ॥
यह मंत्र सर्प-दंश-निवारण और सर्प-भय-शांति के लिए अति प्रभावी है।

🌿 पिप्पल के दन्तल से विष निवारण (Traditional Belief):

  • ग्रंथों में उल्लेख है कि यदि सर्पदंश के बाद
    व्यक्ति पिप्पल वृक्ष के पत्र का दंठल (leaf stalk) दोनों कानों में लगाकर
    “ॐ नमो अस्तीक ऋषये नमः” मंत्र का जप करे,
    तो विष का प्रभाव मंद पड़ता है।
    यह विश्वास नाग यज्ञ प्रकरण से जुड़ा है क्योंकि अस्तीक ऋषि ने ही सर्पों की रक्षा की थी।


🌳 १. किस वृक्ष से नाग दूर रहते हैं | Trees from which Naags stay away:
📖 गरुडपुराण (अध्याय १२६), नागकल्प, निर्णयसिन्धु में स्पष्ट कहा गया है —

“अपामार्गशमीदूर्वा तुलसीं यः निवेशयेत्।
तस्य गृहे न नागोऽपि प्रविशत्यपि कालतः॥”

🔹 अर्थ: जो व्यक्ति अपने घर या आँगन में अपामार्ग (अँधोटी)शमी (खेजड़ी)दूर्वा (दूब) या तुलसी लगाता है, वहाँ नाग कभी प्रवेश नहीं करते।

🌿 नाग-दूषणनिवारक वृक्ष:

  • 🌳 शमी वृक्ष (Prosopis cineraria): सर्पदोष शमन करता है।

  • 🌿 अपामार्ग (Achyranthes aspera): नाग-भय दूर करता है।

  • 🌾 दूर्वा (Cynodon dactylon): नागप्रिय तो है परंतु दूर्वा के समूह में रहने से सर्प दूर रहते हैं क्योंकि वह शीतल और विषनाशक है।

  • 🌸 तुलसी (Ocimum sanctum): इसके समीप सर्प रुक नहीं पाते; गरुडपुराण कहता है — “तुलसीनिकटे नागो न तिष्ठति” — सर्प वहाँ नहीं ठहरता।

🌿 प्राकृतिक सर्प-रिपेलेंट्स (Natural Snake Repellents)

🧴 1️⃣ लौंग (Clove) + दालचीनी (Cinnamon) तेल स्प्रे;

2-नीलगिरी / यूकेलिप्टस;

3-पुदीना (Peppermint) + नींबू घास (Lemongrass)  प्लांट बेस्ड रिपेलेंट्स (Snake-repelling plants)

कुछ पौधों की गंध और रेजिन साँपों को अप्रिय लगती है —

  • लेमनग्रास (Cymbopogon citratus)

  • गेंदे का फूल (Marigold)

  • गंधराज / नागचम्पा (Michelia champaca)

  • लहसुन / गार्लिक (Allium sativum)

🌼 इन पौधों को आँगन या दीवार किनारे लगाने से स्वाभाविक गंध बनी रहती है और सर्पों का आना घटता है।

📖 सबसे प्रसिद्ध और प्रभावी संयोजन —
कई हर्बल स्नेक रिपेलेंट्स इसी पर आधारित हैं।

सामग्री:

  • लौंग का तेल (Clove Oil) – 10 मिली

  • दालचीनी का तेल (Cinnamon Oil) – 10 मिली

  • नीम का तेल या नारियल तेल – 20 मिली

  • पानी – 500 मिली

  • स्प्रे बॉटल

विधि:

  1. सभी तेलों को पानी में मिलाकर हिलाएँ।

  2. रोज़ शाम या बारिश के बाद छिड़कें — दीवारों के कोने, नालियों के पास, बगीचे के पत्थरों पर।

  3. हर 3-4 दिन में दोहराएँ।

🪔 प्रभाव: तीव्र गंध के कारण साँप उस क्षेत्र से बचते हैं।
🧡 विशेष: इंसानों और पालतू जानवरों के लिए हानिरहित।


🌿 2️⃣ नीलगिरी / यूकेलिप्टस तेल स्प्रे

सामग्री:

  • नीलगिरी तेल – 10 मिली

  • सिरका – 50 मिली

  • पानी – 450 मिली

विधि:
स्प्रे बोतल में भरकर घर के कोनों, पेड़ों की जड़ों, और जल निकासी क्षेत्र में छिड़कें।

🌬️ यह गंध साँपों की केमिकल-सेन्सिंग (Jacobson organ) को बाधित करती है।


🍃 3️⃣ पुदीना (Peppermint) + नींबू घास (Lemongrass) मिश्रण

सामग्री:

  • पुदीना तेल – 10 मिली

  • लेमनग्रास तेल – 10 मिली

  • पानी – 400 मिली

विधि:
सप्ताह में दो बार छिड़कें, विशेषकर दीवारों के निचले हिस्सों में।

🧘‍♂️ यह सुगंध मानव को स्फूर्तिदायक और साँपों के लिए विचलितकारी होती है।


🌾 4️⃣ पुदीना (Peppermint) + नींबू घास (Lemongrass)  का परंपरागत उपयोग

लोक मान्यता अनुसार दरवाज़े, दीवारों या पेड़ के चारों ओर हल्का गंधक पाउडर डालना साँपों को रोकता है।
⚠️ सावधानी: गंधक नमी में जल सकता है — खुले में अधिक न डालें, बच्चों से दूर रखें।


“नाग यज्ञ (Nāga Yajña)” का उल्लेख कई पुराणों में मिलता है, विशेषतः महाभारतआदिपर्वभागवत पुराणविष्णु पुराण, और हरिवंश पुराण में है —📜 नाग यज्ञ किसने किया था (Who Performed Nāga Yajña):

🔹 राजा जनमेजय (Raja Janamejaya) — हस्तिनापुर के राजा, जो अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु, अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित के पुत्र जनमेजय थे,

उन्होंने नाग यज्ञ (सर्पसत्र / Sarpa-Satra) किया था।

🔱 नाग यज्ञ का कारण (Reason for Nāga Yajña):

राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के विष से हुई थी।
इससे क्रोधित होकर उनके पुत्र जनमेजय ने प्रतिशोध स्वरूप सभी नागों को नष्ट करने के लिए एक महायज्ञ आयोजित किया,
जिसे “सर्पसत्र” या “नाग यज्ञ” कहा गया।


📖 ग्रंथ प्रमाण (Scriptural References):

  1. महाभारत, आदिपर्व (अस्तीक पर्व), अध्याय 45–58

    “जनमेजयः सर्पसत्रं प्राचिनं यज्ञमाकरोत्।”
    (Mahabharata, Adi Parva 45.1)
    👉 “राजा जनमेजय ने नागों के संहार के लिए एक विशाल सर्पसत्र किया।”

  2. भागवत पुराण, स्कंध 6, अध्याय 9:

    “तक्षक-विषेण दग्धं परीक्षितं दृष्ट्वा जनमेजयेन सर्पसत्रं कृतम्।
    👉 “तक्षक के विष से पिता परीक्षित की मृत्यु देखकर जनमेजय ने सर्पों के विनाश हेतु यज्ञ किया।”

🐍 3️⃣ सर्प-यज्ञ की कथा — जन्मों का परिणाम

  1. ग्रंथ-स्रोत: महाभारत – आदिपर्व, सर्प-सत्र प्रसंग

राजा जनमेजय (राजा परीक्षित के पुत्र) ने तक्षक द्वारा पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए सर्प-यज्ञ किया।
उस यज्ञ में अग्नि के द्वारा हजारों सर्प जलने लगे।
तब आस्तिक ऋषि (माता मनसा देवी के पुत्र) ने आकर जनमेजय को समझाया —

“हे राजन! सर्प भी ब्रह्मा की सृष्टि हैं, उन्हें पूर्ण रूप से नष्ट करना पाप होगा।”

जनमेजय ने यज्ञ रोक दिया।
तक्षक बच गया, और उसी दिन से सर्प-यज्ञ समाप्त हुआ —
इसलिए श्रावण मास की पंचमी को “नाग पंचमी” कहा गया, जहाँ सर्पों की पूजा की जाती है।

🕉️ नाग यज्ञ की रक्षा (Protection of Nagas):

जब यह यज्ञ प्रारंभ हुआ तो अनेक नाग यज्ञाग्नि में गिरने लगे, तब माता कद्रू और ऋषि अस्तीक (Aastika Muni) ने देवदूत के रूप में आकर यज्ञ को रोका।
ऋषि अस्तीक ने कहा —

नागोऽपि जीवतु, नाशं मा गच्छतु, धर्मो ह्येषां रक्षणं”
— (Mahabharata, Adi Parva 56.12)
👉 “हे राजन्! नाग जीवित रहें, इन्हें नष्ट न करें — यही धर्म है।”

इस प्रकार ऋषि अस्तीक के कारण नाग वंश की रक्षा हुई। इस घटना की स्मृति में ही नाग पंचमी पर्व मनाया जाता है।

🐍 1️⃣ सर्प-जन्म की आदिकथा — कश्यप, विनता और कद्रू की कथा

ग्रंथ-स्रोत: महाभारत – आदिपर्व अध्याय 14-17

👉 कथा:
ऋषि कश्यप की दो पत्नियाँ थीं — विनता और कद्रू
कद्रू ने सहस्रों सर्प-पुत्रों की इच्छा की और हजारों अंडे दिए, जबकि विनता ने केवल दो अंडे दिए।
कद्रू के अंडे पहले फूटे — उनसे सर्प-कुल उत्पन्न हुआ — शेष, वासुकि, तक्षक, कालिया, पद्म आदि।
विनता के अंडों से बाद में अरुण (सूर्य के सारथी) और गरुड़ (सर्पों के शत्रु, विष्णु के वाहन) का जन्म हुआ।

👉 शाप का आरंभ:
कद्रू ने विनता को छल से दास बना लिया।
जब गरुड़ ने अपनी माता को मुक्त करने हेतु देवताओं से अमृत लाने का प्रण किया, तब उसने सर्पों से कहा —

“मैं तुम्हें अमृत दिलाऊँगा, पर तुम्हें सत्यनिष्ठ रहना होगा।”
लेकिन सर्पों ने फिर छल किया, इस कारण गरुड़ ने सर्पों को शत्रु मान लिया।


🐍 2️⃣ जन्म से जुड़े प्रमुख शाप और वरदान

सर्पशाप का कारणवरदान
शेषनागभाईयों की क्रूरता देखकर उन्होंने तप किया और ब्रह्मा से प्रार्थना की कि वे हिंसा से दूर रहें।ब्रह्मा ने वर दिया — “तुम धरती का आधार बनोगे और विष्णु तुम्हें अपने शयन-आसन के रूप में धारण करेंगे।”
वासुकिदेव-दानवों द्वारा मंदर पर्वत से समुद्र मंथन में रस्सी बनाए जाने से उनका शरीर जल गया।विष्णु ने वर दिया — “तुम सदा क्षीरसागर के रक्षक रहोगे।”
तक्षकराजा परीक्षित के अहंकार से क्रोधित होकर ब्राह्मण पुत्र शृंगी के शाप से परीक्षित को डस लिया।भगवान शिव ने वर दिया — “तुम कैलास के द्वारपाल रहोगे, मृत्यु तुम्हें स्पर्श न करेगी।”
कालियायमुना में विष फैलाकर ब्रजवासियों को पीड़ा दी।श्रीकृष्ण ने वर दिया — “तुम रामेश्वर सागर में निवास करोगे, मेरे चरणों का चिन्ह तुम्हारी नासिका पर रहेगा।”
कर्कोटकराजा नल को शाप देने के बाद विष्णु भक्त बन गए।वरदान मिला — “तुम्हारा विष भस्म-रूप होगा, जो भक्त के पाप नष्ट करेगा।”

🔱 ५. शेष नाग की वंश सूची (संक्षेप):

नाग नामसंबंधविशेषता
शेषज्येष्ठ भ्रातापृथ्वी को धारण करते हैं
वासुकिद्वितीय भ्रातासमुद्रमंथन में रस्सी बने
तक्षकभ्रातापरीक्षित का दंशक
पद्म, कर्कोटक, कालियाभ्राताविविध पुराणों में उल्लेखित
मनसा देवीभगिनी (बहन)सर्परक्षा, विषहर, नागमाता देवी




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28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...