नवमी -देवी चंडिका मन्त्र,कथा, प्रभाव :किस नाम एवं राशी वाले करे.
( 23 अप्रेल एवं 10 मई –वैशाख माह की दोनों नवमी )
चंडी पूजा का विवरण देवी भागवत के साथ-साथ मार्कंडेय पुराण
में है. जिसमें सर्वाधिक प्रचलित प्रसिद्ध दुर्गा सप्तशती
है। यह चंडिका की मधु और कैटभ, महिषासुर, धूम्रलोचन, चंड और
मुंड, रक्तबीज , शुंभ और निशुंभ के रूप में असुरी
निकृष्ट शक्ति लड़ने और नष्ट करने का
वर्णन है.वेद संदर्भित,नारी शक्ति पूज्य कर्म संज्ञानक भी है .
चंडिका देवी ? शास्त्रों
के अनुसार , 18वीं शक्ति पीठ मंगलगौरी का उद्गमन देवी सती
के,
वक्ष (अंग) गिरने से
हुआ था.आद्य शक्ति गौरी मंगल स्वरूप हैं।
गौरी का यह मंगलकारी स्वरूप सिंदूरी आभा लिए हुए है। मंगल चंडिका के स्वरूप का संबंध मंगल ग्रह व नारी
के अखंड सौभाग्य से है।कल्याण की देवी मंगला गौरी का शुभ ही करती हैं.
51 देवी शक्ति
पीठ,जिस स्थान पर शिव प्रिय सती के शारीर के गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाये .
कथा- देवी पुराण
ब्रह्मा के पुत्र राजा प्रजापति दक्ष की बेटी , जिसका नाम सती
था।
राजकुमारी सती, शिव के अद्भुत स्वरूप एवं महिमा की कथा सुनते 2 बड़ी हुई,उसे शिव से लगाव होगया . सूझ-बूझ विकसित
हुई तो ज्ञात हुआ कि, जिन भगवान शिव में उनका हृदय और आत्मा निवास करती है,वे कोई और
नहीं कैलाश पर्वत शिखा क्षेत्र के तपस्वी ही हें ।
विवाह वार्ता शुरू हुई, यह समाचार जान कर सती ने पिता का महल
छोड़ दिया.जंगलों में गहन तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया तो कैलाश के तपस्वी शिव प्रकट हुए। अन्तत:,पिता की अनिच्छा के चलते शिव-सती
परिणय सूत्र में बंध गए .
दक्ष ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया . सभी
देवताओं और ऋषियों को आमंत्रित किया . राजा दक्ष शिव जी को ,अपने स्तर के योग्य
नहीं मानते थे. बेटी के योग्य बिलकुल नहीं
अपने दामाद शिव को
अपमानित करने के लिए ,यज्ञ आयोजन में आमंत्रित नहीं किया । अपने पिता के निर्णय एवं
कृत्य से आहत ,क्रुद्ध,सती मायके शिव
गणों के साथ पहुँची.
सती ने आवेश एवं शिकायत
भरे स्वर में , अपने पिता दक्ष से , प्राण
प्रिय पति को आमंत्रित न करने का कारण पूछा । पति शिव के
संदर्भ में , पिता का अपमान
जनक विचार एवं निर्णय ज्ञात होने पर ,सती ने स्वयं को बहुत अपमानित
माना एवं इस अपमान की क्रोध ज्वाला को सहन नहीं कर सकी .
सती ने स्वयं ,यज्ञ की उत्ताल दहकती- धधकती ज्वाला की जिह्वा
मुख में जा बैठी,समर्पित कर दिया स्वयं को .
शिव के गण
परिचारकों ने,शिव जी को,अबिलम्ब सती देवी के साथ दक्ष के व्यवहार एवं सती के यज्ञ कुंड
में अपनी शारीर की आहुति के ,पूर्ण कृत्य
का घटना क्रम से अवगत कराया , तो शिव ने अत्यंत क्रोध में वीरभद्र का सृजन कर श्वसुर
राजा दक्ष को दंड देने हेतु भेजा .
वीरभद्र ने यज्ञ विनिष्ट
कर ,दक्ष की हत्या कर रहे थे ।
शिव रौद्र रूप में ,सती के वियोग में ,यज्ञ स्थल पा जा पहुंचे. शिव ने सती के शरीर को कंधे पर रख लिया और विनाश
कारी तांडव का नृत्य शुरू कर दिया।
देव-ऋषियों की प्रार्थना पर , ब्रह्मांड को बचाने और शिव जी
क्रोध की विनाशक मन: स्थिति से बाहर लाने के लिए, भगवान विष्णु
ने सुदर्शन चक्र से , सती के निर्जीव ,मृत शरीर को 51 टुकड़ों में
काट दिया। ये टुकड़े जिन स्थानों पर पृथ्वी पर गिरे वे स्थान ही 51 शक्ति पीठ कहलाये ।
-51 स्थानों को पवित्र भूमि और तीर्थ मान कर
देवी की पूजा की जाती है। देवी पुराण में इनका वर्णन किया गया हैं। हिन्दू इसे ही
अपनी आस्था का आधार बनाते हैं।
देवी के दो स्वरूप-
अ-दया,कृपा की देवी- उमा, गौरी, पार्वती, अथवा हैमवती,शताक्षी,शाकम्भरी देवी,अन्नपूर्णा.
ब-उग्र स्वरूप- दुर्गा, काली और श्यामा, चण्डी अथवा
चण्डिका, भैरवी, छिन्नमस्ता
आदि .
सिद्ध देवी चंडिका मंदिर-
- जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ क्षेत्र में, पोद्दार की घाटी में है ।
-महोबा में
बड़ी चंडिका देवी मंदिर |
साप्ताहिक
पूजा दिन- मंगलवार .
पाक्षिक-
नवमी तिथि .
1 – दो दिन पूजा और एक वर्ष तक नवमी के अनिष्ट दोष से मुक्ति
या अनिष्ट सुरक्षा |
2-र.त.ख,ज,ग, जिनका नाम का पहला अक्षर हो उनके लिए
विशेष कष्ट निवारक चंडिका नवमी पूजा है |
3 वृष,कुम्भ,मकर,तुला एवं कन्या,मिथुन लग्न के लिए अवश्यक उपयोगी .
4-लाल वस्त्र पहन कर ,लाल पुष्प से पूजा करे .
सिंदूर देवी को अर्पण करे .
5-इस पूजा को करने से –तेज,दिव्यता,गौर वर्ण एवं एश्वर्य
मिलता है .
मन्त्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीम सर्व पूज्ये देवी
मंगल चण्डिके ऐं क्रूम फट् स्वाहा ( देवी भागवत)
देवी भागवत् पूराण का - मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं कलीम सर्व पुज्ये देवी मंगल
चण्डिके हूँ हूँ फट् स्वाहा ।।
-भोग या हवन-
लावा
मंगल चंडिका स्त्रोत-कुंडली के मंगल दोष का नाशक,विवाह
बाधा,जीवन साथी
एवं स्वयं की आकस्मिक म्रत्यु से रक्षा,क्रोध पर नियंत्रण
|
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।। श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम् ।।
ब्रह्मवैवर्ते पूराण-
ध्यान
=====
"ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्व पूज्ये देवी मंगल चण्डिके .
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्य एक विन्शाक्षरो
मनुः ..
देवीं षोडश वर्षीयां शश्वत सुस्थिर यौवनाम् .
सर्वरूप गुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम् ..
श्वेत चम्पक वर्णाभां चन्द्र कोटि समप्रभाम् .
वन्हि शुद्धांशुक आधानां रत्न भूषण भूषिताम् ..
बिभ्रतीं कबरी भारं मल्लिका माल्य भूषितम् .
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्म निभाननाम् ..
ईषद्धास्य प्रसन्नास्यां सुनील उल्पल लोचनाम् .
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्व संपदाम् ..
संसार सागरे घोरे पोत रुपां वरां भजे.
********************************** ..
देव्याश्च ध्यानमि इत्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने .
प्रयतः संकट ग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः ..
शंकर उवाच
-*****
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मंगल चण्डिके .
हारिके विपदां राशेर्हर्ष मंगल कारिके ..
हर्ष मंगल दक्षे च हर्ष मंगल चण्डिके .
शुभे मंगल दक्षे च शुभ मंगल चण्डिके ..
मंगले मंगलार्हे च सर्व मंगल मंगले .
सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये .
प्रभाव एवं फल-
पूज्ये मंगल भूपस्य मनुवंशस्य संततम् ..
मंगल अधिष्टातृदेवि मंगलानां च मंगले .
संसार मंगलाधारे मोक्ष मंगल दायिनि ..
सारे च मंगलाधारे पारे च सर्व कर्मणाम् .
प्रति मंगलवारे च पूज्ये च मंगल प्रदे ..
स्तोत्रेण अनेन शम्भुश्च स्तुत्वा मंगल चण्डिकाम् .
प्रति मंगलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः ..
देव्याश्च मंगल स्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः .
तन्मगलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तद मंगलम् ..
.. इति श्री ब्रह्मवैवर्ते मंगलचण्डिका स्तोत्रं संपूर्ण
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