शाश्वत शिव कृपा-
“रुद्राष्टकम (शुद्ध पढे ,कृपा पाये )
- रामचरित मानस तुलसीदास विरचित उत्तरकाण्ड- “रुद्राष्टकम” श्लोक संख्या 107(ख)प्रस्तुत प्रार्थना अजन्मा शिव के ११ वे रूद्र “ईशान “स्वरूप के अवतार की है |
- *ईशान अवतार की पूजा के लिए दीपक वर्तिका पीले रंग की एवं पीले वस्त्र धारण कर प्रार्थना उपयुक्त होगी |
3-प्रार्थना समय- संध्या सूर्यास्त के 24 मिंट पूर्व से 24 मिनट पश्चात तक | अर्धरात्रि ,महानिशीथकाल शीघ्र फलदायी |
१-नमामि ईशम (नमामीशम) ईशान निर्वाण रूपं।विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशम आकाश वासं भजेहं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशम आकाश वासं भजेहं।
-हे मोक्ष स्वरूपी ईश्वर ” ईशान “ आपको मेरा प्रणाम |सांसारिक माया आप स्वयं है|माया जनित बन्धनों से मुक्त है |कल्पना रहित (कामना ,विचार शून्य )भेदभाव रहित(निरीहों के संरक्षक ),सर्वत्र (आकाश वत) हैं,आकाश वासी ,आकाश ही वस्त्र (दिकम्बर)है आपका ,आपके इस ही रूप का मै स्मरण करता हूँ |
२-निराकार ओम कार मूलं तुरीयं।गिराज्ञान गोतीतम ईशम गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं।गुणागार संसार पारं नतोहं।
करालं महाकाल कालं कृपालं।गुणागार संसार पारं नतोहं।
-आपका कोई स्वरूप नहीं है | आप“ॐ” के जनक हैं ,तीन गुणों (सत्व,रज,तम )
से परे ,वाणी ज्ञान एवं सर्व इन्द्रियों से परे , आप ही रूद्र “गिरीश” जो पर्वत राज
कैलाश (हिमालय )वासी हैं |विकराल,कालजयी,(काल से परे),दयावान ,सर्व गुणों के उत्सर्जक(जनक) ,संसारिक बन्धनों से मुक्त ,ऐसे परमेश्वर को मै नमन करता हूँ ३-तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं ।.मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं।
स्फुरंमौली कल्लोलीनि चार गंगा।लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा।
-आप तुषार (हिमकण,शबनम-हवा में मिले/उडने वाले जल के ठोस बिंदु(हिम /बर्फ कण) जो जमकर पृथ्वी पर गिरते हैं)के जेसे कोमल एवं गौर वर्ण एवं गंभीर है |करोडो कामदेव जेसी सौन्दर्यशालिनी प्रभा युक्त हैं |आपकी जटाओं में गंगा जी स्वछन्द विहार कर रही हैं ,मस्तक पर द्वितियाका चन्द्र(सर्व सौन्दर्यशाली शाली मनोहारी ) विराजित है , और गले में सर्प राज लिपटे हुए है |
४-चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं।प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं।
मृगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं।प्रियम शंकरम् सर्व नाथं भजामि।
-आपके कानो के कुंडल हिल रहे हैं,घनी विशाल भोहें ,बड़ी बड़ी आंखे ,मंद हास्य स्मित मुखमंडल ,विषपायी आपका गला नीली प्रभा युक्त और आप कृपालु हैं | सिंह के चर्मका वस्त्र और मुंडो की माला (कालजयी ,मृत्युजयी ) धारित , सर्व प्रिय एवं सर्वेश्वर्य(लोकप्रिय ,सबके हितचिन्तक,कल्याण को तत्पर,सर्व सामर्थ्यवान)आपके शंकर स्वरूपका नाम भजता (आन्नदमयी ,रसभरी,प्रेम विभोर भाव से सेवा, प्रार्थना,स्तुति,स्मरण,गुणगान,लीन,जप,दोहराना,रटना,पुनरावृत्ति, आत्मसात ,अंगीकृत,चिंतन,)करता हूँ |
५-प्रचंडम प्रकृष्टम प्रगल्भम परेशं।अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम।
त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम।भजेहम भवानी पतिम भावगम्यं।
-परम उग्र (प्रतापी,रौद्र,)परम तेजस्वी, परमेश्वर,अखंड ,अजन्मा,करोड़ो
आदित्य(सूर्य,प्रभाकर) सद्रश्य प्रभावान,तीन प्रकार(देह,देव,भोतिक), के दुखो
को दूर करने में सक्षम, त्रिशूलधारी एवं संसार की माता पार्वती के पति
जो भाव (प्रेम,श्रद्धा,मनके विचार मात्र )से प्रसन्न हो जाते है उन शंकर जी
को (समर्पित भाव से सेवा, प्रार्थना,स्तुति,स्मरण,गुणगान, जप,)भजता हूँ |
६-कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी।सदा सज्ज्नानंद दाता पुरारी।
चिदानंद संदोह मोहापहारी।प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।
चिदानंद संदोह मोहापहारी।प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।
-कलाओं से परे ,कल्याणकारी ,युगांतकारी,सदैव सज्जन वर्ग को
आनद देने वाले(हित चिंतक),आनंदमग्न रहने वाले,संदेह से परे
माया मोह के बन्धनों से उपजे कष्टों को दूर करने /हरने वाले
मन को कष्ट देने वाले कामदेव के शत्रु,हे परमेश्वर प्रसन्न होइए|
७-न यावद उमानाथ पादार विन्दम।भजंतीह लोके परे वा नाराणं।
न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं।प्रसीद प्रभो सर्व भूताधि वासं ||
-जब तक मनुष्य ,पार्वती के पति परमेश्वर की स्तुति /वंदना नहीं करते ,तब तक उनको सुख शांति नहीं मिलती एवं उनके कस्तो ,दुखो का अंत भी नहीं होता है |सम्पूर्ण जगत में व्याप्त (घट घट वासी )सर्व हृदय वासी प्रभु प्रसन्न होइए प्रसन्न होइए|
८- न जानामि योगम जपं नैव पूजां ,नातोहम सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यं |
जरा जन्म दुखोघ तातप्यमानं,प्रभो पाहि आपन नमामीश शम्भो|
-मै योग,जप ,पूजा, की विधि नहीं जानता |मै सर्वदा सदैव शम्भू ,आपको
ही नमन करता हूँ |वृद्ध वस्था एवं जन्म म्रत्यु के कष्टों से मुझ दुखी की
रक्षा करिए /बचाइए |हे रूद्र स्वरूपी शम्भू मैं आपकी वंदना (नमन ) करता हूँ |
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