महाशिवरात्रि पर्व क्या,क्यो,केसे/
- विभिन्न पुराणों में यथा शिव महापुराण, लिंग पुराण ,स्कंद पुराण एवं
वायु पुराण आदि में महाशिवरात्रि के संदर्भ में अनेक प्रकार की जानकारी उपलब्ध हैं।
सर्वमान्य लोकप्रिय जनआस्था :शिव जी
शिव, शंकर, महादेव आदि अनेक नाम से भगवान शिव समग्र भारत में लोकप्रिय हैं।
- तिथि जो सूर्य एवं चंद्रमा की विशेष स्थिति में निर्मित होती है, के देवता निर्धारित है ।
चौदश को शिव पूजन ही क्यों?
चतुर्दशी तिथि के देवता भगवान शिव शंकर जी है अर्थात तिथि विशेष को निर्धारित देवता की पूजा करने से आगामी तिथि तक सुरक्षा या उस तिथि के दोष से सुरक्षा होती है.
शिवरात्रि क्यो? दिन क्यो नही?
इस पूजा एवं व्रत का महत्व रात्रि में मान्य है. इसलिए चतुर्दशी तिथि प्रदोष काल से अर्ध रात्रि तक होना अनिवार्य है .
भगवान शिव भूत,प्रेत आदि अशरीरी शक्ति के स्वामी हैं,जो अंधकार, नीरव, क्षेत्र में सक्रिय होते हैं ।
श्रेष्ठ काल पूजा का-
शिव जी की पूजा का महत्व रात्रि विशेषतः अर्ध रात्रि महानिशीथ काल जो अर्ध रात्रि से 24 मिनट पूर्व से पश्चात तक होता है।श्रेष्ठ है।
-21 तारीख को इस प्रकार के योग हैं.
- रात्रि में व्रत होने के कारण इस को महाशिवरात्रि कहा जाता है .
अर्ध रात्रि को या महा निशिथ काल में मान्य है ।शिवजी का संबंध भूत-प्रेत आदि से इस कारण से उनकी पूजा का विशिष्ट महत्व रात्रिकालीन है।
चतुर्दशी रात्रि क्यो?
स्कंद पुराण के अनुसार रात्रि के समय भूत प्रेत एवं पैशाचिक शक्तियां विचरण करती हैं। वे शिव जी के साथ होती हैं एवं भ्रमण करते हैं ।
महाशिवरात्रि क्यो, कहा गया?
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था।
ईशान संहिता -अर्धरात्रि में शिवलिंग करोड़ो सूर्य के समान देदीप्यमान प्रादुर्भूत हुआ।
इसलिए महा शिवरात्रि कहा गया।
शिव जी की पूजा या व्रत का लाभ?
इस पर्व पर, शिव जी का पूजन करने से समस्त पाप, प्रारब्ध के दोष दूर होते हैं ।
सामान्य जानकारी-
रुद्राक्ष की माला से जप, या रुद्राक्ष धारण कर पूजा करना विशेष महत्व का होता है।
इसमें मस्तक पर त्रिपुंड भस्म (3आड़ी रेखाएं माथे पर खिंच कर )तिलक करना श्रेष्ठ माना गया है ।
*संध्या काल के समय*
स्नान उपरांत ,उत्तर दिशा की ओर मुह कर,रुद्राक्ष धारण कर,
"मम अखिल पॉप क्षय पूर्वक सकल अभीष्ट सिद्धये शिव पूजनम करिष्ये।"
संकल्प करे-
- हाथ में जल। लेकर
"मया कृतान्य अनेकांनि पापानि हर शंकर।
शिव रात्रो ददाम्य अर्ध्यम उमाकांत गृहाण में।" अर्ध्य दे।
प्रार्थना-
"संसार क्लेश दग्धस्य वर्तें अनेन शंकर।
प्रसीद सुमुखो नाथ ज्ञान दॄष्टि प्रदो भव।"
उपलब्ध पत्र,पुष्प अर्पण करें-
बिल्ब,शमी पत्र द्वारा शिव जी का पूजन करना चाहिए । बेर,मूली,गाजर, कोई भी फल ।
अर्थात जो भी सर्व सुलभ वस्तु पदार्थों अर्पण किए जा सकते हैं।
संध्या से सूर्य उदय पूर्व तक 4 बार पूजा होती है। अंतिम पूजा में आरती पुष्प अंजलि करे।
विशेषता-
इस व्रत का पारण , अर्थात व्रत खोलना चतुर्दशी तिथि में ही किया जाता है।
सर्वमान्य लोकप्रिय जनआस्था :शिव जी
शिव, शंकर, महादेव आदि अनेक नाम से भगवान शिव समग्र भारत में लोकप्रिय हैं।
- तिथि जो सूर्य एवं चंद्रमा की विशेष स्थिति में निर्मित होती है, के देवता निर्धारित है ।
चौदश को शिव पूजन ही क्यों?
चतुर्दशी तिथि के देवता भगवान शिव शंकर जी है अर्थात तिथि विशेष को निर्धारित देवता की पूजा करने से आगामी तिथि तक सुरक्षा या उस तिथि के दोष से सुरक्षा होती है.
शिवरात्रि क्यो? दिन क्यो नही?
इस पूजा एवं व्रत का महत्व रात्रि में मान्य है. इसलिए चतुर्दशी तिथि प्रदोष काल से अर्ध रात्रि तक होना अनिवार्य है .
भगवान शिव भूत,प्रेत आदि अशरीरी शक्ति के स्वामी हैं,जो अंधकार, नीरव, क्षेत्र में सक्रिय होते हैं ।
श्रेष्ठ काल पूजा का-
शिव जी की पूजा का महत्व रात्रि विशेषतः अर्ध रात्रि महानिशीथ काल जो अर्ध रात्रि से 24 मिनट पूर्व से पश्चात तक होता है।श्रेष्ठ है।
-21 तारीख को इस प्रकार के योग हैं.
- रात्रि में व्रत होने के कारण इस को महाशिवरात्रि कहा जाता है .
अर्ध रात्रि को या महा निशिथ काल में मान्य है ।शिवजी का संबंध भूत-प्रेत आदि से इस कारण से उनकी पूजा का विशिष्ट महत्व रात्रिकालीन है।
चतुर्दशी रात्रि क्यो?
स्कंद पुराण के अनुसार रात्रि के समय भूत प्रेत एवं पैशाचिक शक्तियां विचरण करती हैं। वे शिव जी के साथ होती हैं एवं भ्रमण करते हैं ।
महाशिवरात्रि क्यो, कहा गया?
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था।
ईशान संहिता -अर्धरात्रि में शिवलिंग करोड़ो सूर्य के समान देदीप्यमान प्रादुर्भूत हुआ।
इसलिए महा शिवरात्रि कहा गया।
शिव जी की पूजा या व्रत का लाभ?
इस पर्व पर, शिव जी का पूजन करने से समस्त पाप, प्रारब्ध के दोष दूर होते हैं ।
सामान्य जानकारी-
रुद्राक्ष की माला से जप, या रुद्राक्ष धारण कर पूजा करना विशेष महत्व का होता है।
इसमें मस्तक पर त्रिपुंड भस्म (3आड़ी रेखाएं माथे पर खिंच कर )तिलक करना श्रेष्ठ माना गया है ।
*संध्या काल के समय*
स्नान उपरांत ,उत्तर दिशा की ओर मुह कर,रुद्राक्ष धारण कर,
"मम अखिल पॉप क्षय पूर्वक सकल अभीष्ट सिद्धये शिव पूजनम करिष्ये।"
संकल्प करे-
- हाथ में जल। लेकर
"मया कृतान्य अनेकांनि पापानि हर शंकर।
शिव रात्रो ददाम्य अर्ध्यम उमाकांत गृहाण में।" अर्ध्य दे।
प्रार्थना-
"संसार क्लेश दग्धस्य वर्तें अनेन शंकर।
प्रसीद सुमुखो नाथ ज्ञान दॄष्टि प्रदो भव।"
उपलब्ध पत्र,पुष्प अर्पण करें-
बिल्ब,शमी पत्र द्वारा शिव जी का पूजन करना चाहिए । बेर,मूली,गाजर, कोई भी फल ।
अर्थात जो भी सर्व सुलभ वस्तु पदार्थों अर्पण किए जा सकते हैं।
संध्या से सूर्य उदय पूर्व तक 4 बार पूजा होती है। अंतिम पूजा में आरती पुष्प अंजलि करे।
विशेषता-
इस व्रत का पारण , अर्थात व्रत खोलना चतुर्दशी तिथि में ही किया जाता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें