सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

16 वी सदी की विवाह पूर्व कुंडली मिलान विधि (अष्टकूट 36 गुण ), 20 वी सदी में भी पूर्ववत प्रचलित ? अकल्पनीय परन्तु यथार्थत: सत्य -


16 वी सदी की विवाह पूर्व कुंडली मिलान विधि (अष्टकूट 36 गुण ), 20 वी सदी में भी पूर्ववत प्रचलित ? अकल्पनीय परन्तु यथार्थत: सत्य -
(ज्योतिषियों का नैतिक दायित्व नवमांश ,जन्म चक्र, लग्न.नक्षत्र चरण से विवाह मिलान कर
ज्योतिष के स्थापित ग्रन्थ ,सिद्दांत के प्रति विशवास बढाए एवं उचित मूल्याङ्कन (16वी सदी के 36 /44 गुण से आगे ..) कर जन सामान्य की अपेक्षा पर जाने अनजाने पानी न फेरे  |)
ज्योतिष ग्रंथों में कुंडली मिलान का विवरण 15 वी सदी से पूर्व  अनुपलब्ध है |संभवत पूर्वकाल में मध्यम या आर्थिक विपन्न या अपने से कम शक्ति वाले (फिर चाहे कोई भी हो )वर्ग की कन्या को सक्षम,शसक्त वर्ग अपनी पसंद की कन्या /स्त्री को ,(एक या अनेक को) जीवन साथी बनाना अपना अधिकार मानता  था | राजा आदि  स्वयंवर को महत्व  देते थे | अनाचार ,दुराचार ,अपहरण अदि से सुरक्षा के लिए बाल विवाह भी इस प्रकार पनपा था |
शिक्षा अभाव , आवागमन सीमित, परिचय सीमित,जाति,कुल, वंश वृद्धि के कारण धीरेधीरे पंडित ,ज्योतिष्यों से पूछ परख प्रारंभ हुई | जन्म नक्षत्र चरण के आधार पर नाम एवं उनके साम्यगुण अनुसार संभावित सुखद जीवन की कल्पना को मूर्त रूप दिया गया |
   अशिक्षित अवस्था में नक्षत्र सीमा होना त्रुटिपूर्ण नहीं था परन्तु आज ज्योतिषियों का अधिकाँश कुंडली,या जन्म चक्र को कुंडली मिलान के लिए उपयोगी मानता है | उत्तर भारत  की तुलना में दक्षिण भारत में नक्षत्र से मिलाने की विधि (8 के स्थान पर 13 विशेषता ) श्रेष्ठ है |      आज 30 प्रतिशत से अधिक जन , इस अष्टकूट की सड़ी –गली प्रचलित विधि के  कारण विवाह पूर्व (विलम्ब) या विवाह पश्चात कष्ट भोगने को बाध्य हैं | जन हित,देश हित, समाज हित और विद्या के प्रति ज्योतिषियों तथा सुविज्ञ शिक्षित वर्ग का भी दायित्व है कि, विवाह मिलान के लिए योग्य ज्योतिषी का ही चयन करे , 36 / 44 गुण की सीमा से बहिर्गमन करे |
*कितने जानते हैं कि 05 नाडी में कौन सी नाडी लागु होगी ? या 27 नक्षत्र से नाडी के स्थान पर नक्षत्र के 108 भागो की नाडी का प्रयोग केसे करे ? समय समय पर अनेक ज्योतिषियों ने इस क्षेत्र में अनुपम अतुलनीय विचार भी प्रस्तुत किये ,परन्तु प्रचलित अपूर्ण ,असार्थक एवं अप्रयोज्य मिलान विधि को बहिष्कृत या परिष्कृत नहीं कर सके |

  *ज्योतिषियों की पैठ घर घर में ,कथावाचक पंडितों कर्मकांडी वर्ग  की तुलना में २० पर्तिशत भी नहीं है | इसलिए  नक्षत्र मिलान विधि का संशोधन.परिवर्धन ,उन्नयन आज भी टेडीखीर है  | मेरा व्यक्तिगत अनुभव बहुत  2 कटु,निराशाजनक रहा | पूर्ण तथ्य ,ग्रंथो का सन्दर्भ देने के बाद भी उच्च शिक्षित वर्ग या उच्चपदस्थ वर्ग का अधिकाँश आज भी अल्पज्ञान वाले पंडितों पर पूर्ण विश्वास /निर्भर है |मेरे पास अनेको राजधानी के प्रकरण हैं ,जब
ज्योतिष ग्रंथो के आधार पर पूर्ण लिखित प्रमाण देने के बाद भी ((प्रचलित अष्टकूट विवाह –मिलान के सन्दर्भ में )
अपने तथाकथित पंडित ज्योतिषी (अल्पज्ञान ) के –“मेरे अनुभव ..मेरे परिवार ..पुश्तैनी ज्ञान ...”जेसे वाक्यों के विरुद्ध , सप्रमाण ज्ञान ग्रन्थ आदि आधरित तथ्यों के अनुरूप निर्णय लेने से समर्थ / सक्षम नहीं हुए ...तो अल्प शिक्षित या माध्यम वर्ग इन पंडितों या अल्पज्ञानी तथाकथित ज्योतिष की दूकान चलाने वालो के विरूद्ध या इनकी उपेक्षा केसे कर सकता है ?
 *36 या 44 गुण की अवधारणा स्थूल,सतही,–
(केवल चन्द्र ग्रह राशि+60 घंटे एवं नक्षत्र +23 घंटे और केवल 8 बिंदु ) पर सूक्ष्म व्यष्टि स्वरूप मुल्यांकन विधि -नक्षत्र चरण (06 घंटे ) नक्षत्र नवमांश (45 मिनट ) , लग्न 02 घंटे लगभग , नक्षत्र वेध, 05 नाड़ी ( नक्षत्र नाडी/ नवमांश नाडी ), राशि दूरी -6-8 , 9-5,02-12 ,3-11,04-10; जन्मचक्र के नवग्रहों की स्थिति, वर- कन्या के परस्पर ग्रह एवं नक्षत्र स्थित दूरी  , (ग्रहों की ही नहीं वरन विभिन्न नक्षत्रो कि दूरी परस्पर ),प्रचिलित नाम को भी महत्त्व देना अपरिहार्य जिससे तात्कालिक मत भिन्नता से सुरक्षा  |
 *36 गुण भ्रमोत्पादक यदि इस प्रकार 35 बिन्दुओ पर चर्चा करे तो 620 गुण होंगे | 36 गुण में अनेक अपवाद शामिल हुए | अनेक नक्षत्र नाडी दोष मुक्त हैं ,किसको कितना ज्ञान ? रेडीरेकनर पंचांगो  या ज्योतिष सॉफ्टवेरों के आधार पर 36 में से 18 उचित |  
  *ब्राह्मणों के लिए नाडी दोष ? मेने कोई एसा पंडित नहीं देखा है नाडी , वर्ण आदि गुण छोड़ कर कुंडली जो वैश्य  की कुंडली मिलाता हो | मेरा मत -कन्या का नक्षत्र यदि ब्राह्मण है तो  नाडी दोष ,महत्वपूर्ण दोष होगा |
*समसप्तक उत्तम मिलान यदि है तो ग्रह मैत्री का महत्व ?
  * इसलिए +60 घंटे की राशी के स्थान पर नवमांश स्वामी की उपेक्षा क्यों की जाए ?ज्योतिष में अनेक गूढ़ता पूर्ण रहस्य हैं |विचार कर समाज को कुछ नया दीजिये |
* श्रेष्ठ ज्ञान जनसामान्य तक पहुँचने से पहले ज्ञाता की परिस्थितयां / आर्थिक बंधन की सीमा
  ज्ञान के पथ में विशाल फन फेलाए बैठ जाती  हैं |
वैवाहिक जीवन में कांटे नहीं बोयें ? लाडली के लिए अनजाने में सुख बाधक कुंडली नहीं ढूढे |  आप आज भी सदियों पुरानी 36 गुण वाली विधि अपनाएँगे ?
 संतान के वैवाहिक सुखद दाम्पत्य जीवन एवं भविष्य के लिए -पालको (माता-पिता) से आग्रह /निवेदन –

क्या आप जानते हैं ,36 गुण वाली  कुंडली मिलान विधि –असंगति /त्रुटी/कमी-
*जिसमे कुंडली देखी ही नहीं जाती |
*जन्म समय चन्द्र ग्रह जिस राशी या नक्षत्र में होता है उसको ही आधार मान जाता है |
*केवल ९ ग्रहों में से एक चंद्रमा ही आपके बच्चे या बच्ची का भविष्य सुखद बना सकता है ?शेष ग्रह कुंडली में निरर्थक होते है ?
*ग्रह मैत्री -एक राशी +60hours ( दो-तीन नक्षत्रों ) का समूह | एक नक्षत्र (+23 hours)?
*क्यों नहीं  नक्षत्र चरण (06hours) स्वामियों की मित्रता अपनाते ? क्यों नहीं नवमांश स्वामी (45मिनट) की मित्रता पर विचार का इस विधि में कोई स्थान नहीं |
 कुंडली के सप्तम भाव – कारक,भावेश,भावस्थ, ग्रह दृष्टी से प्रभावित स्थान/भाव एवं ग्रह , सप्तमेश किस नक्षत्र पर स्थित, मित्र –शत्रु किसके साथ सप्तमेश /कारकेश , उच्च-नीच राशी स्थिति आदि आदि अनेक तथ्यों का कोई स्थान नहीं |
क्या प्यार –दुलार से पोषित  लाडली के जीवन का अधिकाँश जीवन, सडी गली अधकचरी प्रचलित मिलान विधि को भेंट चढ़ा देंगे ?        
   हमारा  विशवास हे कि, 10 मिनट की इस विधि पर विश्वास कर लाडली / लाडले को  दुखो,कष्टों,संत्रास, अपमान ,उपेक्षा के कटघरों में घुट २ कर क्षण-क्षण ,पल प्रतिपल जीने को विवश
करने कीआपका अंतर्मन  की  भावना कदापि नहीं हो सकती और न ही  आपके पास कोई उपयुक्त /पर्याप्त कारण है |
निवेदित/आग्रह- अविलम्ब संपर्क  (बेटे –बेटी के विवाह पूर्व सुखद जीवन के लिए )ज्योतिष के स्थापित सिद्धांतो के परामर्श  - jyotish9999@gmail.com; 9424446706 |
















टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चाहिए । पिता जीवित हो तो, गया श्राद्ध न करें । २. मां की मृत्यु (सौभाग्यवती स्त्री) किसी भी तिथि को हुईं हो , श्राद्ध केवल

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहि

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती है | अवि

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा जाता है   | पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक होता है | पितृ श्राद्ध किस देव से स

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -