तुलसी विवाह –12 – 15 नवम्बर मुहूर्त 17:46-19:31बजे तक Tulsi Vivah from Kartik Shukla Ekadashi to Kartik Purnima
तुलसी विवाह –12 – 15 नवम्बर मुहूर्त 17:46-19:31बजे तक –
संदर्भ ग्रन्थ- विष्णु यामल, पदम पुराण
पद्म पुराण-कार्तिक शुक्ल नवमी को तुलसी विवाह उल्लेखित है.
मनुष्य विवाह की शुरुआत:tulsi vaah uprant-
भगवान विष्णु और वृंदा के बीच की यह कथा केवल देवों और उनके रिश्तों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन की बुनियादी परंपराओं को भी प्रभावित करती है। इस कथा का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जहां देवों के बीच की भक्ति और प्रेम की कहानी आती है, वहीं इसके माध्यम से मनुष्यों को भी जीवन के महत्वपूर्ण संस्कारों और दायित्वों को समझने का अवसर मिलता है।
वैसे ही मनुष्यों में भी विवाह को एक पवित्र और धार्मिक संस्कार माना जाता है।
यह विवाह, जो भगवान विष्णु और तुलसी के बीच हुआ, मनुष्य जीवन में समर्पण, भक्ति और रिश्तों के पवित्रता को दर्शाता है।
इसलिए, भगवान विष्णु और तुलसी का विवाह केवल एक देविक क्रिया नहीं है, बल्कि यह मानव विवाह की परंपरा की ओर भी संकेत करता है, जो प्रेम, विश्वास और साझेदारी के आधार पर चलता है
अन्य ग्रन्थ- कार्तिक शुक्ल एकादशी विष्णु प्रबोधिनी से कार्तिक पूर्णिमा तक तुलसी विवाह फलदायी होता है .दाम्पत्य शांति प्रेम में वृद्धि होती है.
- तुलसी विवाह की समग्री:
- तुलसी का पौधा, शालिग्राम जी, कलश, पानी वाला नारियल, पूजा के लिए लकड़ी की चौकी, लाल रंग का कपड़ा, 16 श्रृंगार सामग्री (चूड़ियां, बिछिया, पायल, सिंदूर, मेहंदी, कागज, कजरा, हार आदि), फल और सब्जियां (आंवला, शकरकंद, सिंघाड़ा, सीताफल, अनार, मूली, अमरूद आदि), हल्दी की गांठ, पूजा सामग्री (कपूर, धूप, आम की लकड़ियां, चंदन आदि)।
तुलसी विवाह -विधि:
- व्रत और आहुति: देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह करने वाले व्यक्तियों को कन्यादान करना होता है और व्रत अवश्य करना चाहिए।
- समूह का आयोजन: पुरुष वर्ग शालिग्राम की तरफ और महिलाएं तुलसी माता की तरफ इकट्ठा होती हैं।
- चौक सजाना: शाम के समय दोनों पक्ष विवाह के लिए तैयार होकर एकत्रित होते हैं। सबसे पहले घर के आंगन में चौक सजाते हैं, फिर रंगोली बनाकर उस पर चौकी स्थापित की जाती है।
- तुलसी माता का श्रृंगार: तुलसी के पौधे को बीच में रखें और उन्हें लाल रंग की चुनरी, साड़ी या लहंगा पहनाकर श्रृंगार करें। उन्हें चूड़ियां और अन्य श्रृंगार सामग्री पहनाएं।
- मंडप और शालिग्राम की स्थापना: तुलसी के आसपास गन्ने से मंडप बनाएं और चौकी पर शालिग्राम को स्थापित करें। फिर उनका श्रृंगार करें।
- कलश स्थापना: कलश में पानी भरकर उसमें गंगाजल की कुछ बूँदें डालें। फिर आम के 5 पत्ते रखें और नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश पर रखें।
- शालिग्राम और तुलसी माता की पूजा: शालिग्राम को तुलसी के दाएं और कलश को बाएं रखें। फिर घी का दीपक जलाकर "ॐ श्री तुलस्यै नम:" मंत्र का जप करें। शालिग्राम और तुलसी पर गंगाजल छिड़कें।
- तिलक और फूल अर्पण: शालिग्राम पर दूध और चंदन मिलाकर तिलक करें और तुलसी माता को रोली से तिलक करें। फिर फूल और अन्य पूजा सामग्री अर्पित करें।
- परिक्रमा: पुरुष शालिग्राम जी को अपनी गोद में उठाकर, और महिलाएं माता तुलसी को उठाकर 7 बार परिक्रमा कराएं। इस दौरान सभी लोग मंगल गीत गाएं और विवाह मंत्रों का उच्चारण करें।
- भोग और आरती: अंत में दोनों को खीर और पूड़ी का भोग लगाएं। फिर तुलसी माता और शालिग्राम जी की आरती उतारें। अंत में प्रसाद वितरित करें।
वृंदा और भगवान विष्णु के बीच कथा:
यह कथा भगवान विष्णु और उनकी भक्त वृंदा के बीच के एक महत्वपूर्ण संवाद और उनके रिश्तों को दर्शाती है।
वृंदा - भगवान विष्णु जी की परम भक्त:
वृंदा भगवान विष्णु जी की परम भक्त थीं। उनका विवाह राक्षस कुल के दानव राज जलंधर से हुआ था, जो समुद्र से उत्पन्न हुआ था। यह कथा भगवान विष्णु और उनकी भक्त वृंदा से जुड़ी हुई है, जो उनके पराक्रम और भक्ति का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करती है।
जलंधर का वध:
देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और जलंधर से मुक्ति पाने का उपाय पूछा। भगवान विष्णु ने निर्णय लिया कि वृंदा के सतीत्व को नष्ट कर दिया जाए, क्योंकि उनकी पतिव्रता धर्म के कारण जलंधर की शक्ति मजबूत थी।
भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण किया और वृंदा को छुआ, जिससे वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया और जलंधर की शक्ति कमजोर हो गई। इसके बाद भगवान शिव ने जलंधर का वध किया।
वृंदा का श्राप और भगवान विष्णु का पत्थर में बदलना:
वृंदा को जब यह पता चला कि भगवान विष्णु ने उनके साथ छल किया और उनके पतिव्रत धर्म को तोड़ा, तो वह अत्यधिक क्रोधित हुईं ।.
वृंदा का श्राप और भगवान विष्णु का भविष्य:
- वृंदा को जब भगवान विष्णु की माया का पता चला तो वह क्रोधित हो गई और उन्हें भगवान विष्णु को काला पत्थर बनने (शालिग्राम पत्थर) श्राप दे दिया।
- वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह भी एक दिन अपनी पत्नी से अलग हो जाएंगे। इसलिए कहा गया है कि राम के अवतार में भगवान माता सीता से अलग होते हैं।
वृंदा का श्राप और भगवान विष्णु का भविष्य:
- वृंदा को जब भगवान विष्णु की माया का पता चला तो वह क्रोधित हो गई और उन्हें भगवान विष्णु को काला पत्थर बनने (शालिग्राम पत्थर) श्राप दे दिया।
इस श्राप के कारण भगवान विष्णु पत्थर के रूप में बदल गए और गंडकी नदी के किनारे रहने लगे। इस पत्थर को शालिग्राम कहा जाता है, जिसे भगवान विष्णु के भक्त पूजा करते हैं।
वृंदा का श्राप और भगवान विष्णु का भविष्य:
- वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह भी एक दिन अपनी पत्नी से अलग हो जाएंगे। इसलिए - राम के अवतार में भगवान माता सीता से अलग होते हैं।
यह बात भगवान राम के अवतार में साकार हुई, जब भगवान राम ने माता सीता से वनवास के दौरान अलगाव सहा। यह घटना वृंदा के श्राप का प्रतिफल मानी जाती है।
माँ लक्ष्मी की प्रार्थना:
माँ लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की कि वह भगवान विष्णु को श्राप से मुक्त करें।
वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप से मुक्त तो किया, लेकिन उसने खुद आत्मदाह कर लिया।
जहाँ वृंदा ने आत्मदाह किया, वहाँ तुलसी का पौधा उग आया, जिसे भगवान विष्णु ने नाम दिया "तुलसी" और यह भी कहा कि शालिग्राम नामक उनका रूप उस पत्थर में रहेगा।
तुलसी और शालिग्राम का विवाह:
वृंदा के आत्मदाह के बाद, जहां वह भस्म हुईं, वहां तुलसी का पौधा उग आया।
भगवान विष्णु ने इस पौधे को "तुलसी" नाम दिया और यह घोषणा की कि उनके शालिग्राम रूप में हमेशा तुलसी के साथ पूजा होगी।
यही कारण है कि देवउठनी एकादशी के दिन se purnima tak भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप और तुलसी का विवाह कराया जाता है। यह विवाह भगवान विष्णु और वृंदा की भक्ति, प्रेम और उनके बीच के गहरे संबंधों का प्रतीक है।
शालिग्राम और तुलसी का विवाह:
भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप और तुलसी का विवाह अनिवार्य रूप से कराया जाता है।
वृंदा ने अपने पति की मृत्यु पर क्रोध और दुःख में भगवान विष्णु को पत्थर में बदल जाने का श्राप दिया। भगवान विष्णु पत्थर में बदल गए और गंडकी नदी के तट पर रहने लगे। भगवान विष्णु के भक्त इन पवित्र पत्थरों को शालिग्राम कहते हैं।
शालिग्राम और तुलसी जी का विवाह:
- शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु जी के भक्तों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह विवाह देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप और तुलसी के पौधे के साथ आयोजित किया जाता है
Tulsi Vivah from Kartik Shukla Ekadashi to Kartik Purnima is considered very auspicious and fruitful. It brings peace to marital life, and increases love and harmony.
Materials for Tulsi Vivah:
- Tulsi plant, Shaligram, Kalash, water-filled coconut, wooden platform for worship, red cloth, 16 items of adornment (bangles, toe rings, anklets, sindoor, mehendi, paper, kajal, garlands, etc.), fruits and vegetables (amla, sweet potato, water chestnut, sitafal, pomegranate, radish, guava, etc.), turmeric root, worship items (camphor, incense, mango wood, sandalwood, etc.)
Tulsi Vivah - Procedure:
- Vrat and Offering: On Devuthani Ekadashi, those performing Tulsi Vivah should do Kanyadan and observe a vrat.
- Gathering: Men gather near Shaligram, and women near the Tulsi plant.
- Decorating the Platform: In the evening, both sides prepare for the ceremony and decorate the area with rangoli, setting up a platform for the worship.
- Adorning Tulsi: The Tulsi plant is placed at the center and adorned with a red cloth, saree, or lehenga, along with bangles and other adornments.
- Setting up the Mandap and Shaligram: A mandap is made with sugarcane around Tulsi, and Shaligram is placed on the platform.
- Kalash Setup: A Kalash filled with water and a few drops of Gangajal is placed with five mango leaves and a coconut wrapped in red cloth.
- Worship of Shaligram and Tulsi: Shaligram is placed to the right of Tulsi, and the Kalash to the left. A ghee lamp is lit, and the mantra "Om Shri Tulasyai Namah" is chanted. Gangajal is sprinkled on both Shaligram and Tulsi.
- Tilak and Flower Offering: Apply a mixture of milk and sandalwood to Shaligram for tilak and use roli for Tulsi. Flowers and other worship items are offered.
- Circumambulation: Men carry the Shaligram and women carry Tulsi for 7 rounds, chanting wedding mantras and singing auspicious songs.
- Offering and Aarti: Offer kheer and puri as prasad, followed by performing aarti for both Shaligram and Tulsi. End with distributing prasad.
Story of Vrinda and Lord Vishnu:
Vrinda, a devout devotee of Lord Vishnu, was married to the demon king Jalandhar. This story highlights her devotion and her strong faith in Vishnu.
Jalandhar's Death: The gods approached Lord Vishnu for help in defeating Jalandhar. Vishnu decided to destroy Vrinda's chastity, as Jalandhar’s power was linked to her virtue. Vishnu took Jalandhar’s form and touched Vrinda, breaking her chastity, which weakened Jalandhar. Eventually, Lord Shiva killed Jalandhar.
Vrinda's Curse: Upon realizing Vishnu's deception, Vrinda was deeply sorrowful and cursed him to turn into stone. Vishnu accepted her curse and transformed into stone.
Vrinda's Curse and Vishnu Turning into Stone: Vrinda's anger led her to curse Vishnu to become a black stone (Shaligram), which is revered by Vishnu's devotees. Vishnu also faced separation from his wife, which was later symbolized in the incarnation of Lord Ram, when he was separated from Sita during their exile.
Tulsi and Shaligram's Wedding: After Vrinda's self-immolation, where her ashes turned into the Tulsi plant, Vishnu named it "Tulsi" and declared that Shaligram would always be worshipped with Tulsi. This is why on Devuthani Ekadashi, Lord Vishnu’s Shaligram form and the Tulsi plant are married in a symbolic union of devotion, love, and their deep relationship.
Prayers to Goddess Lakshmi: Goddess Lakshmi prayed to Vrinda to lift the curse on Vishnu, and though Vrinda freed Vishnu from the curse, she immolated herself. The Tulsi plant emerged from the spot where Vrinda died, and Vishnu named it "Tulsi," declaring that the Shaligram form would always remain with it.
Shaligram and Tulsi Vivah: The marriage of Shaligram and Tulsi is of great importance to Vishnu's devotees, symbolizing devotion and purity. It is celebrated with reverence on Devuthani Ekadashi.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें