आंवला नवमी (अक्षय नवमी) का महत्व एवं पूजन विधि
1. दिन का महत्व:
तिथि: कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी
इस दिन को गिफ्ट डे, हेल्थ डे, आंवला ट्री डे के रूप में भी मनाया जाता है। इस
दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से आरोग्य, दीर्घायु एवं सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। देवी
लक्ष्मी, भगवान विष्णु और शिवजी की कृपा इस
दिन विशेष रूप से मानी जाती है।
पौराणिक
मान्यता:
ब्रह्माजी
के आंसुओं से आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए इसे पवित्र एवं अक्षय माना गया है। विष्णु
भगवान ने कहा कि आंवला का फल उन्हें अत्यंत प्रिय है और इसकी पूजा से सारे पाप
समाप्त हो जाते हैं।
2. पौराणिक कथा:
जब संपूर्ण
पृथ्वी जलमग्न हो गई थी, तब ब्रह्माजी ने कमल पुष्प पर
बैठकर तपस्या की। भगवान विष्णु के प्रकट होने पर उनके चरणों में ब्रह्मा के आंसू
गिरे, जिनसे आंवला वृक्ष की उत्पत्ति
हुई। लक्ष्मीजी ने भी पृथ्वी पर भ्रमण करते समय आंवले के वृक्ष को शिव और विष्णु
का स्वरूप मानकर पूजा की, जिससे प्रसन्न होकर दोनों देवता
प्रकट हुए।
3. पूजा का महत्व (पद्म पुराण):
भगवान शिव
ने कार्तिकेय से कहा कि आंवला वृक्ष साक्षात विष्णु का स्वरूप है। इसकी पूजा गोदान
के बराबर फल देती है। वृक्ष को स्पर्श करने से दोगुना, और आंवला फल का सेवन करने से तीन
गुना फल की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत, पूजन, तर्पण एवं अन्न दान का कई गुना फल मिलता है।
4. पूजा विधि:
- आंवला वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- वृक्ष की जड़ पर दूध अर्पित करें और मंत्र जाप करें:
आंवला नवमी (अक्षय नवमी) का महत्व एवं पूजन विधि
1. दिन का महत्व:
तिथि: कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी
इस दिन को गिफ्ट डे, हेल्थ डे, आंवला ट्री डे के रूप में भी मनाया जाता है। इस
दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से आरोग्य, दीर्घायु एवं सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। देवी
लक्ष्मी, भगवान विष्णु और शिवजी की कृपा इस
दिन विशेष रूप से मानी जाती है।
पौराणिक मान्यता:
ब्रह्माजी
के आंसुओं से आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए इसे पवित्र एवं अक्षय माना गया है। विष्णु
भगवान ने कहा कि आंवला का फल उन्हें अत्यंत प्रिय है और इसकी पूजा से सारे पाप
समाप्त हो जाते हैं।
2. पौराणिक कथा:
जब संपूर्ण
पृथ्वी जलमग्न हो गई थी, तब ब्रह्माजी ने कमल पुष्प पर
बैठकर तपस्या की। भगवान विष्णु के प्रकट होने पर उनके चरणों में ब्रह्मा के आंसू
गिरे, जिनसे आंवला वृक्ष की उत्पत्ति
हुई। लक्ष्मीजी ने भी पृथ्वी पर भ्रमण करते समय आंवले के वृक्ष को शिव और विष्णु
का स्वरूप मानकर पूजा की, जिससे प्रसन्न होकर दोनों देवता
प्रकट हुए।
3. पूजा का महत्व (पद्म पुराण):
भगवान शिव
ने कार्तिकेय से कहा कि आंवला वृक्ष साक्षात विष्णु का स्वरूप है। इसकी पूजा गोदान
के बराबर फल देती है। वृक्ष को स्पर्श करने से दोगुना, और आंवला फल का सेवन करने से तीन
गुना फल की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत, पूजन, तर्पण एवं अन्न दान का कई गुना फल मिलता है।
4. पूजा विधि:
- आंवला वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
वृआंवला नवमी (अक्षय नवमी) का महत्व एवं पूजन विधि
1. दिन का महत्व:
तिथि: कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी
इस दिन को गिफ्ट डे, हेल्थ डे, आंवला ट्री डे के रूप में भी मनाया जाता है। इस
दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से आरोग्य, दीर्घायु एवं सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। देवी
लक्ष्मी, भगवान विष्णु और शिवजी की कृपा इस
दिन विशेष रूप से मानी जाती है।
पौराणिक मान्यता:
ब्रह्माजी
के आंसुओं से आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए इसे पवित्र एवं अक्षय माना गया है। विष्णु भगवान
ने कहा कि आंवला का फल उन्हें अत्यंत प्रिय है और इसकी पूजा से सारे पाप समाप्त हो
जाते हैं।
2. पौराणिक कथा:
जब संपूर्ण
पृथ्वी जलमग्न हो गई थी, तब ब्रह्माजी ने कमल पुष्प पर
बैठकर तपस्या की। भगवान विष्णु के प्रकट होने पर उनके चरणों में ब्रह्मा के आंसू
गिरे, जिनसे आंवला वृक्ष की उत्पत्ति
हुई। लक्ष्मीजी ने भी पृथ्वी पर भ्रमण करते समय आंवले के वृक्ष को शिव और विष्णु
का स्वरूप मानकर पूजा की, जिससे प्रसन्न होकर दोनों देवता
प्रकट हुए।
3. पूजा का महत्व (पद्म पुराण):
भगवान शिव ने कार्तिकेय से कहा कि आंवला
वृक्ष साक्षात विष्णु का स्वरूप है। इसकी पूजा गोदान के बराबर फल देती है। वृक्ष
को स्पर्श करने से दोगुना, और
आंवला फल का सेवन करने से ती5. विशेष कथाएँ:
- दान एवं सुख: एक राजा ने प्रण लिया कि वह रोज़ सवा मन आंवले दान करके ही भोजन करेगा। भगवान ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वन में भी राज्य, महल और आंवले के पेड़ दे दिए। इससे सीख मिलती है कि दान करने से कभी धन समाप्त नहीं होता।
- कनकधारा स्तोत्र की कथा: शंकराचार्य ने एक गरीब वृद्धा के घर भिक्षा में मिले सूखे आंवले के फल को देखकर कनकधारा स्तोत्र का पाठ किया, जिससे देवी लक्ष्मी ने स्वर्ण आंवलों की वर्षा की।
- संतान प्राप्ति की कथा: कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवला वृक्ष की पूजा करने से संतान सुख प्राप्त होता है। काशी के एक निसंतान वैश्य दंपत्ति ने इस व्रत के माध्यम से संतान प्राप्त की।
6. कनकधारा स्तोत्र (संक्षिप्त रूप):
॥ श्री कनकधारा स्तोत्र ॥
अङ्ग हरेः
पुलक भूषणम आश्रयन्ती...
(पूरी स्तुति
का पाठ करने से दरिद्रता का नाश होता है और लक्ष्मी कृपा प्राप्त होती है)
7. आंवला नवमी पर अन्य लाभ:
- कोर्ट केस, चुनाव विजय, रोजगार, संतान प्राप्ति, और उच्च पद प्रतिष्ठा के लिए विशेष फलदायी।
- इस दिन गाय, भूमि, स्वर्ण, वस्त्र, आभूषण, एवं अन्न का दान करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
- द्वापर युग का प्रारंभ इसी दिन हुआ था और इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा के लिए प्रस्थान किया था।
इस प्रकार आंवला नवमी का पर्व हमारे जीवन में धार्मिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है। इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा करने से अक्षय फल, मोक्ष और समस्त प्रकार के पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।
न गुना फल की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत, पूजन, तर्पण एवं अन्न दान का कई गुना फल मिलता है।
4. पूजा विधि:
- आंवला वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- वृक्ष की जड़ पर दूध अर्पित करें और मंत्र जाप करें:
क्ष की जड़ पर दूध अर्पित करें और मंत्र जाप करें: 5. विशेष कथाएँ:
- दान एवं सुख: एक राजा ने प्रण लिया कि वह रोज़ सवा मन आंवले दान करके ही भोजन करेगा। भगवान ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वन में भी राज्य, महल और आंवले के पेड़ दे दिए। इससे सीख मिलती है कि दान करने से कभी धन समाप्त नहीं होता।
- कनकधारा स्तोत्र की कथा: शंकराचार्य ने एक गरीब वृद्धा के घर भिक्षा में मिले सूखे आंवले के फल को देखकर कनकधारा स्तोत्र का पाठ किया, जिससे देवी लक्ष्मी ने स्वर्ण आंवलों की वर्षा की।
- संतान प्राप्ति की कथा: कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवला वृक्ष की पूजा करने से संतान सुख प्राप्त होता है। काशी के एक निसंतान वैश्य दंपत्ति ने इस व्रत के माध्यम से संतान प्राप्त की।
6. कनकधारा स्तोत्र (संक्षिप्त रूप):
॥ श्री कनकधारा स्तोत्र ॥
अङ्ग हरेः
पुलक भूषणम आश्रयन्ती...
(पूरी स्तुति
का पाठ करने से दरिद्रता का नाश होता है और लक्ष्मी कृपा प्राप्त होती है) कनकधारा स्तोत्र का विशेष महत्व:
- धन-संपत्ति: इस स्तोत्र का पाठ करने से धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।
- दरिद्रता निवारण: जीवन में दरिद्रता और आर्थिक संकट दूर होते हैं।
- मानसिक शांति: मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है।
- विशेष अवसरों पर पाठ: इसे विशेष रूप से दीपावली, धनतेरस, शुक्रवार और पूर्णिमा के दिन पढ़ने से विशेष फल मिलता है।
कनकधारा स्तोत्र पाठ विधि:
- शुद्ध स्थान: स्वच्छ स्थान पर आसन बिछाकर बैठें।
- ध्यान एवं शुद्धिकरण: गायत्री मंत्र का उच्चारण करके शुद्धिकरण करें।
- मां लक्ष्मी का ध्यान: मां लक्ष्मी का ध्यान करके इस स्तोत्र का श्रद्धा और भक्ति से पाठ करें।
- सफेद पुष्प: लक्ष्मीजी को सफेद पुष्प अर्पित करें।
- घी का दीपक: घी का दीपक जलाएं और विशेषकर कमल गट्टे का नैवेद्य चढ़ाएं।
इस प्रकार कनकधारा स्तोत्र का नियमित पाठ आपके जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति की वर्षा कर सकता है।
- इस दिन गाय, भूमि, स्वर्ण, वस्त्र, आभूषण, एवं अन्न का दान करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
कनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotram)
रचयिता: आदिशंकराचार्य
कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से मां लक्ष्मी की कृपा से दरिद्रता का नाश होता है और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए अद्भुत प्रभावकारी माना जाता है जो धन, वैभव, और समृद्धि चाहते हैं। आदि शंकराचार्य जी ने इसे माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए रचा था।
कनकधारा स्तोत्रम का मूल पाठ एवं अर्थ
श्लोक 1
अङ्गं हरेः
पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव
मुकुलाभरणं तमालम्।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदाऽस्तु
मम मङ्गलदेवतायाः॥
अर्थ:
भगवान हरि
(विष्णु) के अंगों पर सुशोभित होने वाली, जैसे तमाल वृक्ष पर मधुमक्खियों का मंडल शोभित होता
है, वैसे ही जो लक्ष्मीजी की कोमल
दृष्टि से समस्त ऐश्वर्य प्रदान करती हैं, वे मेरी मंगलकामना करें।
श्लोक 2
मुग्धा
मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि
गतागतानि।
मालादृशोर्मधुकरीव
महोत्पले या
सा मे
श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः॥
अर्थ:
माँ लक्ष्मी, जो सागर से उत्पन्न हुई हैं, भगवान विष्णु के मुख की ओर बार-बार
प्रेमपूर्वक संकोच से भरी दृष्टि डालती हैं, जैसे मधुमक्खियाँ कमल के फूलों के चारों ओर मंडराती
हैं। वे मुझे धन-वैभव प्रदान करें।
श्लोक 3
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षम्
आनन्दहेतुरधिकं
मुरविद्विषोऽपि।
ईषन्निषीदतु
मयि क्षणमीक्षणार्धं
इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः॥
अर्थ:
जो लक्ष्मी
देवताओं के राजा इंद्र को भी पद, ऐश्वर्य और
आनंद प्रदान करने में सक्षम हैं, वे अपनी एक
पल की कृपादृष्टि मुझ पर डालें और मुझे भी सुख-समृद्धि से संपन्न करें।
श्लोक 4
आमीलिताक्षमधिगम्य
मुदा मुकुन्दं
आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम्।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै
भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः॥
अर्थ:
जो मां
लक्ष्मी भगवान मुकुन्द (विष्णु) के अनन्त सुख रूपी स्वरूप को बिना पलक झपकाए देखती
रहती हैं, वे मेरी ओर अपनी कृपादृष्टि डालें
और मुझे भी ऐश्वर्य का वरदान दें।
श्लोक 5
बाह्वन्तरे
मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव
हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा
भगवतोऽपि कटाक्षमाला
काल्यां
कृपार्हकुरुते स महं श्रियं या॥
अर्थ:
जो भगवान
विष्णु के वक्षस्थल पर कौस्तुभ मणि के समीप नीले हार के समान सुशोभित होती हैं, वे मां लक्ष्मी अपनी कृपादृष्टि
मुझ पर डालें और मुझे धन-धान्य से संपन्न करें।
श्लोक 6
कल्पान्तसम्भवजलार्द्रतनोदरेण
स्पृष्टा
वलत्रिवलयाङ्गितसार्वभौमा।
स्वर्गापवर्गभुवि
धत्तु मनः स्फुरन्तीं
भूतिं
प्रसीदतु भृगुक्षयवल्लभायाः॥
अर्थ:
मां लक्ष्मी, जो भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं, अपनी कृपा से मुझे दिव्य ऐश्वर्य
प्रदान करें। उनके शरीर की आभा और अनंत सौंदर्य स्वर्ग और मोक्ष दोनों ही लोकों
में सुख देने वाली है।
श्लोक 7
मन्दस्मितं
मधुरभाषिणि मंजुलायै
स्वच्छाय ते
विमलरुपविलासभाजाम्।
सर्वार्थसिद्धिकरुणामृतपूर्णदृष्टिः
श्रीः
साऽऽश्रितं मम सुमंगलमागतायै॥
अर्थ:
मां लक्ष्मी, जो मधुर मुस्कान और मधुर वाणी से
सभी का मन मोह लेती हैं, अपनी कृपा की अमृत वर्षा से मुझ पर
भी कृपा करें और मेरी सभी इच्छाओं को पूर्ण करें।
- द्वापर युग का प्रारंभ इसी दिन हुआ था और इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा के लिए प्रस्थान किया था।
इस प्रकार आंवला नवमी का पर्व हमारे जीवन में धार्मिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है। इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा करने से अक्षय फल, मोक्ष और समस्त प्रकार के पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।
7. आंवला नवमी पर अन्य लाभ:
- कोर्ट
केस, चुनाव विजय, रोजगार, संतान प्राप्ति, और उच्च पद प्रतिष्ठा के लिए
विशेष फलदायी।
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