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-आंवला ,अक्षय, कुष्मांडा नवमी- विधि कथा मंत्र

 

  -आंवला नवमी अक्षय नवमी-  

ब्रह्मा के आंसुओं से उत्पन्नवृक्ष पर ब्रह्मा,शिव,विष्णु निवास एवं लक्ष्मी प्रसन्न |

आरोग्य दिन एवं युग आदि तिथि विशेष महत्वपूर्ण दिन है।  देवी पुराण एवं एवं हेमाद्री ग्रंथ में अत्यंत महत्व उल्लेखित है ।गिफ्ट डे,हेल्थ डे,आंवला ट्री डे,

-उत्त्पत्ति- कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी को बृक्ष की उत्त्पात्त-

आंवले को धातृ वृक्ष भी कहते हैं। भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को प्रिय  है। सृष्टि वृक्षों में  सबसे पहले आंवले का वृक्ष उत्पन्न हुआ था। इसलिए इसे आदिरोह या आदि वृक्ष भी कहा जाता है शिवजी (Lord Shiva) के आंसूओं से रुद्राक्ष की उत्पत्ति , ब्रम्हा जी (Lord Brahma) के आंसूओं से आंवले के पेड़ की उत्पत्ति हुई। पद्म पुराण और स्कन्द पुराण - जब पूरी पृथ्वी जलमग्न हो गई थी तब ब्रम्हा जी पुन: सृष्टि के लिए  कमल पुष्प पर बैठकर ब्रम्हा जी परब्रम्हा की तपस्या करने लगे। परब्रम्हा भगवान विष्णु प्रकट हुए उनको देख कर ख़ुशी में  के आंसू भगवान विष्णु के चरणों पर गिरे | इन  आंसूओं से आमलकी यानी आंवले का वृक्ष उत्पन्न हुआ ।

-भगवान विष्णु -ब्रम्हा जी से कहा कि आपके आंसूओं से उत्पन्न आंवले का वृक्ष और फल मुझे हमेशा प्रिय रहेगा। हर वर्ष  कार्तिक मास की नवमी को आंवले के वृक्ष की , जो पूजा करेगा उसके सारे पाप समाप्त हो जाएंगे और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होगी।

-आंवले के पत्ते, फल और वृक्ष में श्रीहरी का वास भगवान विष्णु और शिव निवास करते हैं इसलिए इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण और अन्नदान से कई गुना फल मिलता है।

पौराणिक कथा –

 माता लक्ष्मी एक बार पृथ्वीलोक पर भ्रमण के लिए आईं। यहां आकर उन्हें भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने  की इच्छा हुई। ऐसे में उन्हें ध्यान आया कि तुलसी और शिव के स्वरुप बैल के गुण आंवले के वृक्ष में होते है। इसमें दोनों का अंश है, इसलिए मां लक्ष्मी ने आंवले को ही शिव और विष्णु का स्वरूप मानकर पूजा की थी। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर दोनों देव एक साथ प्रकट हुए। लक्ष्मी जी ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु जी और भगवान शिव को खिलाया।

 इसलिए सुख, समृद्धि और सौभाग्य के लिए आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है।

 

महत्व

पद्म पुराण - कार्तिकेय से भगवान शिव से कहा था कि आंवला वृक्ष साक्षात विष्णु का ही स्वरूप है। ऐसे में यह वृक्ष विष्णु प्रिय है। व्रतसे-पूजा से गोदान के बराबर का फल प्राप्त होता है। आंवले के वृक्ष को स्पर्श मात्र से ही दोगुना तथा फल सेवन पर तीन गुना फल प्राप्त होता है। 

इस दिन व्रत पूजा तर्पण एवं अन्न दान का अनंत गुना फल प्राप्त होता है।

  युग प्रारंभ की तिथि भी है ।

इस प्रकार इस दिन गाय ,भूमि, स्वर्ण , वस्त्र, आभूषण , अन्न का दान करने का विशेष प्रभाव होता है ।

-  यह उच्च पद, प्रतिष्ठा ,नगर प्रमुख, प्रदेश प्रमुख एवं सर्व विधि विजय प्रदान करता है ।

कोर्ट केस, विवाद,चुनाव विजय ,निलंबन समाप्ति,रोजगार प्राप्ति में भी सहायक है।

-कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष नवमी धात्री या

इसका नाम धात्री नवमी अर्थात धात्री आंवला वृक्ष को कहते हैं ।

आंवला वृक्ष की पूजा होती है । दूसरा नाम इसका कुष्मांड नवमी भी है । महिला संतान प्राप्ति के लिए और संतान की‌ शुभकामनाओं के लिए आंवले के पेड़ की पूजा करती है उसकी इच्छाओं को भगवान शिव और विष्णु जरूर पूरा करते हैं।

 


संक्षिप्त पूजा विधि

-पूजा से अन्न दोष से मुक्ति मिलती है।

आंवला वृक्ष न मिले तो गमले में वृक्ष नर्सरी से ले लिजिये । या उसकी शाखा भी प्रयोग कर सकते हैं।

इस दिन आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर। पूर्व दिशा की ओर मुंह कर। आंवला वृक्ष की पूजा करने का विधान है।

  ॐ धात्री देवी आपको नमन।

गंध पुष्प जो भी सुलभ हो वे आंवला वृक्ष को अर्पित करना चाहिए। 

आंवला वृक्ष की जड़ पर दूध छोड़े,मंत्र

मंत्र

पिता पिता महाशच अन्ये अपुत्रा  ये च गोत्रीण: ।

ते पिबंतू मया दत्तम धात्री मूले अक्षयम पय:।

आब्रहम स्तंब पर्यांत्म देव ऋषि मानव:।

ते पिबंतू मया दत्तम धात्री मूले अक्षयम पय:।

इस मंत्र को बोलते हुए आंवले की जड़ में दूध की धारा या दूध छोड़ना चाहिए।

इसके पश्चात कहे कि

भगवान दामोदर आपके समीप रहते हैं।है धात्री देवी आपको नमस्कार।आपको धागा अर्पित करते हुए लपेटती हूं ,आपको नमस्कार।

इस प्रकार5,11,108बार जो इच्छा हो वृक्ष के तने में धागा लपेटिए। प्रदक्षिणा करने का भी विधान है। आइए जानते हैं मंत्र - ।। यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।

 -जड़ में दूध अर्पण |

   इसके पश्चात आमले की कपूर ,दीपक जिसमें चार बत्ती (लाल पीली रंग की बत्ती हो।श्वेत रंग की  नहीं या कलावा मौली काट कर बना ले।) से आरती व पूजा करना चाहिए।गाय घी ,महुआ तैल,तिल तैल विशेष उपयोगी माना गया है। इस दिन आंवला जरूर खाएं।

-द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था, जिसमें स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था।

आंवला नवमी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन-गोकुल छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था।

कथा- दान कर्म ही सुख का वरदान

एक राजा था, उसका प्रण था वह रोज सवा मन आंवले दान करके ही खाना खाता था। इससे उसका नाम आंवलया राजा पड़ गया। एक दिन उसके बेटे बहु ने सोचा कि राजा इतने सारे आंवले रोजाना दान करते हैं, इस प्रकार तो एक दिन सारा खजाना खाली हो जायेगा। इसीलिए बेटे ने राजा से कहा की उसे इस तरह दान करना बंद कर देना चाहिए।

बेटे की बात सुनकर राजा को बहुत दुःख हुआ और राजा रानी महल छोड़कर बियाबान जंगल में जाकर बैठ गए। राजा-रानी आंवला दान नहीं कर पाए और प्रण के कारण कुछ खाया नहीं। जब भूखे प्यासे सात दिन हो गए तब भगवान ने सोचा कि यदि मैने इसका प्रण नहीं रखा और इसका सत नहीं रखा तो विश्वास चला जाएगा। इसलिए भगवान ने, जंगल में ही महल, राज्य और बाग-बगीचे सब बना दिए और ढेरों आंवले के पेड़ लगा दिए।

सुबह राजा रानी उठे तो देखा की जंगल में उनके राज्य से भी दुगना राज्य बसा हुआ है।

राजा, रानी से कहने लगे रानी देख कहते हैं, सत मत छोड़े। सूरमा सत छोड़या पत जाए, सत की छोड़ी लक्ष्मी फेर मिलेगी आए।

राजा-रानी ने आंवले दान करके खाना खाया और खुशी-खुशी जंगल में रहने लगे। उधर आंवला देवता का अपमान करने व माता-पिता से बुरा व्यवहार करने के कारण बहु बेटे के बुरे दिन आ गए।

राज्य दुश्मनों ने छीन लिया दाने-दाने को मोहताज हो गए और काम ढूंढते हुए अपने पिताजी के राज्य में आ पहुंचे। उनके हालात इतने बिगड़े हुए थे कि पिता ने उन्हें बिना पहचाने हुए काम पर रख लिया। बेटे-बहु ने भी अपने माता-पिता को नहीं पहचाना। एक दिन बहु ने सास के बाल गूंथते समय उनकी पीठ पर मस्सा देखा। उसे यह सोचकर रोना आने लगा की ऐसा मस्सा मेरी सास के भी था। हमने ये सोचकर उन्हें आंवले दान करने से रोका था कि हमारा धन नष्ट हो जाएगा।आज वे लोग न जाने कहां होगे ?

यह सोचकर बहु रोना lagi  और आंसू टपक टपक कर सास की पीठ पर गिरने लगे। रानी ने तुरंत पलट कर देखा और पूछा कि, तू क्यों रो रही है? उसने बताया आपकी पीठ जैसा मस्सा मेरी सास की पीठ पर भी था। हमने उन्हें आंवले दान करने से मना कर दिया था इसलिए वे घर छोड़कर कहीं चले गए। तब रानी ने उन्हें पहचान लिया। सारा हाल पूछा और अपना हाल बताया। अपने बेटे-बहू को समझाया कि दान करने से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है। बेटे-बहु भी अब सुख से राजा-रानी के साथ रहने लगे। हे भगवान, जैसा राजा रानी का सत रखा वैसा सबका सत रखना। कहते-सुनते सारे परिवार का सुख रखना।

 2-कथा—निर्धनता नाशक वृक्ष पूजा (कनक धरा स्त्रोत पढ़े )

आंवला नवमी , शंकराचार्य की कथा-

 - एक बार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भिक्षा मांगने एक कुटिया के सामने रुके। वहां एक बूढ़ी औरत रहती थी, जो अत्यंत गरीबी - थी। शंकराचार्य की आवाज सुनकर वह बूढ़ी औरत बाहर आई। उसके हाथ में एक सूखा आंवला था। वह बोली महात्मन मेरे पास इस सूखे आंवले के सिवाय कुछ नहीं है जो आपको भिक्षा में दे सकूं।

शंकराचार्य को उसकी स्थिति पर दया आ गई और उन्होंने उसी समय उसकी मदद करने का प्रण लिया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मंत्र रूपी 22 श्लोक बोले। ये 22 श्लोक कनकधारा स्तोत्र के श्लोक ्हें।

प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें दिव्य दर्शन दिए और कहा कि शंकराचार्य, इस औरत ने अपने पूर्व जन्म में कोई भी वस्तु दान नहीं की। यह अत्यंत कंजूस थी इसलिए इस जन्म में इसकी यह हालत हुई है। यह अपने कर्मों का फल भोग रही है इसलिए मैं इसकी कोई सहायता नहीं कर सकती।

शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मी की बात सुनकर कहा- हे महालक्ष्मी इसने पूर्व जन्म में अवश्य दान-धर्म नहीं किया है, लेकिन इस जन्म में इसने पूर्ण श्रद्धा से मुझे यह सूखा आंवला भेंट किया है। इसके घर में कुछ नहीं होते हुए भी इसने यह मुझे सौंप दिया। इस समय इसके पास यही सबसे बड़ी पूंजी है, क्या इतना भेंट करना पर्याप्त नहीं है। शंकराचार्य की इस बात से देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुई और उसी समय उन्होंने गरीब महिला की कुटिया में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा कर दी।

3- कथा- वैधव्य योग नाशक वृक्ष पूजा

 किशोरी नामक कन्या की जन्मकुंडली में वैधव्य योग रहता है। अक्षय नवमी को वह किशोरी तुलसी का व्रत करती है। पीपल, तुलसी का पूजन करती है। विलेपी नामक युवक किशारी से प्रेम करता है एवं किशोरी का स्पर्श होते ही उसकी मृत्यु हो जती  है। इधर राजकुमार मुकुंद किशोरी को प्राप्त करने का वरदान सूर्य से प्राप्त करता है। ईश्वर का लिखा (भाग्य) भी पूरा हो जाता है। वैधव्य योग भी पूर्ण होकर मुकुंद को पत्नी रूप में किशोरी प्राप्त हो जाती है।

4-कथा

कथा (Amla Navami ki Katha) संतान प्रद वृक्ष -

काशी नगर में निसंतान वैश्य रहता था। यह‌ दंपत्ति संतान की प्राप्ति के लिए अनेकों प्रयास कर चुके थे । एक दिन वैश्य की पड़ोसन ने उसकी बीवी को एक उपाय बताया। उसकी पड़ोसन ने कहा कि एक बालक की बली भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्ति होगी। वैश्य की पत्नी ने जब यह बात अपने पति से बताया तो उसने इस बात को सीधा नकार दिया। फिर उस वैश्य की पत्नी किसी पराए बालक की बलि देने के लिए सही समय का इंतजार करने लगी। सही मौका मिलने पर उसने एक लड़की को कुएं के अंदर गिरा दिया और भैरव के नाम से बली दे दी। उसने धर्म की जगह अधर्म किया इसीलिए उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया।

 जब यह बात वैश्य को पता चली तो उसने बोला गोवध, ब्राह्मण वध और बाल वध करना अधर्म है। इस कष्ट से छुटकारा पाने के लिए गंगा की शरण में जाना उचित होगा। अपने पति की बात मानकर वह गंगा मां के शरण में गई।

 गंगा मैया ने फिर वैश्य की पत्नी को कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन आंवले के पेड़ का पूजन और आंवले का सेवन करने के लिए कहा। वैश्य की पत्नी ने ठीक वैसा ही किया और वह इस कष्ट से मुक्त हो गई।‌ यह व्रत और पूजा करने से उसे कुछ दिनों बाद संतान की प्राप्ति हुई |

 कनकधारा स्तोत्र वर्ष में सर्वाधिक महत्व आवला नवमी को पढने का -

-रचना आदिगुरु शंकराचार्य जी ने की थी। कनकधारा का अर्थ होता है स्वर्ण की धारा, कहते हैं कि इस स्तोत्र के द्वारा माता लक्ष्मी को प्रसन्न करके उन्होंने सोने की वर्षा कराई थी।

सिद्ध मंत्र होने के कारण कनकधारा स्तोत्र का पाठ शीघ्र फल देनेवाला और दरिद्रता का नाश करनेवाला है।

 ॥ श्री कनकधारा स्तोत्र ॥

 अङ्ग हरेः पुलक भूषणम आश्रयन्ती

भृङ्गाङ्ग नेव मुकुल आभरणं तमालम् ।

अङ्गी कृताखिल विभूतिरपाङ्ग लीला

माङ्गल्य दास्तु मम मङ्गल देवतायाः ॥1॥

 अर्थ – जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल के पेड़ का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ती रहती है तथा जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, वह सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की कटाक्षलीला मेरे लिए मंगलदायिनी हो।

 मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः

प्रेम त्रपा प्रणि हितानि गता गतानि ।

माला दृशोर्मधु करीव महोत्पले या

सा मे श्रियं दिशतु सागर सम्भवायाः ॥2॥

 अर्थ – जैसे भ्रमरी महान कमलदल पर आती-जाती या मँडराती रहती है, उसी प्रकार जो मुरशत्रु श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बारंबार प्रेमपूर्वक जाती और लज्जा के कारण लौट आती है, वह समुद्रकन्या लक्ष्मी की मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन-सम्पत्ति प्रदान करे।

  विश्वामरेन्द्र पद विभ्रम दान दक्षम

 आनन्द हेतुर अधिकं मुरविद्वि षोऽपि ।

ईषन्निषीदतु मयि क्षणमी क्षणार्ध –

मिन्दीवरोदर सहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥

 अर्थ – जो सम्पूर्ण देवताओं के अधिपति इन्द्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मुरारि श्रीहरि को भी अधिकाधिक आनन्द प्रदान करनेवाली है तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है, वह लक्ष्मीजी के अधखुले नयनों की दृष्टि क्षणभर के लिए मुझपर भी थोड़ी सी अवश्य पड़े।

 आमीलिताक्षम अधिगम्य मुदा मुकुन्दम

आनन्द कन्द मनि मेष मन अङ्गतन्त्रम् ।

आकेकर स्थित कनीनिकपक्ष्म नेत्रं

भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्ग आनायाः ॥4॥

 अर्थ – शेषशायी भगवान विष्णु की धर्मपत्नी श्रीलक्ष्मीजी का वह नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करनेवाला हो, जिसकी पुतली तथा भौं प्रेमवश हो अधखुले, किंतु साथ ही निर्निमेष नयनों से देखनेवाले आनन्दकन्द श्रीमुकुन्द को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं।

 बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या

हारावलीव हरि नील मयी विभाति ।

काम प्रदा भगवतोऽपि कटाक्ष माला

कल्याणम आवहतु मे कमला आलयायाः ॥5॥

 अर्थ – जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि मण्डित वक्षस्थल में इन्द्रनीलमयी हारावली सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करनेवाली है, वह कमलकुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।

 कालाम्बुद अलि ललितोरसि कैटभारे –

र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्ग नेव ।

मातुः समस्त जगतां महनीय मूर्ति –

र्भद्राणि मे दिशतु भार्गव आनन्दनायाः ॥6॥

 अर्थ – जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णु के काली मेघमाला के समान श्यामसुन्दर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती हैं, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनन्दित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी हैं, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीया मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।

 प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्

माङ्गल्य भाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।

मय्यापतेत्त दिह मन्थर मीक्षणार्धं

मन्दालसं च मकरालय कन्य कायाः ॥7॥

 अर्थ – समुद्रकन्या कमला की वह मन्द, अलस, मन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझपर पड़े।

 दद्याद् दया अनुपवनो द्रविण अम्बुधारा –

मस्मिन्न किञ्चन विहङ्ग शिशौ विषण्णे।

दुष्कर्म घर्ममपनीय चिराय दूरं

नारायण प्रणयिनीनयन अम्बुवाहः ॥8॥

 अर्थ – भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्मरूपी घाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद में पड़े हुए मुझ दीनरूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करे।

 इष्टा विशिष्टम तयोऽपि यया दयार्द्र –

दृष्ट्या त्रिविष्टप पदं सुलभं लभन्ते।

दृष्टिः प्रहृष्ट कमल उदर दीप्ति अरिष्टां

पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टरायाः ॥9॥

 अर्थ – विशिष्ट बुद्धिवाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टि के प्रभाव से स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल गर्भ के समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे।

 गीर्देवतेति गरुडध्वज सुन्दरीति

शाकम्भरीति शशि शेखर वल्लभेति।

सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै

तस्यै नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरुण्यै ॥10॥

 अर्थ – जो सृष्टि-लीला के समय ब्रह्मशक्ति के रूप में स्थित होती हैं, पालन-लीला करते समय वैष्णवी शक्ति के रूप में विराजमान होती हैं तथा प्रलय-लीला के काल में रुद्रशक्ति के रूप में अवस्थित होती हैं, उन त्रिभुवन के एक मात्र गुरु भगवान नारायण की नित्ययौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है।

  श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभ कर्मफलप्र सूत्यै

रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुण अर्णवायै।

शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्र निकेतनायै

पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम वल्लभायै ॥11

 अर्थ – हे माता ! शुभ कर्मों का फल देनेवाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमलवन में निवास करनेवाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टि को नमस्कार है।

 नमोऽस्तु नाली कनि भाननायै

नमोऽस्तु दुग्धोदधि जन्मभूत्यै।

नमोऽस्तु सोमामृत सोदरायै

नमोऽस्तु नारायण वल्लभायै ॥12॥

 अर्थ – कमलवदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिन्धु सम्भूता श्रीदेवी को नमस्कार है। चन्द्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है।

 सम्पत्कराणि सकलेन्द्रिय नन्दनानि

साम्राज्य दान विभवानि सरोरुहाक्षि।

त्वद्वन्दनानि दुरिता हरण उद्यतानि

मामेव मातर निशं कलयन्तु मान्ये ॥13॥

 अर्थ – कमलसदृश नेत्रोंवाली माननीया माँ ! आपके चरणों में की हुई वन्दना सम्पत्ति प्रदान करनेवाली, सम्पूर्ण इन्द्रियों को आनन्द देनेवाली, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत है। मुझे आपकी चरणवन्दना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे।

 यत्कटाक्ष समुपासना विधिः

सेवकस्य सकलार्थ सम्पदः।

संतनोति वचनाङ्ग मानसै –

स्त्वां मुरारि हृदयेश्वरीं भजे ॥14॥

 

अर्थ – जिनके कृपाकटाक्ष के लिए की हुई उपासना उपासक के लिए सम्पूर्ण मनोरथों और सम्पत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मीदेवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूँ।

 

सरसिज निलये सरोज हस्ते

धवलतम अंशुक गन्ध माल्य शोभे।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे

त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥

 अर्थ – भगवति हरिप्रिये ! तुम कमलवन में निवास करनेवाली हो, तुम्हारे हाथों में लीलाकमल सुशोभित है। तुम अत्यन्त उज्ज्वल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभा पा रही हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली देवि ! मुझपर प्रसन्न हो जाओ।

 दिग्घस्तिभिः कनक कुम्भ मुखावसृष्ट –

स्वर्वाहिनी विमल चारु जलप्लुताङ्गीम्।

प्रातर्नमामि जगतां जननीम शेष –

लोकाधिनाथ गृहिणीम अमृताब्धि पुत्रीम् ॥16॥

 अर्थ – दिग्गजों द्वारा सुवर्ण कलश के मुख से गिराये गये आकाशगंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्रीअंगों का अभिषेक किया जाता है, सम्पूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रातःकाल प्रणाम करता हूँ।

 कमले कमलाक्ष वल्लभे

त्वं करुणा पूरत रङ्गितैरपाङ्‌गैः।

अवलोकय माम किञ्चनानां

प्रथमं पात्रम कृत्रिमं दयायाः ॥17॥

 अर्थ – कमलनयन केशव की कमनीय कामिनी कमले ! मैं अकिंचन ( दीनहीन ) मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ, अतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूँ। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरल तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।

 स्तुवन्ति ये स्तुति भिरमूभिरन्वहं

त्रयी मयीं त्रिभुवन मातरं रमाम्।

गुणाधिका गुरुतर भाग्य भागिनो

भवन्ति ते भुवि बुध भावित आशयाः ॥18॥

 अर्थ – जो लोग इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयीस्वरूपा त्रिभुवनजननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यन्त सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभाव को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।

 ॥ श्रीमत् शंकराचार्य रचित कनकधारा स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥

कुष्मांडा नवमी -कुष्मांडा कुमहड़ा दान विधि-

 कुम्हड़ा(जिसका पेठा स्वीट बनता है)दान नवमी

पितर शाप से मुक्ति, पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति , पितरों को मुक्ति तथा पितरों के आशीर्वाद या उनकी प्रसन्नता के लिए  -

    एक कुमहड़ा प्राप्त करें ।उसमें छोटा सा चीरा लगाये। उसमें गोपनीय रूप से कोई रत्न, स्वर्ण ,चांदी या अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुसार रुपया रखकर उस कुष्मांड की पूजा करें ।

यह पितरों को प्रसन्न करने वाला या उनको मुक्ति प्रदान करने वाला है ।यहां तक कि जो भीतर भूत प्रेत योनि में है उनकी भी मुक्ति करता है ।

विधि

विशेष - जो दान कार्य करेगा उसे ही फल मिलेगा।इसलिए परिवार के समस्त सदस्य उसको हाथ से स्पर्श कर दान की भावना प्रेषित सिंचित करे  या मन में विचार करते हुए प्रदान करें।

  किसी ब्राह्मण को तिलक लगाकर ।यह बोलते  हुए दान करना चाहिए-

मै अपने समस्त  पाप  नष्ट करने के लिए। अपने सुख सौभाग्य वृद्धि तथा, प्रतिदिन उत्तरोत्तर अभिवृद्धि के लिए कुष्मांड दान करता या करती हूं।

 युगादि-

   कार्तिक शुक्ल नवमी युग प्रारंभ की तिथि भी है |पितृतप्र्मन से पितृ प्रसन्न होते है \पितृ दोष शमन होता है |

HealthDay आरोग्य व्रत या आरोग्य दिन कहा गया है अर्थात अंग्रेजी के आधार पर हेल्थ डे जिस दिन उपवास करना चाहिए |

विष्णु जी की पूजा करना चाहिए लाल पुष्प एवं गुड़ से बने पदार्थ निरोध के रूप में प्रसाद के रूप में अर्पण का विधान है अष्टदल या आठ पत्तियों का कमल बना कर विष्णु जी को स्थापित कर उनकी पूजा करने से व्यक्ति निरोगी स्वस्थ होता है इसका प्रभाव 1 वर्ष तक अच्छा माना जाता है कुछ ग्रंथों में नवमी तिथि को उपवास एवं दशमी तिथि को विष्णु पूजा का उल्लेख भी प्राप्त है।9424446706 अस्त्रोलोजर,पा


मिस्ट वास्तु

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श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चाहिए । पिता जीवित हो तो, गया श्राद्ध न करें । २. मां की मृत्यु (सौभाग्यवती स्त्री) किसी भी तिथि को हुईं हो , श्राद्ध केवल

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहि

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती है | अवि

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा जाता है   | पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक होता है | पितृ श्राद्ध किस देव से स

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -