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यम द्वितीया-वैधव्य नाशक एवं चित्र गुप्त कथा एवं पूजा मुहूर्त -

 

यम द्वितीया-वैधव्य नाशक एवं चित्र गुप्त कथा एवं पूजा मुहूर्त -

यह पर्व भातृ द्वितीया 'भैयादूज' के नामक से जाना जाता है, पूर्व में 'भाई-कोटा', पश्चिम में 'भाईबीज' और 'भाऊबीज' कहलाता है। इस पर्व पर बहनें प्रायः गोबर से माँडना बनाती हैं, उसमें चावल और हल्दी के चित्र बनाती हैं तथा सुपारी, फल, पान, रोली, धूप, मिष्ठान्न आदि रखती हैं, दीप जलाती हैं। इस दिन यम द्वितीया की कथा सुनी जाती है।

 पूजा मुहूर्त – भारत के बिभिन्न शहरों में –(अपने नगर के मुहूर्त के लिए ,अपने  समीपस्थ शहर(95 से 250 की।मि।तक ) के सामने  लिखे समय में   - प्रारंभ समय में 13मिनट जोड़े  |)

भाई दूज तिलक श्रेष्ठ समय प्रारंभिक समय से 13 मिनट और अधिक समय तक;

देहली,भोपाल,चंडीगढ़ -13:11-15:21 ; जबलपुर,हैदराबाद,ग्वालियर,कन्नौज-13:01-:15:12 ; अहमदाबाद,बिलासपुर,महासमुन्द -12:53-1507; कानपुर,लखनऊ-12:58-15:08; रायपुर-12:55-15:02; नागपुर- 13:0:5-15:19 ; पूना।मुबई- 13:30-15:43 ; कलकत्ता- 12:27-14:41; इन्दोर,उज्जैन- 13:17-15:32 ;BNGALORE-13:15-13:38(15:10TAK)

 कथा-

यम देव अपनी बहन यमुना या यामी से मिलने उनके घर गए यमी बहन ने आरती , माथे पर तिलक लगाकर भाई का स्वागत किया । बहन ने उन्हें मिठाई खिलाई और फिर  भोजन कराया

देवादिदेव  सूर्य की संज्ञा से 2 संतानें थीं- पुत्र यमराज तथा पुत्री यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण कर उसे ही अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहां से चली गई। छाया को यम और यमुना से किसी प्रकार का लगाव न था, किंतु यम और यमुना में बहुत प्रेम था। यमुना अपने भाई यमराज के यहां प्राय: जाती और उनके सुख-दुख की बातें पूछा करती। यमुना यमराज को अपने घर पर आने के लिए कहती, किंतु व्यस्तता तथा दायित्व बोझ के कारण वे उसके घर न जा पाते थे।

एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के घर अचानक जा पहुंचे। बहन यमुना ने अपने भाई का बड़ा आदर-सत्कार किया। विविध व्यंजन बनाकर उन्हें भोजन कराया तथा भाल पर तिलक लगाया। यमराज अपनी बहन से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने यमुना को विविध भेंटें समर्पित कीं। जब वे वहां से चलने लगे, तब उन्होंने यमुना से कोई भी मनोवांछित वर मांगने का अनुरोध किया। यमुना ने उनके आग्रह को देखकर कहा- भैया! यदि आप मुझे वर देना ही चाहते हैं तो यही वर दीजिए कि आज के दिन प्रतिवर्ष आप मेरे यहां आया करेंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार किया यमुना ने कहा – हे भइया मैं आपसे यह वरदान माँगना चाहती हूँ कि मेरे जल में स्नान करने वाले नर-नारी यमपुरी न जाएँ।

यह  कठिन था, यम के ऐसा वर देने से यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता। भाई को कि किन्- कर्तव्य -विमूढ़ /द्विविधा /असमंजस विचार मग्न देख यमुना बोलीं – ‘ यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन के यहाँ भोजन करके, इस मथुरा नगरी स्थित विश्राम घाट पर स्नान करें वे तुम्हारे लोक को न जाएँ।

यमराज ने स्वीकार कर कहा  – ‘इस तिथि को जो तुम्हारे जल में स्नान करने वालों को स्वर्ग मिलेगा तथा भीं के घर भोजन करने से भाई दीर्घायु त्तथा बहिन के पति की अल्पकाल म्रत्यु नहीं होगी ।’ तभी से यह त्यौहार मनाया जाता है। (साभार)

1-कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया प्रातःकाल चंद्र-दर्शन की परंपरा है | भावी कल्याण , समृद्धि, धन, आयुष्य, धर्म, अर्थ और अपरिमित सुख की प्राप्ति के लिए ,यमुना नदी के जल में स्नान कर, दोपहर में बहन के घर जाकर वस्त्र आदि बहन को देने एवं उसके घर में  भोजन किया जाता है। यदि  बहन न हो तो पिता के भाई की , मामा की, मौसी ,या  बुआ की पुत्री के हाथ का बना भोजन करें। घर के बाहर चार बत्तियों से युक्त दीपक जलाकर दीप-दान का नियम यदि यमुना जल उपलब्ध ना हो तो स्नान के समय जल में,अपनी  अनामिका उंगली से यमुनाय नमः लिखें ।
प्रार्थना करें - है यमुना देवी आप इस जल में पधारें । मेरे समस्त पापों का नाश करे।सब प्रकार का अभ्युदय ,प्रगति ,धन ,सम्पदा प्रदान करें ।
इसके पश्चात उस जल से स्नान करें।
स्नान समय मुंह पूर्व
कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष द्वितीया
भाई तथा बहन द्वारा यम चित्रगुप्त , यमदूत  की पूजा करने का विधान प्राप्त होता है।।
यम से प्रार्थना स्वरूप निवेदन करें हे
मार्तंडज  सूर्य से उत्पन्न हुए हैं ।पाश शस्त्र हाथ में  धारण करने वाले । है यम,है अंत क हे लोकधर,हैअमरेश,आप भाई दूज में की गई देवपूजा और अर्धय को ग्रहण करें ।हे भगवान आपको नमस्कार है।।
इस दिन ही यमुना ने यम को अपने घर भोजन कराया था इसलिए यम द्वितीया त्रिलोक में मान्य है ।बहन द्वारा,अपने घर में भाई  को भोजन कराना चाहिए।
बहन द्वारा भाई को भोजन कराने के पूर्व निवेदन करना चाहिए  -
है भाई मैं आपकी बहन हूं।  आप इस यमराज तथा विशेषकर यमुना की कृपा के लिए प्रीति पूर्वक प्रेम पूर्वक या अन्य ग्रहण करें भक्षण करें।
ब्रह्मांड पुराण - जो बहन कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भाई को भोजन कराती है वह विधवा नहीं होती है   भाई की आयु का क्षय नहीं होता है। आकस्मिक,अकाल, मृत्यु नहीं होती।
श्री कृष्ण भगवान - इस दिन जो भाई अपनी बहन के हाथ से बना खाना ग्रहण करता है वह से सर्व अलौकिक सुख प्राप्त होते हैं।
भोजन के उपरांत अपने सभी बहनों को वस्त्र अलंकार धर्म आदि दान करना चाहिए जिनकी बहन नहीं हो वह बहन के रूप में माने जाने वालों को दान आदि करें।(संदर्भ ग्रंथ हेमाद्री स्कंद पुराण|)
कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यम का पूजन और तर्पण करने से प्रसन्न यमराज अथवा धर्मराज उसके लिए मनोवांछित फल देते हैं या मनोकामना पूर्ण करते हैं। 

               चित्र गुप्त उत्त्पत्ति एवं कथा पूजा –

शुभ समय- 13:17-15:15 बजे | शेष समय उचित नहीं है |

ओम श्री चित्रगुप्ताय नमः'

-कायस्थ वर्ग  में ,अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा और कलम-दवात पूजतने  की परम्परा है। श्री चित्रगुप्तजी की उत्पत्ति ब्रह्माजी से हुई ह। सृष्टि सृजना के पश्चात पितामह ब्रह्मा ने धर्मराज को शुभाशुभ कर्मों का फल देने हेतु अधिकृत किया |  धर्मराज की प्रार्थना पर विद्वान न्याय निष्ठ सहायक जो मनुष्य के कर्म लेख में दक्ष हो । ब्रह्माजी ने ‘ हाथ में कलम-दवात लिए विलक्षण तेजस्वी पुरुष की उत्पत्ति की “।

इस तेजस्वी पुरुष को बताया कि,“'तुम विचित्र रूप में मेरे चित्त में गुप्त रहे अतः तुम्हारा नाम चित्रगुप्त है।“तुम मेरी काया से तुम्हारी उत्पत्ति हुई , इसलिए तुम कायस्थ हो।

चित्रगुप्तयम के सहायक एवं चूँकि इन का विवाह यमी से हुआ, वे यम के बहनोई भी हैं। यम और यमी सूर्य देव की जुड़वा संतान हैं। यमी ही बाद में यमुना के स्वरुप में पृथ्वी पर आ गईं।

- कायस्थ शब्द को कार्यस्थ का अपभ्रंश मान सकते  हैं। कार्यस्थ का शब्दशः अर्थ है 'जिस पर सारा कार्य स्थिर (निर्भर) हो।' श्री चित्रगुप्तजी गुप्त रहकर सृष्टि के क्रियाकर्म (पाप-पुण्य) का लेखा-जोखा रखते हैं व धर्मराज को न्याय करने में सहयोग देते हैं। पद्मपुराण - परमपिता ब्रह्माजी की आज्ञा से श्री चित्रगुप्तजी तपस्या हेतु उज्जयिनी पधारे थे। श्रीचित्रगुप्त जी ने ज्वालामुखी देवी, चण्डी देवी और महिषासुर मर्दिनी की पूजा और और साधना की थी।।  - श्री चित्रगुप्तजी का अत्यंत प्राचीन मंदिर भी है।

चित्र गुप्त कथा- (साभार)

सौदास नाम का एक राजा था। वह एक अन्यायी और अत्याचारी राजा था और उसके नाम पर कोई अच्छा काम नहीं था। एक दिन जब वह अपने राज्य में भटक रहा था तो उसका सामना एक ऐसे ब्राह्मण से हुआ जो पूजा कर रहा था। उनकी जिज्ञासा जगी और उन्होंने पूछा कि वह किसकी पूजा कर रहे हैं।

ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि आज कार्तिक शुक्ल पक्ष का दूसरा दिन है और इसलिए मैं यमराज (मृत्यु और धर्म के देवता) और चित्रगुप्त (उनके मुनीम) की पूजा कर रहा हूं, उनकी पूजा नरक से मुक्ति प्रदान करने वाली है और आपके बुरे पापों को कम करती है। यह सुनकर सौदास ने भी अनुष्ठानों का पालन किया और पूजा की।

बाद में जब उनकी मृत्यु हुई तो उन्हें यमराज के पास ले जाया गया और उनके कर्मों की चित्रगुप्त ने जांच की।उन्होंने यमराज को सूचित किया कि यद्यपि राजा पापी है लेकिन उसने पूरी श्रद्धा और अनुष्ठान के साथ यम का पूजन किया है और इसलिए उसे नरक नहीं भेजा जा सकता।इस प्रकार राजा केवल एक दिन के लिए यह पूजा करने से, वह अपने सभी पापों से मुक्त हो गया।

 

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