दुर्गा घट (कलश / कुम्भ) स्थापना
(प्रातः एवं सायं कोई मुहूर्त कलश,घट या कुम्भ स्थापना
का नहीं है) )
शारदीय नवरात्री
कुम्भ/घट(कलश) स्थापन – 17 अक्टूबर 2020
कलश
स्थापना पूजा प्रारम्भ - धनु लग्न 12:.-12.29 बजे तक शुभ समय है |
चन्द्र होरा सभी कार्य सफलता एवं अभिजीत मुहूर्त |
कलश स्थापना श्रेष्ठ समय - प्रारंभिक 29 मिनट हैं |
देहली,भोपाल-11:59-12:29;
ग्वालियर ,हेदरबाद-11:59-12.25
रायपुर11.53:12:12
कानपुर-11:53-12:17
चंडीगढ़-12:00-12:31
देवी दुर्गा शक्ति की अद्धिष्ठात्री हैं |
कलश
स्थापना पूजा आदि विशेष सावधानी से करना ही हितकारी,कल्याणप्रद है |हिन्दू पर्वों का अधिसंख्य ग्रहों की
स्थिति पर निर्धारित है |सामान्य नियम है कोई भी शुभ कार्य
विशिष्ट निर्धारित तिथि एवं शुभप्रद समय अवधि में ही किया जाना चाहिए |
देवी पुराण - देवी आवाहन, प्रवेश.स्थापन, दैनिक पूजा, एवं विसर्जन प्रातःही
किया जाना चाहिए |रात्रि या संध्या काल में नहीं |
(प्रातः प्रातश्च सम्पूज्य प्रातरेव विसृज्येत)
रुद्रयामल तंत्र –
वैधृतौ पुत्रनाश :स्या चित्रायां धन
नाशनम |
तस्मान्न स्थापयेत कुम्भं चित्रायां वैधृतौ|
स्यात्तदा मध्यं दिने रवौ |चित्रादि निषेधे
मूलम |)
चित्रा नक्षत्र,वैधृति एवं व्यतिपात
योग कुम्भ स्थापन या पूजा प्रारम्भ हेतु वर्जित हैं|
ज्ञातव्य –चित्रा नक्षत्र इस वर्ष 17 अक्तूबर को 11:52 तक है
परंतु अधिकतम 11:59 तक दोष मान ले तो 11:59 तक कलश स्थापना अशुभ होगी |
प्रतिपदा की 12-16 घटी किसी कार्य के लिए अशुभ इसलिए सूर्योदय समय ओर भी
अशुभ |
मत्स्य पुराण - कलश स्थापनं रात्रौ न कार्यं - रात्रि में कलश स्थापन
किया नहीं जाना चाहिए |
जब
प्रातः एवं प्रतिपदा काल में चित्रा, वैधृति कुयोग हो तो
क्या करना चाहिए ? जैसा कि इस वर्ष है |
रुद्रयामल तंत्र ग्रन्थ-अभिजीत या मध्य दिन में कलश स्थापन पूजा
करे|
कात्यायन-आद्यपादौ परित्यज्य
प्रारम्भे नवरात्रकाम |अर्थात प्रारम्भ के दो पाद त्याग कर
नवरात्र प्रारम्भ करे|
दुर्गोत्सव ग्रन्थ-चित्रा वैधृति युक्तापि द्वितीययुक्त
चेतसेव ग्राह्यत्युक्तं दुर्गोत्सवे|
श्री
पुत्र राज्य आदि विवृद्धि हेतु :|अर्थात चित्रा, वैधृति से युक्त
द्वितीया को ग्रहण करे |धन ,पुत्र, राज्य सुख में वृद्धि |
अमावस्या के दिन - अमायुक्ताम न कर्त्तव्या प्रतिपात पूजने मम
देवी भागवत - प्रतिपदा वर्जित |जबकिे एक ही दिन
प्रतिपदा द्वितीया होना ग्रहण करने योग्य शुभद है |
प्रमुख
ध्यतव्य है कि चित्रा
एवं वैधृति संयोग कुयोग प्रतिपदा तिथि को नहीं होना चाहिए |
प्रारभ्यम नवरात्रम स्याद्वित्वा चित्राम च वैधृति |देवी भागवत |
निर्णय सिन्धु— अभिजीत मुहूर्त में
कलश स्थापना ।
सम्पूर्ण प्रतिपद्येव चित्रायु क्ता यदा भवेत।
वैधृत्यावापि युक्तास्यात्तदा मध्य दिने रावौ।।
अभिजित मुहुर्त्त यत्तत्र स्थापनमिष्यते।
ग्रंथो
के अनुसार द्वितीया तिथि इन कुयोगो की उपस्थिति में भी ग्रहण कि जासकती
है | ग्रंथो आधार पर -अमावस्या के दिन
प्रतिपदा वर्जित जबकिे एक ही दिन प्रतिपदा द्वितीया होना ग्रहण करने योग्य शुभद है |
मध्य दिन या अभिजीत मुहूर्त में कुम्भ स्थापना कि जा सकती है |
ज्योतिष
मुहूर्त सिद्धांत से कलश स्थापना द्विस्वभाव लग्न में
शुभ होता है |मध्य
दिन में लग्न है जो अनुपयोगी है |
विशेष सावधान- धन एवं नाशक योग में कुम्भ स्थापना नहीं करे ?
(चौघड़िया कलश स्थापना के लिए चौघड़िया चार्ट से स्थापना अधम अप्रयोज्य मुहूर्त )
(प्रातः ,सायं कोई मुहूर्त कलश ,घट या कुम्भ स्थापना
का नहीं है )
(सन्दर्भ ग्रन्थ-देवी
भगवत पुराण, व्रत
परिचय - पृष्ठ 114 एवं श्री दुर्गा सप्तशती सर्वस्वम् पृष्ठ 41 घट स्थापना )|
Pt Vijendra Kumar Tiwari (Jyotish Shiromani)
jyotish9999@gmail.com, 9424446706
मुहूर्त मर्मज्ञ -पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी द्वारा जनहित में संशोधित संकलित प्रस्तुत
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