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दाम्पत्य जीवन बचाए :5 नाड़ी कुंडली मिलान :रहस्य

 



    

दाम्पत्य जीवन कुंडली मिलान वैवाहिक  जीवन

दाम्पत्य जीवन कुंडली मिलान वैवाहिक  जीवन

आज दांपत्य जीवन दरकने लगा है। दरारें पड़ने लगी है। इसका प्रमुख कारण आत्मनिर्भरता एवं शिक्षा आदि के साथ.साथ वर्तमान पाश्चात्य परिवेश का सामाजिक जीवन में प्रवेश है ।

आत्म सम्मान एवं अहम की वृद्धि हो चुकी है। सम्मान की भावना दूसरों के प्रति कम हो गई है ।स्वार्थपरता एवं भोग वादी प्रवृत्तियां एवम् संवादएसंचार भी प्रमुख कारण है।

36 गुण अष्टकूट आंशिक अप्रासंगिक.

बहुत समय पूर्व लगभग 300 वर्ष पूर्व हुआ अष्टकूट या 36 गुण मिलान की विधि परंपरा में आई थी। तत्कालीन समय में स्थितियां एवं सामाजिक वातावरण तथा कुंडली नहीं मिलाने पर भी संस्कार ,धार्मिक,आर्थिक प्रभाव से जीवन मरण साथ साथ होता रहता था ।

दांपत्य जीवन टूटता नहीं था ।आज छत्तीस गुण की विधि जिसने भी निर्मित की थी उसने एक अभिनव पहल ज्योतिष के क्षेत्र में दी थी।

परंतु खेद है उसके पश्चात किसी ने भी कोई विशेष उल्लेखनीय कार्य विवाह के लिए कुंडली मिलान के संदर्भ में नहीं किया है।  उपलब्धआधार पर ही टीका टिप्पणी एवं अनुभव के आधार पर सभी स्थितियों में कमी की बातें या अपवाद की बाते लिखी जाती रही हैं।

पहली खेद जनक अप्रासंगिक तथ्य यह है कि अष्टकूट 36 गुण  कडली मिलान शब्द है परन्तु कुंडली विश्लेषण इसमे किया जाता  ही नहीं।

जबकि विवाह के लिए वर कन्या का केवल जन्म नक्षत्र का ही इस विधि में प्रयोग किया जाता है। या उनकी राशि का विचार होता है।आप स्वयं सोच सकते हैं राशि अर्थात समूह एक राशि में 2 से अधिक नक्षत्र होते हैं। एक नक्षत्र का स्वभाव एक जैसा हो सकता है पर दो से अधिक नक्षत्रों का स्वभाव एक सा केसा होगा।

राशियों के आधार पर उनके स्वामी की मित्रता अनुकुल बताकर यह सोच लेना कि विचार मिलेंगे। यह हास्यास्पद ही है क्योंकि दो राशि में  6 नक्षत्र होंगे।

संयोग से ही कभी एक जैसे विचार वाले व्यक्ति इन में जन्म ले सकते हैं ।अन्यथा प्रत्येक नक्षत्र की अपनी विशेषता है।  उनकी अपनी प्रकृति है। उनके स्वामी पृथक पृथक हैं ।इसलिए अष्टकूट पद्धति में ग्रह मैत्री सिद्धांत पूर्ण रूप से निरर्थक है ।

होना यह चाहिए किए राशि के आधार पर ग्रह मैत्री जो लगभग 60 घंटे में जन्म लेने वालों के आधार पर है के स्थान पर जन्म नक्षत्र के आधार पर ले तो थोड़ी सही  स्थिति में आ जाते हैं।

यदि हम और भी अधिक सूक्ष्म स्थिति में जाएं तो सभी को ज्ञात है प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण या पद होते हैं।  चारों चरणों के स्वामी प्रथक प्रथक होते हैं ।

इस प्रकार हम लगभग 6 घंटे तक सुक्ष्म स्थिति तक  ग्रह मित्रता देख के सटीक परिणाम प्रदान कर सकते हैं ।

इसी प्रकार नाड़ी दोष पर भी विशेष कार्य नहीं हुआ है। नाडी मूल रूप से 3,4,5 होती है| उत्तर भारत में तीन ,गुजरात में चार एवं दक्षिण भारत में 5  नाडी के आधार पर कुंडली विवाह हेतु मिलान किया जाता है।

किसी भी सोफ्टवेयर मे नक्षत्र चरण आधार या कुंडली से कुंडली मिलान नहीं किया गया |ज्योतिशयों का अधिकांश आज software का प्रयोग कर रहा है |लेखक ने इस संबंध मे विधि विकसित की हे |

.1. कन्या के   जन्म नक्षत्र से उसके नक्षत्र की नाड़ी  ज्ञात करे।  इसके पश्चात वर की  नाड़ी उस ही  ;त्रि चतुर्थ या पंच  नाड़ी  की   की टेबल मे एक़ ही  नाड़ी मे हो तो नाड़ी  दोष होगा ।

त्रिनाड़ी निर्णय .

१.कन्या का जन्म एक राशि मे चार  चरण वाले नक्षत्र मे हों तो  त्रिनाड़ी नियम लागु होगा . इन नक्षत्रों मे नाड़ी नियम लागू होगा . अश्वनी भरणी रोहिणी आर्द्रा पुष्य अश्लेषा  मघा  पूर्वा . फाल्गुनी हस्त स्वाति अनुराधा श्ज्येष्ठा मूल पूर्वाषाढ़ा श्रवण शतभिषा उत्तराभाद्रपद रेवती।

इसके आधार पर पुरुष ध्वर की नाड़ी देख कर दोष निर्धारण होगा अर्थात  एक समूह ग्रुप मे होने पर दोष होगा  .

त्रि नाड़ी क्रम        

1 आदि अश्विनी   आर्द्रा पुनर्वसु    उतराफाल्गुनी   हस्त ज्येष्ठा    मूल  शतभिषा    पूर्व भाद्रपद

2 मध्य भरणी    मृगशिरा   पुण्य पूर्वाफाल्गुनी    चित्रा अनुराधा   पूर्वाषाढा    धनिष्ठा   उत्तर भाद्रपद

3 → अन्त्य कृतिका   रोहिणी   आश्लेषा   मघा स्वाती    विशाखा        उत्तराषाढा श्रवण रेवती

2 .चार नाड़ी का नियम 

.कन्या का जन्म एक राशि मे प्रथम या 3चरण वाले नक्षत्र मे 1.3 चरण वाले नक्षत्र मे हों तो   चार नाड़ी  नियम लागु होगा

इन नक्षत्रों मे नाड़ी नियम लागू होगा .कृत्तिका पुनर्वसु उत्तराफाल्गुनी विशाखा उत्तराषाढ़ा पूर्वभाद्र

इसके आधार पर पुरुष की नाड़ी देख कर दोष निर्धारण होगा अर्थात  एक समूहग्रुप मे होने पर दोष होगा  .

चार  नाड़ी क्रम  

प्रथम 1 →        कृतिका   मघा पूर्वाफाल्गुनी    ज्येष्ठा    मूल  उत्तर भाद्रपद    रेवती

द्वितीय2 →         रोहिणी   आश्लेषा   उत्तराफाल्गुनी  अनुराधा   पूर्वाषाढा  पूर्व भाद्रपद   अश्विनी

तृतीय3 →   मृगशिरा   पुण्य हस्त विशाखा   उतराषढा  शतभिषा  भरणी

चतुर्थ4 →   आर्द्रा पुनर्वसु    चित्रा स्वाती    श्रवण धनिष्ठा  

 

3 .पांच नाड़ी का नियम -

कन्या का एक राशि मे जन्म दो चरण वाले नक्षत्र मे हों तो  पांच नाड़ी नियम लागु होगा . एक समूहध् ग्रुप मे होने इन नक्षत्रों मे नाड़ी नियमलागू होगा .दोष होगा .मृगशिरा  चित्रा  धनिष्ठ द्य

इसके आधार पर पुरुष ध्वर की नाड़ी देख कर दोष निर्धारण होगा अर्थात

पंच  नाड़ी क्रम   -

1शिरो(मृत्यु)    मृगशिरा   चित्रा स्वाती    शतभिषा  पूर्व भाद्रपद   

2 कंठ(वैधव्य   आर्द्रा हस्त विशाखा   धनिष्ठा   उत्तर भाद्रपद  

3 नाभि(संतान अभाव)       पुनर्वसु    उत्तराफाल्गुनी  अनुराधा   श्रवण रेवती

4.कटि(निर्धनता)        पुण्य पूर्वाफाल्गुनी    ज्येष्ठा    उत्तराषाढा अश्विनी   रोहिणी

5. पाद(यात्रा या परदेश)     आश्लेषा   मघा मूल  पूर्वाषाढा  भरणी    कृतिका

अन्य अपवाद नियम

नाड़ी दोष देखने के लिए अवश्यक है कि नक्षत्र कि जाति वर्ण ब्राह्मण हो  एनक्षत्र यदि शूद्रएवेश्यएक्षत्रिय हे तो नाड़ी दोष का विचार करना निरर्थक है द्य

जन्म नक्षत्रत्रक्ष्जाति नहींद्वे ब्राह्मण नक्षत्र को नाड़ी दोष अर्थात यदि जन्म नक्षत्र ब्राह्मण हो तो ही नाड़ी दोष पर विचार करना चाहिए

                    क्षत्रिय नक्षत्र को वर्ण दोष

                    वैष्य नक्षत्र को गण दोष एएवं

                    शूद्र नक्षत्र को योनि दोष नहीं होना चाहिए।

प्रमाण-      नाड़ीदोषस्तु विप्राणां वर्ण दोषस्तु क्षत्रिये ।

                    गणदोषस्तु वैष्येषु शूद्राणां योनि दूषणम्।। -षीघ्रवोध

 

महत्वपूर्ण सूत्र

*   नाड़ी पश्येच्च ताराणां शुद्धमुद्वाहनं शुभम्।

वर कन्या के नवांष स्वामियों में मित्रता तथा राषि नाथांे में शत्रुता रहने पर भी नाड़ी एवं तारा शुद्धि हो तो विवाह शुभ होता है।

अर्थात नवमांश कुंडली की लग्न या राशि के स्वामियों मे मित्रता हो तो नदी दोष नहीं होता है द्य

नाड़ी दोष नहीं-

पूर्वा भाद्रपद, अनुराधा, धनिष्ठा, विषाखा, भरणी, कृत्तिका, हस्त, श्लेषा, पुष्य श्रवण में भी किसी एक ही में वर व कन्या का जन्म हो तो भी नाड़ी दोष नहीं रहता है।

 अजैकपान्मित्रवसुद्विदैव, प्रभंजनाग्न्यर्कभुजंगमानि।

मुकुन्द जीवान्तक भानि नूनं, शुभानि योषिन्नरजन्मभैक्ये।।

          भरणी, कृत्तिका,  रोहिणी,  मृगाषिरा, आर्द्रा, पुष्य, मघा, विषाखा, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, पू. भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, रेवती।  किसी  एक ही नक्षत्र में जन्म होने पर नाड़ी दोष नहीं होता ।

नाड़ी दोष मुक्त नक्षत्र:-  कृतिका, रोहिणी, मृगषिरा, आर्द्रा, पुष्य, ज्येष्ठा, श्रावण, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती इन नक्षत्रों में यदि वर-कन्या का जन्म हो तो भी नाड़ी दोष नहीं लगता ।

प्रमाण- रोहिण्यार्द्रामृगेन्द्राग्निपुष्य श्रवण पौष्णम्।

                   अहिर्बुध्न्यर्क्षमेतेषां नाड़ीदोषो न विद्यते ।। -ज्यौतिष चिन्मामणि

*   विषाखा, आर्द्रा, श्रवण, रोहिणी, पुष्य, भरणी, पू.भा. मघा में से किसी एक ही नक्षत्र में दोनों का जन्म है तो नाड़ी दोष नहीं होगा। यदि स्त्री पुरूष की तारा भी एक हो तो श्रेष्ठ है। (कालनिर्णय)

विषाखिकार्द्रा श्रवण प्रजेष, तिष्यांततत्पूर्वमघा प्रषस्तो।

स्त्रीपुंसतारैक्य परिग्रहे तु, शेषा विवर्त्या इति संगिरन्ते।।          (ज्योतिर्निबन्धोक्त)

*   शुक्रे जीवे तथा सौम्ये एकराषीष्वरो यदि ।

नाडीदोषो न वक्तव्यः सर्वथा यत्नतो बुधैः।।              (विवाह कुतूहल)

          मिथुन, कन्या, धनु, मीन, वृष, तुला इन राषियों में से कोई एक राषि वर व कन्या की एक साथ हो तो नाड़ी दोष नहीं लगेगा।

*   विवाह निसर्ग .शुभ ग्रह, बुध, गुरू, शुक्र यदि दोनांे की राषियों के स्वामी हों .नाड़ी दोष नही बनता है।

*      गोदावरी के दक्षिण की ओर स्थित शहरों, महाराष्ट्र, मैसूर, मद्रास, आन्ध्र प्रदेष आदि प्रान्तों में नाड़ी दोष का विचार आवष्यक नहीं है।

प्रमाण- गोदावरी दक्षिणतो भावच्च मलयानिलः।

                     त्यजन्ति तेषु देषेषु नाड़यैक्यं न करग्रहै।। (मुहूर्त दीपिका)

*     यदि वर वधु की राषि एक ही हो किन्तु नक्षत्र चरण भिन्न्ा हो तो नाड़ी दोष नहीं होता। (नक्षत्र चरण 1-4 या 2-3)

*        दोनांे की राषि एक हो किन्तु नक्षत्र अलग-अलग हो तो भी नाड़ी दोष नहीं होता ।

भकूट- ग्रह मैत्री के दोष को समाप्त एवं ग्रह मैत्री भकूट के दोषों को समाप्त एवं नाड़ी दोष लेने पर त्याज्य।

*   राहिण्यार्द्रा मृगेन्द्राग्नी पुष्य श्रवण पौष्णभम्।

उत्तराप्रौष्ठपाच्चैव नक्षत्रैक्येऽपि शोभनम् ।।

          अर्थात् राहिणी, आर्द्रा, मृगाषिरा, पुष्य, विषाखा, श्रवण, उ.भा. रेवती इन आठ नक्षत्रों मे से किसी एक नक्षत्र में चरण भेद न होते हुए भी वर-कन्या दोनों का जन्म हो तो नाड़ी दोष नहीं है।

 

          नाड़ी दोष मुक्त राषि:-  यदि वर एवं वधु के राषि स्वामी बुध गुरू अथवा शुक्र हो तो भी नाड़ी दोष नहीं लगता। (3.6.9.12.2.7 राषि )

प्रमाण- शुकः सौम्यो तथा जीव एक राषिष्वरो यदि।

                    नाड़ी दोषो न वक्तव्यः सर्वथा यत्नतो बुधैः।।

(कन्या तथा वर - मिथुन.कन्या/धनु. मीन/वृष. तुला राषि के है।) 

           यदि आवष्यक हो तो  महामृत्युंजय जप गौदान स्वर्णदान करके ब्राह्मणों को प्रसन्न्ा करें। तो भी नाड़ी दोष का परिहार होता है।

प्रमाण- दोषापनुत्तये नाड्या मृत्युंजय जपादिकम्।  

               विधाय ब्राह्मणांष्येव अर्पयेत् कांचनादिना।। -बृहज्ज्यौतिषसार


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