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उपयोगी जानकारी – धनतेरस से दीपावली



 उपयोगी जानकारीएवं पुजा विधि  धनतेरस से दीपावली


               स्मरणीय – *किसी भी कार्य की पूर्णता,सफलता  उस कार्य के प्रारंभ समय (जो प्रचलन में मुहूर्त कहलाता है,जबकि मुहूर्त का शाब्दिक अर्थ भिन्न है  )की श्रेष्ठता पर आधारित होती है |
Ø  पूजा प्रदत्त समय में प्रारंभ करना  मुख्य तथ्य है |मुहूर्त के बाद ,कार्य पूर्ण होने से  कोई हानि नहीं |
       क्योकि सही समय किया गया कार्य सभी विघ्न बाधाओं का शमन करता है |
Ø  *तिथि,दिन,योग,करण,लग्न ,होरा,द्विघटी किसी कार्य के लिए श्रेष्ठ समय के निर्धारक बिंदु है |
Ø  
स्थिर लग्न--स्थिर लग्न में कोई भी कार्य प्रारंभ करने से स्थायी परिणाम मिलते हैं | लक्ष्मी पूजा करने से धन ,गणेश पूजा से विघ्न नाश ,कुबेर पूजा सम्पदा,वस्त्र अलंकार प्रयोग से जब भी उन वस्त्रो या आभूषण पहने गे सफलता मिलेगी एवं वे टिकाऊ रहेंगे |
वृषभ लग्न - तुला राशी ,कुम्भ राशी ,मिथुन राशी के लिए विशेष उपयोगी नहीं हैं | परन्तु पूजा लाभदायी होतीहै |

धनतेरस    
थोड़ी-सी नागकेसरएक ताँबे का सिक्काअखण्डित हल्दी की एक गाँठएक मुट्ठी नमकएक बड़ी हरड़एक मुट्ठी गेहूँ और चाँदी या ताँबे की एक जोड़ा छोटी-सी पादुकाएँ लें । यह समस्त सामग्री हल्दी से रंगे एक स्वच्छ पीले कपड़े में बाँध लें ।
बुध की होरा में यह कपड़ा अपने रसोईघर में कहीं ऐसे स्थान पर टाँग दें
ü तीसरे दिन दीपावली की रात्रि लक्ष्मी जी की पूजा के पश्चात् टंगी हुईउस पोटली पर एक पिसी हल्दी डालकर ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ मंत्र की एक माला जपें ।
इसके बाद नित्य सायंकाल पोटली के पास जाकर यथा-भक्ति धूप-दीप जलाएँ और उक्त मंत्र की एक संख्या निश्चित करके जप करते रहें ।
ü अगले वर्ष धनतेरस को यह पोटली समस्त सामग्री बदल कर उपरोक्त विधि से पूजा-अर्चना करके पुनः यथास्थान टाँग द
ü प्रयोग से पूरे वर्ष घर में अन्नपूर्णा की कृपा के साथ-साथ सुख और शान्ति का वातावरण बना रहेगा ।
धनतेरस को किसी भी समय कुछ कचनार के पत्ते तथा नागकेसर ले आइए । उसी दिन एक चाँदी की छोटी-सी डिब्बी भी ले आइए । दीवाली की रात्रि तीनों वस्तुओं की लक्ष्मी स्वरुप मानकर श्रद्धा से पूजा-अर्चना करें । इसके बाद पत्ते तथा नागकेसर डिब्बी में बन्द करके घर या दुकान में किसी अलमारी या पैसे रखने के स्थान में रख दें ।
ü समुद्र मंथन प्रकरण -भगवान विष्णु 'धनवंतरिके रूप में कलश में अमृत लेकर समुद्र से निकले /प्रकट हुए (देवो को अमरत्व प्रदान करने के लिए)  थे। * -स्टील के अतिरिक्त ताम्बा,चांदी ,पीतल खरीदना शुभ है|
पूजा प्रारम्भ  करने का श्रेष्ठ समय-शुभ कार्य समय एवं पूजा समय प्रातः 6:22 से 8:00 बजे तक.
10:10 से 10:38 तक.
दोपहर में 1:23 से 1:59 तक.
एवं 2:54 तक भी उपयुक्त है
शाम को 5:13 से 5:26 तक विशेष उपयोगी समय है.
4:21 से 5:26 तक धन से संबंधित कार्यों के लिए श्रेष्ठ समय है.अशुभ-कुम्भ राशि ;
नरक चतुर्दशी  
थोड़ी.सी नागकेसरए एक ताँबे का सिक्काए अखण्डित हल्दी की एक गाँठए एक मुट्ठी नमक एक बड़ी हरड़ एक मुट्ठी गेहूँ और चाँदी या ताँबे की एक जोड़ा छोटी.सी पादुकाएँ लें । यह समस्त सामग्री हल्दी से रंगे एक स्वच्छ पीले कपड़े में बाँध लें । 
बुध की होरा में यह कपड़ा अपने रसोईघर में कहीं ऐसे स्थान पर टाँग देंए ।
ü तीसरे दिन दीपावली की रात्रि लक्ष्मी जी की पूजा के पश्चात् टंगी हुईए उस पोटली पर एक पिसी हल्दी डालकर ष्ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चेष् मंत्र की एक माला जपें । 
इसके बाद नित्य सायंकाल पोटली के पास जाकर यथा.भक्ति धूप.दीप जलाएँ और उक्त मंत्र की एक संख्या निश्चित करके जप करते रहें ।
ü अगले वर्ष धनतेरस को यह पोटली समस्त सामग्री बदल कर उपरोक्त विधि से पूजा.अर्चना करके पुनः यथास्थान टाँग द
ü ें । इस प्रयोग से पूरे वर्ष घर में अन्नपूर्णा की कृपा के साथ.साथ सुख और शान्ति का वातावरण बना रहेगा । 
धनतेरस को किसी भी समय कुछ कचनार के पत्ते तथा नागकेसर ले आइए । उसी दिन एक चाँदी की छोटी.सी डिब्बी भी ले आइए । दीवाली की रात्रि तीनों वस्तुओं की लक्ष्मी स्वरुप मानकर श्रद्धा से पूजा.अर्चना करें । इसके बाद पत्ते तथा नागकेसर डिब्बी में बन्द करके घर या दुकान में किसी अलमारी या पैसे रखने के स्थान में रख दें ।
Ø स्कन्दपुराण में कहा गया है कि कार्तिक के कृष्णपक्ष में त्रयोदशी के प्रदोष.काल में यमराज के निमित्त दीप और नैवेद्य समर्पित करने पर अपमृत्यु का नाश होता है । ऐसा स्वयं यमराज ने कहा था ।
ü यमदीपदान प्रदोषकाल में करना चाहिए । इसके लिए मिट्टी का एक बड़ा दीपक लें और उसे स्वच्छ जल से धो लें । तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियाँ बना लें । उन्हें दीपक में एक.दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियोँ के चार मुँह दिखाई दें । अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें । प्रदोषकाल में इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोलीए अक्षत एवं पुष्प से पुजन करें । 
ü घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी.सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है । दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए चारमुँह के दीपक को खील ;लाजाद्ध आदि की ढेरी के ऊपर रख दें
ü  मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह । त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति ।। अर्थात् त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्युए पाशए दण्डए काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों । उक्त मन्त्र के उच्चारण के पश्चात् हाथ में पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए यमदेव को दक्षिण दिशा में नमस्कार करें  ॐ यमदेवाय नमः । नमस्कारं समर्पयामि ।। अब पुष्प दीपक के समीप छोड़ दें और पुनः हाथ में एक बताशा लें तथा निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए उसे दीपक के समीप छोड़ दें  
ॐ यमदेवाय नमः । नैवेद्यं समर्पयामि ।। अब हाथ में थोड़ा.सा जल लेकर आचमन के निमित्त निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए दीपक के समीप छोड़ें  ॐ यमदेवाय नमः ।  कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें ।
पूजा प्रारम्भ  करने का श्रेष्ठ समय-
तिल के तेल का श्रेष्ठ इसका प्रयोग 5:50 से 7:00 बजे तक दक्षिण दिशा की ओर वर्तिका तथा दीपक कर रखना चाहिए .
प्रदोष काल 8:15 तक है
तथा वृषभ लग्न 6:58 से 8:56 रात्रि तक है.
इस प्रकार दीपदान का श्रेष्ठ समय 5:50 से 8:15 तक सिद्ध होता है.
  *
मंत्र सिद्धि एवं अनुष्ठान के लिए -
          
रात्रि 11:40 से 12:25 तक उत्तम समय है. इसके साथ ही रात्रि 1:18 से 3:30 बजे तक सिंह लग्न में में भी अनुष्ठान कार्य किए जा सकते हैं
   * 
विभिन्न राशियों का शुभ अशुभ प्रभाव*
      
आज का दिन  वृश्चिक राशि धनु राशि के लिए सर्वोत्तम है
मिथुन तुला कुंभ राशि के लिए अशुभ बाधा व्यय विवाद कारक है
जबकि अन्य राशियों के लिए सामान्यतः शुभ दिन .
          *
विभिन्न विभिन्न अशुभ काल जो कि किसी भी कार्य के लिए बाधा कारक परंतु पूजा के लिए उत्तम है.-
      
प्रातः 6:22 से 8:28 तक अशुभ योग हैं.
राहुकाल 9:13 से 10:39 तक है .
जबकि यम घंट  दोपहर 1:30 बजे से 2:55 तक अशुभ स्थिति दर्शा रहा है.
       
दीपावली    7नवम्वर  संक्षिप्त पूजा विधि एवं पूजा शुभ समय 
पूजा प्रारम्भ  करने का श्रेष्ठ समय-

1- सफलता एवं कामना पूरक अभिजीत / विशुद्ध अमृत काल महत्व है -
श्रेष्ठ सिद्धि काल रात्रि 11:42 से 12:25 तकस्थिर लग्न किसी भी कार्य के लिए स्थाई शुभ प्रभाव देने वाली प्रातः 8:10 से 10:10 तक
कुंभ लग्न 2:17 से 3:35 तक .
रात्रि कालीन सिद्धि काल सिंह राशि की लग्न 1:20 से 3:25 तक उपलब्ध है
होरा आधारित सर्व दोष मुक्त  मंगल शुभ कल्याण प्रद कार्यों के लिए शुभ समय**
   *
व्यापारिकज्ञान  नए वस्त्र आदि धारण करने एवं अनुबंध आदि कार्यों के लिए प्रातः 8:16 से 9:13 तक रात्रि 9:58 से 11:01 तक विशिष्ट काल है.
    *
विभिन्न राशियों के लिए शुभ अशुभ समय*
कर्क राशि वालों के लिए यह समय वर्जित है शेष सभी राशियों के लिए उत्तम समय है विशेष रूप से ब्रश मिथुन कन्या तुला मकर कुंभ राशि वालों के लिए श्रेष्ठ समय है.
    *
शैक्षिक विद्या नए वस्त्र एवं आभूषण धारण करने के लिए एवं मंगल कार्यों के लिए 1:07 से 2:04   बजे तक अति उत्तम समय है.
तथा दोपहर पश्चात 5:48 से 6:49 एवं रात्रि कालीन 1:07 से 2:11 तक जिससे शुभ समय है.
   -*  
राशियों के लिए लिए समय शुभ अशुभ*
मकर एवं कुंभ राशि के लिए वर्जित के अनुरूप है जबकि अन्य राशि वालों के लिए शुभ है विशेष रूप से मेष कर्क सिंह वृश्चिक धनु एवं मीन राशि के लिए श्रेष्ठतम है.

       *
सामान्यता सभी प्रकार के मंगल कार्यों के लिए प्रातः 9:13 से 10:10 तक एवं रात्रि 11:07 से 12:02 तक विशेष अनुकूल समय है.
      *
राशियों के लिए समय शुभ अशुभ*
   
मिथुन राशि के लिए यह समय उपयुक्त नहीं है जबकि अन्य सभी राशियों के लिए  उत्तम है 

1-          मन्त्र-Ø  ॐ गं गणाधिपतये नमः |v  -ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभ्यो नमः॥
v  ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम॥Ø  : ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
v  ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये देहि दापय स्वाहा॥धनधान्यसमृद्धिं मे ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥v  ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥
दीपमालिका दीपक पूजनम्ः
किसी पात्र में ग्यारह इक्कीस या उससे अधिक दीपकों को प्रज्जवलित कर महालक्ष्मी के समीप रख कर उस दीपज्योति का ऊँ दीपावल्यै नमः इस नाम मन्त्र से गन्धादि उपचारों द्वारा पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करे -
ध्यानम् -
भो दीप! ब्रम्हा रुपस्त्वं हान्धकार विनाशकः।
गृहाण मया कृतां पूजां, ओजस्तेज, प्रवर्धय।।
प्रार्थना करे:
त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्रन्द्रो विद्युदग्निश्च तारका।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुख सम्पदाम्।
मम बुद्धि प्रकाशं च दीप-ज्योतिर्नमोअस्तुते।।
शुभं भवतु कल्याणमारोग्यं पुष्टि-वर्धनम्।
आत्म तत्व-प्रबोधाय दीप ज्योतिर्नमोअस्तु ते।।
दीपावलिर्मया दता गृहाणात्वं सुरेश्ररि।
अनेन दीप दानेन ज्ञान दृष्टि प्रदा भव।।
    दीप मालिकाओं का पूजन कर अपने आचार के अनुसार संतरा, ईख पानी फल धान का लावा इत्यादि पदार्थ चढाये। धान का लावा खील गणेश महालक्ष्मी तथा अन्य देवी देवताओं को भी अर्पित करे। अन्त में सभी दीपकों को प्रज्जवलित कर सम्पूर्ण गृह अंलकृत करे।
प्रधान आरती -
     इस प्रकार भगवती महालक्ष्मी तथा उनके सभी अग प्रत्यगों एवं उपागों का पूजन कर लेने के अनन्तर प्रधान आरती करनी चाहिये। इसके लिये एक थाली में स्वस्तिक आदि मांगलिक चिन्ह बनाकर अक्षत तथा पुष्प के आसन पर किसी दीप आदि में घृतयुक्त बती प्रज्जवलित करे। एक पृथक पात्र में कपूर प्रज्जवलित कर वह पात्र थाली में यथा स्थान रख ले। आरती थाल का जल से प्रोक्षण कर ले।
आरती -
ऊँ चक्षुर्द सर्व लोकानां तिमिरस्य निवारणं।
आर्तिक्यं कल्पितं भक्त या गृहाण परमेश्वरी।।
देवि प्रपत्रार्ति हरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोअखिलस्य।
प्रसीद विश्रेश्वरि पाहि विश्रत्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।
नीराजनं सुमाडल्यं कर्पूरेण समन्वितम्।
चन्द्रार्क वहि सदृशं महादेवि नमोअस्तुते।।
कर्पूरगौरं करुणावतारंसंसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।।

श्री लक्ष्मीजी की आरती
ऊँ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसिदिन सेवत हर विष्णु धाता।
उमा रमा ब्रहाणी तुम ही जग माता।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।
दुर्गा रुप निरजनि सुख-सम्पति दाता।
जो कोई तुम को ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता।।
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभ दाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि भवनिधि की त्राता।।
जिस घर तुम रहती तॅह सब सदुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान पान का वैभव सब तुम से आता।।
शुभ गुण मन्दिर सुन्दर क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहि पाता।
महालक्ष्मी जी की आरति, जो कोई नर गाता।
उर आनंद समाता, पाप उतर जाता।।
मंत्र-पुष्पाजलि-
दोनों हाथो में कमल आदि के पुष्प लेकर हाथ जोड़कर निम्न मन्त्रों का पाठ करे।
ऊँ यज्ञेन यज्ञ मय जन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्। ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः। ऊँ राजाधि राजाय प्रसहा साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे। स मे कामान् काम कामाय महां कामेश्ररो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः।
ऊँ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं महाराज्यमधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात् सार्वभौमः सार्वायुषान्ता दापरार्धात्। पृथिव्यै समुद्र पर्यन्ताया एकराडिति तदप्येष श्लोकोअभिगीतो मरुतः परिवेष्ठारो मरुतस्यावसन् गृहे। आविक्षितस्य काम प्रेर्विश्वेदेवाः सभासद ।
ऊँ विश्रतश्रक्षुरुत विश्र तो मुखो विश्रतो बाहुरुत विश्रतस्पात्।
सं बाहुभ्यां धमति सं पतत्रैद्यावाभूमी जनयन् देव एकः।।
महालक्ष्म्यै च विद्यहे विष्णुु पत्न्यैच धीमहि तत्रो लक्ष्मी प्रचोदयात्।।
ऊँ या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः
पापात्मनां कृतधियां हदयेषु बुद्धिः।
श्रद्धा सतां कुलजन प्रभवस्य लज्जा।
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्रम्।।
ऊँ महालक्ष्म्यै नमः मन्त्र पुष्पाजलिं समर्पयामि।।
हाथ में लिये फूल महालक्ष्मी पर चढा दें। 
प्रदक्षिणा कर साष्टाग प्रणाम करें।
प्रदक्षिणाः
ऊँ यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च।।
तानि तानि, विनश्यन्ति प्रदक्षिणा पदे पदे।।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेष शरणं देवि।।
तस्मात् कारुण्य-भावेन, क्षमस्व परमेश्ररि।।
श्री महालक्ष्मी देव्यै प्रदक्षिणां समर्पयामि।।
साष्टाग प्रणाम मन्त्रः
ऊँ नमः सर्व हितार्थाय जगदाधार हेतवे।
साषाडोअयं प्रणामस्ते प्रयत्नेन मयाकृतः।।
ऊँ भवानि! त्वं महालक्ष्मीः सर्व काम प्रदायिनि।
प्रसत्रा सन्तुष्टा भव देवि! नमोअस्तु ते।।
अनेन पूजनेन श्री लक्ष्मी देवी प्रीयताम् नमो नमः।।
क्षमा-प्रार्थना
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपत्रानां सामेभूयात्वदर्चनात्।।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्ररि।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्ररि।।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे।।
त्वमेव माताच पिता त्वमेव। त्वमेव बन्धुश्रसखात्वमेव।।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव। त्वमेव सर्वं मम देव देव।।
पापोअहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः।
त्राहिमां परमेशानि सर्वपापहरा भव।।
अपराध सहस्त्राणि क्रियन्तेअहर्निशं मया।
दासोअयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्ररि।
सर सिज निलये सरोज हस्ते, धवल तरांशुक गंध माल्य शोभे।
भगवति हरि वल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूति करि प्रसीद महाम्।।
पुनः प्रणाम करके ऊँ अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्री महालक्ष्मीः प्रसीदति। यह कह कर जल छोड दे। ब्राहम्ण एवं गुरुजनों को प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करे।
विसर्जन:
पूजन के अन्त में हाथ में अक्षत लेकर नूतन गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़ कर अन्य सभी आवाहित प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं को अक्षत छोडते हुए निम्न मन्त्र से विसर्जित करे -
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्।
इष्टकाम समृद्धर्थ पुनरागमनाय च।।






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श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा जाता है   | पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक होता है | पितृ श्राद्ध किस देव से स

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -