(शिव तांडव स्त्रोत –अधिकांश गायकों ने 15 श्लोक तक ही इसको स्वरबाद्ध किया है ,जबकि 17 श्लोक हैं । इस स्त्रोत को पढ़ने से धन अपव्यय रुकता है ,लक्ष्मी स्थिर होती है एवं सुख समृद्धि वृद्धि होती है धार्मिक -शिव भक्त जन के लिए सरल शुद्ध पठनीय हमारे द्वारा अर्थ सहित प्रस्तुत –संदर्भ-श्रावण माह )
श्री रावण कृतं शिव ताण्डव स्तोत्रं
1जटाटवी गलदजल ,प्रवाह पावित स्थले गले अवलम्ब्य लम्बितां, भुजंग तुंग मालिकां |
डमडडम डमडमन, निनादवत डमर्वयम, चकार चण्ड ताण्डवं ,तनो तुनः शिवः शिवम् |
(*ड=आधा उच्चारण)
- सघन जटा रूपी जंगल (वन )से प्रवाहमान गंगा की विभिन्न धाराये जिन सदा शिव जी की कंठ का प्रक्षालन करती हैं, जिनके गले में बृहद आकार के सर्प मालाओं जेसे लटक रहे हैं, जो शिव जी डम-डम डमरू वाद्य यंत्र बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे सदा शिव हमारा कल्यान करें. |
2-जटा कटाह सम्भ्रम ,भ्रमन निलिम्प निर्झरी; विलोल वीचि वल्लरी ,विराज मान मूर्धनि |
धगद धगद धगद ,ज्वल ललाट ,पट्ट पावके; किशोर चन्द्र शेखरे, रतिः प्रति क्षणं मम |
(*द=आधा उच्चारण)
- गंगा की वेगवान लहरे, विलास पुर्वक देवाधिदेव शिव जी के जटाओं के मध्य से ,
लताओं सद्रश्य भ्रमण करती हुई, शीश पर विराजित हैं, |
मस्तक पर धधक-धधक कर अग्नि की प्रचण्ड ज्वालायें प्रज्वलित हो रहीं हैं,
उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिवजी के प्रति मेरा अंनुराग लगाव प्रतिक्षण बढता रहे।
(३)-धरा धरेन्द्र नन्दिनी, विलास बन्धु:, बन्धुर स्फ़ुरत,दिगन्त संतति ,प्रमोद मान मान से,
कृपा कटाक्ष धोरणी ,निरुद्ध दुर्धरापदि |क्वचिद दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि |
- -जो सदा शिव ,पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के विलासमयी मनोहारी,चित्ताकर्षक कटाक्षों से परम प्रसन्न रहते हैं, जिन सदा शिव में सम्पूर्ण सृष्टि के प्राणीगण निवास करते हैं, ऐसे शिव की कृपादृष्टि से ही सर्व आपत्ति विपत्ति दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर (आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले) धारी शिवजी की आराधना अनुराग से मेरा मन मुदित रहे।
(४)जटा भुजंग, पिंगल: स्फुरत ,फणा मणि प्रभा |कदम्ब कुमकुम द्रव प्रलिप्त ,दिग्वधू मुखे |
मदान्ध ,सिन्धु:, स्फुरत त्वक उत्तरीयमेंदुरे. | मनो विनोद अदभुतम बिभर्तु भूत भर्तरि |
- सदा शिव की जटाओं से लिपटे ,सर्पों की मणियों से प्रसारित ,पीत रंग के प्रभा- पुंज -प्रकाश की काँति से सर्व दिशाएं दीप्तिमान हैं ,आलोकित है प्रकाशमयी हैं |जो गजचर्म स्कंध उपरी(उत्तरीय) धारित हैं।जो विश्वके पालक पोषक हैं मैं उन सदा शिव- शिवजी के स्मरण अनुराग में सदैव परम प्रसन्न रहूँ |।
5-सहस्र लोचन प्रभृत्य , शेष लेख शेखर |प्रसून धूलि धोरणी ,विधूसरांघ्री पीठ भूः|
भुजंग राज मालया, निबद्ध जाट जुटक: |श्रिये चिराय जायतां,चकोर बंधू शेखर: |
- जो सर्वदृष्टा हैं | शिव जी के चरण ,देवताओं के मस्तक के पुष्पों से अलंकृत हैं |
केशो से निर्मित जटाओं पर लाल सर्प विराजित है, ऐसे चन्द्र शेखर हमें चिरकालींन स्थायी धन सम्पदा दें।
6-ललाट चत्वर ज्वलत धनञ्जय ,स्फुलिंगभा |अभा निपीत ,पंचसायकम् ,नमन निलिम्प नायकम |
सुधा मयूख लेखया विराजमान–शेखरं लेखया महा कपालि–सम्पदे–शिरो–,जटालम अस्तु नः | - इन्द्रादि देवताओं का दर्प (/अहम/घमंड )के दहन कर्ता शिव जी ने , कामदेव को अपने भाल पर धधकती प्रचंडअग्नि ज्वाला से भस्मीभूत कर दिया| एसे शिव जो सर्व देवताओं के मस्तक के पुष्पों से ( देवो द्वारा) वंदित,पूज्य हैं| चन्द्रमा और देवी गंगा द्वारा, जिनकी शिखा शोभित हैं, वे सर्व सिद्धि सदा शिव जी संपदा प्रदान करें।
7- -कराल भाल पट्टिका ,धगद धगद धगद ,ज्वलत धनंजय, आहुती कृत ,प्रचंड पंचसायक: |
धरा धरेंद्र नंदिनी ,कुचाग्र चित्र पत्रक :,प्रकल्प अनैक, शिल्पिनि त्रिलोचने रति :मम |
-जिनके मस्तक की धक-धक-धक् करती प्रचण्ड ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया तथा जो पर्वत राज हिमालय की पुत्री पार्वती जी (प्रकृति स्वरूपा के )स्तनाग्र पर अनेकानेक चित्र उकेरने में(विभिन्न परिकल्पनाओं को साकार मूर्त रूप देने में ) कुशल है ,उन शिव जी मे मेरा अनुराग रहे ।
(पार्वती की उपमा प्रकृति से हैं, तथा शिव की परिकलपना सृष्टि सृजक शिव है),
8-नवीन मेघ मण्डलि ,निरुद्ध दुर्धर:स्फुरत| कुहू निशीथिनी, तमःप्रबंध ,बद्ध कन्धरः |
निलिम्प निर्झरी, धर:तनोतु ,कृत्ति सिन्धुरः |कला निधान बन्धुरः ,श्रियं जगत् धुरन्धरः |
-जिनका कण्ठ नवीन वर्षाकालीन श्यामल मेंघों जेसा श्यामल ,आमवस की गहन रात्रि सा काला है,और जो गज-चर्म परिधान से युक्त, जटाओं मे देवी गंगा एवं भाल/माथे पर नव शिशु-चन्द्र द्वारा अलंकृत हैं शोभित हैं एवं समस्त विश्व का भर, दायित्व या बोझ धारक हैं, ऐसे सदा शिव हमे सर्व सुख शांति समृधि प्रदान करे ।
9-प्रफुल्ल नील पंकज ,प्रपंच कालिम प्रभावलंबी कंठ कन्दली, रुचि प्रबद्ध कन्धरम् |
स्मर: छिदम् ,पुरत इदम् ,भव: छिदम्, मखद इदम ,जगत इदम् ,अन्धकत इदम् ,तमत अन्तकम भजे |
- समग्रतःखिले नीलकमलों की नीलाभ श्यामल प्रभा से ,प्रकाशमयी शिव जी का कण्ठ और कन्धा है | जो सदा शिव जी -कामदेव , त्रिपुरासुर, संसारिक दु:ख, दक्ष यज्ञ, गजासुर एवं अन्धकासुर के संहारक /विनाशक हैं तथा जो मृत्यू विजयी हैं, मैं उन सर्व शक्तिमान शिव जी की वंदना करता हूँ|
10-अखर्व सर्व मंगला ,कला कदम्ब मन्जरी रस प्रवाह माधुरी ,विज्रिम्भणा मधुव्रतम्
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकम ,अन्धकान्तकं, तमान्तकं भजे |
-जो सर्व कल्याणकारी, अविनाशी,शाश्वत, समस्त कलाज्ञ, अमृत- रसज्ञ हैं, जिनने कामदेव को भस्म किया , त्रिपुरासुर, गजासुर, अन्धकासुर के सहांरक, दक्षयज्ञ विध्वसंक तथा जोस्वयं यमराज के लिए भी यमवत (मृत्युकारी)हैं, मैं उन शिव जी की प्रार्थना करता हूँ।
11-जयतु अद्भ्र विभ्रम भ्रमद भुजंगम श्वसद |विनिर्गमत क्रम स्फुरत ,कराल भाल हव्य वाट् |
धिमि धिमि धिमि, ध्वनि मृदन्ग, तुंग ,मंगल ध्वनि क्रम प्रवर्तित ,प्रचंड ताण्डवः शिवः |
- यत्र तत्र जटाओं में भ्रमण करते सर्पों की स्वांस , फूफकार से ललाट व्यापिनी प्रचंण अग्नि के मध्य ,
मृदंग की मंगलकारी धिम-धिम की ध्वनि के साथ, ताण्डव नृत्य में मग्न (रत,लीन )शिव हैं।
12-दृषद विचित्र तलप्यर , भुजंग मौक्तिक स्रज: |गरिष्ठ रत्न लोष्ठयोः ,सुर्हृद: विपक्ष पक्षयोः |
तृण अरविंद चक्षुषोः ,प्रजा मही महेन्द्रयोः |संप्रवर्तिकः कदा ,सदा शिवं भजाम्यहम्
-कठोर पत्थर या कोमल नरम शय्या, सर्प, बहुमूल्य रत्न, मोतियों की माला,
मिट्टी के टुकडों, शत्रू एवं मित्रों, राजा , प्रजा, तिनके या कमल पर समभावी हे (अर्थात सभी पदार्थ महत्वहीन हैं )शिव, कब मैं गंगा जी के कछारकुञ्ज/गुञ वासी होकर , निष्कपट, सिर पर अंजली रख चंचल नेत्र तथा ललाट वाले शिव जी की अर्चना का , कब अक्षय सुख का आनंद ले सकूँगा (अर्चना पार्थना के सागर मे चिरन्तन/ सदैव निमग्न /डूबा रहूँगा) |
13-कदा निलिम्प निर्झरी ,निकुंज कोटरे वसनि |विमुक्त दुर्मतिः ,सदा शिरःस्थम ,अन्जलिम |
वहन् विलोल लोल लोचनो ,ललाम भाल लग्नकः |शिवेति मन्त्रम उच्चरन् ,कदा सुखी भवामि अहम् |
मैं गंगा जी के कछार गुञ में निवास करता हुआ, निष्कपट हो, सिर पर अंजली धारण कर, चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिव जी का मंत्रोच्चार करते हुए, कब चिरकालीन सुख को प्राप्त करूंगा?
(16-)इमं हि नित्यम ऐवम उक्तम ,उत्तमोत्तम स्तवनम|
पठन् ,स्मरन् ,ब्रुवन नरो विशुद्धम ,इति सन्ततम
हरे. गुरौ सुभक्तिम आशुयाति न अन्यथा गतिं|
विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिन्तनम् |
इस सर्वोत्तम शिव ताण्डव स्त्रोत को नित्य पढने या श्रवण करने मात्र से प्राणि पवित्र हो कर प्रारब्ध पाप से मुक्त , परंगुरू शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।
(17)-पूजा अवसान समये दश वक्त्र गीतं |यः शम्भु पूजन परं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथ गजेन्द्र तुरंग युक्ताम |लक्ष्मीम सदैव सुमुखीम प्रददाति शम्भुः |
प्रात: शिव पूजन के पश्चात इस रावणकृत शिव ताण्डव स्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त सम्पदा से सर्वदा युक्त रहता है।
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