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चन्द्र ग्रहण 08 नवम्बर २०२२ – विश्वव्यापी प्रभाव

चन्द्र ग्रहण 08 नवम्बर २०२२ – विश्वव्यापी ग्रहों के प्रभाव

-ध्यातव्य-समस्त ग्रहों की स्थिति विशेष से  ही शुभ –अशुभ प्रभाव का सृजन होता है .कोई भी एक ग्रह आमूलचूल परिवर्तन नहीं कर सकता .

- राशी से फल कथन स्थूल एवं संभाविता (प्रोबेबिलिटी Theory)सिद्धांत परक मूल्याङ्कन ही केवल है .माइक्रो या सूक्ष्म फल कथन लग्न+नवांश,जन्म नक्षत्र चरण,दशा-अन्तर्दशा-70%प्रतिशत फल  +एवं नाम-30% फल =अधिकतम सटीक सत्य होता है .

निम्न लेख में सभी ग्रहों  की वस्तुपरक स्थिति को दृष्टिगत रखा गया है . ग्रहण का फल आगामी एक वर्ष तक ग्रंथो में लेख है.

- ग्रहण -

(भारत में जिस स्थान पर सूर्यास्त-18:22 तक होगा केवल उन स्थानों पर  सूर्य ग्रहण दिखाई देगा ,जिस स्थान पर नहीं दिखेगा,उन स्थानों पर सुतक नियम लागू नहीं होगा  एवं चराचर पर  कोई प्रभाव मान्य नहीं होगा  .)

सूर्योदय-सूर्यास्त के अनुसार ग्रहण दृश्य अलग अलग स्थान पर अलग अलग समय पर होगा. सुतक ग्रहण समाप्ति पर  समाप्त- भारत,पाकिस्तान,अफगानिस्तान,*रूस* ,आस्ट्रेलिया,उत्तर-पूर्व योरोप,अमेरिका,प्रमुख

-क्या करे?-

तुलसी एक दिन पहले तोड़ कर भोजन एवं पूर्व निर्मित सामान जिसमे जल तेल हो ,डालने से भोजन दोष मुक्त होता है . दिन में तोड़ ले ।-

                   सूतक भोजन वर्जित -सूर्य ग्रहण अनुकरणीय नियम🙏

 सूर्यग्रहण तु प्रहर चतुष्टयं न भुंजीत।

सूर्यग्रहण सें पहले चार प्रहर में भोजन न करें।

" बालवृद्धातुरैर्विना।"

वृद्ध, बालक, और रोगी इनको छोड़कर अन्य भोजन न करे।

" अमुक्तयोरस्तगयोरद्दृष्टवा परे हनि "

-चन्द्र सूर्य दोनो ग्रस्त अस्त हो जाय तो फिर चन्द्र सूर्य का दर्शन करके स्नानकर भोजन करना चाहिये।

"सन्ध्या काले यदा राहु अस्ते शशी भास्करो। तदहे नैव भुंजीत रात्रावपि कदाचन।"

जब संध्या समय राहु चन्द्र वा सूर्य का ग्रहण करे तब उस दिन रात्रि में किसी प्रकार भोजन नही करना चाहिये।

" सायंसंध्याया: सूर्यग्रहण अस्ते पूर्वेह्नि रात्रौ च न भोक्तव्यम्।"

सायं कालमें सूर्य ग्रस्तास्त हो जाय तो प्रथम दिन और रात्रि में भोजन न करें।

" ग्रस्मयाने भवेत्स्नानं ग्रस्ते होमो विधीयते।मुच्यमाने भवेद्दानं मुक्ते स्नानं विधीयते। "

ग्रहण के आदि अन्त में स्नान करना चाहिये, ग्रस्यमान में स्नान, ग्रस्त होनेपर हवन, मुक्त होनेपर दान और मुक्त हो जानेपर फिर स्नान करना चाहिये।

"सर्वेषामेव वर्णानां सूतकं राहूदर्शने ।

सचैलं तु भवेत्स्नानं सूतकान्तं च वर्जयेत्।

सचैल मुक्ति स्नानपरमिति। "

राहू दर्शन में सब वर्णो को सुतक लगता हे. इसमें सचैल स्नान(वस्त्र सहित) होता है. सुतक मे अन्न वर्जित हे .सचैल स्नान मुक्त होने पर करना चाहिये।

(अन्यमत से घरपर सचैल स्नान वर्जित भी हे)।  

"भुक्तौ यस्तु न कुर्वित स्नानं ग्रहणसूतके।

स सूतकी भवेत्तावद्यावत्स्यादपरो ग्रह:इदं च स्नानममन्त्रकं कार्यमिति।

"ग्रहण के सुतक ओर मुक्ति में स्नान नहीं करता हे वह दूसरे ग्रहणतक सूतकी रहता हे। यह स्नान बिना मन्त्र के करना चाहिये। (A.K.Shatri-Bundi)

 

सूर्यग्रहण में ग्रहण चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर (9) घंटे पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए।

वृद्ध, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं।

ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए।

ग्रहण के समय भोजन करने से मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक 'अरुन्तुद' नरक में वास करता है।

-   दान वस्त्र, वस्तु अन्न उत्तम-

ग्रहण के समय संकल्प कर काले,नीले,श्वेत वस्त्र (पुराने) वस्तु गायों को घास, पक्षियों को अन्नवस्त्र दान से   पुण्य प्राप्त होता है।

- क्या नही करना चाहिए-

1कोई भी शुभ व नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।

2 ग्रहण के दिन सूतक के प्रारम्भ से , ग्रहण समाप्ति तक पत्ते, और फूल नहीं तोड़ने चाहिए।

3 संतान वान गृहस्थ को ग्रहण और संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिए।

4 ग्रहण काल मे,दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का पुण्य नष्ट हो जाता है। (स्कन्द पुराण)

5 ग्रहण के समय कोई भी वस्तु,द्वार- खोलना, शयन, उबटन,मैथुन और भोजन –वर्जित हैं।

6 जिनके लिए अशुभ है उनको तथा गर्भवती महिला को ग्रहण नही देखना चाहिए

7ग्रहण के अवसर पर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिए। (देवी भागवत)

शेविंग, नाखून,बाल -कर्तन तथा वस्त्र प्रक्षालन नही करना  चाहिए.

- सुकार्य –

1- गंगाजल, नर्मदा जल-स्नान

जल में अथवा अपने तथा परिवारके सभी सदयों पर छिड़कना चाहिए.

स्नान एवम पेय जल में प्रयोग करे ।चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदायी होता है।'

2-ग्रहण कुप्रभाव से खाद्य सुरक्षा

ग्रहण के पहले खाद्य पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डालने पर , पदार्थ दूषित नहीं होते।

या पके हुए अन्न का परित्याग करगाय, कुत्ते को देकर, ताजा भोजन बनाना चाहिए।

3-पूजा-अर्चना,ध्यान-

2- चन्द्रग्रहण में किया गया  पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्यग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है,इसलिए गुरु,इष्ट देवी –देवता,रहू ,नवग्रह मन्त्र उपयोगी. ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम-जप अवश्य करें। - वेदव्यासजी

बुद्धि एवम स्मरण शक्ति वृद्धि का प्रयोग -

ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके ''ॐ नमो नारायणाय'' मंत्र या सरस्वती मंत्र जप करने के पश्चात ग्रहणसमाप्ति  पश्चात उस घृत को पी ले। मेधा (धारणशक्ति), स्मरण तथा वाक् वृद्धि  होती है।

5 ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान ।

- मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध ।

- समाप्ति पर वस्त्र सहित स्नान करना चाहिए।

स्त्रियाँ भी स्नान (सिर धोएं बिना) करे।

6ग्रहण पूरा होने पर सूर्य/चंद्र जो ग्रस्त हो/,जिसका ग्रहण हो उसका  बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए।

ग्रहण के कुप्रभाव-

 

देश, प्रदेश, विश्व, नगर पर कुप्रभाव

(हिंसा, प्राक्रतिक प्रकोप, शासक, राजदूत, नाविक,जल सेना, घटना)

" 1 -भारत में  वायव्य दिशा के प्रदेश (NE) प्रभावित।

2-गुजरात,द्वारका, सूरत, गिरनार, जूनागढ़, अजमेर झालावाड़, मथुरा, काशी, अयोध्या, उज्जैन एवम निकट के क्षेत्र,सिंधु नदी क्षेत्र, कश्मीर, बिहार, आसाम, उड़ीसा, ,

मुल्तान,कच्छ, राजस्थान, तमिल, उड़ीसा प्रजा,प्रसिद्ध शीर्ष पदस्थ व्यक्ति,( मंत्री, राज्यपाल आदि।) की प्रजा evm शासक के लिए विपत्ति कारक स्थिति बनेगी।

3-पर्वत,मंदिर, पर्वत, सिंधु नदी समीपस्थ नगर आदि विखंडन की घटना ।

-अरब, रूस, अमेरिका ,चीन,उक्रेन,यवन देश। ये देश सर्वाधिक मतभेद,हानी,शस्त्र प्रयोग करने वाले  होंगे .

-अमेरिका द्वारा चीन एवं अरब देश के विरुद्ध विशेष निर्णय एवं सक्रियता अपनाई जाएगी .15दिसंबर तक विश्व गतिरोध शांति का रहेगा.

-ग्रहण से 27 दिन की अवधि में विदेश में जल तांडव एवं नये 2 अधुनातम शस्त्र  विश्व को हिला कर रख देंगे .

4मित्र देशों में मतभेद होंगे। नई 2 संधियां आकार लेंगी।

- रंग (वस्तु , पशु, पक्षी,, खाद्य पदार्थ)के अनुसार  अशुभ फल

पशु पक्षी खाद्य पदार्थ वस्तु आदि जिनके रंग काले या काले मिश्रित होंगे तथा जिनके रंग सफेद होंगे वह सब ग्रहण के अनुसार प्रतिकूल प्रभाव में अथवा कष्ट मूल्य वृद्धि उत्पादन कम आदि की स्थिति उत्पन्न होगी जैसे कपास श्वेत है उड़द की दाल या तिल काले हैं इनके पादन में कमी एवं मूल्य वृद्धि अथवा इन का भाव उत्पन्न होगा पशुओं में गाय भैंस सूअर आदि सफेद काले रंग के होने के कारण को प्रभावित होंगे।

-    प्रभावित दिशा: पशु,पक्षी,जीव,मानव को त्रासद

- विश्व के NE +SE क्षेत्र - नगर ,प्रदेश, देश, विदेश में अनहोनी प्राकृतिक एवं मानवीय घटनाएं 16 दिसम्बर तक बढ़ेंगी।

- आर्थिक, वित्त, बैंक, ट्रस्ट कुप्रभावित

-उक्त वास्तविक, अवास्तविक, शीर्ष संस्थानों की कार्य शैली पर प्रश्न उठेंगे ।

-अर्थ सम्बंधित -धन अनुचित रूप से एकत्र होगा।

-शेयर, दलाल के कुकृत्य,घोटाले,रिश्वत कांड उद्घाटित होंगे।

-निवेशक ठगे जायेंगे।

कुप्रभावित वस्तु पदार्थ या आश्रित व्यवसाय-व्यापार

स्वर्ण, लोहा, बेकरी, रेस्तरां, बार बि क्यू, तंदूर, माचिस, तेजाब,रसायन, पेट्रोल, गैस, तैल, कांच, शराब।  किसान ,सेवक, जल पर आधारित व्यवसाई, देर से पचने वाले अनाज, वाहन या वाहन के प्रयोग में आने वाले पशु, रोलर या चक्की, पंचर जोड़ने वाले, चिकित्सा के उपयोग की वस्तुएं ,तीखे स्वाद की वस्तु मोटे अनाज या देर से पचने वाले अनाज की स्थिति अच्छी नहीं रहेगी।

-    रोग

कीट जन्य रोग ,नेत्र, गले से संबंधित, शिरोवेदना एवम गैस संबंधित रोग बढ़ेंगे। वायु एवं अग्नि नक्षत्र प्रभावित हैं .

पर्यावरण मौसम

ओला वृष्टि  या जल लहरे जीवन को अस्तव्यस्त बनायेंगी.योग 16 नवम्बर से 27 जनवरी तक  10 वर्षों की तूलना में अधिक संभव ।योरोप अधिक प्रभावित होगा.

फसल, खाद्य, वनस्पति

खरबूजा, तरबूज, तोरई, सीताफल, गन्ना एवं दालों की फसल उत्तम होगी ।

शीतकालीन फसल आंशिक  प्रभावित होगी ।

-ग्रहण का शुभ अशुभ फल : राशी –स्थूल विधि (कृष्ण पक्ष में अव्यवहारिक)

1अशुभ प्रभाव (सर्वाधिक पहला क्रम से कम/अल्प,अशुभ – मीन, मेष ,कर्क,तुला, वृश्चिक,मिथुन, राशि पर होगा ।

-नाम के प्रथम अक्षर से शुभाशुभ फल

अशुभ श्रेणी -   जिनके नाम(व्यक्ति,स्थान,देश,नगर,संस्थान,वस्तु,कम्पनी)अक्षर से प्रारंभ - ,*र*,, ,,,य-*यू, *दि,से दो, ,त्र,*च.*ल.*अ अक्षर पर होंगे उनके लिए (दैनिक व्यवहार में )कठिनाइयों का समय रहेगा।(अक्षर –ह अर्थात ह,हि,ही,हु,हू,हों,हे,है,हं सभी मात्र लागू ,कोई भी मात्र से युक्त नाम हो सकता है .)

2-शुभ फल वृष, सिंह ,धनु ,मकर, कुंभ,कन्या राशि पर होगा।

-जिनके नाम का प्रथम अक्षर ,,,,म.ट.ब,,,*ज*,,,,ये,यो,द-दा,,,, होगा उनके लिए आने वाला समय देने के बारे में सुख शांति सफलता समृद्धि प्रसिद्ध होगा।

राशी एवं नाम  परिणाम- संक्षेप शुभाशुभ-

- जन्म राशी एवं नाम दोनों विवरण में शुभ (सुख,शांति,सफलता,यश,आर्थिक प्रगति) होने पर आनेवाला समय उत्तम नए कार्य श्रीगणेश एवं  सफलता का सिद्ध होगा .

जैसे- वृष जन्म राशी एवं नाम मनीष अर्थात आगामी समय उत्तम सिद्ध होगा .

या जन्म राशी मीन एवं नाम लीना ,इसका अर्थ आगामी समय कष्ट,बाधा युक्त रहेगा .

या जन्म राशी मीन परन्तु नाम अमित अर्थात आनेवाला समय कष्ट एवं  सफलता दोनों के प्रभाव होंगे.

नाम के प्रथम अक्षर से अशुभ प्रभाव व्यक्ति,देश,प्रदेश,संस्था, जीव,स्थान,वस्तु-वर्ष अंत तक

अ इ , ऊ . ऐ चू, चे, चो ,ला ओ , , वि , वू कू, ,, छ हु , हे, हो, डा म़ा, मी , मू, मे टे टा, टी , टू पू , , , पू , , , ठ रू, रे , रो ता ना , नी , नू , नेनो ये , यो , भा , भी भे भो , *J, ख* गो , सा , सी , सू ,द दू ,, ,

नाम के प्रथम अक्षर से अशुभ प्रभाव व्यक्ति,देश,प्रदेश,संस्था, जीव,स्थान,वस्तु-वर्ष अंत तक 

 ली , लू , ले, लो,वे , वो , का ,की,के , को , , हि,डी, डु, डे, ड़ो, मो, टा, टी, टू

पे , पो , रा , री, या , यी , यूभू , , , ढग , गी गू , गेसे , सो , दा दी

राहुकवचम्
अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य चंद्रमा ऋषिः I
अनुष्टुप छन्दः I रां बीजं I नमः शक्तिः I
स्वाहा कीलकम् I राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः II
प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन् II
सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् II II
निलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः I
चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् II II
नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम I
जिव्हां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रीकः II II
भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ I
पातु वक्षःस्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुदः II II
कटिं मे विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः I
स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा II II
गुल्फ़ौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः I
सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण: II II
राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो I
भक्ता पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् I
प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु
रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् II II
II इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसंजयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं संपूर्णं II

*****************

राहु स्तोत्र 

राहुर्दानव मन्त्री च सिंहिका चित्त नन्दनः ।   

अर्ध कायः सदा क्रोधी चन्द्रा आदित्य विमर्दनः ॥ १ ॥     

रौद्रो रुद्र प्रियो दैत्यः स्वर्भानुर्भानुमीतिदः । 

  ग्रहराजः सुधा पायी राका तिथ्य अभिलाषुकः ॥ २ ॥   

  काल दृष्टिः काल रुपः श्रीकष्ठ ह्रदय आश्रयः ।   

विधुं तुदः सैंहिकेयो घोर रुपो महाबलः ॥ ३ ॥     

ग्रह पीडा करो द्रंष्टी रक्त नेत्रो महोदरः ।   

पञ्च विंशति नामानि स्मृत्वा राहुं सदा नरः ॥ ४ ॥   

  यः पठेन्महती पीडा तस्य नश्यति केवलम् । 

  विरोग्यं पुत्रमतुलां श्रियं धान्यं पशूं स्तथा ॥ ५ ॥     

ददाति राहुस्तस्मै यः पठते स्तोत्रम उत्तमम् । 

  सततं पठते यस्तु जीवेद् वर्ष शतं नरः ॥ ६ ॥     

  इति श्रीस्कन्दपुराणे राहुस्तोत्रं संपूर्णम् ॥  

****************************************************************15.10.2022 v.k.tiwari

 

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सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -