बरगद – ग्रह प्रभाव
भगवान विष्णु और बरगद का महत्व
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु बरगद के पेड़ की छाल में निवास करते हैं। जब प्रलय के दौरान संसार जल में डूब रहा था, तब भगवान विष्णु ने शिशु रूप में बरगद के पत्तों पर शरण ली थी। उन्हें इस रूप में वात-पत्र-शयिन कहा जाता है।
त्रिमूर्ति का प्रतीक
बरगद के पेड़ की जड़ों में भगवान ब्रह्मा, शाखाओं में भगवान शिव और छाल में भगवान विष्णु का वास माना गया है, जिससे यह त्रिमूर्ति का प्रतीक बनता है। यह पेड़ हिंदू श्मशान के पास लगाया जाता है, क्योंकि इसे मृत्यु के देवता भगवान यम से जोड़ा गया है।
भगवान शिव और बरगद की छाया
भगवान शिव को दक्षिणामूर्ति कहा जाता है, जो परिवर्तन और मृत्यु की दिशा की ओर मुख किए हुए होते हैं। यह वृक्ष शिव की तपस्या और साधना का प्रतीक है, क्योंकि शिव हमेशा इसकी छाया में विराजमान रहते हैं।
ज्ञान और आत्मसाक्षात्कार का प्रतीक
गौतम बुद्ध ने बरगद के वृक्ष की छाया में सात दिनों तक ध्यान किया, जिससे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। इसे अध्यात्म और ज्ञान का प्रतीक माना गया है।
प्रजनन समारोहों में बरगद का उपयोग निषेध
बरगद -घास को उगने नहीं देता,
- यह पुनर्जन्म या नवीनीकरण को रोकता है। इसलिए, इसे प्रजनन से जुड़े समारोहों जैसे विवाह और जन्म के दौरान नहीं उपयोग किया जाता।
बरगद का ज्योतिषीय महत्व
बरगद
मंगल एवं राहु के दोष दूर करता है।
, इसलिए मंगल ग्रह की शांति के लिए इसकी जड़ धारण करना लाभकारी माना जाता है।
वट वृक्ष की जड़ धारण करने से मंगल के दोष समाप्त होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
धन प्राप्ति और पूजा विधि
अमावस्या के दिन महिलाएं बरगद के चारों ओर धागा बांधती हैं और त्रिमूर्ति व पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। धन प्राप्ति के लिए, मनोकामना कहते हुए इसकी जटा में गांठ बांधने का विधान है।
बृहस्पति और राहु-केतु का प्रभाव
बरगद को बृहस्पति से, इसकी जड़ों को राहु और शाखाओं को केतु से जोड़कर देखा जाता है। इसकी पूजा से बृहस्पति ग्रह की स्थिति मजबूत होती है और जीवन में उन्नति होती है।
स्त्रियों के स्वास्थ्य में बरगद की भूमिका
बरगद की कोमल जड़ें धारण करने से महिलाओं के बांझपन के निवारण में लाभकारी मानी गई हैं।
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