विभिन्न पुराणों एवं विशेष देवी भागवत
पुराण मार्कंडेय पुराण में उपलब्ध जानकारी प्रस्तुत
पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी -
ज्योतिष शिरोमणि भोपाल
त्रिदेव में श्रेष्ठ मां भगवती योग
माया
देवी भागवत के पंचम स्कंध
में त्रिदेव में श्रेष्ठ मां भगवती को
बताया गया है.
व्यास जी द्वारा त्रिदेव ओं
की तुलना में भगवती की श्रेष्ठता प्रतिपादित की गई है .
भगवती योग माया के ही प्रभाव
से प्रत्येक युग में भगवान विष्णु विभिन्न अवतार लेते हैं .
अत्यंत रहस्य वाली भगवती नेत्र की पलक झपक ने मात्र से जगत की
उत्पत्ति पालन तथा सम्हार कर सकती हैं
इन्हीं मां भगवती योग माया
के द्वारा श्रीकृष्ण को प्रसूति गृह से निकालकर गोप राजनंद के भवन में पहुंचा कर
उनकी रक्षा की गई.
यही योग माया कंस के विनाश
के लिए श्री कृष्ण को मथुरा ले गई.
श्री कृष्ण को द्वारका बनाने की प्रेरणा इन्हीं मां भगवती ने दी मकड़ी के तंतु जाल में फंसे
कीट की भांति विष्णु महेश आदि सभी देवी भगवती की लीला से माया रूपी बंधन में पड़
जाते हैं और आवागमन के चक्र में भ्रमण करते रहते हैं
अर्थात मां देवी भगवती की पूजा का विशिष्ट महत्व है
एक वर्ष में तीन-तीन माह में इनकी पूजा के
अवसर आते हैं परंतु सामान्य वर्ग के लिए वर्ष में दो बार चैत्र एवम शारदीय नवरात्र
के रूप में इनकी पूजा का विधान है यह आगामी 6 माह तक आपत्ति विपत्ति को दूर करने मैं सक्षम है.
नवरात्रि के नव दिन शारदीय नवरात्र कहलाते हैं. शारदीय नवरात्रि के
अवसर पर खीर का भोग प्रतिदिन श्रेष्ठ माना गया है श्रीमद् देवी भागवत के अष्टम
स्कंध में इसका उल्लेख है.
दुर्गा जी के हवन के लिए -
प्रथम 3 दिन ही उपयुक्त हैं अर्थात 29 ,30 सितंबर एवं 1 अक्टूबर .
अग्निवास के आधार पर 29 , सितंबर 1,3,5,7,9 अक्टूबर भी विशेष उपयोगी है .
प्रथम 3 दिन सूर्य ग्रह की उपासना के लिए
सूर्य ग्रह के मंत्र का हवन भी विशेष उपयुक्त होगा. जिन कुंडली में
सूर्य अशुभ हो अथवा सूर्य की महादशा अंतर्दशा के बुरे परिणाम मिल रहे हो वह प्रथम 3 दिन यदि सूर्य का हवन करेंगे तो उनकी
समस्त आपत्ति विपत्ति दूर होंगी.
नवरात्रि के 9 दिनों की संक्षिप्त भोग एवं अर्पण सामग्री की जानकारी -
पुष्कर योग रात्रि में प्रारंभ होगा
जब पिए अमृत सिद्धि योग रात्रि 7:11 तक रहेगा.
स्वास्थ्य एवं रहने के लिए प्रतिपदा तिथि के दिन घी का दान एवं घी से
देवी की पूजा करना चाहिए तथा घी का ही दीपक प्रज्वलित करना चाहिए जिसकी बत्ती
उत्तर अभिमुख हो.
होने के कारण खीर का नैवेद्य अर्पण करना चाहिए
हस्त नक्षत्र होने के कारण घेवर कार्पण श्रेष्ठ माना गया है
दग्ध नक्षत्र शाम को ------तक शुभ कार्य में वर्जित है.
दीर्घायु होने के लिए ग्रहों के आयु पर बाधा जनक प्रभाव को दूर करने
के लिए द्वितीय तिथि को मां जगदंबा की पूजा शक्कर से करना चाहिए अर्थात शक्कर उनको
अर्पण करना चाहिए ब्राह्मण को भी शक्कर ही दान करना चाहिए.
सोमवार का दिन होने के कारण मां भगवती को दूध अर्पण करना चाहिए
चित्र नक्षत्र में देवी को दही बड़ा अथवा केवल बड़ा अर्पण करना
क्योंकि उड़द की दाल से निर्मित होता है उत्तम माना गया है
सिंदूर तृतीया है.
शुभ कार्य में सफलता के लिए 2:30 तक रवि योग है एवं विशेष पूजन के लिए
रात्रि 12:45 से भद्रा योग है
दुख एवं शोक से मुक्ति के लिए तृतीया तिथि को देवी भगवती की पूजा में
दूध अर्पण करना चाहिए एवं दूध का ही दान करना प्रशस्त है.
मंगलवार का दिन होने के कारण मां भगवती को केले का भोग श्रेष्ठ माना
गया है
स्वाति नक्षत्र होने के कारण खजूर का रस या खजूर का गुड़ हथवा खजूर
अर्पण करना चाहिए
2
1:01 तक शुभ कार्यों के लिए रवि योग है
साथ में अमृत सिद्धि योग भी
है.
विशेष पूजन के लिए 11:43 तक भद्रा योग
विघ्न बाधाओं से सुरक्षा के लिए चतुर्थी तिथि को देवी जगदंबा को मीठी
पूरी अर्थात हुआ अर्पण करना चाहिए एवं हुआ का ही दान करना शुभ होगा.
बुधवार का दिन है इसलिए मां भगवती को ताजा मक्खन का भोग लगाना श्रेष्ठ
होता है
विशाखा नक्षत्र में देवी को शुद्ध घी मिश्रित चने का चूर्ण या बेसन
अर्पण करना चाहिए
3
शुभ कार्य के लिए अनुकूल समय
रात्रि 12:18 तक सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ है
इसमें रवि योग भी सम्मिलित है.
*बुद्धि वृद्धि के लिए स्मृति के लिए
निर्णय क्षमता बढ़ाने के लिए मां भगवती की पूजा में अकेला अर्पण करना श्रेष्ठ होता
है एवं केले का दान करने से मनुष्य में बुद्धिमत्ता की वृद्धि होती है.
*गुरुवार का दिन होने के कारण लाल रंग
की शक्कर अथवा गुड़ से निर्मित शक्कर श्रेष्ठ मानी गई है
अनुराधा नक्षत्र में देवी को शहद अथवा मधु एक ही अर्थ है मां भगवती
को अर्पण करना चाहिए
4 अशुद्ध दग्ध नक्षत्र -है
गुरुवार का दिन होने के कारण श्वेत शर्करा जैसे शक्कर का भोग लगाना
उत्तम माना गया है
आज तेज एवं कांति वृद्धि के लिए सस्ती तिथि को मां जगदंबा को शहद
अथवा मधु अर्पण करना चाहिए एवं इसका दान करने से व्यक्ति में वह जितेश कांति तथा
प्रभाव शक्ति में वृद्धि होती है.
ज्येष्ठा नक्षत्र में देवी को जिमीकंद या सूरन अर्पण करने का विधान
है
5 पर्जन्य सप्तमी. सरस्वती पूजन.
विशेषकर विद्यार्थी एवं प्रतियोगी परीक्षाओं में सम्मिलित होने वालों के लिए
श्रेष्ठ अवसर है
सप्तमी तिथि को शोक मुक्ति के लिए गुड़ दान करना एवं भगवती को अर्पण
करना श्लोकों से मुक्ति के लिए श्रेष्ठ माना गया है.
भद्रा काल 9:52 रात्रि से रहेगा .
शनिवार का दिन होने के कारण
गाय के घी से निर्मित भोग अर्पित करना श्रेष्ठ माना गया है.
मूल नक्षत्र में मां भगवती को गुड़ अर्पण करना चाहिए
6 दुर्गा अष्टमी व्रत. शुभ कार्य के लिए ---से रात्रि अंत तक का समय रहेगा इसमें
सर्वसिद्धि योग .
संताप मुक्ति अथवा पूर्व में लिए गए निर्णय से मानसिक कष्ट से मुक्ति
या मनोविकार दूर करने के लिए अष्टमी तिथि को देवी को प्रसाद स्वरूप नारियल अर्पित
करना चाहिए एवं नारियल का दान करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है मनोरोग
मनोविकार में कमी आती है.
रविवार का दिन है खीर का भोग अर्पित करें
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में चुड़ा चावल का अर्पण करना चाहिए
7 दुर्गा नवमी सत युग तिथि मनुवादी तिथि.
शुभ कार्य के लिए mrit
अशुभ योग उपलब्ध है मृत्यु
योग शाम को 5:31 तक है
5:31 से सब कार्यों के लिए सफलता .
सर्वसिद्धि योग प्रारंभ होगा
जो रात्रि अंत तक रहेगा.
नवमी तिथि को भगवती को लावा या लाई अर्पण करने से एवं उसका दान
ब्राह्मण को करने से मृत्यु उपरांत भी सुख की प्राप्ति होती है या पर लोग गामी
होने पर परम सुख मिलता है ऐसा मार्कंडेय पुराण में उद्धृत है.
सोमवार का दिन है इसलिए दूध अर्पण श्रेष्ठ माना गया है.
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र होने के कारण दाग अर्पण किया जाए.
मां भगवती को इन 9 दिन के अतिरिक्त भी अन्य अतिथियों में किस वस्तु का अर्पण किया जाए
यह एक विशेष जानकारी दुर्गा मां भगवती जगदंबा के भक्तों के लिए या उन पर श्रद्धा
रखने वालों के लिए प्रस्तुत है
8 अक्टूबर को विजयदशमी नीलकंठ दर्शन शमी पूजन का
शुभ योग है .
शुभ कार्य के लिए रात को 8:58 तक उत्तम समय है
दशमी तिथि होने के कारण देवी को काले तिल अर्पण करना एवं उनका दान
करना आकस्मिक मृत्यु के भय को दूर करता है .अथवा यमलोक का भय नहीं रहता है .
9 अक्टूबर को पंचक 9:40 से प्रारंभ होगा. अशुभ नक्षत्र प्रभाव
रात 11:17 तक रहेगा.
एवं भद्रा 5:24 तक रहेगी.
एकादशी तिथि होने के कारण
मां भगवती को दही अर्पण करना चाहिए .दही अर्पण करने से मां की कृपा प्राप्त होती
है .
देवी का भक्त लोकप्रिय होता है.
10 अक्टूबर को पद्मनाभ व्रत है.
प्रदोष व्रत है .
शुभ कार्य के लिए रात्रि तक कोई अनुकूल समय नहीं है
द्वादशी तिथि होने के कारण मां भगवती को चावल से निर्मित का दान एवं भोग लगाना चाहिए .
इससे मां भगवती के प्रिये की स्थिति बनती है.
11 अक्टूबर को शुभ कार्य के लिए 7:33 तक उत्तम समय है .
त्रयोदशी तिथि होने के कारण मां भगवती को चना अर्पण करने एवं चने का
दान करने से लोकप्रियता राजनीति में उत्कर्ष एवं संतान के द्वारा पुत्र पुत्री
द्वारा संपन्नता एवं सुख प्राप्त होता है.
12 अक्टूबर को चतुर्दशी तिथि है.
शुभ कार्य के लिए रात्रि 7:57 तक अच्छा समय है
इसके उपरांत अशुभ समय
प्रारंभ हो जाता है.
देवी की विशेष पूजा के लिए
रात्रि को 12:41 से पूजा का विशिष्ट समय है.
चतुर्दशी तिथि होने के कारण
सत्तू अर्पण करना एवं दान करना मां भगवती की प्रिय शंकर जी की कृपा प्राप्त होती
है .
13 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा है
बाल्मीकि जयंती है
सर्वार्थ सिद्धि योग
सूर्योदय से 7:57 बजे तक प्रातः है.
पूर्णिमा तिथि होने के कारण
मां भगवती को खीर अर्पण करना चाहिए खीर का भोग लगाना एवं अर्पण करना सभी पितरों का
उद्धार करता है
एवं उन्हें संतुष्टि प्रदान
करता है इस दिन खीर का हवन भी करना चाहिए .
इस प्रकार प्रतिदिन अर्पण कर सामग्री आपत्ति विपत्तियों के निराकृत
एवं आने के पहले रोका जा सकता है
***
महुआ वृक्ष देवी का प्रिय, अन्य वृक्षों में देवी पूजा
सर्व आपत्ति विपत्ति निवारण एवं कामना पूर्वक महुआ वृक्ष के समीप
देवी की पूजा)
मां भगवती योग माया के स्मरण में महुआ वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व
है.
महुआ वृक्ष में देवी भगवती की पूजा करना चाहिए सभी कामनाओं की सिद्धि
एवं पूर्ति के लिए व्रत की पूर्णता के लिए महुआ के वृक्ष में स्थित देवी महेश्वरी
की स्तुति करना चाहिए देवी के निम्नांकित नामों का स्मरण महुआ वृक्ष के नीचे करना
चाहिए -
मंगला, वैष्णवी, माया कालरात्रि, दुर्गा, महामाया मातंगी काली कमल वासनी, शिवा ,सहस्त्र चरणा,
सर्व मंगल रूपिणी.
श्रीमद् देवी भागवत के
अष्टम स्कंध में पीपल, बट, नीम कैच, एवं वेर के वृक्ष में मंगला महेश्वरी
देवी का निवास है .
कटहल ,मदार करील ,जामुन आदि ,दुग्ध बल्ली में निवास करने वाली दया मूर्ति कृपालु करुणामूर्ति आप महान देवी
हैं यमलोक का भय दूर करने वाली यमराज के द्वारा आप की पूजा होती है यम की अग्रजा
है आपको बार-बार नमस्कार.
हे देवी आप शमभावा , सर्व संग,संग नाशिक अ काम में रूपा ,
कंकाल क्रुरा कामाक्षी, मीनाक्षी, मर्म
, माधुर्य रूप शीला, मधुर स्वर पूजिता ,महामंत्र वती,
प्रियंकारी ,मनुष्य मान सगमा ,मन थारी प्रियंकारी आदि नामों से प्रसिद्ध है,
***
दुर्गा मां भगवती की पूजा के दो मुख्य भाग्य एक भाग में मां भगवती का
आगमन द्वितीय भाग में मां भगवती के विजय स्वरूप की पूजा होती है प्रथम भाग आग मनी
में कैलाश धाम से मां पार्वती अपने मित्र ग्रह हिमालय में आती हैं अर्थात आग मनी
पूजा इसका प्रभाव षष्ठी तिथि तक रहता है सप्तमी अष्टमी और नवमी विजया कहलाती हैं
इन 3 दिन में पित्र ग्रह में मां की
उपस्थिति रहती है एवं मूर्ति में मां दुर्गा प्रवेश करती हैं जबकि आगमन में कलश
में मां दुर्गा की स्थिति मानी जाती है दसवीं को विजया का विसर्जन अथवा मां
पार्वती का अपने स्वामी पति ग्रह में गमन या यात्रा होती है सप्तमी से लेकर 10वीं तक दुर्गा पूजा का विशेष महत्व है
दुर्गा के प्रमुख तीन स्वरूप है महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती
मां भगवती का प्रथम शैलपुत्री स्वरूप हिमालय राज्य की पुत्री
शैलपुत्री कोटेश्वर चंद्र सी चमक तेज है और बैल पर बैठे हैं हाथों में त्रिशूल ऊपर
की मुद्रा है त्रिपुर सुंदरी व कन्याकुमारी मानी गई है ज्योति स्वरूप में
ब्रह्मचारिणी हाथ में जप की माला कमंडल धारण और गुरु स्वरूप अंबिका है यह ज्ञान
प्रदान करने में प्रमुख हैं गायत्री एवं बाली त्रिपुरसुंदरी रूप इनका प्रसिद्ध है
तृतीय चंद्रघंटा इनकी तीन आंखें 10 हाथ और दिव्या युद्ध अर्थशास्त्र हैं चंद्रघंटा के नाथ स्वर या आवाज
से ब्रह्मांड को आश्चर्यचकित करती हैं विस्मित करती हैं साधकों के विघ्नों को दूर
करने वाली हैं शत्रु की ना सुनी है यह उग्र स्वरूपा और अपने क्रोध से असुरों का
दमन करती हैं चतुर्थ स्वरूप शिव रितेश को धारण करने वाली वात्सल्य मई मां है यह
अपने भक्तों को पुत्र भक्त पालन करती हैं मां के समान वात्सल्य स्नेह देती हैं
छठवां शुरू कात्यायनी का कात्य गौतम उत्पन्न कात्यानी ऋषि द्वारा प्रोत्साहन हेतु
भगवती की साधना की गई थी उनके घर में मां भगवती "हुई गोपियों ने कृष्ण को
पाने के लिए कात्यानी देवी की पूजा की थी इसलिए अविवाहित कन्याओं के लिए कात्यायनी
देवी की पूजा या उसका मंत्र का प्रयोग करना लाभदायक होता है इसके पश्चात सप्तम
स्वरूप महानिशा कालरात्रि इनका नाम है भगवान विष्णु की योगनिद्रा यही कालरात्रि
हैं इन्होंने सम्मोहित कर मधु के टपका शहर किया था मधु करनी है कुर्तियों आचार
विचार के नाश हेतु उपासना सुबह इनका वर्ण कृष्ण है केस उठे हुए हैं गोल तीन नेत्र
हैं नासिका से निकलने वाली सांसे अग्नि जलाएं प्रगट होती हैं अंधकार में भी भक्तों
का मार्गदर्शन करती है प्राकृतिक प्रकोप अग्निकांड दुर्घटनाओं का शमन करती हैं आप
गंधर्व को वाहन के रूप में स्वीकार करती हैं यह काली के स्वरूप में सब अरोड़ा भी
हैं सम्मोहन के लिए यह श्रेष्ठ मानी गई है किसी भी प्रकार प्रेत बाधा कोई
टोने-टोटके कृपया आदि के लिए इनकी पूजा श्रेष्ठ होती है
पंडित बिजेंद्र कुमार तिवारी ज्योतिष मणि भोपाल - 9424446706
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