"रक्षाबंधन" - रक्षा का महापर्व (प्रभावशाली मंत्र,पौराणिक कथा, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में,रक्षाबंधन की वैज्ञानिकता,
💐🌹रक्षा का महापर्व "रक्षाबंधन"💐🌹
💐🌹रक्षा
का महापर्व "रक्षाबंधन"💐🌹
वैदिक पर्व
हमारी पुरातन संस्कृति के इतिहास मे रक्षाबंधन
ऐसा त्योहार है। जिसकी महिमा विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद से लेकर पुराणो
मे यात्रा-तत्र सुलभ है।
वेदो के अनुरूप अथर्ववेद,यजुर्वेद,सामवेद आदि में ज्योतिष मुहूर्त के अनुसार रक्षा सूत्र बांधा जाता है।
कान्यकुब्ज कश्यप एवं शांडिल्य गोत्र सामवेद के ही होते हैं।
श्राद्ध , गीतापाठ आदि
सामवेद के ब्राह्मण द्वारा पाठ से शीघ्र ही फलप्रद।|
सामवेदोय हरतालिका तीज हस्त नक्षत्र में रक्षासूत्र
बांधते है।
जिनको अपने गोत्र का ज्ञान नहीं उनको कश्यप ही
मानने का निर्देश है।
प्रिय की सुरक्षा का कवच-बंधन है -
रक्षाबंधन एक ऐसा बन्धन जिसमे हमे दुनिया के हर प्रिय को अशुभ प्रभाव से बचाने की कामना रहती है।
यह केवल भाई बहनों का त्यौहार मात्र नहीं है ,प्रचलन एवं
स्वीकार्यता अवश्य है |
अपने घर के देवी देवताओं को , पेड़ पौधों को , अपने गाड़ी वाहन आदि को ,अपने घर के पालतू जानवरों को , अपने व्यापार
व्यवसाय के क्षेत्र में तराजू , कलम व खाता बही में ,
कोई बहन अपने बच्चों को , कोई देश के सैनिकों
को , कोई राजनेताओं को , कोई
पुलिसकर्मियों को , गुरु एवं साधु संतों को भी रक्षाबंधन बांधते ।
सामाजिक सुदृढ़ता अनेकता में एकता का पर्व-
जीवन मे संबंधो की अटूट विश्वसनीयता या एकता बन्धन समाज रिश्तो के
लिए आवश्यक है |किसी भी प्रकार के बन्धन में प्यार , दुलार ,
ममता , आशीर्वाद , कामना
आदि का भाव होता है जिसके कारण हम एक पतले से धागे में मन - कर्म और वचन से बन्ध
जाते है।
रक्षाबंधन एक दूसरे को मानसिक रूप से आश्वस्त करता है।
पर्व के शाशवत प्रमाण , पुष्टि हेतु सुलभ है -
1-सबसे पहले वशिष्ठ जी ने चन्द्रभागा के तट पर अरुंधति को बांधा था।
जो उनकी पत्नी थी। ( कालिका पुराण )|
2- देवराज इंद्र को उनकी पत्नी इंद्राणी ने, देवगुरु
बृहस्पति के कहने पर युध्ह हेतु प्रस्थान पूर्व राखी बांधी थी ।
3 जब द्रौपदी ने अपने साड़ी का पल्लू फाड़ कर भगवान के उंगली में
बांधी थी , तो रक्षा का आश्वासन भगवान कृष्ण द्वारा द्रौपदी
को दिया गया था |
4- भगवान विष्णु पत्नी लक्ष्मी जी ने भी परम दानी राजा बली को,राखी बाँधी
|
सूत्र रक्षा का आशीर्वाद देने वाला सूत्र तथा एक दूसरे को बन्धन
में बांध कर कर्तव्यों को जिम्मेदारी से निभाने का संकल्प देता है ।
भारतीय समाज चर वर्ण में आवंटित था ,योग्यता के अनुर्रोप गुरु वर्ण
या जीवन कार्य आबंटन करते थे । जिस तरह दशहरा क्षत्रिय का तथा दीपावली
वैश्य वर्णो का पर्व ,होली शुद्र वर्ण का पर्व उसी तरह- रक्षाबंधन ब्राह्मणो का पर्व है।
ध्यातव्य-ब्राह्मण
पांडित्य कर्म कर अन्य के पाप कर्म का परिमार्जन ,अपने ऊपर पाप प्रभाव लेकर,ज्योतिषी
ज्योतिष विद्या के सूत्र की विवेचना के पश्चात् मानव धर्म का पालन करते हुए अनिष्ट
को दूर करने के लिए कष्ट या समस्या मुक्ति के प्रति आश्वस्त कर अपने पुण्य क्षीण
करता है |
इसलिए हर पूजन- अनुष्ठान मे ब्राह्मणो द्वारा सबसे पहले रक्षासुत्र
बाँधी जाती है। परंपरागत आज भी रक्षाबंधन के दिन ब्राह्मण हर घर व दुकानों मे जाकर
पूरे दिनभर अपने यजमानों को रक्षा सुत्र बाँधते है।
श्रावणी उपाकर्म-
भविष्य पुराण के अनुसार रक्षाबंधन के
दिन गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, कावेरी, सरयू ,
क्षिप्रा आदि तीर्थ महानदियो मे स्नान , तर्पण
व दान आदि करने से ब्रह्मा लोक की प्राप्ति होती है। तीर्थ स्थल मे न जा पाने की
स्थिति मे अपने घर के पवित्र जल मे ही सारे तीर्थो का स्मरण कर स्नान के सकते है |यह
विधि भी स्नान की पुण्यदायी विधि है।
मनुस्मृति व अनेक शास्त्रों
मे श्रावण मास की पुर्णिमा को वैदिक कृत्य किये जाने का वर्णन है जिसे
"श्रावणी उपाकर्म" कहते है। इसके अनुसार वेदधर्म निष्ठ ब्राह्मणो व अन्य
यज्ञोपवीत धारियो को किसी श्रेष्ठ तीर्थ या पवित्र सरोवर मे जाकर वैदिक-पौराणिक
पद्धति से उपाकर्म करना चाहिए ।
"हेमाद्रिकल्प" (सनातान धर्म का प्रसिद्द ग्रन्थ)के
अनुसार रक्षासूत्र कौन किसे बंधे?
पुण्य स्नान पश्चात धर्मनिष्ठ विद्वान ब्राह्मण-पुरोहित से
स्वस्तिवाचन मंत्रोंच्चार युक्त रक्षासुत्र बंधवाना चाहिए । तथा श्रद्धा पूर्वक
उनको भोजन करवाने के बाद दान करना चाहिए ।
प्रभावशाली मंत्र :-
रक्षासूत्र बांधते समय आचार्य-पुरोहित, एक
श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध
राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षाबंधन का अभीष्ट
मंत्र है श्लोक में कहा गया है या श्लोक का अर्थ है –(यह अवश्य रक्षा सूत्र बांधते
समय कहना चाहिए |
“ जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र
राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबन्धन से मैं
तुम्हें बांधता हूं जो तुम्हारी रक्षा करेगा।“
मन्त्र :- येन बद्धो बली राजा
दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामनु बध्नामि रक्षेमाचल मा
चल।
पौराणिक कथा-
भगवान वामन व राजा बलि की कथा में रक्षाबंधन
जनमानस मे प्रचलित कथाओ के अनुसार राजा बलि द्वारा अपना सर्वस्व दान
कर देने की दयालुता व भक्ति को देख भगवान वामन प्रसन्न हो गये। तथा उन्हें सुतल
लोक का राजा बनाकर वरदान माँगने कहा। तो राजा बलि ने भगवान से कहा कि अपने राजमहल
के चारो दरवाजे से जब भी आऊँ या जाऊँ तो आपका दर्शन हो।
इस तरह भगवान सुतल लोक मे राजा बलि के राजमहल मे ही रहने लगे।
सब स्थिति स्पष्ट होने पर चिंतित लक्ष्मी जी ने देवर्षि नारद जी के
कथनानुसार सुतल लोक मे जाकर राजा बलि को राखी बाँधी तथा भगवान को वापस लेकर आयी ।
पौराणिक कथा-
पौराणिक कथाओं मे भी रक्षविधान का वर्णन है।- एक बार देवता-दानवो मे
युद्ध छिड़ गया । बहुत समय तक युद्ध चला । जब देवता गण कमजोर होने लगे तब देवराज
इन्द्र ने देवगुरू बृहस्पति से कुछ उपाय करने कहा। तब देवगुरू बृहस्पति ने श्रावण
पूर्णिमा के दिन विधि विधान से रक्षाविधान का अनुष्ठान कर देवराज इन्द्र की
धर्मपत्नी इन्द्राणी के द्वारा इन्द्र के दाहिने हाथ मे रक्षासुत्र बंधवाया था
जिससे देवताओं को विजय प्राप्त हुआ ।
द्वापर युग की कथा-
द्वापर युग की प्रचलित कथा के अनुसार जब भगवान कृष्ण ने शिशुपाल का
वध किया तो चक्र चलाने के उपक्रम मे भगवान के दाहिने हाथ की उंगली से रक्त निकलने
लगा। तब द्रौपदी ने अपने पहनी हुई साडी की पल्लू को फाड़ कर भगवान के हाथों मे
बाँधी जिससे रक्त बहना बंद हो गया। तब भगवान ने प्रेम से पुलकित होकर द्रौपदी को
आशीर्वाद दिया कि तुम पर कोई भी विपत्ति नही आने दुँगा ।और हर प्रकार से तुम्हारी
रक्षा करुँगा ।
और जब कौरवो की सभा मे दुशासन ने जब द्रौपदी का चीरहरण करना चाहा तब
भगवान ने रक्षा किया ।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में –
आजादी के आंदोलन में भी कुछ ऐसे उदाहरण मिलते
हैं,
जहाँ राखी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी |
जनजागरण के लिए भी इस पर्व का सहारा लिया गया ।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने
बंग-भंग का विरोध करते समय बंगाल निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता के
प्रतीक रूप में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने की शुरुआत की थी ।
स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद: रक्षाबंधन
सेनानी चंद्रशेखर आजाद के
जीवन की मार्मिक घटना रक्षाबंधन की ।
चंद्रशेखर आजाद एक बार तूफानी रात में
शरण लेने हेतु एक विधवा के घर पहुँचे । पहले तो उसने उन्हें डाकू समझकर शरण देने
से मना कर दिया, परंतु जब आजाद ने अपना परिचय दिया तब वह
ससम्मान उन्हें घर के अंदर ले गयी ।
बातचीत के दौरान जब आजाद को पता चला कि उस विधवा को गरीबी के कारण
जवान बेटी की शादी हेतु काफी परेशानियाँ उठानी पड़ रही हैं तो उन्होंने द्रवित होकर
उससे कहा : ‘‘मेरी गिरफ्तारी पर 5,000 रुपये का ईनाम है,
आप मुझे अंग्रेजों को पकड़वा दो और उस ईनाम से बेटी की शादी कर लो ।“
यह सुनकर विधवा सुबकते हुए दुखी एवं कातर स्वर में बोली :
‘‘भैया
! तुम देश की आजादी के लिए अपनी जान हथेली पर रखकर चल रहे हो और न जाने कितनी
बहू-बेटियों की इज्जत तुम्हारे हाथ रवम कार्य पर आश्रित है । मैं इतनी स्वार्थी नहीं हूँ और न ही धर्म,देश
,समाज की विरोधी ,जो कि अपनी बेटी के लिए
हजारों बेटियों का सिंदूर पोंछ दे या कन्यायो के शील डाव पर लगा दे । मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकती |”
यह कहते हुए उसने एक रक्षासूत्र आजाद के हाथ में बाँधकर उनसे
देश-सेवा का वचन लिया ।
रात्रि के पश्चात् भोर होने पर , सुबह जब
उस विधवा की आँखें खुलीं तो आजाद जा चुके थे और तकिये के नीचे 5,000 रुपये रखे हुए थे । उसके साथ एक पर्ची पर लिखा था - ‘अपनी प्यारी बहन
हेतु एक छोटी-सी भेंट’ - आजाद ।
रक्षाबंधन की वैज्ञानिकता,उपादेयता,संबंधों की
पवित्रता,स्नेह,मनोबल वृद्धि -
1- हृदयाघात सुरक्षा-वैज्ञानिक दृष्टि से भी दाहिने हाथ की
कलाई मे बाँधे जाने वाले इस धागे का अलग ही महत्व है हमारे हाथ के रक्त वाहनियो का
मुख्य संबंध सीधे हमारे हृदय से है। इसलिए हाथ मे बंधे हुए धागों के दबाव से रक्त
का आवागमन हृदय तक एक समान बिना उतार चढ़ाव के बना रहता है।जिससे हृदयाघात जैसी
बिमारियो से रक्षा होती है।
इसके आलाव जिस व्यक्ति के द्वारा यह रक्षासुत्र बाँधा जाता है,
उसके पुण्य से ,शुभ इच्छा से व्यक्ति की अनपेक्षित अवांछित घटना से
सुरक्षा होती है |
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