-देवी दुर्गा दुर्गतिहारणी की नवदिन संक्षिप्त पूजा विधि
-किस दिन देवी के किस स्वरूप का स्मरणकरे? कौनसा मन्त्र पढ़े? देवी को क्या अर्पण करे ?-मुहूर्त मर्मज्ञ -पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी द्वारा जनहित में संशोधित संकलित प्रस्तुत)
कलश
कलश स्थापना –प्रात एवं अभिजित- 11:57-12:48 बजे शुभ समय है
दुर्गा पूजा जानने योग्य बाते-
-घट स्थापना के पहले-
मंडल निर्माण इनमे विभिन्न रंगों से आकृति निर्माण-
1-ईशान दिशा मे रूद्र मंडल निर्माण करे | उसके अपर एक कलश रखे | नवग्रह बनाये |
2- नवग्रह रूद्र मंडल के बाद (अपने दाहिने हाथ की और ) दूसरी चौकी पर दाहिने सर्वतोभद्र मंडल सर्वतोभद्र मंडल के मध्य मे कलश (कलश मे पञ्च पल्लव अर्थात 5 वृक्षों केपत्ते जेसे – पीपल गूलर अशोक आम और वट के पत्ते अथवा इनके साथ 2 या अभाव मे पारिजातआवलाअपराजिताशमी तथा मोती या कोई रत्न सोने चांदी के सिक्के नर्मदागंगाया तीर्थ जल डाले |इस कलश के ऊपर एक प्लेट मे दुर्गा यन्त्र हल्दी या पीले रंगसे बना कर उस पर दुर्गा प्रतिमा ) रखे | अथवा कलश के सामने दुर्गा यंत्र बना कर उस पर दुर्गा जी की प्रतिमा रखे |
3-इसके बाद तीसरी चोकी पर 16 मातृका योगिनीक्षेत्रपालवास्तु तथा पूजा स्थल की आग्नेय दिशा (S-E आग्नेय डायरेक्शन) मे दीपक रखे |
प्रारंभिक तैयारी:-व्रत -
प्रतिपदा सप्तमी अष्टमी का व्रत विशेष महत्व रखता है। पुरूष श्वेत वस्त्र वं महिला नारंगी/लाल वस्त्र धारा कर पूजा करें। प्रतिदिन कन्या को भोजन कराना उत्तम। अष्टमी एवं नवमी को 9 कन्या व एक बच्चे को भोजन कराकर उपहार दें।
- व्रत या उपवास नवमी तक ही कर सकते हैं दशमी को व्रत अशुभ कष्टद होता है|
(दर्गा सर्वस्व पुस्तक 42 पृष्ठद्धप्रथम अष्टमी एवं नवमी तिथि व्रत आवश्यक है।)
पूजा आवश्यक. सप्तमी,अष्टमी एवं नवमी तिथि को करे-
कलश - रूद्र मंडल इशान कोण में एवं ग्रह मध्य में ;
-सर्वतोभद्र मंडल दुर्गा घट या कलश –इस के बाद क्षेत्रपाल, इसके नीचे वास्तु आग्नेयकोण में ऊपर दीपक नीचे स्वस्तिक सर्वतोभद्र मंडल के मध्य में दुर्गा यत्र बनाकर उस पर कलष रखे।
- कलश जलः में आम वट पीपल मोर पंखी के पत्ते डालें।
- कलश में मोंती-धन दायकः कमल-अभिलाषा पूरक अपराजिता-विजयः। पंच रत्न बाधा सुरक्षा हेतु उपयोगी है।
- कलश पर कटोरी में चावल (या जौ बिना टूटे हु) रखें उस पर दुर्गा जी रखे | प्रथक कटोरी पर आढ़ा नारियल (पूछवाला भाग देवी की ओर हो) रखें।
-नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए।
(वर्जित-नारियल का मुँह ऊपर की तरफ . रोग बढ़ाने वाल नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला पूर्व की धन को नष्ट करने वाला है। )
पुष्प- बिल्व चमेली गुड़हल सुगंधित वाले पुष्प/श्वेत पुष्प, कनेर ,चांदनी आदि।
दीपक--अखंड दीपक 9 दिन जलना श्रेष्ठ फलदायी ।
-यश पद प्रभाव आयु के लिये दीपक वर्तिका पूर्व या इषान (छम्) दिशा की ओर हो।
- धन वं संपदा तथा एश्वर्य के लिये उत्तर की ओर दीप वर्तिका हो |
- वर्तिका रंग लाल नारंगी पीली हो सकती है |
मनोकामना हेतु:- सर्व बाधा शमन हेतु अष्टमी-नवमी को पूरा पाठ करें |
-ग्रह दोष वं बाधाओं में कमी हेतु ..... द्वादश अध्याय पढ़े/हवन करें ।
- भौतिक सुख समृद्धि के लिये चतुर्थ अध्याय के 34-37 श्लोक से हवन करें ।
- धन हेतु 11वें अध्याय का पाठ वं खीर से हवन करें ।
- विार्थियों को 5वें अध्याय को पढ़कर हवन करें तो सरस्वती प्रसन्न होंगी ।
- लक्ष्मी प्रसन्नता द्वितीय अध्याय पठन से होती है ।
दीप वर्तिका- कलावा की (रूई से) श्रेष्ठ; पांच वर्तिका दीपक श्रेष्ठ | वर्तिका का मुंह पूर्व ईशान उत्तर दिशा में उत्तरोत्तर श्रेष्ठ।
प्रतिदिन अर्पण - गोरोचन ,श्वेत सरसों, चंदन ,धूप ,गंध ,कपूर, शंख से अर्ध्य / जल दें|
-कुष्मांड (सफेद कुम्हाडा ) बलि आहुति , प्रतिदिन।
नवरात्र दुर्गा पूजा प्रारंभ कब से करे.
-उग्रचंडा कल्प विधि.अश्वनि कृष्ण नवमी - को अभिजित काल मे आर्द्रा नक्षत्र श्रेष्ठ देवी का प्रबोधन करे
“ॐ एम् ह्रीम कलीम चामुंडाये विच्चे मंत्र से अमावस्या तक प्रातः मध्य एवं अर्धरात्रि पूजन करे
नव दुर्गा स्मरण के मंत्र.-
ॐ एम् ह्रीं क्लीं रूद्र चडायै विच्चै नमः । ॐ एम् हृीं क्लीं प्रचडायै विच्चै नमः । ॐ एम् हृीं क्लीं चंडोग्रायै विच्चै नमः । ॐ एम् हृीं क्लीं चड नायकै विच्चै नमः । ॐ एम् हृीं क्लीं चडायै विच्चै नमः । ॐ एम् हृीं क्लीं चड वत्येै विच्चै नमः । ॐ एम् हृीं क्लीं चडरूपाायै विच्चै नमः । ॐ एम् हृीं क्लीं अतिचंडकै विच्चै नमः । ॐ एम् हृीं क्लीं प्रचडायै विच्चै नमः । ॐ एम् हृीं क्लीं उग्रचडायै विच्चै नमः ।
दशमी से अमावस्या तक मध्याह्न में उग्र चंडा देवी की पूजा करें:-
18 भुजा वाली उग्रचंडिका का ध्यान आवह्नन करें।
प्रार्थना:- रावास्य बध अर्थाय रामस्य अनुग्रह च ।
अकाले ब्रह्माा बोधो देव्यास्त्वयि कृत्ता पुरा।
अहम् अपि अष्विने कृषे नवभ्यां बोध यामि अहम्।
* भद्रकाली कल्प विधान. 16 भुजा अश्वनि कृष्ण एकादशी या चतुर्दशी को अभिजित काल मे देवी का प्रबोधन करे -
ॐ एम् ह्रीम कलीम चामुंडाये विच्चे मंत्र से अमावस्या तक प्रातः मध्य एवं अर्धरात्रि पूजन करे
एकादशी.उपवास अन्न रहित फल दूध आदि द्वादशी. एक समय भोजन त्रयोदशी.बिना भोजन जल दूध पेय चतुर्दशी को दुर्गा यंत्र मे या मूर्ति मे दुर्गा प्रबोधन ;जगानेद्ध करे
- कात्यायनी कल्प विधान - 10भुजा |
सप्तमी तिथि-
द्वार पर दो घट लाल वस्त्र में लपेट कर आम पत्ते वं दुर्वा लगाकर रखें घट के पिछे दीपक जलां तथा बिल्व पत्र सहित (आम अषोक तुलसी पीपल वट आंवला शमी अपराजिता पारिजात) पत्तों का पूजन कर द्वार पूजा करें।
मनोकामना पूर्ण हेतु:- सर्व बाधा शमन हेतु अष्टमी-नवमी को पूरा पाठ करें
ग्रह दोष वं बाधाओं में कमी हेतु
द्वादश अध्याय पढ़े/हवन करें ।
हवन समाग्री- तिल जायफल सुपारी जौ बेलफल मेन फल लोंग इलायची चावल शहद घी कपूर। काले तिल का आधा जोजो का आधा चावल चावल का आधा शकर
प्रारंभ- नवग्रहेभ्यो नमः। ओम हृीं क्रीं क्रीं क्रां चंडिका देव्यै शाप नाश अनुग्रहं कुरू 2। नमः गााधिपतये नमः। ओम ब्रहम वशिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव।
कुल्लुका मंत्र...... .क्रीं हूं स्त्रीं ह्रीं फट्।
पूजा प्रारंभ के पूर्व अंगों को स्पर्श करते हु पढ़े:-9त्रबार ॐ मूलं बोले
ओम एम् हृीं क्लीं चामुडायै विच्चै नमः ।
ओम मूलं 9 नमः शिरसे स्वाहा। ओम मूलं 9 नमः शिखायै वषट्।
ओम मूलं 9 नमः कवचाय हुम्। ओम मूलं 9 नमः नेत्र त्रयाय वौषट्।
ओम मूलं 9 नमः अस्त्राय फट्। हृदयाय नमः।
दीप नमस्कार मंत्र.
दीप ज्योति पर ब्रह्म दीप ज्योति जनार्दन।दीपो हरतु मे पापम पूजा दीपं नमोस्तुतेः।
शुभं करोति कल्याां आरोग्ंय सुख संपदामः।शत्रु बुद्धि विनाशाय मम् सर्व बाधा हराम दीपो ज्योति नमोस्तुतेः।
शीघ्र फलदायी षडाक्षरी मंत्र. ॐ चामुडायै विच्चै । ;चामुडा देवी के दोनों ओर नागराज की उपस्थिति होती है इस मन्त्र से नागराज का जागरण होता है चामुडा की शिवा रूप मे पूजा होती है
.प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्माचारिणी। तृतीय चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेति चतुर्थकम्।
.पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रि महागौरीति चाऽष्टम्।
.नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिताः।
सप्तमी तिथि द्वार पूजा:- प्रवेष द्वार पर दो घट लाल वó में लपेट कर आम पत्ते वं दुर्वा लगाकर रखें घट के पिछे दीपक जलां तथा बिल्व पत्र सहित (आम अषोक तुलसी पीपल वट आंवला शमी अपराजिता पारिजात) पत्तों का पूजन कर द्वार पूजा करें।
बिल्ब पत्र शाखा के सहित लाकर पूजा गृह मे देवी के समीप रखे
मंत्रः- ‘‘ऊँ एम् ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति महोग्र चंडिके दुर्गे उत्तिष्ठ-उत्तिष्ठ निद्रां जहि जहि प्रति बुध्यस्व-बुध्यस्व मम शत्रून् हन् हन् पात्तय- पात्तय स्वाहा।‘‘
सुगंध हल्दी तैल दवी के शस्त्र या अंगों में लगों। देवी के बांे हाथ में धागा बांधे। श्वेत सरसों आठों दिषाओं में फेंकर रक्षा मंत्र पढ़े।
.प्रतिपदा
मंत्र. . ऊँ जगतपूत्ये जगद् वन्े शक्ति स्वरूपिाी पूजंा
ग्रहा कौमारी जगत् मातर नमोस्तुते।
ऊँ शां शीं शूं शैलपुत्र्यै मे शुंभ कुरू 2 स्वाहा
ब्राह्मी ऊँ आं हौं ग्लूं क्रौ व्रीफट् ।
अर्पा सामग्री.
गाय घी खीर लाल वं श्वेत पुष्प फल मिठाई सिंदूर लाजा अक्षत
हवन सामग्री .
तिल द्वितीया
मंत्र . ऊँ त्रिपुरां त्रिगुा धारां मार्ग ज्ञान स्वरूपिाी्।
रैलोक्य वंदितां देवी त्रिमूर्ति पूजयाम् अहम्।
ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारियै नमः।
महेष्वरी ऊँ ह्रीं नमो भगवती महाष्वर्ये- स्वाहा ।
4.वन्दे वांदधानाक पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रहमचारिण्यनुत्तमा।
अर्पा सामग्री . रक्तचंदनदुर्वा जायफलकेलावó नील कमल
इत्र फल कपूर घी काली लाल पुष्प रिबिन गुड
.तृतीया पूजा
अ.मंत्र 1 ऊँ कालिकां तु कालातीतां कल्याा हृदयाम् षिवम
जननीं नित्यं कल्यााीं पूजयाम्य अहम्।
ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं चंद्रघंटायै स्वाहा ।
चतुर्थी
क्रौं कौमार्ये नमः।
ऊँ ह्रीं नमो भगवती महाष्वर्ये- स्वाहा । अर्पा सामग्री .रत्नऔषधियुक्तजलहल्दीईखखीरकेसरश्रीखंड बिल्वपत्र
दर्पा सिंदूर चना गुड़ लाल वस्त्र ।
हवन तिल जौ़ सामग्री फल पूड़ी मुनक्का
ब.मंत्र .1. ऊँ अािमादि गुाोदारां मकराकार चक्षुषम्।
.अनंज शक्ति भेदाम ताम कामाक्षीम् पूज्ययाम्य हम्।
2.ऊँ ह्रीं नमो भगवती कूष्माडायै मम शुभाषुभं स्वप्ने सर्व प्रर्दषय प्रर्दष्य।
3.सुरा सम्पूर्ण कलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्त पद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तुमे।।
अर्पा सामग्री सिंदूर लाजा अक्षत खीरपूड़ी केसर हींग जायफल
शहद चंदन श्वेत पुष्प दूध खीर ।
हवन तिल जौ़ सा
पंचमी
मंत्र 1..ऊँ चडवीरां चडमायां चडमुडं प्रभंजनीम्
तां नमामि च देवेर्षीं चडिकां पूजयाम्य अहम्।
2. ऊँ ह्रीं सः स्कंदमात्र्यै नमः।
3. वाराही- एम् ग्लौं ठं ठं ठं हुं स्वाहा।
4.सिंहासान गता नितयं पद्माश्रित कर द्वया।शुभदास्तु सदादेवी स्कन्द माता यशस्विनी।।.
अर्पा सामग्री अंगूर खीर काजल महावर गुड़ चूड़ी पुष्प लालवó
हवन तिल जौ़ सामग्रीशकर शहद खीर
षष्ठी
मंत्र . 1 ऊँ सुखानंद करीं शांतां सर्व देत्यै नमस्कृताम्।
सर्व भूतात्मिकां देवीं शांभवी पूजयाम्य अहम्।
2ऊँ ह्रीं श्रीं कात्यायन्यै स्वाहा।
3ऊँ श्रीं ह्रीं े सौः क्लीं इंद्राक्षि वज्र हस्तो फट् स्वाहा।
4चन्द्रहासोज्जवल करा शाईल वर वाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानव घातिनी।।
अर्पा सामग्री लालचंदनपुष्प दर्पा सिंदूर अनार पानशहद चंदन श्वेत पुष्प दूध खीर
हवन तिल जौ़ सामग्री पुआ शहद घी
1.सप्तमी
मंत्र . 1 ऊँ चडवीरा चंडमायां रक्तबीज प्रभंजनीम्।
तां नमामि च देवेषीं गायत्री पूजयाम्य अहम्।
2 ऊँ एम् ह्रीं क्लीं कालरात्रि सर्व वष्यं कुरू 2 वीर्य देहि 2 गोष्वर्ये नमः।
3 श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बरा धरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा।।
अर्पा सामग्री जायफल गेहूँ दही शहदगूगल तिल जौ उड़द विषुकांता पुष्प
हवन तिल जौ़
अष्टमी
1 ऊँ सुन्दरी र्स्वा र्वाागीम् सुख सौभाग्य दायिनीम्
संतोष जननीं देवीं सुभद्राम् पूजां अहम्।
2 ऊँ ह्रीं गौरी दयिते योगेष्वरि हुं फट् स्वाहा।
3 ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।
4 श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बरा धरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा।।
मंत्र जायफल गेहूँ दही शहदगूगल श्रीफल मोदक खीर खजूर कलावा .
अर्पा सामग्री तिल जौ उड़द विषुकांता पुष्प
हवन तिल जौ़ सामग्रीशांक शहद लड्डू
नवमीमंत्र 1 ऊँ दुर्गमे दुस्तर कार्ये भव दुख विनाषिनीं।
पूजां अहम् सदा भक्तया दुर्गा दुर्गति नाषिनीम्।
2.ऊँ ह्रीं सः सर्वार्थसिद्धि दात्री स्वाहा। क्षौं नारसिंहये नमः।
3 ह्रीं शिव दूत्यै नमः।
4 सिद्ध गंधर्व यक्षाद्यैर सुरैररमरैरपि। सेव्य माना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धि दायिनी।।
.अर्पाण सामग्री -रक्त चंदन, दुर्वा, जायफल ,केला , वस्त्र ,नील कमल, लाल पुष्प, रिबिन गुड़|
हवन सामग्री - तिल, जौ़ , गुड़, मिश्री, खीर |
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