💐🌹रक्षा का महापर्व "रक्षाबंधन" पर्व💐🌹
(मुहूर्त मर्मज्ञ –पंडित तिवारी “ज्योतिष शिरोमणि’ वैदिक ज्योतिष,हस्तरेखा ,वास्तु (कुंडली निर्माण एवं कुंडली मिलान विशेषज्ञ 9424446706 tiwaridixitastro@gmail.com-bangalore-560102)
सोमवार, अगस्त 19, 2024
पुर्णिमा तिथि - 23:55 तक ; नक्षत्र- धनिष्ठा; योग-शोभन ;
रक्षा बन्धन शुभ
1- सर्व शुद्ध मुहूर्त तुला एवं वृशिक लग्न -
सर्वोत्तमं – (शुभ लग्न,एवं विजय मुहूर्त -सर्व दोष हीन मुहूर्त )
14:28 से 15:17
2-उत्तम वृश्चिक लग्न -13:34-16:48 (सर्व दोष नाशक –मुहूर्त चिंतामणि मुहूर्त)
वर्जित- रक्षा बन्धन
भद्रा पूँछ – 09:51 से 10:53 ;
भद्रा मुख - 10:53 से 12:37 ;
भद्रा अन्त समय - 13:32
भद्र दोष नहीं परन्तु दुर्मुहूर्त - 13:38 तक; एवं, 15:18 से 16:08
पुरुष स्त्री कोई भी रक्षा सूत्र बंधवा सकता है |एक वर्ष तक अनपेक्षित दुर्घटना से सुरक्षा |
बहन –भाई का ही पर्व नहीं है. राखी कोई
भी (सहोदरी,अनुजा,अग्रजा PANDIT) किसी को भी आयु,रक्षा,प्रगति के उद्देश्य से बाँध सकता है |
येषु अति प्रसिद्धं उत्सव : अस्ति रक्षाबंधन : ।
रक्षाबंधन दिवसे भगिनी निज भ्रातु : राखी मणिबन्धनं करोति ।
तथांच भ्राता तस्या : रक्षणाय वचनं ददाति । .
.. अस्माकं आपणात् मूल्यवान् राखी न क्रीत्वा साधारणं सूत्रम् एव प्रयोगं कुर्यात् ।
हमारी पुरातन संस्कृति के इतिहास मे रक्षाबंधन ऐसा त्योहार है। जिसकी महिमा विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ imp_1-,जिनको अपना गोत्र ज्ञात न हो -हरतालिका तीज को "रक्षाबंधन" पर्व मानना चाहिए .
जिनको अपने गोत्र का ज्ञान नहीं उनको कश्यप ही मानने का निर्देश है। इस दृष्टी से हरतालिका तीज को ,जिनको अपना गोत्र ज्ञात न हो रक्षी पर्व मानना चाहिए .
1-ऋग्वेद --- ( श्रावन चतुर्दशी तिथि-मुहूर्त के अनुसार रक्षा सूत्र बांधा जाता है।
2- यजुर्वेद--( श्रावण-पूर्णिमा--,मुहूर्त के अनुसार रक्षा सूत्र बांधा जाता है।
3-सामवेद---भाद्रपद माह शुक्ल तृतीया हरतालिका तीज हस्त नक्षत्र में रक्षासूत्र बांधते है। )
-सामवेद-( कश्यप वं शांडिल्य गोत्र के रक्षासूत्र कान्यकुब्ज) श्राद्ध , गीतापाठ आदि सामवेद के ब्राह्मण द्वारा पाठ से शीघ्र ही फलप्रद।| सामवेदीय हरतालियेका तीज हस्त नक्षत्र में रक्षासूत्र बांधते है।
प्रिय की सुरक्षा का कवच-बंधन है -
रक्षाबंधन क ऐसा बन्धन जिसमे हमे दुनिया के हर प्रिय को अशुभ प्रभाव से बचाने की कामना रहती है।
यह केवल भाई बहनों का त्यौहार मात्र नहीं है ,प्रचलन वं स्वीकार्यता
अवश्य है |
अपने घर के देवी देवताओं को , पेड़ पौधों को , अपने गाड़ी वाहन आदि को ,अपने घर के पालतू जानवरों को , अपने व्यापार
व्यवसाय के क्षेत्र में तराजू , कलम व खाता बही में ,
कोई बहन अपने बच्चों को , कोई देश के सैनिकों
को , कोई राजनेताओं को , कोई पुलियेसकर्मियों
को , गुरु वं साधु
संतों को भी रक्षाबंधन बांधते ।
सामाजिक सुदृढ़ता अनेकता में कता का पर्व-
जीवन मे संबंधो की अटूट विश्वसनीयता या कता बन्धन समाज रिश्तो के लिये
आवश्यक है |किसी भी प्रकार के बन्धन में प्यार , दुलार ,
ममता , आशीर्वाद , कामना
आदि का भाव होता है जिसके कारण हम क पतले से धागे में मन - कर्म और वचन से बन्ध
जाते है।
रक्षाबंधन क दूसरे को मानसिक :प से आश्वस्त करता है।
पर्व के शाशवत प्रमाण , पुष्टि हेतु सुलभ है -
1-सबसे पहले वशिष्ठ जी ने चन्द्रभागा नदी के तट पर अरुंधति को बांधा था।
जो उनकी पत्नी थी। ( कालियेका पुराण )|
2- देवराज इंद्र को उनकी पत्नी इंद्राणी ने, देवगुरु
बृहस्पति के कहने पर युध्ह हेतु प्रस्थान पूर्व राखी बांधी थी ।
3 जब द्रौपदी ने अपने साड़ी का पल्लू फाड़ कर भगवान के उंगली में
बांधी थी , तो रक्षा का आश्वासन भगवान कृष्ण द्वारा द्रौपदी
को दिया गया था |
4- भगवान विष्णु पत्नी लक्ष्मी जी ने भी परम दानी राजा बली को,राखी बाँधी
|
सूत्र रक्षा का आशीर्वाद देने वाला सूत्र तथा क दूसरे को बन्धन
में बांध कर कर्तव्यों को जिम्मेदारी से निभाने का संकल्प देता है ।
भारतीय समाज चर वर्ण में आवंटित था ,योग्यता के अनुर्रोप गुरु वर्ण
या जीवन कार्य आबंटन करते थे । जिस तरह दशहरा क्षत्रिय का तथा दीपावली
वैश्य वर्णो का पर्व ,होली शुद्र वर्ण का पर्व उसी तरह- रक्षाबंधन ब्राह्मणो का पर्व है।
ध्यातव्य-ब्राह्मण
पांडित्य कर्म कर अन्य के पाप कर्म का परिमार्जन ,अपने ऊपर पाप प्रभाव लेकर,ज्योतिषी
ज्योतिष विद्या के सूत्र की विवेचना के पश्चात् मानव धर्म का पालन करते हु अनिष्ट
को दूर करने के लिये कष्ट या समस्या मुक्ति के प्रति आश्वस्त कर अपने पुण्य क्षीण
करता है |
इसलिये हर पूजन- अनुष्ठान मे ब्राह्मणो द्वारा सबसे पहले रक्षासुत्र
बाँधी जाती है। परंपरागत आज भी रक्षाबंधन के दिन ब्राह्मण हर घर व दुकानों मे जाकर
पूरे दिनभर अपने यजमानों को रक्षा सुत्र बाँधते है।
श्रावणी उपाकर्म-
भविष्य पुराण के अनुसार रक्षाबंधन के
दिन गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, कावेरी, सरयू ,
क्षिप्रा आदि तीर्थ महानदियो मे स्नान , तर्पण
व दान आदि करने से ब्रह्मा लोक की प्राप्ति होती है। तीर्थ स्थल मे न जा पाने की
स्थिति मे अपने घर के पवित्र जल मे ही सारे तीर्थो का स्मरण कर स्नान के सकते है |यह
विधि भी स्नान की पुण्यदायी विधि है।
मनुस्मृति व अनेक शास्त्रों
मे श्रावण मास की पुर्णिमा को कृत्य किये
जाने का वर्णन है जिसे "श्रावणी उपाकर्म" कहते है। इसके अनुसार वेदधर्म
निष्ठ ब्राह्मणो व अन्य यज्ञोपवीत धारियो को किसी श्रेष्ठ तीर्थ या पवित्र सरोवर
मे जाकर -पौराणिक पद्धति से उपाकर्म करना चाहि ।
"हेमाद्रिकल्प" (सनातान धर्म का प्रसिद्द ग्रन्थ)के
अनुसार रक्षासूत्र कौन किसे बंधे?
पुण्य स्नान पश्चात धर्मनिष्ठ विद्वान ब्राह्मण-पुरोहित से
स्वस्तिवाचन मंत्रोंच्चार युक्त रक्षासुत्र बंधवाना चाहि । तथा श्रद्धा पूर्वक
उनको भोजन करवाने के बाद दान करना चाहि ।
मूलतः आचार्य वम यजमान का वार्षिक पर्व-
रक्षाबंधन आज जन सामान्य में भाई-बहन का
क सामाजिक पर्व बन गया है ।परंतु मूल :प से गुरु पंडित ब्राह्मण द्वारा अपने यजमान
के कल्याण के लिये , उनकी प्रगति वं उनकी सुरक्षा के लिये
बांधने का सिद्धांत है।
उपयोगी मंत्र
:-
तिलक लगाने का मंत्र !!
पुण्यं यशस्यम आयुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यम अतुलं
बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्य अहम् ।।
रक्षासूत्र बांधते समय श्लोक - यह श्लोक रक्षाबंधन का अभीष्ट मंत्र
है श्लोक में कहा गया है या श्लोक का अर्थ है –(यह अवश्य रक्षा सूत्र बांधते
समय कहना चाहि |
“ जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र
राजा बलिये को बांधा गया था, उसी
रक्षाबन्धन से मैं तुम्हें बांधता हूं जो तुम्हारी रक्षा करेगा।“
मन्त्र :- येन बद्धो बली राजा
दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामनु बध्नामि रक्षेमाचल मा
चल।
पौराणिक कथा-
भगवान वामन व राजा बलिये की कथा में रक्षाबंधन
जनमानस मे प्रचलियेत कथाओ के अनुसार राजा बलिये द्वारा अपना सर्वस्व
दान कर देने की दयालुता व भक्ति को देख भगवान वामन प्रसन्न हो गये। तथा उन्हें
सुतल लोक का राजा बनाकर वरदान माँगने कहा। तो राजा बलिये ने भगवान से कहा कि अपने
राजमहल के चारो दरवाजे से जब भी आऊँ या जाऊँ तो आपका दर्शन हो।
इस तरह भगवान सुतल लोक मे राजा बलिये के राजमहल मे ही रहने लगे।
सब स्थिति स्पष्ट होने पर चिंतित लक्ष्मी जी ने देवर्षि नारद जी के कथनानुसार
सुतल लोक मे जाकर राजा बलिये को राखी बाँधी तथा भगवान को वापस लेकर आयी ।
पौराणिक कथा-
पौराणिक कथाओं मे भी रक्षविधान का वर्णन है।- क बार देवता-दानवो मे
युद्ध छिड़ गया । बहुत समय तक युद्ध चला । जब देवता गण कमजोर होने लगे तब देवराज
इन्द्र ने देवगु: बृहस्पति से कुछ उपाय करने कहा। तब देवगु: बृहस्पति ने श्रावण
पूर्णिमा के दिन विधि विधान से रक्षाविधान का अनुष्ठान कर देवराज इन्द्र की
धर्मपत्नी इन्द्राणी के द्वारा इन्द्र के दाहिने हाथ मे रक्षासुत्र बंधवाया था
जिससे देवताओं को विजय प्राप्त हुआ ।
द्वापर युग की कथा-
द्वापर युग की प्रचलियेत कथा के अनुसार जब भगवान कृष्ण ने शिशुपाल
का वध किया तो चक्र चलाने के उपक्रम मे भगवान के दाहिने हाथ की उंगली से रक्त
निकलने लगा। तब द्रौपदी ने अपने पहनी हुई साडी की पल्लू को फाड़ कर भगवान के हाथों
मे बाँधी जिससे रक्त बहना बंद हो गया। तब भगवान ने प्रेम से पुलकित होकर द्रौपदी
को आशीर्वाद दिया कि तुम पर कोई भी विपत्ति नही आने दुँगा ।और हर प्रकार से
तुम्हारी रक्षा करुँगा ।
और जब कौरवो की सभा मे दुशासन ने जब द्रौपदी का चीरहरण करना चाहा तब
भगवान ने रक्षा किया ।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में –
आजादी के आंदोलन में भी कुछ ऐसे उदाहरण मिलते
हैं,
जहाँ राखी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी |
जनजागरण के लिये भी इस पर्व का सहारा लियेया गया ।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने
बंग-भंग का विरोध करते समय बंगाल निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा कता के
प्रतीक :प में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने की शुरुआत की थी ।
स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद: रक्षाबंधन
सेनानी चंद्रशेखर आजाद के
जीवन की मार्मिक घटना रक्षाबंधन की ।
चंद्रशेखर आजाद क बार तूफानी रात में
शरण लेने हेतु क विधवा के घर पहुँचे । पहले तो उसने उन्हें डाकू समझकर शरण देने से
मना कर दिया, परंतु जब आजाद ने अपना परिचय दिया तब वह
ससम्मान उन्हें घर के अंदर ले गयी ।
बातचीत के दौरान जब आजाद को पता चला कि उस विधवा को गरीबी के कारण
जवान बेटी की शादी हेतु काफी परेशानियाँ उठानी पड़ रही हैं तो उन्होंने द्रवित होकर
उससे कहा : ‘‘मेरी गिरफ्तारी पर 5,000 रुपये का ईनाम है,
आप मुझे अंग्रेजों को पकड़वा दो और उस ईनाम से बेटी की शादी कर लो ।“
यह सुनकर विधवा सुबकते हु दुखी वं कातर स्वर में बोली :
‘‘भैया
! तुम देश की आजादी के लिये अपनी जान हथेली पर रखकर चल रहे हो और न जाने कितनी
बहू-बेटियों की इज्जत तुम्हारे हाथ रवम कार्य पर आश्रित है । मैं इतनी स्वार्थी नहीं हूँ और न ही धर्म,देश
,समाज की विरोधी ,जो कि अपनी बेटी के लिये
हजारों बेटियों का सिंदूर पोंछ दे या कन्यायो के शील डाव पर लगा दे । मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकती |”
यह कहते हु उसने क रक्षासूत्र आजाद के हाथ में बाँधकर उनसे
देश-सेवा का वचन लियेया ।
रात्रि के पश्चात् भोर होने पर , सुबह जब
उस विधवा की आँखें खुलीं तो आजाद जा चुके थे और तकिये के नीचे 5,000 रुपये रखे हु थे । उसके साथ क पर्ची पर लियेखा था - ‘अपनी प्यारी बहन
हेतु क छोटी-सी भेंट’ - आजाद ।
रक्षाबंधन की वैज्ञानिकता,उपादेयता,संबंधों की
पवित्रता,स्नेह,मनोबल वृद्धि -
मंत्रोच्चारण के साथ रक्षा
वस्तु / राखी कोई भी किसी को भी उसकी आयु,रक्षा,प्रगति के उद्देश्य से बाँध सकता
है ,केवल सहोदरी,अनुजा,अग्रजा या बहन –भाई
का पर्व नहीं है | पर्व है |
1- हृदयाघात सुरक्षा-वैज्ञानिक दृष्टि से भी दाहिने हाथ की
कलाई मे बाँधे जाने वाले इस धागे का अलग ही महत्व है हमारे हाथ के रक्त वाहनियो का
मुख्य संबंध सीधे हमारे हृदय से है। इसलिये हाथ मे बंधे हु धागों के दबाव से रक्त
का आवागमन हृदय तक क समान बिना उतार चढ़ाव के बना रहता है।जिससे हृदयाघात जैसी
बिमारियो से रक्षा होती है।
इसके आलाव जिस व्यक्ति के द्वारा यह रक्षासुत्र बाँधा जाता है,
उसके पुण्य से ,शुभ इच्छा से व्यक्ति की अनपेक्षित अवांछित घटना से
सुरक्षा होती है |
हमारे मन मे श्रद्धा ,व सम्मान या स्नेह बढता
है। द्वेष की कालियेमा दूर होती ,कलुषित भावना नही रहती ।
रक्षाबंधन
: राखी मुहूर्त मन्त्र,एवं विधि
वेदों
के अनुसार रक्षाबंधन पर्व या उपाकर्म
शुक्ल पक्ष में ही होता है :
1.श्रावण
चतुर्दशी को 11 अगस्त ऋगवेदियों :10:38 बजे तक
2.श्रावण पूर्णिमा को 11अगस्त यजुर्वेदियों :20:54-21:30 Auspicious Time
30अगस्त को सामवेदियों का रक्षाबंधन :
पर्व.
रक्षाबंधन
.वेदो में उल्लेखित उपा कर्म का संक्षिप्त
कर्म रक्षा बंधन हैं ।यह वेदों के अनुसार पृथक 2 दिनों में निर्धारित है।जिस वेद
के अंतर्गत जो लोग आते हैं उनका पृथक दिनांक को रक्षाबंधन या उपाकर्म कार्य संपन्न
करने के निर्देश हैं।
सर्वाधिक
महत्वपूर्ण सामाजिक पर्व के लिये जो
कि पर्व भी है। किस किस वेद का उपाकर्म. सामान्यत यजुर्वेद का उपा कर्म दिन रक्षाबंधन के लिये बहु प्रचलियेत वं
सामान्य जनमानस में स्थापित हो गया है।
परंतु
जिनको अपने वेद का ज्ञान है वह यजुर्वेदिय वेद के उपाकर्म के दिन ही रक्षाबंधन का
कार्य करते हैं ।
अनिष्ट
रक्षक सूत्र बंधन :तीन महत्वपूर्ण दिन रक्षा सूत्र -
;ज्योतिष के अनुसार रक्षा अनिष्ट रक्षा
के सूत्रबंधन के वर्ष में तीन अवसर.द्ध
क
विशेष तथ्य है कि जाने अनजाने में भी हमें इन 3 दिनों में रक्षाबंधन का कार्य करना
चाहि। इसका शुभ परिणाम यह है कि आपका जो
भी वेद होगा उस दिन भी आप रक्षाबंधन का कार्य कर सकेंगे।
इससे
ये लाभ होगा की आपका कोई भी वेद हो रक्षा सूत्र आपकी अनिष्ट से रक्षा करेगा :
भाई
बहन के त्योहार में श्रावण चतुर्दशी शुक्ल पक्ष प्रयोग करें K|
किसी
कारण से छूट जाये तो पूर्णिमा को एवं
हरतालिका तीज लगभग 18 दिन
पश्चात् गुरु परिवार के बड़े या अपने
पंडित अथवा मंदिर के पुजारी से रक्षाबंधन बंधवा लें |
इससे
पूरे वर्ष के लिये सुरक्षा वं कल्याण के साथ विघ्न बाधाओं में कमी आती है ण्
तीनो
बहु उपयोगी.ज्योतिष सम्मत .
यह
तीनों अवसर इस प्रकार के हैं जिनमें ज्योतिष के आधार पर रक्षाबन्धन कार्य कल्याण के लिये विशेष महत्वपूर्ण है ।
तीनों
का ही प्रयोग करना अनुचित नहीं होगा वरन यह विशेष उपयोगी सिद्ध हो सकता है :
1.जैसे
कि ज्योतिष के आधार पर यजुर्वेद
रक्षाबंधन का दिन पूर्णिमा को आता है जो कि विशेष :प से सभी मंगल कामनाओं
को पूर्ण करने वाला है।
2.जबकि
सामवेद वालों का रक्षाबंधन तृतीय या तीज
के दिन आता है जो कि समस्याओं के निराकरण वं विजय के लिये श्रेष्ठ मुहूर्त होता
है।
आज
प्रत्येक कार्य में हमें प्रतियोगिता या कठिन परिस्थिति से दो चार होना पड़ता है।
ऐसी स्थिति में यह रक्षाबंधन का दिन विशेष उपयोगी सिद्ध होगा ।
रक्षाबंधन
पर्व पर राखी बांधने का मुहूर्त
इस
प्रकार अनेक अशुभ समय रक्षाबंधन के दिन हैं।
11अगस्त
के श्रेष्ठ मुहूर्त शुभ समय रक्षा बंधन |
सर्व श्रेष्ठ मुहूर्त लग्न-.प्रचलित नाम या राशि के लिये.
लग्न
को सर्व श्रेष्ठ सफलता कारी शुभ माना गया है।
इसमे सभी दोष दूर हो जाते हैं |
कुम्भ मीन लग्न -20:51-23:56 बजे तक भद्र रहित एवं 15:35-17:55 तक शुभ लग्न .
घ्यान रखिये-तिलक?
किसी
भी वस्तु चाहे भोजन हो या उपयोग की जाने वाली वस्तु
उसके
निर्माण एवं उपयोग करते समय शुभ संकल्प,सदिच्छा,शुभ कामना या भावना का बहुत महत्व
होता है |बाज़ार की राखी का उतना प्रभाव नहीं होगा जितना बंधने वाले एवं बनाने वाले
तथा बनाते समय की भावना का बीजारोपण महत्वपूर्ण होता है|
यदि
स्वयं निर्माण कठिन हो तो सरसों,तुलसी,चावल,रोली अष्टगंध ,शमी पत्र,
तिलक-मन्त्र
(तिलक के मध्य में चावल लगाये)-
चंदनस्य
महत पुण्यं पवित्रं पाप नाशनम |
आपदं
हरति नित्यं लक्ष्मी तिष्ठति सर्वदा ||
कान्ति
लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यम अतुलं बलम् ।
ददातु
चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्य अहम् ।।
ॐ
व्रतेन दीक्षाम आप्नोति, दीक्षया आप्नोति दक्षिणाम्।
दक्षिणा
श्रद्धाम आप्नोति, श्रद्धया सत्यम आप्यते॥
उसके
बाद राखी को बांधें निम्नलिखित मंन्त्र के साथ बांधे।
ॐ
येन बद्धो बलीराजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन
त्वां प्रति बध्नामि, रक्षे मा चल मा चल॥
अर्थात्-
जिस रक्षासूत्र से दानवेन्द्र, महाबली राजा बलि बाँधे गये थे, उसी से तुम्हें बाँधती हूँ। हे रक्षे
(रक्षासूत्र) विचलित न होना अर्थात् रक्षा करना।
-
भाई की आरती उतारें।
पुष्पवर्षा
उस पर निम्नलिखित मन्त्रों के साथ करें:-
मंगलम
भगवान विष्णु, मंगलम
गरुड़ ध्वज।
मंगलम
पुण्डरी काक्ष, मंगलाय
तनो हरि।।
-
मृत्युंजय मंत्र बोलते हुए भाई को मिठाई खिला दें।
ॐ
जूं स: माम् "भ्राता" पालय पालय स: जूं ॐ
मंगल
वस्तु टीका या – रक्षा सूत्र वस्तु- तुलसी,सरसों,कपूर,चन्दन,रोली,अष्टगंध,पुष्प,मिठाई,चावल|
“मंगल राखी” निर्माण ,बाँधने की
विधि विधि, एवं मुहूर्त
(ज्ञातव्य
–हिन्दू वैदिक पौराणिक पर्वों का आधार ग्रह,नक्षत्र की स्थिति विशेष ही है |अनिष्ट
प्रभावों से सुरक्षा के उपाय या वरदान ये पर्व त्यौहार व्रत पूजा मन्त्र आदि उपकरण
हैं | यह भी वैदिक पर्व एक वर्ष तक के लिए विघ्न , बाधाओं या अनिष्ट के विरुद्ध
सुरक्षा कवच है | )
-दूर्वा (घास) केसर, हल्दी, चंदन
, सरसों,तिल को लाल या पीले रेशमी या सूती
नए वस्त्र में रख कर मौली या कलावा के द्वारा राखी का स्वरूप या आकृति बना ले | इस
सामग्री का ही तिलक के लिए प्रयोग करे |केवल मधु,दूध,दही द्वारा गीला कर ले |
मंगल
वस्तुओं से निर्मित - राखी का महत्त्व एवं उपादेयता-
यह राखी जिसको बांधेंगे उसके जीवन बाधाएं विघ्न ,अनिष्टों का शमन कर ,उनके
लक्ष्य संकल्प,उद्देश्य को पोषित करेगी ।इस राखी नुमा पोटली में राखी वस्तुएं अद्भुत एवं
अलोकिक प्रभावोत्पादक हैं,इसलिए ही इनको पूजा में शामिल किया गया है |
1दूब/
दूर्वा
जैसे
दूर्वा का अंकुर जमीन में लगाने पर वह हजारों की संख्या में फैल जाता है वैसे ही जिसको
राखी बांधे वह दूर्वा केसे उत्तरोत्तर चौमुखी
प्रगति करे । जैसे कठोर भूमि पर भी
विपरीत स्थिति में दूर्वा फैलती बढती है एसे ही जीवन के आगत अनपेक्षित विघ्नों का
नाश हो ।
2
अक्षत ;साबुत चावल जौ -
अक्षत
पूर्णता का प्रतीक हैं । जो कुछ प्रदत्त क्रियामान है : समग्र भावना,श्रद्धा,समर्पण की अद्द्रश्य तरंगों से समन्वित अद्भुत रक्षा
कवच है |
3
केसर -
गर्म,तेज
एवं सुगंध की प्रकृति वाला है | जिनको आप रक्षासूत्र बाँध रहे हैं उनका जीवन
ओज.तेज,कर्मठता पूर्ण एवं यशस्वी हो |
4.हल्दी.-
हल्दी
पवित्रता व आरोग्य कारी है । यह कुदृष्टि ,
नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है तथा उत्तम स्वास्थ्य व समृद्धि की पूरक है ।
5-
चंदन चूर्ण-
चंदन
शीतलता-धैर्य.(विपरीत
या आसन्न संकट में भी यथावत पूर्ववत प्रसन्न चित्त रहे |) जीवन के पल क्षण सुगंध ,यश युक्त रहे । अर्थात जिनको आप राखी बाँध रहे हैं उनका जीवन में
सदैव प्रत्येक परिस्थिति में धैर्य मनोबल
बना रहे |यश ,प्रसिद्धि सहचर रहे ।
उनके कार्य सेवा.सुवास सुदूर सुंगंध के सदृश्य सुवासित रहे ।
6
सरसों-
.सरसों
अलोकिक गुण वाली होती है |दुर्गुणों की विनाशक
| काली,पीला, श्वेत तीनो उपयोगी | प्रतिकूल
,परिस्थति अनाचार,दुराचार,कुदृष्टि,अत्याचार के विरुद्ध साहस,मनोबल,आवश्यक उग्रता
विरोधी क्षमता वृद्धि प्रद ।(तंत्र एवं पूजा में भी सरसों का विशेष महत्व )|
7 काले तिल - राहू दोष नाशक ,दीर्घायु प्रद , पितृ
आशीष पूरक | दुर्घटना से सुरक्षा प्रद | आकस्मिक मृत्यु से सुरक्षाप्रद | मिठाई के
साथ काले तिल अवश्य खिलाना चाहिये |
एसा
निर्मित रक्षासूत्र सनातान धर्म की अद्भुत वस्तु का शुभ इच्छा और
संकल्प युक्त भावना से परिपूरित होकर
सर्व.मंगलकारी होता है ।
रक्षा.बंधन
प्रक्रिया समय का मन्त्र.
ध्यातव्य
तथ्य -- राखी कोई भी किसी को भी ( आयु, रक्षा, प्रगति के उद्देश्य से) बाँध
सकता है|
केवल सहोदरी,अनुजा,अग्रजा या बहन -भाई का पर्व नहीं है :
राखी
बाँधने की प्रक्रिया-विधि
घ्यान रखिये-तिलक?
किसी भी वस्तु चाहे
भोजन हो या उपयोग की जाने वाली वस्तु
उसके निर्माण एवं
उपयोग करते समय शुभ संकल्प,सदिच्छा,शुभ कामना या भावना का बहुत महत्व होता है |बाज़ार
की राखी का उतना प्रभाव नहीं होगा जितना बनाने वाले , ( बनाते समय की भावना का
बीजारोपण महत्वपूर्ण होता है) बांधने वाले एवं समय विशेष का महत्व होता है |
यदि स्वयं निर्माण
कठिन हो तो सरसों,तुलसी,चावल,रोली अष्टगंध ,शमी पत्र,से तिलक करिए |
तिलक-मन्त्र –
(अनामिका (Ringफिंगर)
से ,भ्रू मध्य से उर्ध्व की और माथे पर तिलक लगाये | तिलक के मध्य में चावल लगाये)
चंदनस्य महत पुण्यं
पवित्रं पाप नाशनम |
आपदं हरति नित्यं
लक्ष्मी तिष्ठति सर्वदा ||
कान्ति लक्ष्मीं
धृतिं सौख्यं सौभाग्यम अतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं
सततं धारयाम्य अहम् ।।
ॐ व्रतेन दीक्षाम आप्नोति, दीक्षया आप्नोति
दक्षिणाम्।
दक्षिणा श्रद्धाम आप्नोति, श्रद्धया सत्यम आप्यते॥
- राखी बांधें-
मंन्त्र ।
ॐ येन बद्धो बली राजा, दानव इन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां प्रति
बध्नामि, रक्षे मा चल, मा चल॥
अर्थात्- जिस रक्षा सूत्र
से दानवेन्द्र, महाबली राजा बलि बाँधे गये थे, उसी से तुम्हें बाँधती हूँ। हे रक्षे
(रक्षासूत्र) विचलित न होना अर्थात् रक्षा करना।
- भाई की आरती
उतारें।
मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ ध्वज।
मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि।।
अखंड पुष्प
की वर्षा करें|
- मृत्युंजय मंत्र
बोलते हुए भाई को मिठाई खिला दें।
ॐ जूं स: माम्
"भ्राता" पालय पालय स: जूं ॐ |
..................................................................................................................
राखी
,रंग और राशी का रहस्य ?
राखी
का रंग (नाम या राशी से) क्या हो ?
हिंदू
धर्म तथा जैविक पूजा अर्चना में रंगों का
विशेष महत्व है क्योंकि नवग्रहों के अपने.अपने रंग हैं और उनके रंग के प्रभाव से
अथवा उनकी रश्मियों से उत्सर्जित प्रभाव से कोई अछूता नहीं है।
इसलिये
रक्षाबंधन जैसे सामाजिक वं पर्व के अवसर
पर यदि हम यजमान या अपने भाई की रक्षा
प्रगति या कल्याण चाहते हैं तो उनको उनकी राशि या उनके प्रचलित नाम के प्रथम अक्षर
के अनुसार ही रक्षा सूत्र बांधा जाना चाहिये।
यदि
रक्षा सूत्र धागे से निर्मित नहीं है तो किसी धातु का हो तो पीला वं सफेद रंग
महत्वपूर्ण एवं बाजार में राखी के रुप में उपलब्ध होता है।
1.
मेष राशि . विद्यार्थियों प्रतियोगी या
रोजगार प्रत्याशी वर्ग के लिये नारंगी भाग्य वर्धक पीला रंग वं स्वास्थ्य यश
प्रतिष्ठा के लिये लाल रंग की राखी उपयोगी सिद्ध होगी।
2.
वृषभ राशि . विद्या ज्ञान प्रतियोगिता के लिये हरे रंगभाग्य के लिये नीला रंग तथा
स्वास्थ्य यश के लिये सफेद रंग की राखी विशेष उपयोगी सिद्ध होगी ।
3.मिथुन
राशि के लिये विद्या ज्ञान प्रतियोगिता लेखन अथवा पत्रकार या लेखा कार्य से संबंध
वर्ग के लिये सफेद रंग तथा भाग्य वृद्धि के लिये बाधा दूर करने के लिये नीले रंग
की राखी वं यश प्रतिष्ठा स्वास्थ्य के लिये प्रसिद्धि के लिये हरे रंग की राखी
विशेष उपयोगी सिद्ध होगी।
.4
कर्क राशि के लिये लेखन से संबंधित जुड़ा वर्ग लेखा विद्वता विद्या से
संबंधित वर्ग तथा विद्यार्थी आदि के लिये
गहरे लाल रंग की राखी भाग्य के लिये या प्रगति के लिये पीला ,लाल रंग की राखी वं
स्वास्थ्य प्रतिष्ठा के लिये श्वेत या नारंगी या केसरिया रंग की राखी विशेष उपयोगी
सिद्ध होगी ।
5सिंह
राशि के लिये विद्या ज्ञान प्रतियोगिता लेखन लियेखा आदि के लिये पीलाला भाग्य के लिये
गहरा लाल रंग की राखी वं स्वास्थ्य संस्था के लिये नारंगी गुलाबी केसरिया रंग की
राखी विशेष उपयोगी सिद्ध होगी।
6कन्या
राशि के लिये विद्या ज्ञान प्रतियोगिता लेखन लेखा कार्य वालों के लिये नीले रंग की
भाग्य के लिये गहरा लाल रंग की वं स्वास्थ्य प्रतिष्ठा के लिये हरे रंग की राखी
विशेष उपयोगी सिद्ध होगी।
.7तुला
राशि वालों के लिये विद्या प्रतियोगिता लेखन के लिये आदि या उससे जुड़े आजीविका वालों के लिये नीला
बैंगनी जामुनी रंग की भाग्य प्रगति वं बाधाएं दूर करने के लिये हरे रंग की राखी
तथा स्वास्थ्य प्रतिष्ठा के लिये सफेद या फिरोजी रंग की राशि विशेष उपयोगी सिद्ध
होगी ।
8.वृश्चिक
राशि .विद्या ज्ञान प्रतियोगिता लेखन लेखा पत्रकार आदि के लिये पीले रंग की भाग्य प्रगति विपत्ति दूर
करने के लिये हरायश प्रसिद्धि वं स्वास्थ्य के लिये नारंगी या सफेद रंग की राखी
विशेष उपयोगी सिद्ध होगी :
9 गहरे लाल रंग की भाग्य प्रगति वं सफलता के लिये
नारंगी या गुलाबी रंग की स्वास्थ्य यश प्रतिष्ठा के लिये पीले रंग की राखी विशेष
उपयोगी सिद्ध होगी :
10 .मकर
राशि के लिये लेखन ,लेखा ज्ञान पत्रकार कोचिंग पठन .पाठन आदि के लिये फिरोजी
सफेद रंग या बहुरंगी राखी विशेष उपयोगी होगी बाधा
आपत्ति विपत्ति दूर करना या भाग्य वृद्धि के लिये हरे रंग की स्वास्थ्य यश
प्रतिष्ठा के लिये नीला बैंगनी जामुनी रंग की राखी विशेष उपयोगी सिद्ध होंगीण्
.11
कुंभ राशि के लिये लेखन लेखा ज्ञान विद्या प्रतियोगिता आदि क्षेत्र में कार्य करने
वालों के लिये हरे रंग की आपत्ति विपत्ति विघ्न
बाधाएं दूर करने की दृष्टि से या भाग्य वर्धक सफेद या बहुरंगी राखी
तथा स्वास्थ्य प्रतिष्ठा सुख शांति के लिये
नीले रंग की राखी विशेष उपयोगी सिद्ध होगीण्
12
मीन राशि के लिये लेखन लेखा ज्ञान प्रतियोगिता पठन वाचन प्रवचन आज से जुड़े वर्ग
के लिये नारंगी या सफेद रंग भाग्य प्रगति धन संचय आदि के लिये गहरे लाल रंग की तथा
स्वास्थ्य यश प्रतिष्ठा के लिये पीले रंग की राखी विशेष उपयोगी सिद्ध होगी।
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Yena baddho bali raajaa daanavendro mahaabalah;
Tena twaam anubadhnaami rakshey maa chala maa chala!
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