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सर्वश्रेष्ठ माह वर्ष का निकालिए ,सफल


   ग्रहों का गोचर में प्रभाव-जानने की सटीक सरल विधि-
                              (jyotish9999@gmail.com ;9424446706)
 सामान्यतः जन्म के पश्चात जन्म की राशि के आधार पर जो कि सामान्यता  60 घंटे की अवधि की होती है, के आधार पर ग्रहों के   राशि परिवर्तन के आधार पर भविष्यफल लेखन यह बताया जाता है|
 यह विधि नितांत स्थूल एवं श्रेष्ठ परिणाम सटीक फलदाई नहीं हो  हो सकती है, क्योंकि इससे सूक्ष्म एवं प्रमुख लग्न होती है जो सामान्यतः 2 घंटे की अवधि की होती है| कुंडली में स्थित ग्रह अपरिवर्तनशील होते हैं परंतु गोचर में वही ग्रह राशि परिवर्तन करते हैं जिससे शुभ अशुभ प्रभाव उत्पन्न होते हैं| इसलिए जन्म कुंडली में स्थित ग्रहों की उपेक्षा करना अनदेखा करना अथवा मात्र  चंद्र स्थित राशि के आधार पर गोचर फल कथन नितांत अप्रमाणिक एवं अंधेरे में   तीर तुक्का अथवा अंधेरे में लाठी चलाना जैसा अविवेकपूर्ण कार्य होगा यह होता है |इससे ना केवल ज्योतिष विद्या पर प्रश्नचिन्ह लगता है वर्णन आस्था श्रद्धा एवं विश्वास का भी अनजाने में ही तथाकथित  ज्योतिषी गला घोटने जैसा निंदनीय कार्य करते हैं-
       जन्म कुंडली में स्थित ग्रह जितना अधिक शुभ कारक सशक्त होगा उतना ही अशुभ फल कम से कम होगा एवं पग पग पर उसको सफलता  सुख यश प्रगति प्रसिद्धि प्राप्त होती रहती है| जो ग्रह जन्मकुंडली में  अशुभ स्थिति में होगा उस ग्रह पर से अन्य ग्रहों का विचरण भी अशुभ अधिक होगा, तथा शुभ फल की स्थिति बनने पर भी अनुकूल सफल सफलता प्रगति आदि में विभिन्न बाधाएं उत्पन्न होंगी|
    कोई भी ग्रह जन्मकुंडली में स्थित ग्रह के साथ अथवा जन्म कुंडली में स्थित ग्रह की राशि पर अथवा उससे सातवीं राशिफल गोचर में आता है तो विशेष फल  का सृजन करता है| यह फल शुभ एवं अशुभ दोनों प्रकार का हो सकता है| इस विधि में चंद्र राशि को लग्न मानकर अन्य भागों में गोचर ग्रह की परिकल्पना की जाती है|
    सामान्य प्रचलित विधि-जो ग्रह चंद्र की राशि से जिस दूरी पर होता है उसके आधार पर जैसे चंद्रमा ,जन्म राशि से  गोचर में 1367 1011;शनि मंगल एवं राहु चंद्र राशि से  3. 6: 11:00 होने पर शुभ; बुद्ध, चंद्र राशि से2 .4. 6. 8. 1.0. 11.,गुरु दो. 5. 7.  9. 11  राशिफल उत्तम फल प्रदान करता है|
     इस प्रकार यदि सूर्य11.  वा  होने पर भी यदि जन्म कुंडली स्थित  ग्रह की राशि पर से भ्रमण करता है तो आवश्यक नहीं है कि वह शुभ फल ही प्रदान कर सकेगा इसके लिए जन्म कुंडली स्थित ग्रह की राशि के आधार पर मिलने वाले फल चंद्र स्थित राशि से दूरी वाली विधि के अनुसार श्रेष्ठ शुभ अशुभ सटीक स्थिति का ज्ञान कर सकते हैं-
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न्म कुंडली में स्थित ग्रह से जब भी कोई ग्रह उसे ही राशि पर या उससे सातवें राशि पर भविष्य में अथवा गोचर में भ्रमण करता है अथवा आता है तो उसके परिणाम क्या होते हैं-
                    चंद्र ग्रह के द्वारा भविष्य-(अपनी राशि से शुभ-1.3.6.70.10.11)
चंद्रमा यदि कुंडली में बलवान है शुभ है तो निश्चय ही प्रतिकूल प्रभाव कम होते हैं एवं अनुकूल प्रभाव अधिक प्राप्त होते हैं परंतु यदि शत्रु ग्रह नीच राशि नीच अभिलाषी अथवा शनि राहु सूर्य केतु मंगल के साथ चंद्रमा हो तो अवश्य ही प्रतिकूल प्रभाव प्राप्त होते हैं|
 चंद्रमा यदि कुंडली में बलवान या अशुभ स्थिति में है तो उसके फल में शुभ प्रभाव अधिक होते हैं
 चंद्र जब  कुंडली में सूर्य  स्थित राशि अथवा उससे सातवें राशि पर गोचर में आता है तो शुभ प्रभाव में कमी करता है| अशुभ स्थिति में यह कारक चंद्रमा होने पर रोजगार में परेशानी नेत्र कष्ट धान का भाव अथवा स्वास्थ्य में बाधा उत्पन्न करता है|
 चंद्र जब मंगल या उसे सातवें राशि पर गोचर में होता है तो विवाद अपयश भूमि एवं संपत्ति संबंधित परेशानी प्रदान करता है इससे भी स्थिति में कमी उस स्थिति में ही हो सकती है जबकि चंद्रमा जन्म कुंडली में शुभ स्थिति अथवा बलि हो\
 बुद्ध या उससे सातवें स्थान पर चंद्रमा जब आता है तो ज्ञान व्यापार आदि में प्रतिकूल स्थितियों का निर्माण होता है| सूचनाएं भी अकल्पित यह विचारित प्राप्त होती है|
 गुरु की राशि यशस्वी राशि पर चंद्रमा के भ्रमण कनेसे रोजगार एवं परिवार में विवाद धन एवं शरीर संबंधित बाधा एवं अपने व्यवहार के कारण परेशानियां पैदा होती हैं\
   शुक्र की राशि या उसे सातवें राशि पर जब चंद्रमा पहुंचता है तो दांपत्य सुख प्रेमसुख मनोरंजन सुखाराम एवं विभिन्न प्रकार की सुविधाओं का सृजन होता है भोजन एवं पर्यटन  के भी सुख प्राप्त होते हैं|
 शनि के राशि है उसे सातवें राशि पर चंद्रमा के उपस्थित होने पर कनिष्ठ वर्ग से विवाद हानि व्यापारिक हानि आधी समस्याएं उत्पन्न होती है |
                        मंगल के प्रभाव,- 3.6.11शुभ
मंगल ग्रह जब कुंडली में उपस्थिति ग्रह के साथ या उससे सातवें राशि पर होता है तो उसका फल निम्नानुसार होता है- जन्म कुंडली में मंगल एवं संबंधित ग्रह की स्थिति शुभ होने पर प्रतिकूल प्रभाव में कमी होती है एवं अनुकूल प्रभाव भरपूर प्राप्त होते हैं|
 सूर्य-  उक्त स्थिति में मंगल होने पर रोग बुखार व्यापारिक परेशानी युवा अधिकारियों से परेशानी ऑपरेशन उधर कष्ट चोट एवं पिता को कष्ट प्रदान करता है|
 मंगल चंद्र के साथ अथवा उससे 6.7 दसवीं राशि पर हो तो चोट क्रोध विवाद भाइयों से समस्या अथवा चिंता धन हानि आदि योग बनते हैं\
 बुद्ध बुध के साथ अथवा उससे 6 7 10 में स्थान पर मंगल होने पर .(2.4.5.7.8 .9.12 स्थान में मंगल बैठा ह हो) तो धन हानि योजना नौकरी विवाद भाइयों से कष्ट परेशानी एवं विभिन्न प्रकार के रोग प्रदान कर सकता है|अपयश वाद विवाद लेखक एवं प्रकाशक हेतु अशुभ समय व्यापार में हानि एवं परिचित रिश्तेदार हो पर समस्या की सूचना मिलती है|
 गुरु ग्रह संयुक्त अथवा उसे 6.7 दसवें स्थान पर मंगल होने पर पद अधिकार प्रगति वकालत धार्मिक कार्य यश आदि उच्चस्तरीय सफलताएं मिलती हैं|
शुक्र ग्रह से युक्त अथवा उससे 67 दसवें भाव  की राशि में मंगल होने पर पत्नी प्रेमिका को कष्ट नेत्र कष्ट एवं बुरे प्रकार कि स्त्री या पुरुष से संबंध होने की संभावना होती है इस समय कामवासना की भावना प्रबल होती है.|
 शनि -शनि के साथ उससे 67 दसवीं राशि पर जब मंगल( 2,4,5,8,9 ,12 भाव में अथवा शत्रु राशि में स्थित  हो) तो विभिन्न विभाग आरोप अपयश मुकदमा कनिष्ठ वर्ग से परेशानी असहयोग विपरीत लिंग वर्ग से हानि विशेष रुप से स्त्री वर्ग से परेशानी एवं मानसिक तनाव की स्थिति बनती है
             गुरु- यह ग्रह गोचर में सर्वाधिक शुभ अशुभ प्रभावों की सृजना करता है|
जन्म कुंडली में सूर्य की राशि या सूर्य के साथ उससे पांचवा सातवां या नबी राशि पर गुरु गोचर में आता है तो उच्च पद स्वास्थ्य मनोबल धन ज्ञान उच्च स्तरीय सफलता आदि प्रदान करता है|
 यदि गुरु चंद्र लग्न का शत्रु अथवा 3.6 .10 .11 राशि में बैठा हो तो यह रोजगार में फेरबदल शारीरिक कष्ट उच्च अधिकारियों से हानि एवं हृदय तथा यात्रा कष्ट भी प्रदान कर सकता है|
चंद्र ग्रह के साथ जन्म कुंडली में हो अथवा चंद्रमा से 5 वी 7 वी नवीन राशि में गुरु  गोचर में आने पर रोग मानसिक कष्ट मां से मतभेद या उनके सुख में कमी अथवा वियोग धन हानि व्यापारिक कष्ट एवं विभिन्न प्रकार की मानसिक परेशानियां उत्पन्न करता है|
 मंगल के साथ या उससे सातवीं पांचवी राशि पर अथवा नंबर  नमी राशि पर  जब गोचर में गुरु आता है तो विभिन्न क्षेत्रों में स्तरीय सफलता प्रदान करता है जैसे विवाद में विजय रोजगार में पद यश अधिकार वृद्धि व्यापार में लाभ वरिष्ठ अधिकारियों की कृपा प्रतियोगी प्रतियोगी क्षेत्र में उच्चस्तरीय सफलता अर्थात विभिन्न स्तर पर गुरु वृष राशि पर आने पर सफलताएं अर्जित करता है|
बुध- के साथ अथवा उससे 759 राशिफल गुरु जब गोचर में आता है तो विभिन्न प्रकार की प्रगति उन्नति व्यापार शिक्षा लेखन भाषण राजनीति आदि में सफलताएं प्रदान करता है परंतु कभी-कभी जब बुद्ध शनि राहु के साथ या उनसे दृष्ट हो तो शुभ प्रभाव में कमी आती है|
 गुरु ग्रह जब  कुंडली में स्थित अपनी राशि अथवा उससे 5 वी 7 वी या नवम राशि में गोचर में आता है तो विभिन्न प्रकार की सुख सुविधाओं का सृजन करता है परंतु यदि गुरु जन्म कुंडली में 3 6 8 12 भाव में अथवा 27 10 11 राशि में बैठा हूं या शनि राज राहु के साथ गुरु हो तो रोजगार परिवार और धन के लिए अशुभ फल प्रदान करता है|
शुक्र -गुरु जब शुक्र के साथ उससे 579 राशिफल हो या 12वीं राशि पर हो तो विभिन्न प्रकार के सुख सचेत करता है परंतु गुरु यदि  चंद्र लगना का शत्रु हूं अथवा शनि राहु के साथ या उन से देखा जाता हो तो विभिन्न प्रकार की बाधा कष्ट विवाद उत्पन्न करता है
गुरु शनि के साथ उससे 5.7.9 राशि पर होने पर विशेषता जन्म कुंडली में शनि प्रथम द्वितीय तृतीय 6. सप्तम अष्टम दशम एकादश भाव में हो तो धन की प्राप्ति भूमि की प्राप्ति उच्च पद प्रतिष्ठा अवश्य ही प्राप्त होते हैं अन्य स्थितियों में भी शनि की राशि या उससे संबंधित होने पर उत्तम फल प्रदान करता है|
शनि ग्रह का प्रभाव- गोचर में शनि ग्रह सर्वाधिक प्रभावशाली शुभ अशुभ का निर्माण करता है
 यदि गुरु ग्रह अनुकूल ना हो यह शुभ स्थिति में ना हो तो गुरु एवं शनि मिलकर पूरा वर्ष अनिष्टकारी बना देते हैं ऐसी स्थिति सामान्य है प्रत्येक 12 वर्ष में निर्मित हो सकती है|
 शनि सूर्य की राशि उससे 4 7 11 राशि पर हो तो रोजगार में विशेष कष्ट पिता को कष्ट उदर रोग एवं परेशानियों का सामना करना पड़ता है|
शनि चंद्रमा के साथ उससे 4 7 11 भाव में हो मानसिक कष्ट सर्दी जुकाम जल रोग छाती से संबंधित कष्ट उदर रोग की संभावना बढ़ती है नीरसता उदासीनता अपव्यय के योग भी बनते हैं परंतु जन्म राशि 2736 10 11 हो तो ऐसी स्थिति में  जीवन सामान्य एवं धन व्यापार या आय की स्थिति उत्तम निर्मित होती है नेतृत्व के भी श्रेष्ठ योग बनते हैं|
 शनि मंगल के साथ राहु से सातवें स्थान पर हो तो विरोध विवाद भाइयों से परेशानी रक्त विकार एवं रोजगार में व्यवधान पैदा होते हैं|
 शनि जब बुध के साथ यह उससे 4 7 11 भाव में हो तो लेखन प्रकाशन विद्या व्यापार मामा चर्म रोग मतभेद वियोग आदि की स्थिति निर्मित होती है|
 शनि जब गुरु या उससे 4 7 11 राशिफल हो तो रोजगार में परेशानी पुत्र से मतभेद अथवा सुख में बाधा वियोग लीवर रोग एवं उच्च अधिकारियों तथा परिवार के बड़ों से मतभेद पैदा होते हैं|
 शनि जब शुक्र की राशि पर या उसके साथ अथवा उससे 47 ग्यारहवें भाव में अथवा राशि पर हो तो दांपत्य जीवन में मतभेद विवाह तलाक यह सुख बाधा पहुंचाता है विशेष रूप से यदि जन्म कुंडली में शुक्र राहु शनि अथवा बुद्ध अशुभ स्थिति में हूं परंतु 36 7.10. 11  चंद्रलग्न होने पर धन आदि स्थितियों में अवश्य ही अनुकूल परिणाम प्राप्त होते हैं|
 शनि अपनी राशि पर अथवा उससे 4 7 11 राशि पर गोचर में जब आता है तो घुटने से पैरों तक का दर्द रूप भूमि एवं संपत्ति में की हानि कनिष्ठ वर्ग से अपयश बाधा विरोध मतभेद आदि प्रदान करता है परंतु 36 710 11 राशि का चंद्र हो तो सभी प्रकार से अनुकूल फल प्रदान होते हैं|
सामान्यतः राहु शनि जैसे ही प्रभाव पैदा करता है परंतु यदि किसी की राशि 367 10 11 हो तो राहु अनुकूल फलों को प्रदान करता है विशेष रूप से जब शनि शुक्र बुध से संबंधित हो|केतू मंगल जेसे फल प्रदान कर्ता है |
       किसी भी वर्ष में कौन सा महीना श्रेष्ठ होगा
सूर्य ग्रह के गोचर का परीक्षण करना चाहिए--
यदि हमें एक माह का  भविष्यफल  जानना यह बताना है  तो हमें सूर्य पर निर्भर होना पड़ेगा| सूर्य एक राशि पर लगभग 1 महीने स्थित रहता है| इसलिए सूर्य का प्रभाव विशेष महत्वपूर्ण है| अब यदि 1 महीने में भी कौन से दिन श्रेष्ठ है तो हमें बुद्ध की सहायता लेना होगी| यदि बुध ग्रह एवं सूर्य ग्रह भविष्यफल कथन के नियम से अनुकूल या अशुभ हो तो निश्चय ही वे दिन श्रेष्ठ होंगे| इसमें भी अति उत्तम दिन देखने के लिए हमें चंद्रमा पर निर्भर होना होता है| चंद्रमा के आधार पर हम उसे 1 महीने में श्रेष्ठ लगभग 10 दिन कौन से हैं ज्ञात कर सकते हैं| इस प्रकार सूर्य चंद्र एवं बुध के माध्यम से वर्ष का श्रेष्ठ समय भी निकाला जा सकता है|
       सूर्य ग्रह का गोचर में जन्म कुंडली के अन्य ग्रहों पर से भ्रमण क्या फल प्रदान करता है जबकि सूर्य चंद्र की राशि से 36 10 11 होने पर श्रेष्ठ फल प्रदान करता है| अब यदि श्रेष्ठ फल की स्थिति होने पर भी सूर्य जन्म कुंडली में स्थित ग्रह के आधार पर प्रतिकूल स्थिति में हो तो हमें दोनों को सामंजस्य एवं संतुलन कर सही वार्ता या भविष्य कथन करना चाहिए|
  सूर्य जन्म कुंडली  मैं जिस स्थिति में अथवा राशि में है उस राशि पर गोचर में आने पर अथवा उससे साथ में राशि पर आने पर धन लाभ खर्च प्रदान करता है शारीरिक कष्ट प्रदान करता है रोक देता है व्यापार में परेशानी आती हैं पिता अथवा घर के बड़ों से मतभेद अथवा उन को शारीरिक कष्ट या उनके सुख में कमी करता है|
 जब सूर्य चंद्रमा की राशि या उसे सातवे राशि पर गोचर में आता है तो जल रोग मानसिक कष्ट एवं सामान्यता है बता भी प्रदान करता है|
 सूर्य मंगल की राशि या उससे सातवें स्थान पर जब गोचर में होता है तो मत भेज भ्रम गलतफहमी शारीरिक मानसिक कष्ट उच्च अधिकारियों से परेशानी व्यापार में हानि के योग होते हैं परंतु यदि जन्म कुंडली में मंगल शुभ स्थिति में है यह अनुकूल स्थिति में है तो निश्चय ही श्रेष्ठ फल प्रदान करता है|
   सूर्य बुध की राशि या उससे शादी राशि पर आता है तो राजनीति लेखक प्रकाशक कवि विद्यार्थी प्रवचनकर्ता आदि वर्गों को विभिन्न प्रकार की सफलता है यश प्रतिष्ठा धन प्रदान करता है|
 सूर्य जब गुरु की राशि है उसे सातवें राशि पर भ्रमण करता है तो रोग एवं व्यापार में विशेष परेशानी खर्च होता है जो रोजगार में बाधाएं रहती हैं एवं सफलताएं अत्यल्प हो जाती हैं|
 शुक्र की राशि है उसे सातवें राशि पर जब सूर्य गोचर में आता है तो दांपत्य साथी के स्वास्थ्य में बाधाएं विशेष रूप से पत्नी के स्वास्थ्य में बाधाएं एवं उसको परेशानियां उत्पन्न होती हैं भोग विलास एवं स्त्री वर्ग पर वह होता है रोजगार एवं राजनीति में परेशानी उत्पन्न होती है|
 सूर्य जब जन्म कुंडली के शनि राशि पर य से सातवें राशि पर गोचर में आता है तो आर्थिक परेशानी यात्रा से परेशानी कनिष्ठ वर्ग से परेशानी स्त्री वर्ग से कष्ट पैरों में रोग या कष्ट तथा परिवार के सदस्यों से अनुरोध मतभेद की संभावनाएं प्रबल हो जाती है| ऐसी स्थिति में यदि सूर्य 48 12   वा चंद्र राशि से हो तो यह प्रतिकूलता बहुत अधिक होती है|


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श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -