16दिन श्राद्ध: उपयोगिता, पिता की मृत्यु तिथि एवं माता का नवमी तिथि को करें- श्राद्ध कर्म उचित समय-दोपहर 1 1 : 3 0 से 12 : 30 बजे तक श्राद्ध कर लेना चाहिए। दैनिक जल एवं टिल तर्पण प्रातः, पहले पितृ,-दक्षिण दिशा,ऋषि उत्तर दिशा एवं अंत में पूर्व दिशा में देवताon को अर्पण करे. चाहिए।हमारे धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में कहा गया है हैं कि इन दिनों में पृथ्वी लोक के सबसे नजदीक होता है पितर लोक। जहां हमारे पितर निवास करते हैं जिनका पुर्नजन्म नहीं होता है। वो सभी अपने रिश्ते-नातेदारों से मिलने आते हैं। नियमित रूप से उनकी पूजा-पाठ कैसे किया जाए , इसके लिए ही यह श्राद्ध की व्यवस्था की गई है। श्राद्ध - श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म वर्ष के किसी भी पक्ष में जिस तिथि को घर के पूर्वज का देहांत हुआ हो उनका श्राद्ध कर्म पितृपक्ष की उसी तिथि को करना । ये कर्म- तर्पण , पिंडदान , ब्राह्मण भोज है। इसके अलावा कुछ जीवों को भोजन कराना भी इस कर्म में शामिल है। ये जीव हैं गाय , कुत्ता , कौआ , चींटी आदि। पूर्णिमा श्राद्ध - निधन वर्ष की किसी भी पूर्णिमा को हुआ हो। शास्त्रों में भाद्रपद पूर्ण
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