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घट स्थापना –9.4. 2024नियम-घट घट स्थापना

घट स्थापना –मुहूर्त नियम घट स्थापना एवं पूजा के नियम - 1-चैत्र शुक्ल पक्ष   /आश्वनी कृष्ण पक्ष-प्रतिपदा आवश्यक . -श्रेष्ठ प्रात:काल , मध्य दिन वर्जित .आवश्यक स्थिति में अभिजित मुहूर्त. 2- नक्षत्र चित्रा, योग -व्यतिपात,वैधृति , रौद्र ,व्याघात,अहिर्बुधन्यु, दग्ध तिथि , अमावस्या सूर्योदय समय बिलकुल नहीं हो,–वर्जित. अन्यथा –गृह कलह,चोरी,अपयश संभव. 3-स्थिर लग्न वर्जित –कर्क,मकर,कुम्भ,, 4- द्विस्वभाव उत्तम- लग्न –मिथुन,कन्या,मीना लग्न . 5- दोपहर पश्चात् एवं संध्या पूर्व कभी पूजा नहीं करे उक्त नियमों के अनुसार वैधृति योग 14. 2 0   बजे तक है इसलिए ऐसी स्थिति में मध्य दिन में अभिजित काल में घट या कलश स्थापना मान्य है.. 11 :57 - 12 : 48   शुभ मुहूर्त है   आज कल पंडित एवं आयोजक शाम को या रात को भी कलश या घट स्थापना करने से नहीं चूकते या धर्म शास्त्रों के   के नियमों का उल्लघन ही है। आज कल पंडित एवं आयोजक शाम को या रात को भी कलश या घट स्थापना करने से नहीं चूकते या धर्म शास्त्रों केनियमों का उल्लघन ही है। According to the above rules, Vaidhriti Yoga is till 14.20 pm, he

वर्ष में चार नवरात्र पर्व, युग - महत्व के अनुसार-

  वर्ष में चार नवरात्र पर्व, युग - महत्व के अनुसार- 1-सत्य युग-चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्र; -रम्भ कल्प में-उग्र चंडा देवी 18 भुजा, देवी. (उग्रचंडा,प्रचंड़ा,चंडोग्रा,चंड नायिका,चंडा,चंडवती,चामुण्डा,चंडिका.) -लोहित कल्प में-16 भुजा वाली भद्रकाली, महाकाली दस पैर एवं दस मुख वाली अवतरित हुई थी.madhu-कैटभ असुर का वध किया था. -भद्रकाली पूजा में देवी-जयंती,मंगला,कलि,भद्रकाली,कपालिनी,दुर्गा,कश्म,शिव,धात्री,की पूजा करे. नंदा देवी प्रमुख ; 2- त्रेता युग - आषाढ़ शुक्ल पक्ष के नवरात्र ; -महा सरस्वती आठ भुजा युक्ता अवतरित हुई, शुम्भासुर,निशुम्भ वध केलिए . -प्रमुख देवी शाकम्भरी एवं शताक्षी है, 3-द्वापर- माघ शुक्ल पक्ष के नवरात्र ; 4-कलियुग-आश्वनी(कुवार) शुक्ल पक्ष के नवरात्र; देवी स्वरूप - चैत्र माह में 16 भुजा युक्त देवी दुर्गा ने महिसासुर का वध किया था .16 भुजा की महिष मर्दनी देवी की पूजा करना चाहिए. -प्रमुख स्वरूप -रक्त चंडिका/रक्त दंतिका.भीमा(पुत्र संतान प्रदायनी),एकवीरा,कालरात्रि अवतरित हु चैत्र शुक्ल नवमी को अवतरित-भुवनेश्वरी(तारकासुर वध के लिए )..  

भद्रा- परिचय कथा? भद्रा कौन है,कहाँ रहती है? ?भद्रा मे कौन से कार्य सफल होते है? क्या ,न करे?

*भद्रा कौन ? भद्रा   भगवान सूर्य का कन्या है ।गदर्भ मुख,लम्बी पुंछ एवं तीन पैर युक्ता . सूर्य की पत्नी छाया से उत्पन्न है और शनि की सगी बहन है। यह काले वर्ण , लंबे केश , बड़े-बड़े दांत तथा भयंकर रूप वाली है। - -   ‘ श्रीपति’ - मूलक्र्षे शूलयोगे रवि दिन दशमी फाल्गुन कृष्णा याता विष्टिर्निशायां प्रभवति नियतं शंकर पहिचांगे।।’’ अर्थात फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि, रविवार, मूल नक्षत्र , शूलयोग में रात्रि समय भद्रा का उद्भव भगवान शंकर के शरीर से हुआ । * भद्रा की उत्पत्ति कथा और प्रभाव* भद्रा भगवान सूर्य नारायण और छाया की पुत्री हैं और शनि देव की सगी बहन हैं। भद्रा का रंग काला , रूप भयंकर , लम्बे केश व दांत विकराल हैं। जन्म लेते ही वह संसार को ग्रसने दौड़ी , यज्ञों में विघ्न पहुंचाने लगी , उत्सवों और मंगल- कार्यों में उपद्रव करने लगी। उसके भयंकर रूप और उपद्रवी स्वभाव को देखकर कोई भी उससे विवाह करने को तैयार नहीं हुआ। सूर्य देव ने अपनी पुत्री के लिए स्वयंवर का आयोजन किया तो भद्रा ने तोरण , मण्डप आदि सभी उखाड़ कर आयोजन को नष्ट कर डाला और सभी लोगों को कष्ट देने लग