ग्रहो का कुचक्र ग्रहण पूर्व , पश्चात क्या रहस्य ? अर्थ संकट गंभीर स्थिति में कौनसा ग्रह ले जा रहा ? राष्ट्र बनाम बेनामी , बेलगाम , आवेश , आक्रोश , उन्माद , उपद्रव ओर अग्नि आहुति का। घरो के चिराग बुझने का , बेसहारा होते लोगो का , तिनका तिनका जोड़ कर बनाये आशियाना अग्नि के हवाले होते मूक दर्शक बने देखने का , उन्माद आक्रोश आवेश की भेंट हुए कभी न लौटने वालेभाई , पिता , अपनो के वियोग की वियाग्रा की तंद्रा में , सूनी सूनी पथराई आंखों से जीवन की भोर में ही , ग्रहण लगते , अंधेरा हुए भविष्य को जीने की विवशता से भय भीत आतंकित बुझे बुझे चेहरे सब नियति दुष्ट ग्रहो का अनियंत्रित षड्यंत्र ही तो है। ज्योतिष के ज्योति/ , रहस्य भेदक नेत्रों से यदि हम विहंग अवलोकन या विश्लेषणात्मक सिंहावलोकन करने पर , ज्ञात हुआ ग्रहों का षड्यंत्र ही है , यह दुःस्थिति। क्यो इस अवधि मे , विश्व के किसी भी शासक के विरुद्ध जनमानस एवं उनके द्वारा लिए गए निर्णय , नीति ,जन योजना के प्रयासो पर , प्रतिकूल प्रभाव के असहयोग , उन्माद का जिन्न आबैठा , ? राष्ट्र /या प्रदेश , क्य
ज्योतिषी,वास्तु रत्न, हस्तरेखा ,अनुष्ठान,धर्म,व्रत,पर्व, |